जवानी से पहले बूढ़ी होती हड्डियाँ : बचाव व चिकित्सा



                                                                                     

 डॉ. अर्चना वाजपेयीएम.डी. (मेडिसिन आयु.)

जवानी से पहले बूढ़ी होती हड्डियाँ : बचाव  चिकित्सा

                बलिया की पूजाउम्र १६ वर्षको आस्टियोपोरोसिस हो गया। स्थानीय अस्पतालों से लेकर लखनऊ एस.जी.पी.जी.आई. तक इलाज कराया लेकिन विकलांगता बढ़ती गयी। फिर उसके माता-पिता उसको आयुष ग्राम चिकित्सालयचित्रकूट लेकर आये। १ माह तक यहाँ रखकर चिकित्सा की गयीस्नेहनस्वेदनबस्तियों से हड्डियों की चयापचय क्रिया संतुलित की गयी और आज वह पूरी तरह स्वस्थ है।

जवानी आने के पहले ही ५५ फीसदी बच्चों और किशोर-किशोरियों की हड्डियाँ बूढ़ी हो रही हैं। हड्डियों को पोषण नहीं मिल रहा जिससे पूरी मजबूती नहीं मिल रही। इसका कारण है दूध और धूप की कमी। यह खुलासा किया गया पिछले माह शोध के आधार पर संजय गाँधी स्नातकोत्तर आयुर्विज्ञान संस्थान के पीडियाट्रिक इण्डोक्राइनोलॉजी विभाग में आने वाले बच्चों पर शोध करने वाले चिकित्सा वैज्ञानिकों द्वारा।

                विभाग में ६ से १८ वर्ष की आयु के १३५ बच्चों का हाइड्रोक्सी विटामिन डी के स्तर का अध्ययन किया गया तो इनमें से ५५ प्रतिशत में विटामिन डी का स्तर १५ नैनोग्राम प्रति मिली लीटर से कम मिलाजबकि यह ३० नैनोग्राम प्रति मिली लीटर से अधिक होना चाहिए। लड़कियों में हाइड्रोक्सी विटामिन डी का स्तर औसतन १५ नैनोग्राम प्रति मिली लीटर तथा लड़कों में औसतन ८ नैनोग्राम प्रति मिली लीटर मिला।

                इन चिकित्सा वैज्ञानिकों ने बताया कि विटामिन डी की कमी का कारण धूप और कैल्शियम युक्त आहार की कमी होना है। रिसर्च में यह पाया गया कि किशोरकिशोरी बच्चे धूप नहीं ले पातेकैल्शियम युक्त आहारदूध का सेवन नहीं कर पाते अत: हड्डियों को पोषण नहीं मिलता।

                शोध में बताया गया कि इसका परिणाम यह है कि शरीर में मोटापाशरीर में लगातार दर्द रहनाअत्यधिक थकानदिन भर सुस्ती रहनाजोड़ों में दर्दअवसादखून की कमीकूल्होंपीठ तथा घुटनों में दर्दबच्चों की हड्डियों में कमजोरीऑस्टियोपेनिया (हड्डियों में प्रोटीन की कमी)मासिक धर्म की अनियमितता और ऑस्टियोपोरोसिस (हड्डियों का घनत्व कम होना)।

                यह कितनी सोचनीय बात है कि किशोर-किशोरियों की हड्डियाँ बूढ़ी हो रही हैं। आचार्य चरक ने पञ्चभौतिक दृष्टि से शरीर में हड्डियों की उत्पत्ति का उल्लेख इस प्रकार किया है-

पृथिव्यग्न्यनिलादीनां संघात: स्वोष्मणा कृत:।

खरत्वं प्रकरोत्मस्य जायतेऽस्थि ततो नृणाम्।।

च.चि. १५/३०-३१।।

                शरीर की मेदधातु अपनी अग्नि से पककर तथा पृथ्वीअग्नि और वायु का संयोग प्राप्त कर खर बन जाती है और उस खर हुयी मेदा’ का नाम ही अस्थि’ है।

