25 वर्षीय युवती के पागलपन के दौरों की सफल चिकित्सा आयुष ग्राम                                  चित्रकूट से !


आई.सी.एम.आर. (इण्डियन कौंसिल और मेडिसिन रिसर्च) के एक व्यापक अध्ययन में यह बात सामने आयी है कि 4.57 करोड़ लोग आम मानसिक विकास अवसाद और 4.49 करोड़ लोग बेचैनी से पीड़ित हैं। शोध में यह बात भी आयी है कि मानसिक बीमारी साल-दर साल बढ़ रही हैं। इसमें एक तथ्य और भी सामने आया है कि हर सातवाँ भारतीय किसी न किसी तरह की मानसिक बीमारी से ग्रस्त है। अवसाद, बेचैनी, सीजो फ्रे निया आचरण सम्बन्धी रोग और ऑटिज्म आदि मानसिक रोग के प्रकार हैं इनमें डिप्रेशन (अवसाद), एंग्जाइटी (चिंता) और सीजो फ्रे निया से लोग सबसे ज्यादा परेशान हैं।


हैराने करने वाली बात यह है कि सन् 1990 में कुल मानसिक रोगियों की संख्या 2.5% थी जो 2017 में बढ़कर 4.7हो गयी यानी दूनी हो गयी। एम्स के एक प्रोफेसर डॉ. राजेश सागर के अनुसार भारत में मानसिक बीमारी तेजी से बढ़ रही है। मानसिक स्वास्थ्य सेवा उन्नत करने, सामाजिक लांछन खत्म करना, जागरूकता लाना इसकी सबसे बड़ी जरूरत है। 

एक और तथ्य सामने उभर कर आया है कि मानसिक रोगों में एलोपैथिक खाते-खाते किसी-किसी का तो पूरा जीवन ही बेकाम हो जाता है। 

भारतीय चिकित्सा का इतिहास साक्ष्य दे रहा है कि भारत में मनोरोगियों की वैदिक चिकित्सा आयुर्वेद द्वारा सटीक चिकित्सा होती आयी है पर जब से आयुर्वेद की अनदेखी कर मानसिक रोगियों को केवल एलोपैथ में झोंका गया तो उसका  अविवेकपूर्ण ढंग से उपयोग रोगी जीवनभर के लिए मनोदौर्बल्य, नाड़ीदौर्बल्य से ग्रस्त बन रहा है। 

12 नवम्बर 2021 को फतेहपुर (उ.प्र.) असोथर म.नं.-513 से अपनी पुत्रवधु आयु 25 वर्ष श्रीमती सोनाली को आयुष ग्राम चिकित्सालय, चित्रकूट लेकर आये। रजिस्ट्रेशन हुआ (पर्चा बना), उनका क्रम आने पर ओपीडी नं.-२ में आयी। केसहिस्ट्री में उन्होंने बताया-

➡️ इसके विवाह के 6 साल हो गये, बहुत ही अच्छे स्वभाव की मेरी पुत्रवधु थी यह।

➡️ 5साल पहले 1 बेटी हुयी जो सीजेरियन डिलेवरी से हुयी।

➡️ बच्ची होने के 1 साल बाद उसे छोटी-छोटी बातों में गुस्सा आने लगा, चिड़चिड़ापन, अनाप-सनाप बातें करती, गालियाँ, पति, बच्ची को मारती, अपनी बच्ची को बच्ची नहीं समझती, बर्तन तोड़-फोड़ करती है। 

सोनाली के ससुर बताते गये कि इसका इलाज कानपुर, लखनऊ में लगातार चलाया पर कोई लाभ नहीं मिला, इधर 7-8 माह से सब दवा बन्द है। 

इतना कहते-कहते ससुर सुखनन्दन त्रिपाठी ने रो दिया और कहा कि चिंता के कारण मेरा और मेरी पत्नी का स्वास्थ्य आधा हो गया है, हमारी नींद उड़ गयी है। 

सोनाली का प्रकृति परीक्षण किया गया तो वात पित्तजप्रकृति, सत्त्व अवर, वात-पित्त दोष का प्रकोप, इन दोषों का हृदय (मन, मस्तिष्क) में आश्रित होकर हृदय (मन-मस्तिष्क) दुष्टि, परिणामत: पित्तज उन्माद विनिश्चय हुआ। 

आयुष ग्राम चिकित्सालय में श्रीमती सोनाली और ससुर को बैठाकर चर्चा की गयी तो सोनाली ने उग्र होकर बताया कि ये मुझे डण्डों से मारते हैं और प्रताड़ित करते हैं। 

