श्री रामदत्त त्रिपाठी: हल्दी भारतीय
उपमहाद्वीप में उत्पन्न होने वाली एक वनस्पति है जिसका प्रायः हर घर में मसाले के
रूप में उपयोग किया जाता है। डॉ. रजनीश जी! इसका चिकित्सा में किस प्रकार से उपयोग
किया जाता है?
डॉ. रजनीश ओलोनकर: हल्दी रूक्ष एवं लघु गुण,
कटु एवं तिक्त रस, उष्णवीर्य है। इसमें सूजन रोधी गुण होते
हैं। इसे वेदना स्थापन (दर्दशामक) और वर्ण्य (रंग को निखारने वाला) भी कहा गया है।
इसका त्वचा रोगों और घाव को भरने में भी उपयोग किया जाता है। यह श्वास रोगों में
लाभकारी है। यह इलर्जी नाशक भी है। यह पित्त विरेचक होने से पाचन भी करता है। रक्त
प्रसादन होने से इसका ब्लड प्यूरीफायर के रूप में प्रयोग किया जाता है। दूध में
मिलाकर पीने से इम्यूनिटी बढ़ाता है। आयुष मंत्रालय की गाइडलाइन में भी इसे प्रमुख
स्थान दिया गया है।
श्री रामदत्त त्रिपाठी: डॉ. वाजपेयी जी! हल्दी का कैंसर के
इलाज में भी उपयोग हो रहा है, वह किस प्रकार से होता है?
डॉ मदन गोपाल वाजपेयी: आईआईटी के शोधकर्ताओं की एक शोध
रिपोर्ट के अनुसार, हल्दी में करक्यूमिन पाया जाता है जो कैंसर की
कोशिकाओं को नष्ट करने में बहुत उपयोगी होता है। उन्होने इसे ल्यूकीमिया (रक्त
कैंसर) में भी इसे उपयोगी पाया है। हल्दी के प्रयोग के संबंध में बंगाल में एक
बहुत अच्छी परंपरा है। वहाँ पर नवप्रसूताओं को प्रसव के 4-5 दिन के बाद, पथ्य आरंभ करने के पूर्व 2-3 ग्राम कच्ची हल्दी का चूर्ण भोजन के पूर्व
सेवन कराते हैं इससे माँ के दूध में सुधार होता है, भीतरी
अवयवों की सूजन समाप्त हो जाती है। लीवर के लिए लाभकारी है और गर्भाशय का शोधन भी
हो जाता है। हम एक चक्रदत्त वर्णित योग का उल्लेख करना चाहते हैं जिसका हम बहुत
प्रयोग करते हैं। चक्रदत्त के अनुसार गिलोय, अरूषा, परवल के पत्ते, नागरमोथा,
सप्तपर्णी, खदिर की छाल, कृष्णबेल, नीम के पत्ते, हल्दी और दारुहल्दी को मिला
कर हल्दी प्रधान काढ़ा विभिन्न प्रकार के विसर्प (हार्पीज),
त्वचा संबंधी समस्त रोग, शरीर के छाले,
खुजली, चेचक, शीतपित्त एवं ज्वर रोगों
में अत्यंत लाभकारी है।
श्री रामदत्त त्रिपाठी: डॉ. वाजपेयी जी! विवाह के पूर्व उबटन लगाया जाता है, उसमें हल्दी होती थी, इसका क्या उद्देश्य है?
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आचार्य डॉ मदन गोपाल वाजपेयी आयुष ग्राम ट्रस्ट |
डॉ मदन गोपाल वाजपेयी: विवाह के पूर्व ही नहीं,
बल्कि विवाह के बाद भी, बधू के विदा होकर आने पर, यज्ञोपवीत आदि संस्कारों एवं ऋतुओं के संधिकाल में भी हल्दी, चिरौंजी, जौ का आटा, सरसों का
तेल मिलकर उबटन लगाने की परंपरा है। इसके पीछे दो उद्देश्य है। पहला वर-वधू की
त्वचा संक्रमण रहित करना, दूसरा हल्दी के वर्ण्य होने से
त्वचा में निखार लाना। हमारी समस्त परम्पराएँ पूर्णत: वैज्ञानिक एवं तर्कपूर्ण
हैं।
श्री रामदत्त त्रिपाठी: हल्दी का बिना किसी रोग के भी रोगों
से बचाव के रूप में किस प्रकार प्रयोग किया जा सकता है?
