पिछले एक साल में हार्ट अटैक से युवाओं की हो रही मौतों में तेजी से इजाफा हुआ है। जर्नल ऑफ द अमेरिकन हार्ट एसोसिएशन के अनुसार विश्व के करीब २७ फीसदी वयस्क ब्लड प्रेशर की समस्या से ग्रस्त हैं। विश्व स्वास्थ्य संगठन की २०१६ की एक रिपोर्ट के अनुसार १५-४९ की आयुवर्ग के २२ प्रतिशत लोगों की मृत्यु का कारण कार्डियोवैस्कुलर डिजीज है। भारत में कम उम्र में हार्ट अटैक वाले मामले दिनों-दिन बढ़ते जा रहे है।
अभी कुछ रहे हैं। समय पहले भाजपा सांसद बंडारू दत्तात्रेय के बेटे बंडारू वैष्णव जो एमबीबीएस की पढ़ाई कर रहे थे उनकी हार्ट अटैक से मौत हो गयी, वह २१ साल के थे। वे देर रात खाना के बाद लेटे और सीने में दर्द की शिकायत हुयी, परिवार वाले लेकर गुरु नानक अस्पताल पहुँचे जहाँ डॉक्टरों ने उन्हें मृत घोषित कर दिया।
देश के हृदय रोग विशेषज्ञ बता रहे हैं कि अब भारत के युवाओं का दिल कमजोर हो रहा है।
ये आधुनिक अध्ययन भले ही आज दुनिया के सामने आये हों पर भारतीय वैदिक चिकित्सा विज्ञान हजारों साल पहले हृदय रोगी होने के कारणों को बहुत ही वैज्ञानिक तरीके से बता चुका है। चिकित्सा के महान् आचार्य चरक ने चिकित्सा स्थान २६/७७ में हजारों वर्ष पूर्व हृदय के रोगी होने के कारणों में प्रथमत: व्यायाम की अधिक्यता को ही बताया है-
व्यायामतीक्ष्णातिविरेकबस्ति चिन्ताभयत्रासगदातिचारा:।
छर्द्यामसंधारणकर्शनानि हृद्रोगकतृणि तथाऽभिघात:।।
अधिक व्यायाम हो या चटपटा भोजन, अधिक जुलाब लेना, चिंता, भय, उत्पीड़ित होना, पूर्व में उत्पन्न रोग का उचित उपचार न होना, मल, मूत्र, अपान वायु, वमन, नींद, छींक, भूख, प्यास आदि वेगों को रोकना, आमदोष (भोजन का सही पाचन न होने से पेट में उत्पन्न हुआ एक प्रकार का विषैला तत्त्व), शरीर को कृश बनाने वाले खान-पान और रहन-सहन तथा किसी प्रकार की चोट, मानसिक आघात जैसे कारण हृदय को रोग ग्रस्त कर देते हैं। यही कारण है कि हार्ट अटैक से तमाम मौतें जिम हाउस में हो रही हैं या जिम के बाद हो रही हैं।
इस प्रकार गलत जीवनशैली, गलत खान-पान हमारे हार्ट को कमजोर और रोगग्रस्त कर रहा है। एक अध्ययन के अनुसार अकाल मौत के कारणों में २००५ में दिल की बीमारी का स्थान तीसरा था किन्तु २०१६ में दिल की बीमारी अकाल मृत्यु का पहला कारण बन गया। हृदय के जाने-माने एलोपैथिक चिकित्सक डॉ. मनचन्दा जो एम्स में कार्डियो विभाग के कई सालों तक हेड रह चुके हैं, उन्होंने भी कमजोर दिल का कारण नए जमाने की जीवनशैली को कहा है यानी वही कारण बताया जिसे वैदिक चिकित्सा विज्ञान आयुर्वेद ने बताया है।
इस लेख में एमबीबीएस की पढ़ाई कर रहे बंडारू वैष्णव के हार्ट अटैक से मृत्यु की चर्चा हमने की तो उसमें वही कारण था कि देर रात का भोजन, जिससे हुयी अपच, आमदोष फिर हार्ट अटैक जिसका उल्लेख महर्षि चरक चिकित्सा स्थान २६/७७ में कर चुके हैं।
१०० साल या अधिक की आयु और निरोग रहते हुए जीवन जीने की अवधारणा हमारे वैदिक चिकित्सा विज्ञान में है। आयुर्वेद के ऋषि कहते हैं कि जिस व्यक्ति के शरीर में-
१. वायु अपने मार्ग में बिना किसी रुकावट के संचरण करता है।
२. वायु अपने स्थान में रहता है।
३. वायु अपनी स्वाभाविक स्थिति में रहता है यानी न बढ़ा हुआ और न क्षीण, वह व्यक्ति रोग रहित रहता हुआ १०० साल तक जीवित रहता है। च.चि. २८/४।।
आधुनिक चिकित्सा विज्ञान अभी तक उतनी गहराई में नहीं पहुँच पाया। वह तो रक्तसंवहन में असंतुलन को ही दिल के दौरे और उससे होने वाली मौत के कारण को गिना रहा है। यहाँ पर यह समझना आवश्यक है कि हार्ट की स्वस्थ रक्त संवहन क्रिया कैसे होती है और रक्त संवहन असंतुलन का जिम्मेदार कारक क्या है ? शरीर में ‘रक्त संवहन प्रणाली’ का संतुलन/असंतुलन किसके अधीन है तो सामान्य सी समझ रखने वाला व्यक्ति भी बता देता है कि शरीरान्तर्गत वायु।
