ये दवायेँ कर रहीं आयुर्वेद को असफल और तेजहीन


 ये दवायेँ कर रहीं आयुर्वेद को असफल और तेजहीन

गुलामी के दिनों में और फिर इधर ७५ सालों में आयुर्वेद क्षेत्र में भारत ने जो गँवाया उसे फिर पाने का समय आ गया है। क्योंकि सरकार का ध्यान एलोपैथ चिकित्सा के साथ-साथ भारतीय चिकित्सा पद्धतियों पर भी खूब है। पूरे विश्व का ध्यान भी भारत की इस चिकित्सा पद्धति पर है क्योंकि एलोपैथ की असफलतायें, नये-नये पैदा हो रहे जीवाणु या विषाणुजन्य रोग, जीवनशैली के रोग। कोरोना और ओमिक्रॉन जैसी महामारियों ने भारतीय जीवनशैली और भारतीय चिकित्सा पद्धति के प्रति विश्वास को मजबूत कर दिया।

                किसी भी चिकित्सा पद्धति की सफलता में चिकित्सा, औषधि, परिचारक और रोगी की महत्त्वपूर्ण भूमिका है पर जब औषधि निर्मातागण मुनाफाखारी बेईमानी के चलते अमानकीय, अशास्त्रीय और अवैज्ञानिक तरीके से औषधियाँ बनाकर बाजार में उतारे और चिकित्सक को अपने प्रतिनिधियों (एम.आर.) के माध्यम से यह विश्वास दिलाये कि क्वालिटी से कोई समझौता नहीं, तब की स्थिति से एक सामान्य आयुर्वेद चिकित्सक कैसे निपटे।

                बनारस में एक फार्मेसी है स्वास्थ्य भक्षक, जीएमपी साटीफाइड तो सभी लिखती ही हैं क्योंकि बिना जीएमपी के अब किसी फार्मेसी को निर्माण लाइसेन्स मिलता ही नहीं।

                घटना नवम्बर २०२० की है एक दिन इनका एक प्रतिनिधि आयुष ग्राम चिकित्सालय में आया उसने कहा कि सर! सर्वतोभद्रा वटी हमारी कम्पनी बनाती है ३ ग्राम की डिब्बी का मूल्य १२००± है जो आपको दी जायेगी ७७६ में। यह सुनकर हमने कहा यानी यह एक ग्राम दवा होगी लगभग २५९ की।

                आगे हमने कहा कि पहली बात हम सर्वतोभद्रा वटी का बहुत प्रयोग करते नहीं क्योंकि किडनी फेल्योर के जैसे गंभीर केस यहाँ आते हैं उन केसों में इसका प्रभाव हम नहीं पाते। दूसरी बात जब हमें इसे प्रयोग करना होता है तो यहाँ स्वयं निर्मित करते हैं। दूसरी बात सर्वतोभद्रा वटी में ७ घटक द्रव्य हैं स्वर्ण, रौप्य, अभ्रक, स्वर्णमाक्षिक, शु. गन्धक, शु. शिलाजीत, लौह और उसमें बराबर का स्वर्ण है आप इतने सस्ते में कैसे दे देंगे? इतना कहते ही वह प्रतिनिधि बगलें झाँकने लगा।

                आगे हमने कहा कि अब आप ऐसा करें उक्त सातों घटक द्रव्य १-१ किलो ग्राम हमें अलग-अलग दे दें रेट वही रखें जो अपना सर्वतोभद्रावटी का बता रहे हैं यानी २५९०००/- रुपये में ७ किलो ग्राम। हम स्वयं इन घटकों से निर्माण कर लेंगे, वह सकपकाया और हमारे कक्ष से बाहर जाकर कम्पनी मालिकों से बात की, फिर गोल-मोल बात करने लगा और चला गया।

