➡जिस नमक सेवन पर आज अमेरिका विचार कर रहा है उससे अधिक और सूक्ष्म खोज भारत के महान् चिकित्सा वैज्ञानिक आचार्य चरक ने ५ हजार साल पहले कर दुनिया को चेता दिया था। नमक के अति सेवन या निरन्तर सेवन से होने वाले हानियों के बारे में इस महान् चिकित्सा आचार्य ने दुनिया को चेताते हुए उन्होंने विमान स्थान में लिखा है कि पिप्पली, क्षार और नमक का अति सेवन नहीं करना चाहिए। उन्होंने स्पष्ट कर दिया था कि नमक की तासीर गरम और इसका गुण तीक्ष्ण होता है। यह न तो अति भारी होता और न चिकना। यह क्लेदन करता है किन्तु चिकित्सा में प्रयोग करने पर दोषों को निकालने में भी समर्थ होता है। भोजन में रुचि उत्पन्न करता है। नमक यदि अल्प काल तक और अल्पमात्रा में प्रयोग किया जाय तो यह उत्तम लाभकारी होकर तत्काल कल्याणकारक होता है किन्तु अधिक समय तक और अधिक मात्रा में सेवन करने से शरीर में रोग पैदा करने वाले दोषों का संचय करता है। चिकित्सा में चिकित्सकगण रोचन, पाचन, उपक्लेदन और विस्रंसन कार्य के लिये प्रयोग में लाते हैं। यदि इसका अत्यधिक प्रयोग किया जाय तो शरीर में ग्लानि (उत्साहहीनता), शिथिलता और दुर्बलता पैदा करता है। जब व्यक्ति इसका निरन्तर सेवन करते हैं वे अधिक रूप में उत्साहहीन (ग्लानि युक्त) हो जाते हैं। उनके शरीर में माँस और रक्त शिथिल पड़ जाते हैं और नमक का निरन्तर सेवन करने वाले लोग रजोगुणी हो जाते हैं परिणामत: थोड़ी सी कठिनाई को भी सहन करने में सर्वथा असमर्थ हो जाते हैं। इसलिए नमक का अधिक और लम्बे समय तक सेवन नहीं करना चाहिए। जो व्यक्ति नमक का अधिक और निरन्तर सेवन कर अपनी प्रकृति के अनुकूल बना लिये हैं उनकी त्वचा रोगी हो जाती है, त्वचा में सिकुड़न आ जाती है। बालों की कान्ति चली जाती है और बाल झड़ने लगते हैं। अत: नमक का प्रयोग चिकित्साक्रम और स्वरूप में ही हो।
➡ आचार्य डॉ. मदनगोपाल वाजपेयी
➡ धन्वन्तरि पीठ आयुष ग्राम (ट्रस्ट)
➡सूरज कुंड रोड चित्रकूटधाम
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