इनके हैं श्रेष्ठ आचरण ये हैं श्रेष्ठ मानव!!



इनके हैं श्रेष्ठ आचरण ये हैं श्रेष्ठ मानव!!

               श्रीमद्भगवद्गीता में भगवान् कहते हैं- 

यद्यदाचरति श्रेष्ठस्तत्तदेवेतरो जन:। स यत्प्रमाणं कुरुते लोकस्तदनुवर्तते।। ३/२१।।

 श्रेष्ठ पुरुष जो-जो आचरण करता है दूसरे लोग भी वैसा आचरण करते हैं, वह जो कुछ मार्ग बना देता है, समस्त मानव समुदाय उसी के अनुसार आचरण करने लगता है।

                २३ मई २०२२ के समाचार पत्रों में एक फोटो छपी कि नितिन गडकरी के पौत्र निनादके उपनयन संस्कार में भारत के रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह पहुँचे, उपनीत निनाद गडकरी ने राजनाथ सिंह के सामने भूमि में माथा टेक कर प्रमाण कर आशीर्वाद लिया। निनादभारतीय परिधान धोती कुर्ता में हैं, मुण्डन कराये हैं और सबसे बड़ी बात यह है कि गाय के खुर के बराबर की शिखा (चोटी) रखे हैं। आप सभी जान सकते हैं कि निनाद गडकरी हैं कौन?

                वे हैं भारत के सड़क परिवहन, राजमार्ग, जहाजरानी, जलसंसाधन, नदी विकास और गंगा संरक्षण मंत्री, भाजपा के सबसे कम उम्र में राष्ट्रीय अध्यक्ष रह चुके, लॉ ग्रेजुएट, एमबीए और भारत के बड़े उद्योगपति नितिन गडकरी के पौत्र। पूरी दुनिया के लोगों ने नितिन गडकरी के परिवार के संस्कारों को सराहा।


              

  दैनिक जागरण ने इस फोटो को राष्ट्रीय पन्ने में छापते हुए लिखा कि धन वैभव के मद में चूर नेताओं के बिगड़ैल बच्चों को नितिन गडकरी के पौत्र निनाद के संस्कार से सीख लेनी चाहिए। लेकिन हम कहते हैं कि बिगडैल बच्चों को ही क्यों? १-१ भारतीय को, १-१ सनातनी हिन्दू को इससे सीख लेनी चाहिए। ४ अक्षर पढ़े, डिग्री, नौकरी, व्यापार या आधुनिकता का लिबास ओढ़कर आधुनिकता के अहंकार में चूर, समय का अभाव बताने वाले उन सभी को सीख लेनी चाहिए जो इस झूठे लिबास और अहंकार में अपने परिवार के बच्चों में उपनयन जैसे संस्कारों को तिलांजलि दे चुके हैं। जो अपने पूर्वजों के आचरण को दफन कर चुके हैं। शिखा (चोटी) और सूत्र (जनेऊ) को फेंक चुके हैं।

                शास्त्र कहता है कि- 

धर्मो रक्षति रक्षित:।

 जो धर्म की रक्षा करता है उसकी रक्षा धर्म करता है, धर्म एव हतो हन्ति। जो धर्म का हनन करता है, धर्म उसका हनन कर देता है

तस्माद्धर्मो न हन्तव्यो।’ 

इसलिए धर्म का हनन कदापि नहीं करना चाहिए।

                इसका उदाहरण सामने देख लेना चाहिए नितिन गड़करी जैसे महापुरुष धर्मानुसार आचरण कर रहे हैं तो धर्म भी उनकी रक्षा में खड़ा है, कितना बड़ा वैभव, कितना बड़ा पद और सम्मान।

                हम बात भगवान् राम की करते हैं, राम भक्त कहलाना चाहते हैं तो यह जान लेना चाहिए कि माता-पिता और गुरु जी ने भगवान् राम, लक्ष्मण, भरत और शत्रुघ्न का उपनयन संस्कार समय पर कर दिया था-

भये कुमार जबहिं सब भ्राता। दीन्ह जनेऊ गुरु पितु माता।।

।। रामचरित मानस।।

                उसका प्रत्यक्ष परिणाम बौद्धिक क्षमता के रूप में यह आया-

गुरु गृह गए पढ़न रघुराई। अलप काल विद्या सब आई।।

।। रामचरित मानस।।

                यानी कम समय में अधिक ज्ञान, समझ, विवेक। यह भी जान लेना चाहिए कि इस बात का श्रीमद्वाल्मीकीय रामायण में खूब प्रमाण मिलता है कि उपनयन के बाद भगवान् श्री राम, लक्ष्मण ने कभी भी नियमित संध्योपासन कर्म को नहीं छोड़ा। हमारे पूज्य पिता स्व. श्री शिवदत्त वाजपेयी ने अपने पुत्रों के समय से उपनयन संस्कार किये थे और ऐसे संस्कार दिए कि मेडिकल एजुकेशन में जाने के बाद भी हमने शिक्षा (चोटी), सूत्र (यज्ञोपवीत), संध्योपासन और जप को नहीं छोड़ा। इसका जो सात्विक परिणाम है उसे पाकर हम आनन्दित हैं।

