ऐसे ही सभी गठिया रोगियों का हो सकता है उद्धार!!


अब फिर से चलने लगीं सुमनलता गुप्ता-


२४ सितम्बर २०२१ को आयुष ग्राम चिकित्सालय, चित्रकूट में १५०, बहादुर नगर, लखीमपुर खीरी (उ.प्र.) से मेडिकल व्यवसायी श्री विजय कुमार गुप्ता अपनी पत्नी कुसुम लता गुप्ता ४५ वर्ष को लेकर आयुष ग्राम चिकित्सालय चित्रकूट आये। उनको स्ट्रेचर में लिटाकर ओपीडी में लाया गया। गठिया ने उन्हें चलने-फिरने का मोहताज कर दिया था। श्रीमती कुसुम लता के जोड़ों-जोड़ों में सूजन, दर्द ऐसा कि कोई पेन किलर नहीं काम करा रहा था।

                धन्य है उनके पति देव श्री विजय कुमार गुप्ता कि इतने इलाज के बाद भी वे हार नहीं मान रहे थे। केसहिस्ट्री में उन्होंने बताया कि इन्हें यह बीमारी ५ सालों से है, १० साल से खूनी बवासीर है, टांसिल की समस्या, कब्जियत, दवा खाते-खाते आँखों की रोशनी भी कम हो गयी, नींद कम तथा सीआरपी और आ.ए. पॉजिटिव है।

                श्री गुप्ता जी ने कहा कि डॉ. साहब! हम तो उम्मीद छोड़ चुके हैं, पलिया के डॉ. कपूर, पीजीआई सब जगह दिखा चुके हैं। हम जानते हैं कि ट्रामाडोल और केट्रोल (Ketrol) इंजेक्शन बहुत नुकसान करेंगे किन्तु मजबूरी है यही मिलाकर देते हैं, दवा का असर रहने तक आराम रहता है। कुसुमलता जी ने कहा कि मैं दर्द से चिल्लाती रहती हूँ कि बचा लो-बचा लो।

                उन्हें आश्वासन दिया गया कि आप परेशान न हों इनमें अभी इम्युनिटी है अत: ये ठीक होंगी पर समय डेढ़ साल तक लगेगा, कुसुमलता के पति श्री गुप्ता जी ने कहा कि हम डेढ़ साल नहीं बल्कि ३ साल तक इलाज करेंगे।

                श्रीमती कुसुमलता को देखने से ही प्रथम दृष्टया लग रहा था कि उन्हें आमवातहै, रसरत्न समुच्चयकार का वचन २१/४६ ध्यान देने योग्य है-

कट्यां व्यथा भवेन्नित्यं संधिषु श्ववथुभवेत्।

उत्थानेऽत्यसमर्थत्वमावातस्य लक्षणम्।।

                कमर में स्थायी और नित्य पीड़ा, जोड़ों में शोथ (सूजन) उठने-बैठने, दैनिक काम-काज में असमर्थता यह सब आमवातके लक्षण हैं।

                आमेन सहित: वात: आमवात: या आमश्च वातश्च आमवात:।।

 यानी पाचन शक्ति की दुर्बलता से या पाचन शक्ति को लगातार क्षतिग्रस्त करते रहने से पेट में एक ऐसा विष बनता है जिसे आमकहते हैं। फिर वायु (Gas) उसे लेकर रक्त के साथ भ्रमण करता है और वह जब विशेषत: जोड़ों और कमर में रुकता है तो हड्डियों और संधियों में एकत्र होकर वहाँ की अस्थि को क्षतिग्रस्त कर अपना स्थान बना लेता है और सूजन तथा भयंकर दर्द उत्पन्न करता है।

                आधुनिक चिकित्सा विज्ञान में न तो आमकी अवधारणा है न वायु की न ही मन्दाग्नि की। इसे आटो इम्यून डिजीजके अन्तर्गत रखा गया है इसी अवधारणा के अन्तर्गत इलाज करते हैं, परिणामत: रोग का निर्मूल होना दूर, रोगी बेचारा अपंग होता जाता है और भयंकर पीड़ा वहन करता है।

                आचार्य माधवकर ने इस रोग की सम्प्राप्ति पर बहुत ही वैज्ञानिक ढंग से प्रकाश डाला है, इस रोग की सम्प्राप्ति में इतने चरण आते हैं-

