१९९३-९४ में मुलायम सिंह की सरकार में उत्तर प्रदेश में हुए ६७ करोड़ रुपये घोटाले की हुयी शुरूआत और यह शृंखला २०१६ तक खत्म नहीं हुयी, कितनी विडम्बना है। ऐसे भ्रष्टाचार में कितने आयुर्वेद डायरेक्टर नपे, डॉ. शिवराज सिंह जैसे डायरेक्टर जेल गये, मौत हुयी।
अब आयुर्वेद निदेशक पाठ्यक्रम एवं मूल्यांकन पर आयुर्वेद शिक्षा घोटाला के आरोप लग गये, सन् २०१६ में एक कॉलेज में दो छात्रों का काउसिंलिग के माध्यम से प्रवेश हुआ और परीक्षा दिला दी ६० छात्रों की, आगरा के एक कॉलेज में काउसिंलिग से प्रवेश हुये ३२ छात्र और परीक्षा करा दी ६० छात्रों की। अमर उजाला ने लिखा कि यदि २०१६ से २०२२ के बीच निजी आयुर्वेद कॉलेज में हुए दाखिले की पत्रावलियाँ खँगाली गयीं तो ऐसे बहुत केस सामने आयेंगे।
जीरो टॉरलेंस पर काम कर रही योगी सरकार ऐसे भ्रष्टाचार में किसी को बख्शने वाली नहीं है, वह भी तब, जब मुख्यमंत्री जी ने आयुष विभाग को अपने से सम्बद्ध कर रखा हो। तत्काल आयुर्वेद निदेशक प्रो. सुरेश चन्द्र (पाठ्यक्रम एवं मूल्यांकन) को निलम्बित कर यह दिखा दिया कि भ्रष्टाचारी बख्शा नहीं जायेगा।
प्रो. सुरेश चन्द्र निदेशक आयुर्वेद (पाठ्यक्रम एवं मूल्यांकन) को विचार करना चाहिए कि योगी और मोदी सरकार आयुष चिकित्सा को शिखर पर ले जाने के लिए कमर कसे हैं और इन दोनों राजनेताओं का पूरा ध्यान आयुष पर है और वे पाठ्यक्रम एवं मूल्यांकन के दायित्व में हैं उन्हें अपने दायित्व का बोध नहीं।
ऐसे
अधिकारियों के कुकृत्यों के कारण ही आज स्थिति इतनी पीड़ा जनक है कि पूरे उत्तर
प्रदेश में ५८ आयुर्वेद कॉलेजों में से इतने वर्षों में प्रतिवर्ष १०% भी
ऐसे आयुर्वेद चिकित्सक नहीं निकल रहे जो अच्छे निजी आयुर्वेद चिकित्सक के रूप में
प्रतिष्ठित हो सकें या
हुये हों।
उत्तर
प्रदेश आयुर्वेद निदेशक पद पर एक सरल, सहज, व्यक्तित्व
प्रो.एस.एन. सिंह पदस्थ हैं, अभी तक के कार्यकाल में उन पर कोई
ऊँगली नहीं उठी और वे निरन्तर आयुर्वेद की श्रीवृद्धि के लिए ही प्रयत्नशील हैं,
प्रो.
सुरेशचन्द्र जी को उनकी कार्य प्रणाली से सीख लेनी चाहिए
योगी जी का ध्यान उ.प्र. में एक और घोटाले की ओर लाया जाना चाहिए वह है आयुर्वेद-यूनानी पैरामेडिकल शिक्षा घोटाला। जिसमें इतने माफिया सक्रिय हैं कि वे इसी ठेके पर अपने आयुर्वेद-यूनानी नर्सिंग, फार्मेसी कॉलेजों में एडमीशन लेते हैं कि उन्हें समाज कल्याण विभाग से मिली प्रतिपूर्ति पर डिप्लोमा दिला देंगे। घोटाला यह भी सामने आएगा कि वही छात्र-छात्रा एक अन्य कॉलेज से नियमित स्नातक या स्नातकोत्तर रेगुलर कर रहा है दूसरी जगह से उसी सत्र में आयुर्वेद नर्सिंग/फार्मेसी डिप्लोमा।
शिक्षण-प्रशिक्षण का आलम यह है कि इन पैरामेडिकल प्रशिक्षण संस्थानों में छात्र केवल परीक्षा टाइम में दिखते हैं। एक समय यह भी था जब इन पैरामेडिकल में प्रवेश के लिए आयुर्वेदिक बोर्ड द्वारा विधिवत् प्रवेश परीक्षा फिर काउसिंलिग होती थी किन्तु यह सारी व्यवस्था पिछली सरकारों में भ्रष्टाचार की भेंट चढ़ गयी।
दरअसल उ.प्र. में आयुर्वेद-यूनानी के विकास के लिए इण्डियन मेडिसिन एक्ट १९३९ और इस अधिनियम से आयुर्वेदिक तथा यूनानी तिब्बी चिकित्सा पद्धति बोर्ड की स्थापना की गयी है जिसके उद्देश्यों में, कार्यों में आयुर्वेद-यूनानी का विकास पहले अधिनियमित है पश्चात् रजिस्ट्रेशन किन्तु यह बोर्ड केवल रजिस्ट्रेशन कार्यालय बनाकर रख दिया गया है, अभी तक नियुक्त अध्यक्षों और सदस्यों की इच्छाशक्ति की कमी ने इसे पंगु बना दिया गया। अन्यथा इस बोर्ड का अधिनियम इतना व्यापक दायित्व संजोये है कि प्रदेश में आयुर्वेद-यूनानी के शोध, शिक्षा, गुणवत्ता और आयुर्वेद-यूनानी चिकित्सकों में स्किल (Skill) लाकर प्रदेश में आयुर्वेद-यूनानी का प्रवाह बहाकर योगी जी की भावना को साकार किया जा सकता है।
आज योगी जी पहले ऐसे मुख्यमंत्री हुये हैं जिन्होंने डंके की चोट पर कहा कि सरकार आयुर्वेद के लिए हर संभव सहायता करेगी।
योगी जी ही ऐसे मुख्यमंत्री हुए हैं जिन्होंने आयुर्वेद में सर्जरी का अधिकार देने के विरोध में खड़ी आईएमए को सीधे जवाब दिया कि मुझे हँसी आती है उन पर जो यह कहते हैं कि आयुर्वेद में सर्जरी नहीं हो सकती।
हमें आशा एवं विश्वास रखना चाहिए कि योगी जी आयुष को नई दिशा देने में कसर नहीं छोड़ेंगे।
चिकित्सा पल्लव जून 2022
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