यह है आयुर्वेद की वैज्ञानिकता-



खराब सपने आने में ऐसे सफल हुयी चिकित्सा!!


घटना कुछ महीनों पुरानी है, पंजाब से एक ७० वर्षीय वृद्ध आयुष ग्राम चिकित्सालय, चित्रकूट में चिकित्सार्थ आये। उनकी परेशानी थी यह कि दिन में सोयें या रात में बड़े खराब, डरावने, बुरे और गन्दे सपने आते हैं। एलोपैथ में साइक्रियाटिस्ट से लेकर फिजीशियन तक को आजमाया, वहाँ नींद की गोलियाँ खिलाई गयीं, उनसे नर्वस सिस्टम और खराब हो गया। जाँचें सब नार्मल थीं। तभी केस हिस्ट्री के समय रोगी के मुँह से अचानक निकल गया कि मेरे हार्ट की बायपास सर्जरी भी हो चुकी है। इतना बताते ही रोग का सारा कारण (निदान) हमारे सामने आ गया। महर्षि चरक कहते हैं-

रसवातादि मार्गाणां सत्त्वबुद्धेन्द्रियात्मनाम्।

प्रधानस्यौजसश्चैव हृदयं स्थानमुच्यते।।

च.चि. २४/३५

                यानी रस, वात आदि के मार्ग सत्त्व (मन), बुद्धि, इन्द्रिय, आत्मा और पर ओज का स्थान हृदय है।

                इससे स्पष्ट हो गया न कि मन, बुद्धि, इन्द्रिय, आत्मा आदि का स्थान हृदय है। सपनों के आने के विषय में चरक कहते हैं-

नातिसुप्त: पुरुष: सफलानफलांस्तथा।

इन्द्रियेशेन मनसा स्वप्नात् पश्यत्यनेकधा।।

च.इ. ५/४२।।

                यानी जब व्यक्ति को गाढ़ी नींद नहीं आती तब वह इन्द्रियों के स्वामी मन की सहायता से अनेक प्रकार के सफल, विफल सपने देखता रहता है।

                इस सूत्र से यह स्पष्ट हो गया कि स्वप्न आने में इन्द्रियों के स्वामी मन की उल्लेखनीय भूमिका है। अब एक सूत्र स्थान २१/३५।। में चलें, गाढ़ी नींद के बारे में चरक क्या कहते हैं-

‘‘यदा तु मनसि क्लान्ते कर्मात्मान: क्लमान्विता।

विषयेभ्यो निवर्तन्ते तदा स्वपिति मानव:।’’

                यानी गाढ़ी नींद पाने के लिए मन का शान्त होना और इन्द्रियों का अपने-अपने विषयों से निवृत्त होना आवश्यक है। यदि मनोवह स्रोतस् अत्यन्त बलवान् वात, पित्त, कफ से आक्रान्त रहते हैं तो दारुण स्वप्न आते हैं, यह बात चरक कहते हैं-

मनोवहानां पूर्णत्वाद् दौषैरतिबलैस्त्रिभि:।

स्रोतसां दारुणान् स्वप्नान् काले पश्यति दारुणे।।

च.इ. ५/४१।।

                यह भी ध्यान देने योग्य है कि सुश्रुत शा. ४/४३ में कहते हैं कि सम्यक् निद्रा की स्थिति तब तक नहीं रहती जब तक कि वात, पित्त की विकृति रहती है और मन सन्तप्त रहता है तथा ओजक्षय आदि की स्थिति रहती है-

‘‘निद्रा नाशोऽनिलात् पित्तान्मनस्तापात् क्षयादपि।।’’

तो यह बात फिर दोहरा दें कि स्पष्ट हो गया न कि मन, ओज, इन्द्रियों का समत्व और आरोग्यता हृदय की स्थिरता पर निर्भर है।

                बस! क्या था, रोग का सही कारण स्पष्ट हो गया फिर निम्नांकित चिकित्सा विहित की गयी-

¬ देवव्यापाश्रय चिकित्सा- नित्य प्रात: सायं दीपक जलाकर एकाग्रभाव से गुरुमंत्र का जप, शिवार्चन, रामरक्षास्तोत्र का पाठ और हवन।

¬ युक्तिव्यापाश्रय चिकित्सा- १. रसेश्वर रस २ ग्राम, जवाहर मोहरा रत्नप्रधान २ ग्राम, त्रैलोक्यचिन्तामणि रस (र.सा.सु.) ३ ग्राम, वंशलोचन ५ ग्राम, शतावरी चूर्ण २० ग्राम, रुद्राक्ष चूर्ण २० ग्राम सभी घोंटकर ६० मात्रा। यह १-१ मात्रा सुबह-शाम शहद से भोजन के ४५ मिनट बाद।

२. भल्लातक अवलेह १-१ चम्मच भोजन के डेढ़ घण्टा बाद १-१ कप गोदुग्ध से।

३. रात में सोते समय- अश्वगन्धा चूर्ण २ ग्राम गोघृत से। अंजीर २ नग, डालकर गोदुग्ध से पकाकर अनुपान में।

आश्चर्यजनक सुधार- पहले माह की चिकित्सा से २५% सुधार और तीन माह की चिकित्सा से बाईपास सर्जरी कराया हुआ ७२ साल का व्यक्ति कहने लगा कि मुझे नया जीवन मिल गया।

                इतनी सफल, दार्शनिक और वैज्ञानिक है, हमारी वैदिक चिकित्सा।

                बस! सही निदान, शास्त्रीय निदान, चिकित्सा और पथ्यापथ्य का पालन हो जाय और रोगी समय से चिकित्सा में अच्छे चिकित्सा संस्थान में पहुँच जाये।

                आप उपर्युक्त विश्लेषण और शास्त्रीय सूत्रों को पढ़कर और समझकर एक बार अवश्य जरूर सोचेंगे कि हमारे आयुर्वेद के सूत्र मैथमैटिक्स की तरह किस तरह चिकित्सा में सेट होते हैं।

                आशा है कि आप सभी इस लेख से लाभान्वित होंगे।

आचार्य डॉ. मदनगोपाल वाजपेयी!

चिकित्सा पल्लव जून 2022

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