                भगवान् श्रीकृष्ण और बलदाऊ भइया का भी उनके पुरोहित गर्गाचार्य तथा अन्य ब्राह्मणों से उपनयन संस्कार कराया गया और वे विधिवत् गुरु से प्राप्त मंत्र का जप करते थे। जिसका उल्लेख श्रीमद्भागवत के १०/४५/२६ में वर्णन है।

अथ शूरसुतो राजन् पुत्रयो: समकारयत्।

पुरोधसा ब्राह्मणश्चैव यथावद् द्विज संस्कृतिम्।।

                किन्तु दुर्भाग्य है कि हमारे देश में श्रीमद्भागवत कथावाचक इस प्रसंग को शायद ही समाज में रखते हों और उसके अनुसार समाज को उपनयन संस्कार, जिसे करना चाहिए, करने की प्रेरणा देते हों।

                उपनयन ऐसा संस्कार है जिसे विधिवत् अपनाने से तेज, बल, बुद्धि बढ़ता है। उपनयन संस्कार में जब आचार्य यज्ञोपवीत धारण कराता है तो कहता है-

यज्ञोपवीतं परमं पवित्रं प्रजापतेर्यत्सहजं पुरस्तात्।

आयुष्यमग्र्यं प्रतिमुंच शुभ्रं यज्ञोपवीतं बलमस्तु तेज:।।

(पारस्कर गृहसूत्र ऋग्वेद २/२/११)

                भाव यह है कि यह यज्ञोपवीत (जनेऊ) परम पवित्र है जिसे ब्रह्मा जी ने स्वयं धारण किया, यह आयु को बढ़ाता है, यह सर्वश्रेष्ठ है, यह तेज और बल को बढ़ाता है।

                यज्ञोपवीत केवल कर्मकाण्ड ही नहीं बल्कि एक धर्म है। धर्म इसलिए है कि यह व्यक्ति में तेज, ओज, बुद्धि, चेतना को धरता है, जिसके द्वारा धारण किया जाय वही तो धर्म है। श्री महाभारत के शान्तिपर्व राजधर्मानुशासन पर्व के अध्याय १०९/११ में बताया गया है-

धारणाद्धर्ममित्याहुर्धर्मेण विधृता: प्रजा:।

य: स्याद् धारणसंयुक्त: स धर्म इति निश्चय:।।

                जो धारण करता है (व्यक्ति को अधोगति में जाने से बचाता है), जीवन की रक्षा करता है वही धर्म है। धर्म ही धारणसंयुक्त है, जिससे धारण और पोषण सिद्ध हो, वही धर्म है ऐसा धर्मवेत्ता कहते हैं। मनुस्मृति २/३६-३७ में बताया गया है-

गर्भाष्टमेऽब्दे कुर्वीत ब्राह्मणस्योपनायनम्।

गर्भादेकादशे राज्ञा गर्भात्त द्वादशे विश:।।

ब्रह्मवर्चसकामस्य काम विप्रस्य पञ्चमे।

राज्ञो बलार्थिन: षष्ठे वैश्यस्येहार्थिनोऽष्टमे।।

                गर्भ से आठवें वर्ष में ब्राह्मण का, क्षत्रिय बालक का गर्भ से ग्यारहवें वर्ष में और वैश्य बालक का गर्भ से बारहवें वर्ष में यज्ञोपवीत कर देना चाहिए। यदि ब्राह्मण बालक का ज्ञानाधिक्य तथा ब्रह्म तेज बढ़ाना हो तो ब्राह्मण बालक का गर्भ से पाँचवें वर्ष, पराक्रम और राजबल सामथ्र्य पाने की ही इच्छा हो तो क्षत्रिय बालक का गर्भ से छठे और धन सामथ्र्य प्राप्ति की कामना हो तो वैश्य बालक का उपनयन गर्भ से आठवें वर्ष में कर देना चाहिए।

                ये परा विद्यायें हैं जिसे यांत्रिक प्रणाली से मापा और परखा नहीं जा सकता, पर इनका प्रत्यक्ष प्रमाण दिखता है।

                आयुष ग्राम गुरुकुलम्में प्रतिवर्ष गुरुकुलीय छात्रों तथा कुछ बाहरी लोगों के बालकों का उपनयन संस्कार पूरे वैदिक विधान से किया जाता है। उपनयन संस्कार के बाद हम बालकों में धीरे-धीरे जो तेज ऊर्जा और प्रतिभा का विकास स्पष्ट देखते हैं वह आश्चर्य चकित कर देता है, जो छात्र गुरुकुल में रह जाते हैं उनमें जो परिवर्तन होता है उसके लिए तो कहना ही क्या है।

                इसलिए यदि हम अपना और अपनों का पूर्ववत् उत्कर्ष, प्रकर्ष और बल, ओज, तेज चाहते हैं तो हम सबको फिर से अपनी वैदिक प्रणाली की ओर लौटना चाहिए, उपनयन जैसे संस्कारों को अपनाना चाहिए, हमें देश के महापुरुष नितिन गडकरी जी से इसकी सीख लेनी चाहिए, ये प्रमाण हैं। यह संस्कार ऐसा है कि बहुत बड़े उत्सव से भी किया जा सकता है और सामान्यतया भी, पर करना अवश्य चाहिए।







आचार्य डॉ. मदनगोपाल वाजपेयी!

चिकित्सा पल्लव जुलाई 2022


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