                ऐसे में सन्देह होना तो स्वभाविक है, हमने दूसरे ही दिन इस स्वास्थ्य भक्षक फार्मेसी के वृ. वातगजांकुश, महामृगांक रस आदि जो हमारे चिकित्सालय में रखे थे उन्होंने प्रयोगशालीय परीक्षण हेतु आगरा भेज दिया जब रिपोर्ट आयी तो हम पाँवों के नीचे की जमीन खिसक गयी। महामृगांक रस में ०.२७% स्वर्ण और वृहद् वातगजांकुश रस में मात्र ०.२५% स्वर्ण पाया गया,  इसके बाद हमने डाबर के वृहद् वातगजांकुश रस का प्रयोगशालीय परीक्षण कराया तो उसमें ३.९२% स्वर्ण पाया गया।

                नागार्जुन अहमदाबाद की कहानी जब आप सुनेंगे तो दंग रह जायेंगे। योगरत्नाकर, रसराजसुन्दरम् में उल्लिखित एक चामत्कारिक रसौषधि है हेमाभ्रसिन्दूर। इसमें अभ्रक, रससिन्दूर और स्वर्ण भस्म समान मात्रा में है। आयुष ग्राम में उन्होंने इस शर्त पर भेजने की बात की कि आप प्रयोगशालीय परीक्षण करा लीजिये। हमने जब प्रयोगशालीय परीक्षण कराया तो जहाँ इस औषधि में स्वर्ण ३३% पाया जाना चाहिए, वहाँ पाया गया केवल ०.०५३% यानी अभ्रक रस सिन्दूर को स्वर्ण के रेट में बेच रही हैं ये कम्पनियाँ। यानी इस रस का निर्माण करते समय निर्माणशालाशालनि स्वर्ण भस्म कहीं पास में रख दिया होगा तो उड़कर उसकी सुगन्ध उसमें मिल गयी। हमने उनके प्रतिनिधि को बुलाकर तत्काल सारा बैच वापस किया। 

धन्वन्तरि गुजरात हर्ब जिला आनन्द (गुजरात) और श्री धन्वन्तरि हर्बल्स अमृसर द्वारा आयुर्वेद जगत को व्यथा कथा हम अवश्य बताना चाहेंगे। धन्वन्तरि गुजरात हर्ब जिला- आनन्द के एजेण्ट आये लम्बी-लम्बी बातें की, प्रभावशाली शब्दों में समझाया कि सर! हमारी कम्पनी के मालिकों का सिद्धान्त है कि क्वालिटी से कोई समझौता नहीं। विश्वास करके आयुष ग्राम चित्रकूट से औषधियों का ऑर्डर दिया गया। औषधियाँ आ गयीं हमने तो स्वास्थ्य भक्षक कम्पनी फार्मेसी बनारस की दवाओं की परीक्षा के बाद से प्रयोगशाला परीक्षण का नियम ही बना लिया था, इनकी दवाओं को जब प्रयोगशालीय परीक्षण हेतु भेजा तो आप जानकर हैरान रह जायेंगे कि धन्वन्तरि गुजरात के रसराज में केवल ०.१०% और वृहद् वात चिन्तामणि रस में केवल ०.०३४% स्वर्ण पाया गया, कितनी अन्धेरगर्दी, बेईमानी, नकलीपन इन फार्मेसियों द्वारा किया जा सकता है कोई सोच नहीं सकता।

               


धन्वन्तरि गुजरात ने स्वर्ण भस्म का नमूना भी हमें दिया उसे भी हमने प्रयोगशाला में भेजा तो २.५ ग्राम स्वर्ण भस्म में १.५२% केवल स्वर्ण था।

                वहीं आयुष ग्राम चित्रकूट में अपने रोगियों के लिए तैयार किये गये वृहतवातचिन्तामणि रस जिसमें केशर भी डाला गया था उसे प्रयोगशालीय परीक्षण में भेजा तो स्वर्ण ४.८% पाया गया। डाबर के वृहतवातचिन्तामणि रस में ५.२%, रसराज रस ४.८% स्वर्ण पाया गया। धूतपापेश्वर के वृहतवातचिन्तामणि रस में ४.५%, रसराज रस में २.८६% और बसंतकुसुमाकर रस में ६.०८% पाया गया।

