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समुदीर्णं यदा पित्तं हृदये समवस्थितम्।
....................स पाण्डुरोग..............।।
च.चि. 16/9
पाण्डु (Anemia) में हृदय में स्थित पित्त (साधक पित्त) का असंतुलन होता है। पाण्डु (Anemia) में यह ध्यान रखकर चिकित्सा करने से अच्छे परिणाम प्राप्त होते हैं।
15 अगस्त 2021 को स्वतंत्रता दिवस के दिन ओरन कस्बे (बबेरू) बाँदा से एक धनाढ्य परिवार के प्रौढ़ व्यक्ति श्री लक्ष्मीनारायण द्विवेदी (उम्र-47वर्ष) को लेकर उनके परिवारीजन ‘आयुष ग्राम (ट्रस्ट) चित्रकूट के ‘आयुष ग्राम चिकित्सालय’ में आये। ओपीडी क्रमांक- LA 86/62 पर ओपीडी में उनका रजिस्ट्रेशन हुआ। उस समय उनका टेम्परेचर 102डिग्रीफारेनहाइट, रक्तचाप 110/80 mm/Hg, नाड़ी गति 102/m, आक्सीजन 99%।
रोगी का चेहरा कृष्णवर्ण (काला) का हो गया था। उन्होंने रक्त परीक्षण रिपोर्ट दिखायी जिसमें 11 अगस्त 2021 को हेमोग्लोबिन 6.5 gm/dL और प्लेटलेट 1.20 लाख अंकित थे।
रोगी को 15 दिन से ज्वर आ रहा था जिसकी चिकित्सा स्थानीय स्तर से एलोपैथी में फिर आयुर्वेद में हो रही थी। पर हेमोग्लोबिन और बुखार में सुधार नहीं था।
हमने श्री लक्ष्मीनारायण जी को आयुष ग्राम चिकित्सालय में भर्ती किया और रक्त परीक्षण कराया तो हेमोग्लोबिन 6.2 आया। 11 अगस्त 2021 से दूसरे चिकित्सकों से आयुर्वेदिक तथा अंग्रेजी चिकित्सा चलते हुये भी हेमोग्लोबिन घट रहा था और ज्वर भी यथावत् बना था। ज्वर हेतु रक्तपरीक्षण में मलेरिया पैरासाइट की जाँच नेगेटिव विडाल थोड़ा पॉजिटिव आ रहा था।
हमने भर्ती के दिन कालमेघ, कुटकी, सप्तपर्ण, चिरायता, करंज का घनसत्व 500-500 मि.ग्रा. दिन में 3 बार, ब्राह्मीवटी स्वर्णयुक्त (रसयोगसागर), षडंगपानीय प्रेस्क्राइब किया। जिससे ज्वर में तो थोड़ा सुधार हुआ पर 18 अगस्त 2021 को जब रक्त परीक्षण कराया तो हेमोग्लोबिन की रिपोर्ट 5.5 ग्रा./डीएल की आयी यानी खून और कम हो गया। रिपोर्ट देखकर हम भी चिन्तित और उनके परिजन भी।
हमने परिजनों से कहा कि वे चाहें तो रोगी को अन्यत्र ले जायें और रक्ताधान करायें पर वे इसके लिए तैयार नहीं हो रहे थे और परेशान भी हो रहे थे। कुछ और चर्चायें हुयीं, उनकी मनोदशा देखकर हमने कहा कि चलिए 2 दिन और देखते हैं।
हमने भी समझा कि हम जितने हल्के से इस रोग को ले रहे हैं उतना हल्का है नहीं।
अभी तक इस रोगी को जो निदान हो रहा था वह यह कि रस धातु की प्रदुष्टि है जिससे पाण्डु (Anemia)।
रसधातु की प्रदुष्टि से-
अश्रद्धाचारुचिश्चास्य ... ... ... ज्वरस्तम:।
पाण्डुत्वं स्रोतसां रोध: क्लैव्यं साद: कृशांगता ... ... ... ... रसप्रदोषजा रोगा:।। (च.सू.28/9-11)
क्योंकि भोजन में अश्रद्धा, अरुचि, हृल्लास, भारीपन, तन्द्रा, अंगमर्द, ज्वर, तम: प्रवेश, पाण्डुता (Anemia), स्रोतारोध, क्लैव्य, अंगों की कृशता, थकावट, अग्निनाश आदि लक्षण थे।
तभी तो रसजानां विकाराणां सर्वलंघनमौषधम्।। (च.सू. 28/25) सूत्र के अनुसार लाघवकर तिक्त रस (वाय्याकाश महाभूत प्रधान) औषधियाँ दी जा रही थीं। किन्तु अपेक्षित परिणाम प्राप्त नहीं हो रहा था। तब हमारा ध्यान गया कि-
समुदीर्णं यदा पित्तं हृदये समवस्थितम्।
वायुना बलिना क्षिप्तं सम्प्राप्य धमनीर्दश।
... ... ... ... ... ... ... ... ... ... ...
