इस मौसम में सेहत के लिए आवश्यक-

शृंगवेराम्बु ... ... ...जलदाम्बु च।। (वाग्भट) से

वसंत ऋतु अपने साथ बीमारियों की कतार भी लेकर आता है। सभी को याद होगा कि कोरोना इसी ऋतु में प्रकट हुआ था। तापमान में उतार-चढ़ाव, दिन में तेज धूप और रातें ठण्डी, कभी कहीं बारिश। ऐसे में हमारा शरीर तालमेल नहीं बिठा पाता, इधर प्रदूषण ने रही-सही कसर पूरी कर दी। फिर तो एलर्जी, त्वचा का संक्रमण, पेट का फूलना, शरीर में दर्द, पेट भरा-भरा रहना, जोड़ों का दर्द, चिड़चिड़ापन, घबराहट, मानसिक अस्थिरता, खाँसी, बलगम, छींकें, दस्त, कब्ज, उल्टी आदि परेशानियाँ आ जाती हैं। कई हजार साल पहले भारतीय चिकित्सा वैज्ञानिक, भगवान् धन्वन्तरि के उपासक आचार्य चरक, सुश्रुत फिर वाग्भट ने इस प्रकरण पर पर्याप्त शोध किया। 

आचार्य वाग्भट ने इस ऋतु में रोगप्रतिरोधक क्षमता संतुलित रखने और स्वास्थ्य सम्बन्धी परेशानियों से बचाव हेतु कई बातों के साथ-साथ (अ.हृ.सू. ३/२३ में) लिखा ‘शृंगवेराम्बु साराम्बु मध्यवम्बु जलदाम्बु च।। अर्थात् अदरक/सोंठ, विजयसार, नागरमोथा के जल का सेवन करना चाहिए। वस्तुत: इस ऋतु में रोग को उत्पन्न करने वाला प्रमुख दोष है कफ, तो इनके सेवन से कफ दोष का शमन तो होता ही है और यदि हम मौसमी बीमारी के गिरफ्त में आ गये तो वह भी चली जाती है। 

आप विचार करें कि हमारे प्राचीन भारतीय चिकित्सा वैज्ञानिकों का कितना उदार और वैज्ञानिक दृष्टिकोण रहा है कि उन्होंने सारे उपाय ढूँढे और हम तक पहुँचाया ताकि हमारा स्वास्थ्य सुरक्षित रहे और बचाव में उन औषधियों और द्रव्यों का प्रयोग हो जिससे चयापचय (Metabolism) क्रिया सम्यक् रहे तथा रोगप्रतिरोधक क्षमता बढ़े। 

इन आचार्यों ने एक और बात का ध्यान रखा कि ये द्रव्य सुलभ हों, घर में या घर के आस-पास हों। 

शृंगवेराम्बु- वाग्भटाचार्य ने सर्वप्रथम ‘शृंगवेर’ अर्थात् अदरक/सोंठ का नाम लिया, हम लोगों ने इसे स्वाद के लिए मसालों में भले ही शामिल कर रखा हो पर आपको जानकर आश्चर्य होगा कि वैदिक चिकित्सा में इसका विश्वभैषज या विश्वा नाम है। इसमें एण्टी कैंसर (कैंसररोधी) एण्टी एन्फ्लामेटरी (सूजनरोधी), एण्टीपायरिक (ज्वर नाशक), श्वासहर गुण तक पाये गये हैं। 

अमेरिका जैसे देश में अदरक पर एक हजार से अधिक शोध पत्र प्रकाशित हुये हैं। आचार्य चरक ने इसे स्नेहयुक्त, अग्निवर्धक, वीर्यवर्धक, गरम, वात-कफ निवारक, हृदय के लिए हितकर, रुचि वर्धक और मधुर, विपाकी कहा है। (च.सू. २७/२९६)।

सन् २०२२ में बीआरए सेण्ट्रल यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर देवेश कुमार ने एक रिसर्च में पाया है कि अदरक में रोगप्रतिरोधक क्षमता और हेमोग्लोबिन बढ़ाने के गुण हैं। यह विषय चिकित्सा पल्लव में भी प्रकाशित किया गया था। इसीलिए आचार्य वाग्भट ने इस ऋतु में रोगों से बचाव में अदरक का पहले नाम लिया। अत: इस ऋतु में अदरक डालकर पकाये जल का ही सेवन किया जाना चाहिए। 

सुबह-शाम १०-१० ग्राम अदरक कूटकर २५० मि.ली. पानी में खौलायें जब ४० मि.ली. पानी बचे तो छानकर सुबह खाली पेट और ऐसे ही शाम को तैयार कर पीने से मौसमी बीमारियों से बचाव होता है। ध्यान रहे कि यह काढ़ा केवल वसंत ऋतु में ही सेवन करना है, ग्रीष्म में नहीं। अन्यथा हानि होने की संभावना होगी।

साराम्बु-(विजयसार का पानी) विजयसार के पेड़ भारत में पाये जाते हैं यह रस में कषाय, तिक्त और विपाक में कटु होता है, इसके काण्ड सार का चूर्ण ३-६ ग्राम खौलाकर क्वाथ के रूप में और इसका चूर्ण डालकर  खौलाकर पानी तैयार कर सेवन करने से वसंत ऋतु जन्य विकारों से बचाव होता है। यह मधुमेह रोगियों के लिए हितावह है। 