                धूतपापेश्वर रस के योगेन्द्र रस में स्वर्ण ५.८६% पाया गया। धूतपापेश्वर के रसराज रस को फिर हमने जीओ लैब मुम्बई में जाँच करायी तो रसराज रस में २.६७% और योगेन्द्र रस में ४.९७% पाया गया। धूतपापेश्वर के स्वर्ण भस्म में ९८.४२% पाया गया। वहीं डाबर के स्वर्ण भस्म का प्रयोगशालीय परीक्षण कराने पर ९९.९% पाया गया।

                इस सम्बन्ध में जब धूतपापेश्वर के स्वामी श्री रणजीत पुराणिक जी से वात्र्ता की तो उन्होंने बताया कि स्वर्ण भस्म निर्माण में हम कण्डों (उपलों) का प्रयोग करते हैं जिससे वह भस्म लैब में भले ही डाबर से कुछ कम प्रदर्शित हो पर हमारे स्वर्ण भस्म के Particels (कण) शरीर में विशेष रूप में अवशोषित होते हैं, उनकी बात में वैज्ञानिकतापूर्ण दम है।

                डाबर से वार्ता करने पर उन्होंने बताया कि स्वर्ण भस्म के निर्माण में हम गोबर के कण्डों (उपलों) का प्रयोग नहीं करते पर हमारा स्वर्ण भस्म भी पूरी तरह औषधीय गुण सम्पन्न है। जो भी हो इन दो निर्माताओं के स्वर्ण कल्पों में संतोषजनक स्वर्ण पाया गया।

                इन घटनाओं के बाद कहें, इस प्रकार ठगी का शिकार होने के बाद हमने निर्णय ले रखा है कि किसी भी निर्माणशाला के स्वर्ण योगों का प्रयोग यदि आयुष ग्राम चित्रकूट में होगा तो पहले प्रयोगशालीय परीक्षण कराया जायेगा। पश्चात् प्रयोग में लाया जायेगा और पूरा प्रयास रहेगा कि अच्छे-अच्छे रस-रसायन आयुष ग्राम में ही निर्माण किये जायें।

                अब तो स्थिति यह हो गयी है कि जब भी आयुष ग्राम चिकित्सालय में कोई भी नई फार्मेसी के एजेण्ट आते हैं और जैसे ही ये रिपोर्टें दिखाकर फिर कहते हैं कि आपकी औषधियों का परीक्षण कराते हैं तो उनमें कंप-कंपाहट आ जाती है।

                एस.के.एम. सिद्धा के स्वर्ण भस्म को भी परीक्षण कराया गया तो उसमें ९८.५% स्वर्ण पाया गया।

                धन्वन्तरि हर्बल्स अमृतसर की स्वर्ण ब्राह्मी वटी स्वर्ण में ०.१८% ही स्वर्ण पाया गया जबकि डाबर की ब्राह्मी वटी स्वर्ण में ०.२८% स्वर्ण पाया गया। एक पुराने आयुर्वेदाचार्य ने वैद्यनाथ झाँसी के स्वर्ण योगों की कई बार हमसे प्रशंसा की, हमने वैद्यनाथ झाँसी का स्वर्णमालती वसंत, रसराज रस और वृहद्वात चिन्तामणि रस रूपनारायण शर्माकानपुर से मँगाकर जीईओ केम मुम्बई की प्रयोगशाला में परीक्षण हेतु ५ सितम्बर २०२१ को भेज दिया उन्होंने १० सितम्बर २०२१ को इस दवाओं रिपोर्ट सार्टीफिकेट जारी किया-

