बढ़ते किडनी फेल्योर का सफल उपचार-

 


                  मुझे १ तारीख को पता चला कि मैं जिन्दा हूँ!

ऐसे होती है किडनी फेल्योर की सफल चिकित्सा!!

                जहाँ केवल पुस्तकों में कहानियाँ पढ़ने को मिलती थीं कि फलाँ जगह के वैद्य आयुर्वेद के अमृतमय रसों, भस्मों, रसायनों से रोगियों को मौत के मुँह से बाहर ला देते थे या यह सुनने को मिलता था कि ५० साल पहले फलॉ वैद्य मौत में जा रहे फलॉ रोगी को अपने रसों से बुला दिया था। आयुष ग्राम चित्रकूट में ऐसे ही रस, रसायनों की व्यवस्था है जिनका प्रभाव कि मौत के मुँह में जा चुके रोगी बाहर आ रहे हैं, यह करके दुनियाँ के सामने किया जा रहा है। यही हमारी खुशी है और यही हमारा गर्व।

                जब हम आजादी का अमृत महोत्सव और ७९वाँ गणतंत्र मना रहे हैं तब भी हमारा देश सही स्वास्थ्य, सही चिकित्सा, सही शिक्षा, के लिए मौताज है। आज भी यही स्थिति है कि व्यक्ति सही ज्ञान के अभाव में चिकित्सार्थ सही जगह नहीं पहुँच पा रहा। परिणाम जिन्हें डायलेसिस जैसी कठिन उपचार प्रक्रिया की जरूरत नहीं उन्हें डायलेसिस में डाला जा रहा है।

                ३० दिसम्बर २०२१ को रात ८ बजे आयुष ग्राम ट्रस्ट परिसर चित्रकूट में एक आईसीयू एम्बुलेंस आयी, उससे रोगी के सहायक उतरकर चिकित्सालय में रात्रिकालीन ड्यूटी में तैनात डॉक्टर साहब से बताया कि मेरी माँ ४ दिन से बेहोश हैं, प्रयागराज नाजरथ हॉस्पिटल में भर्ती थीं वे डायलेसिस करने जा रहे थे, हम ऑक्सीजन एम्बूलेंस में लेकर आयुष ग्राम चित्रकूट आये हैं।

                रोगिणी को स्ट्रेचर में लिटाकर ऊपर लाया गया, देखा कि ऑक्सीजन लगी है, रुग्णा बेहोश हैं। नाड़ी दुर्बल, ऑक्सीजन का उतार-चढ़ाव। उनका बेटा बार-बार भर्ती करने का अनुरोध कर रहे हैं। रोगिणी का नाम श्रीमती शंकुतला तिवारी उम्र ६५, गली नम्बर-१, धवारी, जिला- सतना (म.प्र.) तत्काल भर्ती किया गया।

                अब पहला प्रयास कि इन्हें होश में लाया जाय, ऑक्सीजन और रोगिणी के नाड़ी की स्थिति सामान्य हो। अत: तत्काल निम्नांकित औषध योग व्यवस्थित किया-

¬ रसेश्वर रस १ ग्राम, नीलकण्ठ रस २ ग्राम, अभ्रक भस्म सहस्रपुटी ३ ग्राम, मुक्ता भस्म २ ग्राम, याकूती रसायन अम्बर युक्त डेढ़ ग्राम, चतु:षष्ठिप्रहरी पिप्पली २ ग्राम, संजीवनी वटी १६ गोली। २४ मात्रायें। हर ३ घण्टे में मधु व अदरक स्वरस से।

¬ सौंफ, पुनर्नवा, मकोय, सारिवा, गोरखमुण्डी मिश्रित अर्क मुहुर्मुहु:।

¬ अणु तैल २-२ बूँद नस्य मुहुर्मुहु:।

   चमत्कार हुआ, २४ घण्टे में श्रीमती शकुन्तला जी की चेतना आने लगी, बुलाने पर हाँ, हूँ बोलने लगीं।

                ३१ दिसम्बर २०२१ को रक्त परीक्षण कराया हेमोग्लोबिन ८.८, डब्ल्यूबीसी २२.६६, न्यूटा्रेफिल २०.२७, यूरिया १५६.८, क्रिटनीन ८.६, यूरिक एसिड ९.२, सोडियम १५६.१, पोटेशियम ५.७ और फास्फोरस ८.४ आया। यूरिन में एल्ब्यूमिन ±±± में था।

  केस हिस्ट्री के दौरान इनके बेटे ने बताया कि ये खागा (फतेहपुर) में अपने लड़की के लड़के के यहाँ थीं। इन्हें भूख न लगने की शिकायत तो थी। अचानक इन्हें बहुत ही दस्त आये, खागा में ही भर्ती किया गया। वहाँ सुधार नहीं हुआ ये होश में आयीं नहीं तो इलाहाबाद नाजरथ अस्पताल ले गये।