करोति तत्र सौषिर्यमस्थ्नां समीरण:।

और-   वाय्याकाशादिभिर्भावै: सौषिर्यं जायतेऽस्थिषु।।

च.चि. १५/३१-३३।।

                ये सूत्र बताते हैं कि अस्थि धातु में सुषिरता का भाव आकाश और वायु महाभूत से उत्पन्न होता है। अस्थि के निर्माण के सम्बन्ध में आचार्य शाङ्र्गधर और भावप्रकाशकार लिखते हैं-

मेदो यत् स्वाग्निना पक्वं वायुना चातिशोषितम्।

तदस्थिसंज्ञां लभते स सार: सर्वविग्रहे।।

                जब मेद अपनी अग्नि की गर्मी से परिपक्व होकर वायु’ से अत्यन्त सूख जाता है तब उसका नाम अस्थि’ पड़ जाता है। यह अस्थि ही सम्पूर्ण शरीर का सार’ पदार्थ है।

                इस प्रकार वैदिक चिकित्सा विज्ञान आयुर्वेद ने बहुत पहले ही स्पष्ट कर दिया था कि अस्थि के निर्माण में पृथ्वीअग्नि और वायु महाभूतों की भूमिका होती है। किन्तु आज व्यक्ति के पास न तो पैदल चलने का समय है न नंगे पाँव चलने का। परिणामत: वह पृथ्वी महाभूत के स्पर्श  से दूर हो गया, सूर्य का प्रकाश और धूप न मिलने के कारण अग्नि महाभूत से वंचित हो गया तथा शुद्ध वायु न मिलने के कारण वायु तत्व के सम्यक् योग से वंचित रह गयाऐसे में जब हड्डियाँ अपने मूल पोषक तत्वमूल घटक तत्वों से वंचित रहेंगी तो जवानी में बूढ़ी हो ही जायेंगी। आचार्य भावप्रकाशकार बताते हैं कि-

मांसान्यन्त्राणि बद्धानि शिराभि: स्नायुभिस्तथा।

अस्थीन्यालम्बनं कृत्वा न दीर्यन्ते पतन्ति च।।

भा.प्रा.पू.ख. ३/१६२।।

                शिरायेंस्नायुओं से बँधी हुयीमांस धातु और अंतड़ियाँ हड्डियों का सहारा लेकर स्थित हैं अतएव ये न विदीर्ण होती हैं और न गिरती हैं। इससे यह स्पष्ट हो गया न कि आँतों की क्रिया भी अस्थियों पर निर्भर है और आधुनिक वैज्ञानिकों ने भी मान लिया कि अस्थियाँ शरीर कीमांसपेशियों की गति में सहायक बतायी गयी हैं।

                उपर्युक्त सूत्र से यह सिद्ध होता है कि हड्डियों की स्वस्थता पर आँतों की स्वस्थता निर्भर है और आँतों की स्वस्थता होने पर चयापचय प्रणाली स्वस्थ रहती है। यदि चयापचय प्रणाली विकृत है तो शरीर मोटापाथकानगठिया आदि उन सभी व्याधियों से ग्रस्त हो जायेगा जैसा कि ऊपर आधुनिक चिकित्सा के चिकित्सकों ने बताया है।

                हड्डियों को पुष्टनिरोग रहने के लिए हमेशा तेज वायुशीतल वायुपुरवैया वायु और दूषित वायु से बचाव करना चाहिए। क्योंकि वात दोष का स्थान अस्थियाँ भी हैं। काश्यप संहिताकार लिखते हैं-

अधोनाभ्यस्थिमज्जनौ वातस्थानं प्रचक्षते।। सू. २७/१०।।

                अर्थात् नाभि के नीचे के अंगअस्थि तथा मज्जा वात के अधिष्ठान हैं। यदि वायु’ का सेवन समयोग में होगा तो अस्थियाँ ठीक रहेंगी अन्यथा उनमें विकृति (Deformity) आना सुनिश्चित है।