फिर हमने ससुर सुखनन्दन जी से अकेले में बात की तो उन्होंने बताया कि हम बिल्कुल प्रताड़ित नहीं करते। उन्होंने बताया कि एक रिश्तेदार लखनऊ में सपरिवार रहती हैं उसका पति अच्छी पोस्ट में है और मेरा लड़का (सोनाली का पति) भी लखनऊ में ही अति सामान्य वेतन स्तर की नौकरी कर रहा है, हमारी उस रिश्तेदार और सोनाली की टेलीफोन वात्र्ता होती रहती थी वह यही इसे भड़काती कि देखिए मेरा हसबैण्ड मुझे घुमाता है, पिक्चर दिखाता है और माल की बाजार कराता है, होटल में खाते हैं और तुम्हारा पति तुम्हें न घुमाता न ऐश कराता है आदि-आदि। 

इतना सुनकर हमने फिर सोनाली को बुलाया और बातचीत की हमने उससे लखनऊ के रिश्तेदार से बातचीत का प्रसंग रखा उसने स्वीकार किया। निदान का कारण स्पष्ट हो गया कि-

मानस: पुनरारिष्टस्य लाभाल्लाभाच्चानिष्टस्योपजायते।। 

च.सू. ११/४५।।*

अर्थात् इच्छित वस्तु के न पाने और अनिच्छित वस्तु के प्राप्त होने से मानसिक विकार हो जाते हैं। 

आचार्य चरक चिकित्सा ९/४, सुश्रुत उ. ६२/१२ का जब संयुक्त अध्ययन किया जाता है तो स्पष्ट होता है कि-

➡️ गलत खान-पान, दूषित खान-पान और अपवित्र तरीके से निर्मित और खाया गया खान-पान मानसिक विकार पैदा करता है।

➡️ गलत ढंग से जीवनशैली, मन, बुद्धि शरीर से चेष्टायें करने से मन रोगी हो जाता है। अपने सम्मननीयजनों, श्रेष्ठ व्यक्तियों, बड़ों का अपमान करने से, अपनी इच्छाओं में असफल हो जाने से, पत्नी, पति या राजपुरुष द्वारा लगातार प्रताड़ित (torture) करने से मनोविकृति आ जाती है। दूसरे स्पष्ट शब्दों में जब द्वेष, काम, क्रोध, लोभ, मोह आदि किसी भी मानसिक विकारों के उग्र रूप में होने से जब मन क्षुभित होता जाता है तो *मस्तिष्क से समत्व भाव नष्ट हो जाता है, मस्तिष्क की क्रियायें उत्तेजित हो जाती हैं, बस! उन्माद रोग हो जाता है। 

इसमें एक तथ्य और ध्यान रखने योग्य है जो आचार्य चरक बताते हैं कि- 

तैरल्पसत्वस्य मला: प्रदुष्टा बुद्धेर्निवासं हृदयं प्रदुष्य।

स्रोतांस्यधिष्ठाय मनोवहानि प्रमोहयन्त्याशु नरस्य चेत:।।

च.चि. ९/५।।

यानी किसी कारण से जब मन की शक्ति क्षीण हो जाती है तभी व्यक्ति में पागलपन (उन्माद) हो जाता है। 

चूँकि सोनाली लगातार पति और परिवारीजनों पर अन्दर-अन्दर क्रोधित हो गयी, ‘क्रोधात्पित्तम्।’ क्रोध से पित्त के लक्षण बढ़ते गये। पित्तज उन्माद में असहनशीलता (*intoelerance)-, क्रोध (anger), संतर्जन एवं अभिद्रवण (लोगों को धमकाना, मारने के लिए दौड़ना) ये लक्षण आते हैं। (च.चि. ९/१२)

इस प्रकार जब रोग का सही ढंग से निश्चय हो गया तो निम्नांकित चिकित्सा व्यवस्था विहित की गयी-

¬ स्वर्णब्राह्मीवटी (रसयोगसागर) १ गोली, वृहद्वातेश्वर रस रौप्ययुक्त १२५ मि.ग्रा., खताईपिष्टी २५० मि.ग्रा., मुक्तापिष्टी १२५ मि.ग्रा., सर्पगन्धाब्राह्मी, शंखपुष्पी, ज्योतिष्मतीघन मिश्रण ५०० मि.ग्रा. और जटामांसीघन १००० मि.ग्रा.। सब मिलाकर १ मात्रा। हर ३ घण्टे में ४ बार। 