स पाण्डुरोग इत्युक्त: ।।
च.चि. 16/9-12।।
गलत आहार-विहार से हृदय में स्थित साधक पित्त बढ़ जाता है, वह साधक पित्त वायु के द्वारा धमनियों के माध्यम से सम्पूर्ण शरीर में फैल जाता है, त्वचा और मांस मध्य स्थानसंश्रय कर कफ, वात, रक्त, त्वचा, मांस को दूषित कर त्वचा के ऊपर पाण्डु आदि अनेक वर्णों को उत्पन्न करता है।
रोगी श्री लक्ष्मीनारायण में-गात्रशूलज्वरश्वासगौरवारुचिमान्नर:।। च.चि. 16/14।। के अनुसार शरीर में दर्द, ज्वर, श्वास, शरीर में भारीपन और भोजन में अरुचि आदि थे। चूँकि रोगी का चेहरा काला पड़ गया था जिससे स्पष्ट था कि वह वातजन्य पाण्डु है-
जनयेत्कृष्णपाण्डुत्वं तथा रुक्षारुणाङ्गताम्।
अंगमर्दं रुजं तोदं कम्पं पाश्र्व शिरोरुजम्।।
वर्च: शोषास्यवैरस्यशोफानाहबलक्षयान् ।।
च.चि. 16/17-18।।
जिससे चेहरे/शरीर में कालापन, ज्वर, सुई चुभने जैसी पीड़ा, शरीर में कम्प, पसलियों और सिर में दर्द, मल का सूखापन, स्वाद हीनता और निर्बलता थी। इस प्रकार निदान होने पर हमने इसी सम्प्राप्ति के अनुसार चिकित्सा व्यवस्था की-
क्षीरतिक्त वस्ति- जो साधकपित्त साधक, ज्वरघ्न, धातुपोषक, वातानुलोमक और बलवर्धक है।
औषधि व्यवस्था (दिनांक 19 अगस्त 2021 को)
¬ चिन्तामणि रस (अम्बरयुक्त) सि.यो.सं. के मत से बना। अनुपान- बला क्वाथ 20-20 मि.ली. दिन में ३ बार।
प्रवालपिष्टी- 250-250 मि.ग्रा. दोपहर व रात पानी से।
प्रभाकर वटी- 250-250 मि.ग्रा. दिन में २ बार।
द्राक्षादि क्वाथ- 20-20 मि.ली. बराबर जल मिलाकर दिन में २ बार।
पथ्यापथ्य- कृशरा, लौकी, परवल की सब्जी गोघृत से बनी।
इस चिकित्सा से पहले दिन ही ज्वर की प्रकृति में परिवर्तन आ गया, शाम को ज्वर कम हो गया।
तीसरे दिन से ज्वर पूरी तरह मिट गया, 22 अगस्त 2021 को रक्तपरीक्षण कराया तो हेमोग्लोबिन 5.5 से बढ़कर ६.२ एमजी/डीएल हो गया। रिपोर्ट देखकर सभी प्रसन्न हो गये।
क्षुधा और विशेष वर्धन के निमित्त- दिनांक 22 अगस्त 2021 को रसेन्द्रसारसंग्रह के निर्देशानुसार बना विषमज्वरांतक लौह (पुरपक्व), पिप्पली, हिंगु और सैंधव लवण मिलाकर दिन में 2 बार देने को लिखा गया जिसे नर्सेज देने लगीं।
7 दिन तक इसी क्रम से औषधि चलती रही। 25 अगस्त 2021 को जब जाँच करायी तो हेमोग्लोबिन 7.0 हो गया। इसी दिन रोगी को डिस्चार्ज कर दिया गया।