                वृहद्वात चिन्तामणि रस में २.०८%, रसराज रस में १.६४% और वसंत मालती रस (स्वर्ण) में मात्र १.०३% स्वर्ण पाया गया। तनसुखलखनऊ के वृहद्वात चिन्तामणि रस का नमूना इसी प्रयोग को परीक्षण को भेजा जिसका सार्टीफिकेट १० सितम्बर २०२१ को जारी हुआ जिसमें बताया गया इस दवा में स्वर्ण २.४०% है। यानी वैद्यनाथ झाँसी से अच्छा स्वर्ण तो तनसुखलखनऊ में ही पाया गया।

                वहीं डाबर के स्वर्णमालती बसंत स्वर्ण ३.२%, रसराज रस में ४.८०%, वृहद्वात चिन्तामणि रस में ५.२% पाया गया। धूतपापेश्वर के वृहद्वात चिन्तामणि रस में ४.५०%, योगेन्द्र रस (धूतपापेश्वर) में ५.८६% में पाया गया। श्री धूतपापेश्वर का स्वर्ण भस्म डालकर चिन्तामणि चतुर्मुख रस आयुष ग्राम चित्रकूट में तैयार कर प्रयोग शालीय परीक्षण हेतु भेजा तो पाया गया १०.०४% स्वर्ण भस्म है।

                आयुकल्प गुजरात की दवाओं की स्थिति यह पाय गयी, त्रैलौक्य चिंतामणि रस में स्वर्ण केवल ०.०१%, वसंत कुसुमाकर में ०.८६%, कुमार कल्याण रस में ०.६१%, योगेन्द्र रस में १.७४%, वृहद्वातचिन्तामणि रस में १.४६%, जवाहर मोहरा में ०.४५%, रसराज रस ०.५७%, स्वर्णभूपति रस १.०९% जबकि धूतपापेश्वर के रसराज में स्वर्ण २.६७%, योगेन्द्र रस में ४.९७% पाया गया। डाबर के रसराज, योगेन्द्र  और वृहद्वातचिन्तामणि की स्थिति हमने जनवरी, फरवरी अंक में स्पष्ट कर दी थी।

                भोपाल म.प्र. की एक फार्मेसी है जमना। उनके प्रतिनिधि बार-बार आयुष ग्रामआकर अनुरोध करते। हमने जब इनके रसराज कल्प, वातान्तक गोल्ड का प्रयोगशालीय परीक्षण कराया तो रसराज कल्प में ०.८२% और वातान्तक गोल्ड कैपसूल में ०.०३% पाया गया। विचार करें कि क्या स्थिति है इन निर्माताओं की, स्वर्ण के नाम से लुभाकर क्या कर रही हैं।

                कासगंज में बहुत सी फार्मेसियाँ हैं उनमें से तीन फार्मेसी वाले समय-समय पर हमारे यहाँ आयें उनके द्वारा निर्मित स्वर्ण युक्त दवाइयों का भी प्रयोगशालीय परीक्षण कराया तो आप विश्वास करें कि उमा आयुर्वेद, प्रोआर्थो को छोड़कर एक फार्मेसी की दवाइयों में लेडकी मात्रा पायी गयी और स्वर्ण का स्तर केवल नाम का मिला।

                इस लेख के अंत में हम यह भी बताना चाहते हैं कि हमारा उद्देश्य किसी भी औषधि निर्माता को दु:खी करना नहीं है, सभी आयुर्वेद चिकित्सकों तक वस्तु स्थिति पहुँच सके ताकि आयुर्वेद चिकित्सा का प्रभाव प्रभावित न हो, मानव को ऐसी हानिप्रद, घटिया स्तर की दवाइयों से हानि न हो यही भावना है। इसके अतिरिक्त हम सभी औषधि निर्मातागणों से यह भी निवेदन करना चाहते हैं कि मानवता के हित में वे प्रामाणिक रूप से ही औषधि का निार्माण करें।

जय आयुष!


आचार्य डॉ0 मदन गोपाल वाजपेयी


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