¬ सारस्वतारिष्ट स्वर्णयुक्त 3 मि.ली., पर्पटादि कषाय 15 मि.लि. (बराबर जल मिलाकर) दिन में 3 बार। 

¬ धात्र्यादिघृत 10 ग्राम सुबह 7 बजे अनुपान उष्ण जल। 

¬ वूâष्माण्डावलेह १०-१० ग्राम दिन में 3 बार। 

¬ रात में सोते समय- अविपत्तियोगम् (अ.हृ.) 5 ग्राम गोदुग्ध से। 

पथ्य में- पुराना चावल, का भात, जौ, मूँग की दाल, धारोष्ण गोदुग्ध, गोघृत, परवल, लौकी, चौलाई, बथुआ, भिण्डी, अंगूर, किशमिश, मुनक्क, वातावरण परिवर्तन। 

अपथ्य में- गरम प्रकृति का भोजन, भैंस का दूध, सरसों का तेल, अचार, राई, गरम करेला, तिक्त द्रव्य, मसाला, भूख, प्यास, नींद के वेग का धारण, धूप सेवन एवं मैथुन। 

1 माह बाद जब श्री सुखनन्दन त्रिपाठी पुन: फॉलो-अप में मरीज को लाये तो बताया कि बहुत आराम है। 

तीसरे माह भी यही चिकित्सा व्यवस्था चली। श्री त्रिपाठी जी ने अपने विचार इस प्रकार दिए-

एलोपैथ से मिली निराशा

आयुष ग्राम चित्रकूट से मेरी बहू ठीक हुयी

➡️ मेरी बहू जब शादी होकर घर आई थी तो वह बिल्कुल नार्मल थी, बेटी होने के 1 साल बाद उसे छोटी-छोटी बातों में बहुत गुस्सा आने लगा, चिड़चिड़ापन, इधर-उधर की बातें करने लगी, गालियाँ देने लगी, अपने पति व बच्ची को मारने लगी, अपनी बच्ची को अपनी बच्ची नहीं समझने लगी। 

➡️हमने सबसे पहले कानपुर में डॉ. महेन्दू को दिखाया, 8 माह तक इलाज चलाया बिल्कुल आराम नहीं मिला।

➡️लखनऊ विवेकानन्द हॉस्पिटल का 3 माह तक इलाज चला, कोई आराम नहीं, बल्कि और ज्यादा हम सबको परेशान करने लगी, सामान तोड़ डालना, सबको मारना ये सब करने लगी। 

➡️ फिर हम लखनऊ के लालबाग नूर मंजिल हॉस्पिटल में लगे गये, वहाँ पर १ साल तक इलाज चला और ज्यादा समस्या होने लगी। 

➡️अब मैं और मेरा पूरा परिवार बहुत परेशान हो गया, चिंता से हमारा स्वास्थ्य बिगड़ने लगा, हम लोगों की भूख, नींद ठप हो गयी। मुझे मऊ के प्रधान श्री राजेश द्विवेदी जी ने आयुर्वेद के प्रसिद्ध संस्थान आयुष ग्राम चिकित्सालय, चित्रकूट का पता दिया। 

➡️ मैं 12 नवम्बर 2021 को सोनाली को लेकर आयुष ग्राम चित्रवूâट लेकर पहुँचा, सर ने देखा और काफी समय तक पूछ-ताछ की।

➡️ सर ने हम दोनों को सांत्वना दिया और कहा कि परेशान न हों सब ठीक होगा। हम लोग तो कह रहे थे कि इसे यहाँ 3-4  माह तक भर्ती रखिए पर सर ने कहा कि इसकी जरूरत नहीं अत: 1 माह की दवायें लिखीं, पथ्य, नियम, सावधानी बतायीं और फिर 1 माह बाद बुलवाया। आप विश्वास करें मुझे चमत्कार जैसा लगा, मेरी बहू घर आने के बाद मेरी पत्नी से जिससे सबसे ज्यादा नफरत करती थी उससे बहुत प्यार से बोली। दूसरे दिन से दवा चालू हुयी, धीरे-धीरे मेरी बहू बिल्कुल सामान्य बहुओं की तरह रहने लगी, इस समय 2 माह की चिकित्सा ले चुकी है और पूर्णत: आराम है। हालांकि डॉक्टर साहब ने कहा कि १ साल तक चिकित्सा, परहेज और नियम चलेगा। 

➡️ अब वह समय से जागने लगी, घर का पूरा काम करने लगी है, बच्ची व अपने पूरे परिवार का अच्छे से ख्याल रखने लगी, अपने पति व बच्ची से प्यार व ख्याल भी रखने लगी, सबकी बातें मानने लगी। अब वह बिल्कुल शान्त रहने लगी। 

मैं क्या बताऊँ हमारा 4 साल का भोगमान था तो भोगते रहे अन्यथा पहले ही यहाँ आ जाते तो बहुत अच्छा होता।

- सुखनन्दन त्रिपाठी असोथर, फतेहपुर (उ.प्र.)