                नाजरथ में डॉक्टरों ने डायलेसिस की तो हम ३० दिसम्बर २०२१ को वहाँ से निकाल कर आयुष ग्राम चिकित्सालय चित्रकूट ले आये।

                चूँकि शकुन्तला को अतिसार’ (Diarrhoea) के बाद किडनी फेल्योर हुआ न। आचार्य चरक बताते हैं कि-

कश्चिद्धि रोगो रोगस्य हेतुर्भूत्वा प्रशाम्यति।

न प्रशाम्यति चाप्यन्यो हेतुत्वं कुरुतेऽपि च।।

एवं कृच्छ्रतमा नृणां दृश्यन्ते व्याधिसंकरा:।

प्रयोगापरिशुद्धत्वात्त्था चान्योऽन्यसम्भवात्।।

                                          च.नि. ८/२२।।

                यानी कोई रोग किसी अन्य रोग का कारण बनकर स्वयं शान्त हो जाता है यानी एकार्थकारी होता है तो दूसरे प्रकार का रोग किसी रोग की उत्पत्ति करके स्वयं ही अनुवर्तन करता है। कई बार व्याधि संकरता भी देखी जाती है।                

                जब उचित चिकित्सा नहीं हो पाती या गलत चिकित्सा होती है तो एक रोग से दूसरे रोग की उत्पत्ति होने लगती है और व्यक्ति बड़े-बड़े कठिन रोगों से घिर जाता है। देखा भी जा रहा है कि ब्लडप्रेशर और शुगर की दवायें चलते-चलते व्यक्ति किडनी फेल्योर से घिर जाता है।

                अतिसार (Diarrhoea) पुरीषवह, उदकवह, अन्नवह स्रोतस् की व्याधि है इसकी सम्प्राप्ति ऐसे होती है- जठराग्निमन्दता ¨ आमदोषोत्पत्ति ¨ आंत्रक्षोभ ¨ वातप्रकोप ¨ पक्वाशय गतदोष ¨ पुरीषवह उदकवह स्रोतोदुष्टि ¨ मल अतिप्रवृत्ति ¨ अतिसार।

आचार्य चरक ने एवं रूपक के आधार पर वातज अतिसार का बहुत ही सुन्दर निदान प्रस्तुत किया है।

       ‘‘राजा पृषध्र के समय में जो व्यक्ति वात प्रकृतिके थे तथा वे पुरुष जो अधिक वायु, गर्मी-धूप, शारीरिक मेहनत करते तथा रूखा, अल्प, नया-तुला भोजन करते, नित्य तीक्ष्ण मद्य, मैथुन का सेवन करने वाले होते तथा नित्य मल-मूत्र एवं अपान वायु को रोकते रहते थे, उनके शरीर में वायु कुपित होकर फिर जठराग्नि को नष्ट कर दिया। तब वही वायु, मूत्र स्वेद को पुरीष के आशय में लाकर तथा मूत्र और स्वेद द्वारा पुरीष को पतला बनाकर अतिसार रोग उत्पन्न कर दिया।’’ (च.चि. १९/४)।

       दरअसल जठराग्नि के मन्द हो जाने पर जलीयांश का शोषण हो नहीं पाता। शरीर में जल का अंश मूत्र और स्वेद ये दो ही होते हैं, शोषण के अभाव में इनकी वृद्धि स्वभाविक है, जब शरीर में वायु बढ़ता है तो अग्नि की मन्दता (Metabolic Disorder) भी निश्चित है, यहाँ तक की गलत मार्ग में प्रवृत्त यह वायु स्वेद और मूत्र के जल को मलाशय में ले आती है, तब मल पतला पड़ जाता है और गुदा द्वार से उसका अधिक स्राव होने लगता है, इसी का नाम अतिसार या डायरिया है।

       २९ जुलाई २०१८ को दैनिक जागरण में प्रकाशित खबरों के अनुसार हैलेट कानपुर की ओपीडी में ४० फीसदी से अधिक मरीज डायरिया की समस्या लेकर आ रहे थे उनमें १०-१५ फीसदी किडनी की समस्या निकलकर आ रही थी। खून की जाँच में यूरिया, क्रिटनीन काफी बढ़ी पायी जाती थी।

       कई बार अतिसार के कारण पानी की कमी हो जाने से गुर्दे के नेफ़्रांस टूट जाते हैं जिससे गुर्दे में रक्त का बहाव कम होता जाता है जिससे किडनी फेल्योर हो जाता है यह एआरएफ होता है, ध्यान न देने पर ऐसे में पूरी तरह से भी किडनी खराब हो जाती है।

