माँ में दूध निकलने लगा, विदारी कन्द से !!

 

चमत्कारिक जड़ी-बूटी रहस्य-                              

  माँ में दूध निकलने लगा विदारी कन्द से !!  

                पिछले जून माह रीवा (म.प्र.) से श्रीमती रजनी शुक्ला 28 को आयुष ग्राम चित्रकूट उनके माता-पिता लाये। 2 माह पहले उसे एक बच्ची हुयी थी। बच्ची के जन्म से ही माँ को दूध नहीं निकला




                बच्ची को ऊपर का दूध पिलाते तो तुरन्त डायरिया और वायरल हो जाता। इधर बच्ची की माँ रजनीको केवल नाम मात्र का 10-15  मि.ली. तक ही दूध निकला। रजनी का वजन भी मात्र 40 किलो ग्राम था। हाथ-पैरों में जलन भी वह बता रही थी।

                ऐसा नहीं, कि रजनी का इलाज नहीं कराया गया, एलोपैथ, आयुर्वेद, झाड़-फूक भी कराया। अंत में उन्होंने आयुष ग्राम चिकित्सालय जैसे आयुर्वेद के बड़े आयुर्वेद संस्थान में दिखाने की योजना बनाकर वे आये। हमने देखा, ऐसे में आचार्य भाव मिश्र का यह सूत्र काम आया।

विदारी मधुरा स्निग्धा बृंहणी स्तन्यशुक्रदा।

शीता स्वर्या च जीवनी बलवर्णदा।

गुरु: पित्तास्रपवनदाहान् हन्ति रसायनम्।।

भा.प्र.पू.ख. गुडूच्यादि वर्ग प्रकरण १५/१६९-१७०।।

                अर्थात् विदारीकन्द एक ऐसी वनस्पतिक द्रव्य है जो रस और विपाक में मधुर, स्निग्ध, शरीर को पुष्ट करती है, यह माँ के स्तनों के हितकर और दूध बढ़ाने वाली तथा पुरुषों में शुक्र को भी बढ़ाती है। इसकी प्रकृति शीत होती है, यह आवाज को भी सुधारती है तथा जीवनीय गुण युक्त है, यह बल तथा त्वचा के रंग को भी निखारती है। इतना ही नहीं यह पचने में भारी, पित्त सारक, पित्त और रक्त विकार, वात को शांत करती है। यह दाह को मिटाती है और रोग तथा असमय आये बुढ़ापे को भी मिटाती है। औषधि तथा चिकित्सा में इसका कन्द प्रयोग किया जाता है। इसकी औषधीय मात्रा 3-6 ग्राम है।

↣      हमने विदारीकन्द चूर्ण 3 ग्राम, शुण्ठी और सपेâद जीरक चूर्ण 1-1 ग्राम मिलाकर नाश्ता व भोजन के पूर्व, दिन में 3 बार गरम जल से लिखा।

      स्वर्णवंग (क्षार) 65 मि.ग्रा., चन्द्रप्रभा वटी 2 गोली, प्रवाल पंचामृत मु.यु. 240 मि.ग्रा. मिलाकर शहद से।

↣      सुबह 7 बजे द्राक्षावलेह 10 ग्राम चाटकर 1 कप गोदुग्ध। 2 घण्टा तक कुछ भी नहीं खाना-पीना।

                7 दिन व उससे अधिक दिन तक शालि चावल, गोदुग्ध और मिश्री का ही नाश्ता व भोजन निर्देश दिया गया।

                1 माह बाद पुन: दिखाने आये तो रजनी ने बताया कि मुझे 7 दिन में ही लाभ होने लगा और 1 माह में अब बच्चे के लिए पर्याप्त दूध आने लगा था। वह महिला दिन में 4-5 बार चाय और नमकीन की आदी थी यह रुक्ष और कटु रस युक्त जो कि बलवर्धक आहार होता है तत्काल बन्द कराया गया।

झाइयाँ मिटीं, त्वचा में निखार आ गया


                रजनी के चेहरे में झाइयाँ पिछले 3 साल से थीं। कई ट्यूब लगा चुकी थीं। 3 माह की चिकित्सा से रजनी के चेहरे की झाइयाँ 50 प्रतिशत मिट गयीं और कमजोरी मिट गयी।

                दरअसल चेहरे की झाइयाँ पित्त विकार के कारण होती हैं और वातवृद्धि, धातुक्षय के कारण रसक्षय इसके बाद दूध न निकलना। कई बार स्रोतोरोध के कारण भी स्तनों में दूध नहीं आता, तब शु. भल्लातक और शतावरी का प्रयोग बहुत उपयोगी होता है।

                रजनी के पति बहुत प्रसन्न थे उन्होंने कहा कि मैडम! 6 माह में देखा कि इनकी झाइयाँ तो स्वत: मिट गयीं। हमने कहा कि यही वैदिक चिकित्सा की विशेषता है। अंग्रेजी पैथी होती तो 4 साइड इफेक्ट देकर जाती और वैदिक चिकित्सा 4 नए, विशिष्ट और अतिरिक्त प्रभाव देकर जाती है। इसके बाद कुंकुमादि लेपम्और लिख दिया।

                6 माह की चिकित्सा से रजनी पूर्ण स्वस्थ हो गयी। चूँकि इन दवाओं से रजनी में शुद्ध, पुष्ट, स्तन्य (दूध) का निर्माण हुआ परिणामत: बच्चा भी निरोग रहा।

                इसके साथ-साथ रजनी के हाथ-पैरों का दाह, दुर्बलता, कमजोरी में रजनी को पूरा लाभ हुआ। रजनी ने बाद में बताया कि मुझे पेशाब में कई बार जलन पड़ती थी, इसी चिकित्सा से इसमें भी पूरा लाभ हुआ।


   विशेष परिचय    

                विदारीकन्द महर्षि चरक ने बलकारक, पोषक, त्वचा का रंग निखारने वाला और मधुर स्कन्ध में माना है। आचार्य सुश्रुत ने इसे विशेष पित्त संशमन बताया है। यह वनस्पति सम्पूर्ण भारत में उगती है। आयुष ग्राम परिसर में भी हमने इसे रोपा है। इसके कन्द में कार्बोहाइड्रेट 64.6 और प्रोटीन 10.9 तथा राल भी पाया जाता है।

                इसकी एक मोटी लता होती है जो बहुत दूर तक फैलती है, इसके पत्ते पलाश के समान होते हैं, इसलिए इसे कन्दपलाश भी कोई-कोई कह देते हैं। इसमें बैगनी या नीले रंग के फूल भी आते हैं और 2-3 इंच लम्बी, रोमश फलियाँ भी लगती हैं जिसमें 3-6 बीज होते हैं। इसकी लताओं को हाथी और घोड़े बड़ी रुचि से खाते हैं। इसलिए इसे गजवाजिप्रियाभी कहते हैं।

                हमने इसका प्रयोग रक्त प्रदरऔर खूनी बवासीर में भी किया है। विदारी घृतनिर्माण कर इसका प्रयोग स्नेह वृद्धि क्रम से सेवन कराने पर रक्तप्रदर से पीड़ित महिलाओं को लाभ होते देखा है।







एम.डी. (मेडिसिन आयु.)

- डॉ. अर्चना वाजपेयी,




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