बार-बार हड्डी टूटने की परेशानी से पीड़ित एक प्रौढ़ की सफल चिकित्सा
आयुर्वेद के सिद्धान्त शाश्वत हैं, वैज्ञानिक हैं बस आयुर्वेद चिकित्सा में रोगी और चिकित्सक शास्त्रीय मर्यादा का पालन करें। २ साल पूर्व आयुष ग्राम चिकित्सालय, चित्रकूट में दिल्ली से एक ऐसी प्रौढ़ महिला जिसे बार-बार फ्रैक्चर हो रहा था, उसके पति और बेटे चिकित्सा हेतु लाये। उसके पति और बेटे दोनों ही सीए थे।
एलोपैथ में डॉक्टर्स वही विटामिन डी के इंजेक्शन और कैपसूल दे रहे थे, उससे स्थिति नहीं सम्हल रही थी। यद्यपि महिला में बहुत मोटापा तो नहीं था पर हाँ! सामान्य से तो कुछ अधिक वजन था ही। दरअसल निदान करने पर यह स्पष्ट हुआ कि महिला का धातुपरिपोषण क्रम खराब था जिससे अस्थि धातु का पोषण हो नहीं पा रहा, महिला को निरन्तर वायु विकार, आध्मान, आनाह, कब्ज था ही।
उसे २ सप्ताह तक रुककर पंचकर्म की सलाह दी गयी। वे तैयारी से आये ही थे, इनकी इस प्रकार चिकित्सा व्यवस्था विहित की गयी-
१. आहार- तिक्तरस प्रधान सब्जी लौकी, करेला, परवल आदि, मूँग दाल और चना गेंहूँ जौ के मिश्रित आटे की रोटी, गोघृत, अदरक, टमाटर, पुदीना की चटनी। जौ का दलिया।
२. पंचकर्म- स्नेहन और स्वेदन तथा लेखन बस्ति, यापन बस्ति का पर्याप्त क्रम से प्रयोग।
३. औषधि व्यवस्था- अस्थिसंहार चूर्ण ३० ग्राम, कामदुधा रस मु.यु. ८ ग्राम, यशद भस्म ३ ग्राम, शु. शिलाजीत १० ग्राम और वातगजांकुश रस स्वनिर्मित ८ ग्राम सभी को घोंटकर ६० मात्रा। १-१ मात्रा भोजन के डेढ़ घण्टा बाद अनुपान अस्थि पोषक क्वाथ से।
अस्थि पोषक क्वाथ- अर्जुन त्वक्, हड़जोड़, निर्गुण्डी (रामनारायणी बूटी, एलेक्ट्रा चित्रकूटेसिस), गोरखमुण्डी और हरसिंगार पत्र सभी बराबर-बराबर।
रात में सोते समय- गुग्गुलतिक्त घृतम् क्वाथ टेबलेट ५०० मि.ग्रा. गोली गोदुग्धके साथ। गोदुग्ध पकाते समय २ चुटकी लाख चूर्ण डाला गया।
पंचकर्म के बाद उपर्युक्त चिकित्सा ६ माह तक चली। पंचकर्म का प्रयोग प्रत्येक वर्ष में १ बार कराया गया। २ साल हो गये आज तक शरीर में कोई फ्रैक्चर नहीं हुआ।
बस! उक्त औषधि व्यवस्था हर ६ माह में एक बार १ माह तक सेवन कराया जा रहा है। रोगिणी के परिजन अभी भी आयुष ग्राम में आते हैं। उनका साक्षात्कार लेकर वीडियो बनाकर यू ट्यूब में डालेंगे।
औषध सेवन कराने में चिकित्सक सदैव शास्त्रीय नियमों को ध्यान में रखे। कौन सी औषधि प्राग्भक्त, पश्चाद्भक्त, मध्यभक्त, मुहुमुर्हु: प्रकार से देना है यह अवश्य ध्यान रखें। इसके बिना औषधि सेवन का सम्यक् लाभ नहीं मिल पाता। यहाँ पर हमने भोजन के डेढ़ घण्टे बाद औषध सेवन विहित किया। योगरत्नाकरकार ज्वर चिकित्सा में बताते हैं-
वीर्याधिकं भवति भेषजमन्नहीनम्,
हन्यात्तथाऽऽमयमसंशममाशु चैव।
तद्बालवृद्धयुवतीमृदवो निपीय,
ग्लानिं परां समुपयान्ति बलक्षयं च।।
भोजन के पच जाने पर या खाली पेट औषधि सेवन कराने पर औषधि का प्रभाव बहुत शक्तिशाली रहता है और इस तरह से औषध सेवन कराना नि:सन्देह रोगनाशक होता है।
चिकित्सा पल्लव जून 2022
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