3 सितम्बर 2021 को जब उन्होंने जाँच करायी तो हेमोग्लोबिन 9.4 एमजी/डीएल हो गया। त्वचा का कालापन हट गया। भूख, नींद, दुर्बलता, आत्मबल, सिरदर्द सब मिट गया।
कितनी सुन्दर, प्रभावकारी और वैज्ञानिक चिकित्सा है यह वैदिक चिकित्सा। पर दुर्भाग्य है कि भारत का मानव भटक रहा है।
दरअसल चिंतामणि रस में कज्जली के साथ, अभ्रक लौह, वंग, शु. शिलाजीत, मुक्ता, रौप्य और अम्बर का अद्भुत योग है। इस योग को हम अपने रोगियों/चिकित्सालय के प्रयोग हेतु स्वयं निर्माण कराते हैं। इसकी घुटाई में चित्रक् क्वाथ, भाँगरा और अर्जुन त्वक् की कई भावनायें हैं। निर्माण के लिए न घिसने वाले पत्थर के बिजली के खरल भी संस्था में लगाये गये हैं इससे अच्छी और बिना रुकावट के बहुत ही उत्तम औषधि बनती है। इसके घटक द्रव्य हृद्य तो हैं ही साथ ही पित्त की विकृति निवारक भी हैं जिससे शरीरस्थ पित्त का समत्व होकर हृदयस्थ ‘साधक पित्त’ का संतुलन होता है ये द्रव्य धात्वाग्नि की मन्दता को दूर करते हैं जिससे धातुपरिपोषण क्रम सुव्यवस्थित होता है परिणामत: वात का भी संतुलन होता है क्योंकि इस पाण्डु रोगी में साधक पित्त, वात के माध्यम से ही सर्व शरीर में प्रसारित हो रहा था। पित्त की स्थिति ठीक होने से मल की शुष्कता भी दूर हो गयी।
प्रभाकर वटी और प्रवालपिष्टी के योग ने उपर्युक्त क्रियाओं को और सबल किया। इनसे पित्तशमन, धातुपरिपोषण के कार्य में सहायता मिलती है। पाठकों के लिए रोगी की सभी रक्त परीक्षण रिपोर्टें यहाँ पर संलग्न है।
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उधर विषमज्वरांतक लौह (स्वर्णयुक्त) के घटक यकृत्, हृदय, प्लीहा और पाचन संस्थान को विशेष बल प्रदान करते हैं पाचकााग्नि को सम्यक् करते हैं जिससे रक्ताणुओं की वृद्धि होती है।
आज श्री लक्ष्मीनारायण द्विवेदी निरन्तर उत्तम स्वास्थ्य की ओर बढ़ते जा रहे हैं। आशा है कि पाठकगण इस लेख से लाभान्वित होंगे।
इनके शिष्यों, छात्र, छात्राओं की लम्बी सूची है । आपकी चिकित्सा व्यवस्था को देश के आयुष चिकित्सक अनुसरण करते हैं ।
(सुपर स्पेशलिटी आयुर्वेद हॉस्पिटल)

प्रधान सम्पादक चिकित्सा पल्लव और आयुष ग्राम मासिक
पूर्व उपा. भारतीय चिकित्सा परिषद
उत्तर प्रदेश शासन
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