वैदिक चिकित्सा विज्ञान के अनुसार शरीर का यह वायु रूखा, ठण्डा, अल्प मात्रा में, अति मैथुन, रात्रि जागरण, कम नींद लेने, कूदने, फाँदने, तैरने, अधिक पैदल चलने, अधिक व्यायाम करने, किसी भी प्रकार का अधिक श्रम करने, धातुओं के क्षीण होने, चिन्ता, शोक, तनाव, क्रोध, भय, दिन में सोने, मल, मूत्र, छींक, वमन, आँसू, भूख, प्यास, अपानवायु को रोकने, आमदोष उत्पन्न होने, चोट लगने, मर्मस्थान में चोट लगने आदि कारणों से प्रकुपित (furious/violent) हो जाता है जिससे शरीर में मारक व्याधियाँ उत्पन्न हो जाती हैं।
ध्यान देने की बात है कि वैदिक चिकित्सा सिद्धान्त आयुर्वेद (च.चि. २८/३) में स्पष्ट बताया गया है कि शरीर, इन्द्रिय, मन और आत्मा के संयोग रूप आयु के अस्तित्व में प्रकृतिस्थ वायु का महान् योगदान रहता है इसीलिए वायु को ही ‘आयु’ कहा गया है इसी को आत्मा का धारक कहा गया है और व्यवहार में भी देखिए कि साँसें निकल गयीं, जीवन लीला समाप्त। किन्तु दुर्भाग्य यह है भारत का इतना समृद्ध चिकित्सा शास्त्र होते हुए भी हमारी नवीन पीढ़ी को सरकारों के शिथिल रवैये के कारण इसका समग्र लाभ नहीं मिल पा रहा।
इस विवेचना में आप एक और रहस्य समझेंगे कि चरक संहिता में वायु के प्रकुपित होने के जो-जो कारण बताये गये हैं वही-वही कारण त्रिमर्मीय चिकित्साध्याय २६/७७ में हृदय के रोगी होने में बताये गये हैं।
देश के युवाओं में फैली अव्यवस्थित ‘जीवनशैली’ के निम्नांकित कारण बनते हैं-
१. तनाव
२. खान-पान के गलत तरीके जिससे चयापचय विकृति
३. कम्प्यूटर/इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों पर देर तक काम करना।
४. धूम्रपान, तम्बाकू, मद्यपान, फास्टफूड, नमक जैसे तीक्ष्ण वस्तुओं का बेतरतीब सेवन।
५. पर्यावरण प्रदूषण।
दिल की बीमारी और उससे होने वाली मौतों से युवाओं को बचाने के लिए सरकार को भी कुछ मदद करनी चाहिए। शासन में बैठे लोगों को चाहिए कि इस पर गंभीर और आयुर्वेदीय अवधारणा युक्त जागरूकता अभियान चलायें।
जंकफूड, फास्टफूड, तम्बाकू, धूम्रपान, मद्यपान पर या तो रोक लगानी चाहिए या तो इन्हें बहुत मँहगा कर देना चाहिए, साथ ही ऐसे खान-पान के प्रति स्पष्ट जागरूकता लानी चाहिए।
नमक सेवन के प्रति बार-बार सावधान करना चाहिए, अभी अमरीका ने अति नमक सेवन प्रति कुछ कुछ नई कानूनी व्यवस्था दी है। लोगों को खान-पान के आयुर्वेदीय तौर-तरीके समझाये जाने चाहिए। क्योंकि देश की अधिकांश आबादी को खान-पान के सही तौर-तरीकों की जानकारी नहीं है और खान-पान के सही तरीकों का ज्ञान वैदिक चिकित्सा विज्ञान आयुर्वेद में है।
वनस्पति तैल डालडा जो ट्रांसफैट के मुख्य स्रोत हैं उनसे बचें। रिफाइण्ड जैसे तैलों का निषेध कर सरसों के तैल का प्रयोग हो।
योग, प्राणायाम, जप, गुरुसेवा, अच्छे लोगों की संगति जिसे महर्षि चरक ने देवव्यापाश्रय चिकित्सा कहा जाता है इससे तनाव दूर होता है, मन निर्मल होकर शक्तिशाली बनता है, आत्मविश्वास बढ़ता है, चित्त शांति और एकाग्रता बढ़ती है जिससे शरीरान्तर्गत वायु संतुलित रहता है। योग और जप पर तो आधुनिक विज्ञान भी मुहर लगा रहा है। समय-समय पर पंचकर्म द्वारा शरीर का शोधन के लिए प्रेरित किया जाना चाहिए इससे हृदय अवश्य निरामय होता है।
हमारे शरीर का वायु जितना संतुलित और प्रकृतिस्थ रहेगा उतना ही दीर्घायुष्य की ओर मानव की गति रहेगी। इसमें कोई भी संदेह नहीं है यह भारतीय ऋषियों का हजारों साल जाना परखा विज्ञान है।
आहार हमेशा ऐसा हो जो ओज को बढ़ाये, चित्त को शांति दे तथा शरीर के चैनल्स (स्रोतस) में अवरोध पैदा न करे।
इतिहास साक्षी है कि इन्हीं उपायों से हमारे पूर्वज लम्बी आयु जीते थे और शेरेदिल कहे जाते थे।
डॉ. अर्चना वाजपेयी
चिकित्सा पल्लव फरवरी 2022 से

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