भारत की ऐसी चामत्कारिक जड़ी बूटियाँ-
प्रकृति ने ऐसी-ऐसी प्राकृतिक जड़ी-बूटियाँ, वनस्पतियाँ उत्पन्न की हैं जिनके सेवन से मानव के शरीर, मन और हृदय पर बहुत ही सकारात्मक प्रभाव पड़ता है। आज दुनिया में ऐसा वातावरण बन गया है कि लोगों का मानसिक बल कम हो रहा है, सतोगुण घट रहा है और रजोगुण तमोगुण बढ़ रहा है, परिणामत: लोग डिप्रेशन में जा रहे हैं। निर्णय लेने की क्षमता घट रही है। लोगों के रक्त में अम्ल की मात्रा बढ़ रही है क्योंकि खान-पान और रहन-सहन ही अम्लकारक हो गया है। अब तो यह बात भी रिसर्च में आ गयी कि तनाव, अवसाद का प्रभाव दिल पर पड़ता है जिससे दिल कमजोर और रोगी हो रहा है। डिप्रेशन, तनाव, अवसाद या दिल की चिकित्सा हेतु जब व्यक्ति एलोपैथ में जाता है तो जीवन भर दवायें खाता रहता है और फिर शायद ही वह कभी भी मानसिक रूप से स्वस्थ हो पाता है।
इन सबका सहज और स्थायी समाधान भी भारत की वैदिक चिकित्सा में उपलब्ध है बस! उसका भरपूर प्रयोग करना प्रारम्भ कर दें आनन्द ही आनन्द रहेगा।
गत वर्ष आयुष ग्राम चिकित्सालय, चित्रकूट में कार्यरत एक नर्स को बार-बार शिर दर्द का दौरा पड़ता था। कुछ वर्षों पूर्व उसे मानसिक दौरे भी पड़ते थे इसके लिए उसका अंग्रेजी दवायें खाने का भी इतिहास था।
आयुष ग्राम ट्रस्ट परिसर में पिछले वर्ष कूष्माण्ड खूब पैदा हुआ। कूष्माण्ड के पके फल का गूदा २० ग्राम, गोघृत २० ग्राम और चीनी का बूरा २० ग्राम डालकर सुबह हलवा बनाकर सेवन कराया गया, इसके बाद कड़ी भूख लगने पर सादा भोजन। तीसरे दिन से ही आराम और १५ दिन में तो पूर्ण आराम आ गया।
कूष्माण्ड के विषय में विश्व के प्रथम शल्य वैज्ञानिक आचार्य सुश्रुत जो शोध लिखते हैं वैसा गुण किसी अन्य वनौषधि में नहीं है।
सर्वदोषहरं हृद्यं पथ्यं चेतोविकारिणाम्। सु.सू. ४५/२१४।।
अर्थात् कूष्माण्ड सभी दोषों का निवारक, हृदय के लिए लाभदायक, मानसिक विकारियों, मानसिक दुर्बलों के लिए तो पथ्य है।
सबसे बड़ी बात यह हुयी कि युवती को एसिडिटी और क्षुधाहानि थी वह समस्या कूष्माण्ड लेह सेवन से पुरुस्कार में मिट गयी और क्यों न मिट जाये, दुनिया के फादर ऑफ मेडिसिन आचार्य चरक इसे सक्षारम् (Alkline ) और शल्य वैज्ञानिक आचार्य सुश्रुत अपने शब्दों में ‘सक्षारं दीपनं और बस्तिशोधनम्’ (४५/२१४) कह देते हैं।
इस प्रकार कूष्माण्ड क्षारीय (Alkline ) तो है ही पर भूख को जगाने वाला भी है। यह है आयुर्वेद यानी वैदिक चिकित्सा की वैज्ञानिकता और विशिष्टता।
विचार करें यदि शिर दर्द या माइग्रेन के नाम पर एलोपैथ गोलियाँ खायीं जाती तो एसिडिटी और बढ़ती फिर कब्ज और भूख की कमी। परिणामत: इनके लिए अलग से चिकित्सा लेनी पड़ती।
कूष्माण्ड एक कोशातकी कुल (कुकुर्विटेसी (Cucurbitaceae ) की वनस्पति है। इसका वानस्पतिक नाम है Benincasa hispida (बेनिनकासा हिस्पिडा) इसे हिन्दी में पेठा, कुम्हड़ा, अंग्रेजी में व्हाइट गार्ड मेलन कहते हैं।
भारत के लोग अपने और अपनी चीजों को भूल गये हैं जिसका नुकसान भी भोग रहे हैं। व्याधि, रोग, शोक, मानसिक तनाव, अशांति, अस्थिरता, भटकाव और उद्विग्नता।
राजनिघण्टुकार ने तो यहाँ तक लिख दिया है
‘कूष्माण्डं प्रवरं वदन्ति भिषजो वल्लीफलानां पुन:।’
यानी बेल/लता में लगने वाले जिनते फल हैं उनमें सबसे श्रेष्ठ कूष्माण्ड ही है। उन्होंने यह भी लिखा कि ऐसा क्यों है?