गोदुग्ध का सेवन- अस्थियों को स्वस्थ एवं सुदृढ़ रखने के लिए दूधताजे छाछताजे दहीताजे मक्खन से बढ़कर शायद ही कोई वस्तु हो। पर ध्यान रखना चाहिए कि यह दूध स्वस्थ एवं देशी गाय का होपैकेट बन्द और भैंस के दूध से यह उम्मीद नहीं करना चाहिए।

                आचार्य चरक लिखते हैं-

स्वादु शीतं मृदु स्निग्धं बहलं श्लक्ष्णपिच्छिलम्।

गुरु मन्दं प्रसन्न च गव्यं दशगुणं पय:।।

तदेवंगुणमेवोज: सामान्यादभिवर्धयेत्।

प्रवरं जीवनीयानां क्षीमुक्तं रसायनम्।।

च.सू. २७/२१७-२१८।।

                देशी गाय का दूध रस से मधुरशीतलमृदुस्निग्धगाढ़ाश्लक्ष्णपिच्छिलगुरुमन्द और प्रसन्न गुण सम्पन्न होता है। ओज भी इन्हीं गुणों से ओज को बढ़ाता हैजितने भी जीवनीय पदार्थ हैं उनमें गोदुग्ध श्रेष्ठ है और रसायन है।

                आचार्य भाव प्रकाशकार बताते हैं कि गोदुग्ध वात-पित्त और रक्तविकार नाशक तथा दोषधातुमल तथा स्रोतस् में किंचित् आर्दता लाने वाला होता है।

आँवले का सेवन- आँवला विटामिन डी’ का सर्वोत्कृष्ट स्रोत होने के कारण हड्डियों के लिए बहुत ही उपयोगी है। इसके अलावा पत्तेदार शाक विशेषकर बथुआचौलाईजीवन्तीपरवलतुरई शाक सब्जी भी बहुत उपयोगी है।

गोघृत- भाव प्रकाशकार ने गोघृत को 

मेधालावण्यकान्त्योजस्तेज्ञोवृद्धिकरं परम्।।’ 

मेधालावण्यकान्तिओजतेज को बढ़ाने में सर्वश्रेष्ठ पाया है। इसे वृष्यमग्निकृत् भी कहते हैं। जितने भी ओजवर्धक द्रव्य हैं वे सब के सब अस्थि पोषक होते हैं। इस गोघृत को यदि तिक्त द्रव्यों से साधित कर औषधीय घृत बना दिया जाय फिर तो यह अस्थियों के लिए अमृत ही है।

विशेष चिकित्सा- असमय में बूढ़ी हुयी हड्डियों को स्वस्थयुवा बनाने के लिए हमने निम्नांकित चिकित्सा व्यवस्था को काफी सफल पाया है-

q  गुग्गुलुतिक्त घृतम् रोगरोगी के बल के अनुसार सेवन।

q अस्थिसंहारअर्जुन छालबबूलनीमभृंगराजआँवला और असली काले तिल। काला तिल छोड़कर अन्य सभी द्रव्यों का चूर्ण बना लेंफिर साबुत काले तिल मिलाकर अच्छी तरह मिश्रण कर लें।

                १-१ चम्मच चूर्ण भोजन के १ घण्टा बाद गरम पानी या गोदुग्ध के साथ सेवन करने से हड्डी मजबूत होती है।

q कुक्कुटाण्डत्वक् भस्म ५ ग्रामस्वर्णमालती वसंतदशमूलघन २० ग्रामप्रवाल भस्म ५ ग्राम और त्रैलोक्य चिन्तामणि रस (र.रा.सु./यो.र.) ३ ग्रामशु. शिलाजीत १० ग्राम। सभी घोंटकर ६० कैपसूल भर लें। १-१ कैपसूल दिन में २ बार भोजन के बादगोदुग्ध के अनुपान से सेवन से दिन प्रतिदिन अस्थि धातु पुष्ट होती है।

                ध्यान रहे- चायकॉफीमैदा के बने पदार्थतलीभुनी चीजेंफास्ट फूड अस्थि धातु को बहुत हानि पहुँचाती हैंइनसे बचें।







 डॉ.अर्चना वाजपेयी,एम.डी.(मेडिसिन आयु.)  

चिकित्सा पल्लव जुलाई 2022


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