                गलत ढंग से खान-पान " अग्निमांद्य (Long out of the digestive power) " आमदोष की उत्पत्ति " वात दोष से संयोग " धमनियों द्वारा पूरे शरीर में संचरण " स्थानिक दोषों से आम का और दूषित होना " त्रिक, आमाशय, जोड़ों में स्थान संश्रय " रसवह स्रोतोरोध परिणाम संधिशूल, शोथ, स्तब्धता, भारीपन, ज्वर आदि लक्षण।

                चिकित्सा करते समय हमें इन्हीं पर ध्यान देना है- १. भोज्य सामग्री आहार-नियम, विधि का सही चुनाव २. पाचनशक्ति को संतुलित करना ३. आमदोषोत्पत्ति को रोकना और उत्पन्न हुए आमदोष का पाचन और निर्हरण ४. वात दोष को संतुलित करना ५. रस धातु, रसवह स्रोतस् को स्वच्छ करना।

                इसके लिए आहार-विहार, आचरण, चिंतन, पंचकर्म द्वारा वायु का शमन/निर्हरण, ऐसी औषधियों का चुनाव जिससे आमोत्पत्ति को रोकना, स्रोतोरोध मिटाना तथा क्षतिग्रस्त हुये जोड़ों, ऊतक, धातु आदि की भरपाई करना आदि।

अपथ्याहार में- दूध या दूध से बनी वस्तुओं का सेवन न करना, अभिष्यन्दी, भारी, पिच्छिल पदार्थों से दूरी रखना, एक बार में अधिक भोजन न करना आदि।

औषधि व्यवस्था-

१.     गन्धर्वहस्तादि कषाय, बलागुलिच्यादि कषाय २-२ चम्मच समभाग उष्ण जल।

२.     चिरायता, कालमेघ, कुटकी, पुनर्नवा, गिलोय के घनसत्व का मिश्रण १-१ ग्राम दिन में २ बार गरम जल से।

३.     शुण्ठी, देवदारु, मुस्तक का योग, प्रवाल भस्म के साथ दिन में ३ बार गरम जल से।

४.     विश्वेश्वर रस १ गोली, त्रैलोक्यचिंतामणि (र.सा.सं.) १ गोली, रौप्य भस्म २५ मि.ग्रा., असली केशर ३० मि.ग्रा., वातगजांकुश रस (निर्गुण्डी की सात भावना युक्त) १२५ मि.ग्रा. तथा भूमिआँवला घनसत्व ५०० मि.ग्रा. मिलाकर १-१ मात्रा। दिन में २ बार भोजन के १ घण्टा बाद।

अब बिना सहारे के चलने लगीं सुमनलता गुप्ता

                घर में उपर्युक्त चिकित्सा ३ माह तक सेवन कराया फिर उनके पति विजय कुमार गुप्ता और बेटे सुमनलता गुप्ता को लेकर आये। बहुत प्रसन्न थे। अब सुमनलता बिना किसी सहारे के चलने लगीं थीं। पेन किलर गोली की कभी-कभी जरूरत पड़ती थी। यह देखा गया कि लम्बे समय से रोगाक्रान्त रहने के कारण सुमनलता को मनोदौर्बल्य हो गया था इसके लिए जटामांसी, वचा, अश्वगन्धा और सर्पगन्धा का योग दिया गया शेष औषधियाँ पूर्ववत् चलती रहीं। टांसिल की समस्या मिट चुकी थी।

                २५ मार्च २०२२ को तीसरी बार आये तो इस बार सुमनलता जी अपने से चलकर आयीं। आर.ए. निगेटिव आ गया तथा सीआरपी ४८.४ से घटकर १०.२ हो गया।

                इस बार श्री विजय कुमार गुप्ता (औषधि व्यवसायी) ने अपना प्रेरक और गरिमामई साक्षात्कार दिया। जिसे लिंक  https://youtu.be/BjUzWFTVklg पर सुना जा सकता है। इस प्रकार जिन रोगों में आज भी एलोपैथ में बहुत कुछ नहीं है वहाँ भारत की वैदिक चिकित्सा आयुर्वेद सम्पूर्ण समाधान लिए खड़ा है, बस आवश्यकता है सब जगह पहुँचाने की। ***






आचार्य डॉ. मदनगोपाल वाजपेयी!

चिकित्सा पल्लव जून 2022

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