मूत्रघातं प्रमेहशमनं कृच्छ्राश्मरीच्छेदनं
विण्मूत्रम्लपनं तृषार्तिशमनं जीर्णाङ्गपुष्टिप्रदम्।
वृष्यं स्वादुतरं त्वरोचकहरं बल्यं च पित्तापहं
कूष्माण्डं प्रवरं वदन्ति भिषजो बल्लीफलानां पुन:।।
क्योंकि यह मूत्राघात, प्रमेह को शांत करने वाला, पेशाब की कड़क, पथरी नाशक, मल मूत्र निकालने वाला, प्यास की पीड़ा को शांत करने वाला, जीर्ण-शीर्ण अंगों को पोषण देने वाला, वीर्यवर्धक, स्वादिष्ट, अरोचक नाशक बलकारक तथा पित्त को निवारण करता है।
हिन्दू धर्म में द्विजातियों में ब्रह्मतेज को बढ़ाने वाला उत्कृष्ट संस्कार है ‘उपनयन’ संस्कार। इसके बाद ही व्यक्ति यज्ञोपवीत धारक बनता है और वेदाध्ययन का अधिकारी होता है। इस उपनयन संस्कार में ब्रह्मचारी को माँ भिक्षा देती है, उस भिक्षा सामग्री में कूष्माण्ड फल एक आवश्यक सामग्री के रूप में रखा जाता है।
विचार करें कि भारतीयों का कितना उच्च कोटि का वैज्ञानिक चिन्तन और दर्शन था। ब्रह्मचारी वेद पढ़ने जा रहा है तो उसे ऐसा फल दिया जाय जो मेधावर्धक, सतोगुणवर्धक, बलवर्धक, पित्तशामक, वातशामक, न बहुत ठण्डा, स्वादिष्ट, क्षारीय, भूख बढ़ाने वाला, पचने में हल्का तथा मूत्रतंत्र शोधक मानसिक विकार नाशक तथा सभी विकारों को जीतने वाला हो। आचार्य भावप्रकाश कार लिखते हैं-
कूष्माण्डं वृंहणं वृष्यं गुरु पित्तास्रवातनुत्।
बालं पित्तापहं शीतं मध्यमं कफकारकम्।
वृद्धं नातिहिमं स्वादु सक्षारं दीपनं लघु।
बस्तिशुद्धकरं चेतोरोगहृत् सर्वदोषजित्।।
यह भारत में सर्वत्र पैदा होता है। इसमें कुकुर्विटीन (Cucurbitaceae) नामक क्षाराभ (Alkline) प्रचुर मात्रा में होता है। इसके अलावा प्रोटीन, मामोसिन, वाइटेलिन, शर्करा तथा क्षार होते हैं। बीजों में एक स्थिर तैल होता है।
कूष्माण्ड के गुण- लघु, स्निग्ध, रस-मधुर, इसका विपाक भी मधुर रहता है इसका वीर्य- शीत और इसका प्रभाव- मेध्य होता है।
पागलपन के दौरों में- दो वर्ष पूर्व कौशाम्बी जिले की एक ३२ वर्षीय युवती को लेकर उसके पति आयुष ग्राम चित्रकूट आये। बताया कि अचानक दो वर्षों से इसे पागलपन के दौरे पड़ रहे हैं, एलोपैथ दवायें चल रही हैं जिससे वह सोती रहती थी, उत्साह हीन, गुम-सुम रहना, कभी-कभी मारपीट करना।
पंचकर्म शरीर शोधन के बाद ३० ग्राम कूष्माण्ड का गूदा मिश्री मिलाकर सुबह-दोपहर और शाम दिया गया। सिद्ध मकरध्वज स्वर्णमुक्ता युक्त आधी-आधी गोली दिन में २ बार। पहले माह से ही तेजी से सुधार होना शुरू हुआ, ६ माह लगातार चिकित्सा से वह महिला पूरी तरह से स्वस्थ हो गयी और इस वर्ष एक पुत्र को जन्म दिया।
दुर्बल, निष्तेज युवक में कूष्माण्ड का प्रयोग- कूष्माण्ड अपने में वृंहण और वृष्य जैसा अद्भुत गुण संजाये है। गलत दिनचर्या, गलत आदतें, खान-पान और गलत चिन्तन के कारण आज के युवक अपना तेज ओज खो चुके हैं। ऐसे अनगिनत युवक-युवतियों में हमने कूष्माण्ड का प्रयोग कर उन्हें तेजवान् और ओजवान् बनाया है। इसके लिए आयुष ग्राम चिकित्सालय में सर्वदोषहर अवलेह तैयार कराया है। जिसका प्रयोग पाचनशक्ति, ऋतु, वय और अनुपान के अनुसार करने से आशानुरूप परिणाम मिलते हैं।
सतना जिले के एक चिकित्सक के पुत्र जो दुर्बल, तेज और ओजहीन तो थे ही साथ ही अवसाद से भी ग्रस्त थे। मस्तिष्क दौर्बल्य भी था। उन्हें लगातार सर्वदोषहर अवलेह ३०-३० ग्राम सुबह-शाम जवाहरमोहरा रत्नप्रधान के साथ सेवन कराया गया। भोजन सादा और सुपाच्य और नियम पूर्वक लेते हुए उन्होंने ६ माह तक सेवन किया। ४० दिन बाद परिणाम शुरू हुये और ६ माह में ऐसी सेहत हो गयी कि कोई कह ही नहीं सकता था कि यह वही व्यक्ति हैं।
चिकित्सा पल्लव जून 2022
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