       आचार्य चरक ने अतिसार की उत्पत्ति में राजा पृषध्र की कहानी के बहाने अपने शब्दों में मूत्र और स्वेद की बात करते हुये जो बात कही है उन्हीं भावों को आधुनिकों ने डायरिया से होने वाले किडनी फेल्योर को बताया है।

       श्रीमती शकुन्तला में सम्प्राप्ति विघटन करने के क्रम में हमें वायु विशेषत: समान वायु और अपान वायु फिर व्यान वायु संतुलित करना था इनके संतुलित हो जाने पर अग्नि का कार्य स्वत: ही ठीक हो जाता है जिससे गुर्दों में रक्त प्रवाह भी संतुलित होने लगता है और टूटे नेफ़्रांस को पुनर्जीवन मिलने लगता है। नीलकण्ठ रस (यह वृ. निघण्टु रत्नाकर का है।) इसे यहाँ स्वर्ण, रौप्य के योग से कुछ विशिष्ट द्रव्यों की भावनायें देकर निर्मित कराते हैं, ऐसे में चमत्कार दिखाता है।

¬             नीलकण्ठ रस १२५ मि.ग्रा., विदार्यादिघन १ गोली, मुक्ता पंचामृत रस १२५ मि.ग्रा. और रसेश्वर रस १ गोली मिलाकर १²२ ।

¬             दशमूलहरीतकी १ चम्मच रात में सोते समय चाटकर गरम पानी से।

¬             अमृतोत्तर कषाय २ चम्मच, वृहद् वरुणादि कषाय और भूम्यामलक्यादि कषाय मिलाकर दिन में ३ बार।

पंचकर्म में- शिरोधारा, चक्रवस्ति, पिच्छाबस्ति, कटिबस्ति दी गयी। पथ्य में- पेया दी जाती रही। डॉ. अर्चना वाजपेयी एम.डी. (काय चिकित्सा) प्रतिदिन राउण्ड करतीं और चिकित्सा लिखतीं।

       १ तारीख को शकुन्तला जी काफी होश में आ गयीं और बोलीं कि मैं जिन्दा हूँ क्या? ५ जनवरी २०२२ को रक्त परीक्षण हुआ तो यूरिया, क्रिटनीन का बढ़ना रुका नहीं, यूरिया १५६.८ से बढ़कर १७७.८, क्रिटनीन ८.६ से ९.६, यूरिक एसिड ९.२ से घटकर ८.६ और फास्फोरस ८.४ से ८.१ हो गया।

       पर शकुन्तला जी के होश में आने से सभी बहुत प्रसन्न थे। चिकित्सा और पंचकर्म चलता रहा। १२ जनवरी २०२२ को रक्त परीक्षण कराया तो चौंकाने वाली रिपोर्ट आयी- यूरिया १७७.८ से घटकर १३८.४, क्रिटनीन ८.६ से घटकर ५.६, यूरिक एसिड ८.६ से घटकर ८.१, सोडियन १५६.१ (बहुत अधिक था) घटकर १३८.२, फास्फोरस ८.४ से घटकर ७.४ आया।

       १९ जनवरी २०२२ को रिपोर्ट तो और भी आश्चर्यजनक रिपोर्ट यूरिया ८८.६, क्रिटनीन २.९, फास्फोरस ६.४ और मूत्र में एल्ब्यूमिन ±±± से घटकर १± हो गया।

       श्रीमती शकुन्तला जी जो स्ट्रेचर में बेहोश आयीं थीं वे अब घूमने-फिरने, चलने लगीं। उन्होंने बहुत ही प्रभावशाली बयान रिकार्ड कराया जिसे अपने देश की आयुष चिकित्सा के गौरव और सम्मान से सराबोर होने के लिए अवश्य आप सभी को यू ट्यूब चैनल “Ayushgramtrust – chitrakootdham” में अवश्य सुनना चाहिए और अपने भारत की वैदिक चिकित्सा के प्रचार-प्रसार हेतु सब जगह भेजना चाहिए।

       १९ जनवरी २०२२ को श्रीमती शकुन्तला जी को डिस्चार्ज किया गया। भोजन में- १ माह तक लगातार अष्टगुणमण्ड और लौकी की सब्जी, परवल की सब्जी तथा हल्का सेन्धा नमक लिखा गया। डिस्चार्ज करते समय उनके बेटे के बयान पेज १८  पर प्रकाशित हैं।

     
                                                                                                                                                   
चिकित्सा पल्लव फरवरी 2022 




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*आयुष ग्राम चिकित्सालय* 

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