भारत की चामत्कारिक जड़ी-बूटियाँ-

  

 हृदय को सेहत देता एरण्ड!!

प्रकृति ने हमारे आस-पास ऐसी चमत्कारी जड़ी-बूटियाँ, वनस्पतियाँ हमारे आस-पास उत्पन्न की हैं ताकि हम सेहतमन्द रहें पर ज्ञान न होने के कारण हम उनका प्रयोग अपने और अपनों के जीवन स्वास्थ्य की रक्षा एवं आरोग्य के लिए उपयोग नहीं कर पा रहे। उन्हीं से एक सुलभ वनस्पति है एरण्ड।

 गोरखपुर एक रोगी को भयंकर हृदयावरण शोथ (pericarditis) था, एलोपैथ चिकित्सा में तभी तक आराम रहता था जब तक पेनीड्यूर के इंजेक्शन लगते, इसके साथ-साथ डायटोर और तमाम दवाइयाँ चलतीं। रोगी को चलने में सांस भी फूलती थी। कहीं उस रोगी को आर.एच.डी. बताया गया तो कहीं वाल्व रिप्लेस्मेण्ट की सलाह दी थी।

शरीर के अन्दर की वह झिल्ली जो हृदय को चारों ओर से घेरे रहती है, उसे पेरीकार्डियम कहते हैं, उसमें जो शोथ (सूजन) आ जाती है तो पेरीकार्डिटिस कहते हैं। वह आयुष ग्राम ट्रस्ट छितरकूट के आयुष कार्डियोलॉजीमें आये। सम्प्राप्ति के अनुसार निदान सेवन- कफवात प्रकोप अग्निमांद्य आमोत्पत्ति ट रसधातु विकृति, रसवहस्रोतस् दुष्टि, मूत्रवह, पुरीषवहस्रोतस् दुष्टि पायी गयी। क्योंकि रोगी शूल के साथ मूत्र त्याग और ग्रथित मल त्याग होता था।

कृच्छ्रेणाल्पाल्पं सशब्दशूलमतिद्रवमतिग्रथितमतिबहु चोपविशन्तं दृष्ट्वा पुरीषवहान्यस्य स्रोतांसि प्रदुष्टानीति विद्यात् (च.वि. ५/१७) 

सशूलं मूत्रयन्तं दूष्ट्वा मूत्रवहानास्य स्रोतांसिप्रदुष्टानीति विद्यात्(च.वि. ५/७)

रोगी को सान्त्वना दी गयी कि न तो वाल्व रिप्लसेमेंट होगा न ही मृत्यु होगी। रोगी युवा था। ६ माह तक लवण रहित भोजन और निम्नांकित चिकित्सा व्यवस्था दी गयीं।

¬ स्वेदन और क्षारबस्तियाँ

¬ रस सिन्दूर (षडगुण) १ ग्राम, रौप्य भस्म १ ग्राम, मुक्ता भस्म २ ग्राम, प्रवाल भस्म २ ग्राम, स्वर्ण वंग २ ग्राम, काकमाची चूर्ण ५ ग्राम, विभीतिका फल त्वक चूर्ण ५ ग्राम को मिलाकर ७ भावना एरण्डमूल क्वाथ की देकर ५००-५०० मि.ग्रा. गोली बनायी गयी। १-१ गोली दिन में ३ बार एरण्डमूल क्वाथ के अनुपान से।

¬ एरण्डमूलसप्तक चूर्ण ३-३ ग्राम दिन में ४ बार गरम जल से।

¬ शु. भल्लातक चूर्ण १ ग्राम रात में सोते समय १ गिलास गोदुग्ध से।

उपर्युक्त चिकित्सा व्यवस्था से १५ दिन में रोगी की ८०% समस्यायें चली गयीं।

हजारों साल पूर्व आर्यावर्त के महान् चिकित्सा वैज्ञानिक आचार्य चरक ने एरण्ड में वृष्य और वातहर गुण खोजे। उन्होंने सूत्र लिखा-

एरण्डमूलं वृष्यवातहराणाम् (श्रेष्ठतमम्)।। च.सू. २५।। इसके तैल में आचार्य चरक ने हृदय रोग और जीर्ण ज्वर नाशक गुण खोजा। आपको जानकर प्रसन्नता होगी कि आचार्य चरक ने आहारपयोगि वर्ग (food adjuvants and their properties) में तैल के गुणों को बताया उसमें सबसे पहले एरण्ड तैल के गुणों का उल्लेख किया-

एरण्डतैलं मधुरं गुरु श्लेष्माभिवर्धनम्।

वातासृग्गुल्महृद्रोगजीर्णज्वरहरं परम्।। च.सू. २७/२८९

यानी एरण्ड तैल मधुर, पचने में भारी, कफवर्धक, वातरक्त, गुल्म (lump), हृदयरोग और जीर्ण ज्वर को मिटाने में बहुत अच्छा है।