मध्वम्बु- ताजे जल में असली शहद के घोल को मध्वम्बु कहते हैं। इसे भोजन के बाद सेवन करना चाहिए। यह रोग प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाता है, कफ और मेद (fat) को घटाता है। 

आजकल लोगों में शहद पानी पीने या शहद पानी पीकर वजन घटाने की परम्परा बन गयी है। बहुत से लोग अज्ञानतावश गरम पानी में शहद घोलकर पीते हैं जो पूरी तरह अशास्त्रीय और गलत है, ऐसा करने से शरीर में विषाक्तता उत्पन्न होती है। 

आचार्य वाग्भट ने भोजन के बाद शहद पानी का घोल (मधूदक) पीने की बात कही है। 

शहद गरम, कषाय और रुक्ष होता है। यह ‘श्वासकासतिसारजित्’ (श्वास, खाँसी और पतले दस्तों को मिटाने वाला) होता है। 

जलदाम्बु- वाग्भट ने इस  ऋतु में ‘जलदाम्बु’ का प्रयोग बताया है जो वास्तव में अद्भुत है। 

इसीलिए अपने प्राचीन आचार्यों की वैज्ञानिकता को नमन करना पड़ता है। इस ऋतु में जलदाम्बु के सेवन से जहाँ रोगों से बचाव होता हैं वहीं मानसिक एवं शारीरिक स्वस्थता भी ठीक रहती है। पाचन प्रणाली को भी यह ठीक रखता है। 

‘नागरमोथा’ नामक घास को ‘जलद’ कहते हैं। यह सुलभ ऐसी है कि पूरे भारत में जलीय तथा आद्र्र प्रदेशों में होती है, इसकी जड़ प्रयोग की जाती है। यह जड़ी बूटी की दूकान में भी मिलती है पर अधिकांश जड़ी बूटी वाले कई साल पुराना बेचते हैं जो असरकारक नहीं होती। 

१० ग्राम नागरमोथा पाउडर को डेढ़ लीटर पानी में खौलाकर एक लीटर शेषकर छानकर स्टील की थर्मस बोतल में भरकर रख लें और सामान्य पानी की जगह इसे ही पीना चाहिए। 

१० ग्राम नागरमोथा पाउडर को २०० मि.ली. पानी में रात में भिगो दें, सुबह खौलाकर ३० मि.ली. बचे तो चाय की तरह सुबह और ऐसे ही शाम को सेवन करने से वसंत ऋतु जन्य सभी बीमारियों से बचाव तो होता ही है साथ ही साथ इसके प्रयोग से अच्छी नींद, प्रसन्नता बढ़ती है, चिड़चिड़ापन मुक्ति, उदरगत वायु (Gas), कब्ज, पेट के कीड़े, कफ, आँव, पतले दस्त, पेशाब की रुकावट, त्वचा विकार, महिलाओं के गर्भाशय विकारों की निवृत्ति मुफ्त में मिल जाती है। शास्त्र में इसे बलवर्धक और विषनिवारक भी बताया है। वसन्त ऋतु में होने वाली अरुचि, अग्निमांद्य (Indigation), अपच, आँव, प्यास, खाँसी, श्वास, मासिक धर्म की रुकावट को यह अच्छे से दूर करता है। 

इसका एक विशेष लाभ उन माताओं को होता है जिनके दूध कम निकलता है और दूध दूषित रहता है। इसके पाउडर को पीसकर स्तनों में लेप भी किया जाता है। 

आचार्य चरक ने-मुस्ता संग्राहकदीपनीयपाचनीयानाम्।’ च.सू. २५/४०।। नागरमोथा में चयापचय (Metabolism) को ठीक रखने का श्रेष्ठ गुण बताया है। 

पर दुर्भाग्य है कि हमारे २०वीं और २१वीं सदी के आयुर्वेदज्ञों ने ‘नागरमोथा के साथ न्याय नहीं किया। इतनी श्रेष्ठ औषधि के प्रचार-प्रसार पर ध्यान ही नहीं दिया जिसका परिणाम यह हुआ कि अपने घर के आस-पास इतनी अच्छी और सस्ती औषधि होने के बावजूद थोड़ी-मोड़ी समस्याओं में जहरीली एण्टीबायोटिक और पेन किलर ढूँढने के लिए हम मजबूर हुये। यह यकृत् क्रिया को भी ठीक करती है और खून की कमी नहीं होने देती।

गठिया के रोगियों में भी यह जड़ी-बूटी अच्छी राहत देती है। इसीलिए आयुष ग्राम चिकित्सालय चित्रकूट में रसक्रिया विधि से अदरक, गिलोय, नागरमोथा और अभया मिश्रित कषाय तैयार कर वसंत ऋतु जन्य व्याधियों में वितरण किया जाता है। 

सर्व प्रजानां हितकाम्ययेदम्

आयुष ग्राम(चिकित्सा पल्लव)

अंक मार्च 2024

आयुष ग्राम कार्यालय आयुष ग्राम (ट्रस्ट) परिसर सूरजकुण्ड रोड (आयुष ग्राम मार्ग) चित्रकूट धाम 210205(उ०प्र०)

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