दैवव्यापाश्रय चिकित्सा सहित
चिकित्सा से कैंसर की हार!!
इस लेख की शुरूआत हम एक सत्य चिकित्सानुभव से कर रहे हैं। हमीरपुर (उ.प्र.) में भारत उदय गुरुकुल के संस्थापक डॉ. रविकान्त पाठक जो आईआईटी बॉम्बे से शिक्षा प्राप्त हैं, उन्होंने विश्व भर के कई देशों में प्रवास किया, आप स्वीडन में वायु प्रदूषण व जलवायु प्रदूषण के प्रोफेसर हैं। इनके काका को कर्कट रोग (ग्रास नली कैंसर) हो गया, डॉ. पाठक जी के ८१ वर्षीय काका
को लेकर आयुष ग्राम चिकित्सालय चित्रकूट आये।
हमने सारी रिपोर्टें देखीं, डॉ. पाठक ने बताया कि पीजीआई, लखनऊ में इनका जीवन केवल ३ माह ही बताया गया है। यह सुनकर फिर मैंने एलोपैथ की ओर रुख नहीं किया और आयुष ग्राम चित्रकूट चले आये।
डॉ. पाठक जी ने स्वत: काका को केवल देशी गाय के गोदुग्ध और आर्गेनिक कृषि से उत्पन्न मुसम्मी के रस पर रख छोड़ा था। साथ में १-२ घण्टा नित्य मंत्र जप।
हमने चिकित्सा करना तो प्रारम्भ की पर राम-नाम जप की संख्या बढ़ाने की सलाह दी, वे बड़ी तत्परता व निष्ठा के साथ चिकित्सा के साथ और जप बढ़ा दिए। थोड़े ही दिन में उनमें सकारात्मक परिवर्तन भी आने लगे।
बहुत ही हर्ष के साथ बताना पड़ रहा है कि डॉ. पाठक जी के ‘काका’ को अब एक वर्ष हो गये, प्रतिमाह ‘फॉलो-अप’ के लिए आयुष ग्राम चिकित्सालय में आते हैं और आराम से सुख पूर्वक उनका जीवन चल रहा है। डॉ. पाठक जी ने यह बात आयुष ग्राम (ट्रस्ट) के गूगल रिव्यू में भी अपनी खुशी पोस्ट की है।
अभी पिछले माह फरवरी में डॉ. पाठक जी काका को लेकर आए, हमने रक्त परीक्षण कराया, बहुत ही अच्छी स्थिति थी। कोई कह ही नहीं सकता कि उन्हें कैंसर है।
इस बार तो ‘काका श्री’ जिद पकड़े थे कि डॉ. साहब! आप तो हमें अब रोटी खाने को लिखो, हम मुस्कुराये और कहा कि आप जप की संख्या ५० हजार से अधिक कर दें हम रोटी खाने को लिख देंगे।
तभी डॉ. रविकान्त पाठक जी ने ‘काका श्री’ को जिस तरह से समझाना शुरू किया वह उल्लेख करने योग्य है।
डॉ. पाठक जी ने कहा चाचा जी! आप समझो तो कि प्रकृति वृद्धावस्था में दाँत इसीलिए गिराती है कि आप अब तरल आहार लें न कि चबाने वाला। हम उनका तर्क सुनकर दंग रह गये।
यह तर्क डॉ. पाठक जी जैसे महानात्मा द्वारा ही बोला जा सकता था जो आईआईटी प्रोफेसर वह भी विदेश में, लेकिन ‘साधक स्वरूप’ में रहते हैं, लम्बी काली जटायें, तेजस्वी मुख मण्डल, पैरों में खड़ाऊँ, गले में रुद्राक्ष माला।
डॉ. पाठक जी ने हमसे कहा कि हमने वैदिक चिकित्सा अपनाकर एलोपैथ की भविष्यवाणी झूठी कर दी कि आपके काका केवल ३ माह रहेंगे।
आज का मानव वातावरण, संस्कार, संग, संस्कार और व्यवहार के चलते इतना भोगवाद, अर्थवाद और भौतिकवाद से घिर गया है कि सब कुछ पैसे से और भौतिकता से पा लेना चाहता है, जबकि ऐसा संभव ही नहीं है।