एरण्ड का तैल मिस्र की महिलाओं के सौन्दर्य प्रसाधन सामग्री का एक अंग रहा है। अंग्रेजों के आने के पूर्व गरीब लोग इसे रोटी में चुपड़कर खाते थे। फिर एक काल खण्ड में रात में घरों के दीपक में इसका प्रयोग होने लगा।

एरण्ड जड़, पत्ते, बीज और तैल सभी चिकित्सा में आते हैं। आचार्य सुश्रुत बताते हैं कि- एरण्डतैलं मधुरयुष्णं तीक्ष्णं कटु कषायानुरसं सूक्ष्मं स्रोतोविशोधनं त्वच्यं मधुर विपाकं वय: स्थापनं योनिशुक्रविशोधनमारोग्यमेधाकान्ति स्मृतिबलकरं वातकफहरमधोभागदोषहरं च:।। (सु.सू. ४५)

एरण्ड का तैल सूक्ष्म होने से शरीर के स्रोतस् में अच्छी तरह प्रवष्टि करता है और स्रोतोविशोधन होने से स्रोतस् की विशेष रूप से सफाई कर देता है। यह केवल आरोग्य ही नहीं देता बल्कि बढ़ती आयु को रोकता है, मस्तिष्क के लिए बहुत उत्तम है तो कान्ति को भी बढ़ाता है। ये सारे लाभ बिना ओज वृद्धि के संभव ही नहीं है, ओज का स्थान हृदय है क्योंकि- हृदि तिष्ठति यच्छुद्धं रक्तमीषत्पीतकम्। ओज: शरीरे... ... ...। च.सू. १७/७४१।। तो जब ओज बढ़ेगा तो निश्चित रूप से हृदय स्वस्थ होगा, जब स्रोतस् विशोधन होगा तब निश्चित रूप से बन्द धमनियाँ खुलेंगी। क्योंकि हृद्यं यत्स्याद्यदाजस्यं स्रोतसां यत्प्रसादनम्।। च.सू. ३०/१४।। यानी चरक कहते हैं कि ओजस्कर पदार्थ और स्रोतस् विशोधन क्रिया निश्चित रूप से हृदय को स्वस्थ बनाती है।

एरण्डमूल में चरक ने वृष्य (वीर्य और बलवर्धक तथा पौरुषशक्तिवर्धक) गुण पाये हैं और वातहर भी। इसी ऐसे भी समझना चाहिए कि वात प्रकोप के दो ही कारण होते हैं- धातुक्षय (शरीर के धारक तत्त्वों की कमी) और शरीर के स्रोतस् में रुकावट। एरण्डमूल जब वीर्य, बल और पौरुषशक्ति को बढ़ाता है तो रस, रक्तादि धातुओं की वृद्धि से यह कार्य प्रारम्भ करता है। धातुओं की क्रमश: वृद्धि से रिक्त स्थानों की पूर्ति होती है और अतिरिक्त, प्रकुपित और बढ़ा हुआ वातवहाँ से हटाकर अनुलोमित और संतुलित होता जाता है परिणामत: वातजन्य रोग मिटते जाते हैं। यह विज्ञान है आयुर्वेद का।

कोरोना के कारण हुयी मायोकार्डियल इंजरी- आयुष ग्राम चिकित्सालय, चित्रकूट में पिछले वर्ष से अनेकों मायोकार्डियल इंजरीके ऐसे रोगी चिकित्सा हेतु आये जिनमें यह परेशानी कोरोना के कारण हुयी थी। इस रोग में हृदय की मांसपेशियाँ क्षतिग्रस्त हो जाती हैं, आमतौर से रक्त के प्रवाह की कमी के कारण ऐसा होता है। ऐसे रोगियों में हमने सहदेई घनसत्व १ ग्राम, विश्वेश्वर रस १ गोली, गन्धर्वहस्तादिघन एरण्ड को गंधर्वहस्त भी कहते है | १ गोली मिलाकर १० दिन लगातार ३ बार, १० दिन बाद दिन में २ बार १ माह तक फिर एक दिन छोड़कर दिन में २ बार ६ माह तक सेवन कराया गया। इसके अलावा भोजन के पूर्व अमृतोत्तर कषाय १५-१५ मि.ली. भोजन के पूर्व ६ माह तक। सुपाच्य और संतुलित भोजन। 

हाई ब्लड प्रेशर (उच्च रक्तचाप)-  में भी एरण्ड की बहुत बड़ी भूमिका है। एरण्डमूल चूर्ण १०  ग्राम, अर्जुन चूर्ण ५ ग्राम को ६० मि.ली. गाय के दूध में २४० मि.ली. पानी मिलाकर पकायें जब पानी जल जाये और दूध बचे तो छानकर पिला दें खाली पेट। १ साल तक सेवन कराना है और लवण, चाय, कॉफी का परहेज करना है। उच्च रक्तचाप मिट जाता है।

 

आचार्य डॉ0 मदन गोपाल वाजपेयी


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