दरअसल आयुष चिकित्सा का सिद्धान्त है कि रोग पहले मन में आता है फिर शरीर में। आयुर्वेद में मन, आत्मा, शरीर, इन्द्रिय के संयोग का नाम जीवन कहा गया है और सम्पूर्ण स्वास्थ्य की परिकल्पना में रोगी के शरीर के साथ मन, इन्द्रियों के स्वास्थ्य पर ध्यान रखना आवश्यक है। इसीलिए आयुर्वेद में जितनी भी औषधियों और चिकित्सा का हमारे वैदिक ऋषियों ने आविष्कार किया तो शरीर के साथ मन, इन्द्रियों की स्वस्थता पर अवश्य ध्यान रखा। 

उपर्युक्त चिकित्सा व्यवस्था ने पित्त का शमन किया, हृदय के साधक पित्त और प्राणवायु को संतुलित करते हुए हृदयस्थ ओज की स्थिति को भी ‘सम’ किया, की स्थिति के निर्दोष होते और समत्व में आते ही ‘मन’ भी समत्व में आने लगा, सत्वप्रवर होने लगा, बुद्धि से रज-तम की अतिशयता दूर हुयी और उन्माद मिट गया। चूँकि एलोपैथ में न यह थ्योरी है न थैरेपी, इसीलिए सोनाली का लम्बे समय तक एलोपैथ में चिकित्सा चलने के बावजूद भी लाभ नहीं हो पाया था। 

आज आवश्यकता है कि आप सभी द्वारा अपने देश की वैदिक चिकित्सा की वैज्ञानिकता, चामत्कारिकता को समझकर इसे जन-जन तक पहुँचाने की यह पुण्यास्पद कार्य है ताकि भटक रहे मानव को सही दिशा मिले और भारत की वैदिक चिकित्सा को उचित पद। 

इस केस को पढ़ने के बाद यह भी शिक्षा मिलती है सोनाली और परिवार वालों को जो भी कष्ट उठाना पड़ा उसके पीछे प्रज्ञापराध ही था, अनित्य, अस्थायी भोग विलास के पीछे मन को दौड़ाना। धी, धृति स्मृति की विभ्रंशता। इसीलिए हमें श्रीमद्भागवद् गीता के अनुसार सभी को निष्काम भाव से पूर्ण पुरुषार्थ (कर्म) करने तथा- 

सुखे दु:खे समे कृत्वा लाभालाभौ जयाजयौ।*

ततो युद्धाय युज्वस्व नैव पापमवास्यसि।।’

गीता २/३८।।

सुख, दु:ख, लाभ-हानि, जय-पराजय में ‘सम’ रहने की शिक्षा देनी चाहिए। इस विधि से कर्म करते रहने से पाप (रोग) की प्राप्ति नहीं होती और शांति रहती है। 

भगवान् अपनी माता देवहूति को (श्रीमद्भागवत. ३/२९/३२) में समझाते हैं कि- 

अर्थज्ञात्संशयच्छेत्त तत: श्रेयान् स्वकर्मकृत्। 

मुक्तसंगस्ततो भूयानदोग्धा धर्मामात्मन:।।

वेद का तात्पर्य जानने वालों से संशय का निवारण करने वाले श्रेष्ठ हैं, पर उनसे श्रेष्ठ हैं अपने कर्म को धर्म पूर्वक करने वाले तथा इनसे श्रेष्ठ हैं आसक्ति का त्यागकर अपने धर्म का निष्काम भाव से आचरण करने वाले। इस तरीके श्रेष्ठता अर्जित करने वाले कभी भी मानसिक रोगों से पीड़ित नहीं होते। यही आयुर्वेद का भी निर्दिष्ट मार्ग है।

आयुष ग्राम चिकित्सालय 

(सुपर स्पेशलिटी आयुर्वेद हॉस्पिटल )

 Add. आयुष ग्राम (ट्रस्ट) सूरजकुंड रोड (पुरवा तरोंहा मार्ग  ) , चित्रकूट धाम (ऊ. प्र ) 210205

 Contact. 9919527646, 8948111166


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