हमारे ऋषियों, मुनियों, पूर्वजों, आचार्यों और भारतीय चिकित्सा वैज्ञानिकों ने ऐसे विज्ञान की खोज की जिसे ‘परा विज्ञान’ कहते हैं। उन्होंने उन तत्त्वों की खोज की जो ब्रह्माण्डीय ऊर्जा से सम्बन्ध रखते हैं। इसीलिए इतने विशाल शास्त्र की रचना, करते हुए चरक जैसा महावैज्ञानिक पहले दैवव्यापाश्रय चिकित्सा और उसके प्रभाव की खोज की उन्होंने स्पष्ट लिखा कि-
‘‘मंत्र, औषधि धारण, मणि (रत्न) धारण, मांगलिक कर्म यथा जलाशय निर्माण, पूजा, प्रतिदिन देवता, तपस्वी, ब्राह्मण, गुरु, गाय, कन्या पूजन, देव, ऋषि, पितृ तर्पण, देवताओं को उपहार चढ़ाना, हवन, शौच, संतोष, तप, स्वाध्याय, ईश्वराराधना जैसे नियम, प्रायश्चित्त, उपवास, स्वस्तिवाचन, प्रणाम करना, तीर्थ-देवालय आदि जाना ये सभी के सभी एक चिकित्सीय प्रभाव दिखाते हैं।’’
शास्त्र स्पष्ट लिखता है-
दानैर्दयादिभिरपि द्विजदेवतागोगुर्वर्चनाप्रणतिभिश्च जपैस्तपोभि:।
इत्युक्तपुण्य निचयैरुपचीयमान: प्राक्पापजा अपि रुज: प्रशमं प्रयान्ति।।
अर्थात् दान, उदारता, सभी प्राणियों के प्रति दया, संस्कारवान् और तपस्वी ब्राह्मण, देवता, गाय की पूजा उन्हें प्रणाम करना, जप, तप इनसे संचित पुण्य, पूर्व पाप से उत्पन्न रोगों को शांत करते हैं।
किन्तु भारत का दुर्भाग्य है कि जहाँ चरक, सुश्रुत, धन्वन्तरि, वाग्भट जैसे महान् चिकित्सा वैज्ञानिक हुए और उन्होंने इतना विशाल वाङ्मय हमारे कल्याण के लिए सौंपा पर हम उसकी उपेक्षा कर रहे हैं, उसका उपयोग नहीं कर रहे हैं और दु:खी, परेशान होकर भटक रहे हैं।
आपको बताते चलें कि हम भारतवासी भले ही इसकी अनदेखी कर रहे हैं पर अमेरिका जैसे देश इसका उपयोग कर रहे हैं। आध्यात्मिक उपचार के नाम पर दैवव्यापाश्रय चिकित्सा का उपयोग दुनियाभर में तेजी से बढ़ रहा है ६४ प्रतिशत से अधिक अमेरिकी लोगी आध्यात्मिक उपचार का लाभ उठा रहे हैं। कुछ विदेशी चिकित्सकों का कहना है कि वे आध्यात्मिक उपचार/उपचार प्रार्थना के माध्यम से रोगियों की बीमारी का पूरा इलाज कर सकते हैं। समग्र देखभाल मॉडल में, मानव को एक जैविक सामाजिक, मनोवैज्ञानिक और आध्यात्मिक प्राणी माना जाता है। ईरान में भी आध्यात्मिक उपचार पर अच्छा काम हुआ है। चिकित्सा के महान् आचार्य वाग्भट के एक सूत्र के साथ हम लेख को सम्पन्न करते हैं-
दानशीलदयासत्य ब्रह्मचर्यकृतज्ञता।
रसायनानि मैत्री च पुण्यायुर्वृद्धिकृद्गण:।।
अ.हृ.शा. ३/१२०।।
उदारता, मधुर और मर्यादित आचरण, व्यवहार, सभी के प्रति दया, सत्यभाषण, ब्रह्मचर्य के नियमों का पालन, दूसरे के द्वारा किए उपकार को सदा मानते रहना, सभी के प्रति मैत्री भाव और रसायन औषधियों का सेवन ये कर्म व्यक्ति के पुण्य तथा आयु को बढ़ाते हैं। सर्व प्रजानां हितकाम्ययेदम्
आयुष ग्राम(चिकित्सा पल्लव)
अंक मार्च 2024
आयुष ग्राम कार्यालय आयुष ग्राम (ट्रस्ट) परिसर सूरजकुण्ड रोड (आयुष ग्राम मार्ग) चित्रकूट धाम 210205(उ०प्र०)
प्रधान सम्पादक
आचार्य डॉ. मदनगोपाल वाजपेयी
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