डॉ. रजनीश ओलोनकर: हल्दी उष्णवीर्य होती है इसलिए लंबे
समय तक सेवन करने के लिए इसमें कुछ शामक अनुपान के साथ इसका सेवन करना चाहिए। वात
प्रकृति के व्यक्ति को स्नेहन के रूप में घृत के साथ सेवन करना चाहिए,
पित्त प्रकृति के व्यक्ति को शर्करा, खांड या दूध के साथ तथा
कफ प्रकृति के व्यक्ति को इसे गरम पानी या शहद के साथ सेवन करना चाहिए।
श्री रामदत्त त्रिपाठी: कैसी हल्दी का प्रयोग करना चाहिए?
क्या बाज़ार में मिलने वाली हल्दी या हल्दी पाउडर लिया जा सकता है?
डॉ. मदन गोपाल वाजपेयी: इसके लिए कच्ची हल्दी का ही प्रयोग
करना चाहिए क्योंकि इसको सुखाने के पूर्व की गई प्रक्रिया के दौरान इसके बहुत से
गुण कम हो जाते हैं। इसके अतिरिक्त, जैसा कि डॉ. रजनीश ने बताया कि वात और पित्त दोनों प्रकृति के लोग दूध के साथ सेवन कर
सकते हैं। बाज़ार में मिलने वाले हरिद्रा खांड में घृत का पर्याप्त प्रयोग करने के
साथ साथ कई औषधियों का भी मिरश्रण किया जाता है इसलिए यह योग त्रिदोष शामक है। जो
एलर्जी आदि रोगों में बहुत लाभकारी है।
श्री रामदत्त त्रिपाठी: एक सवाल है कि यदि औषधि के रूप में केवल
हल्दी का ही प्रयोग करना हो तो किस प्रकार और कितनी मात्रा में करना चाहिए?
डॉ. मदन गोपाल वाजपेयी: बच्चों को पेट के कीड़ों में दो
चुटकी हल्दी चूर्ण शहद के साथ सेवन कराने से बहुत लाभकारी होती है। श्वास रोग में
पुष्करमूल, वचा और हल्दी का मिश्रण बहुत लाभकारी है। इसके चूर्ण
को सिगरेट के खोल में भर कर धूमपान करने पर कफ तेजी से निकलता है और लंबे समय तक
प्रयोग करने से श्वास रोग पूरी तरह समाप्त हो जाता है। हल्दी, पुराना गुड और सरसों का तेल मिला कर लेह बना कर सुबह शाम 10-10 ग्राम
मात्रा में सेवन करने और ऊपर से गरम दूध पीने से श्वास रोग चला जाता है और शोधों
से प्रमाणित हो चुका है कि यह योग एक प्राकृतिक स्टेरायड बन जाता है। 2012 में बीबीसी लंदन से एक समाचार प्रकाशित हुआ था कि थाईलैंड में हल्दी का एक
बहुत अच्छा प्रयोग हुआ है। बाईपास सर्जरी के बाद जब मांसपेशियाँ सिकुड़ने लगती हैं।
इसमें रोगियों को दो भागों में विभक्त किया गया। एक समूह को प्रतिदिन 1-1 ग्राम
हल्दी का कैप्सूल सेवन कराया गया, और दूसरे समूह को कुछ नहीं
दिया गया। कुछ दिनों के बाद पाया गया कि जिनको हल्दी का सेवन कराया गया उनकी
मृत्यु की संभावना 13% तथा जिनको कुछ नहीं दिया गया, उनकी
मृत्यु की संभावना 30% पाई गई।
श्री रामदत्त त्रिपाठी: हमारे यहाँ बुकनू के एक घटक के रूप
में हल्दी का बहुत प्रयोग किया जाता है। वह कैसे बनता है और इसके चिकित्सीय उपयोग
क्या हैं?
डॉ. मदन गोपाल वाजपेयी: इसमें कैथा या आंवला,
हल्दी, सोंठ, भुना जीरा, हींग सेंधा नमक सभी बराबर मिलाकर, पीस कर रख लेते
हैं। यह योग उदर रोगों के लिए बहुत ही लाभकारी है।
रामदत्त त्रिपाठी: पंसारी के यहाँ एक आमा हल्दी मिलती
है। कहा जाता है कि वह चोट में बहुत लाभकारी है। वह क्या होती है?
मदन गोपाल वाजपेयी: हल्दी कई प्रकार की होती है। हल्दी
की एक प्रजाति आमा हल्दी होती है यह लकड़ी के जैसी होती है उसमें कपूर की जैसी भीनी
भीनी खुशबू आती है, उसमें चन्द्र्सूर और मैदा लकड़ी मिला कर हल्का गुनगुना
कर के लेप किया जाता है। यह योग केवल चोट को ही ठीक नहीं करता बल्कि अस्थि संधान
(हड्डी को जोड़ना) भी करता है। हम इसका प्रयोग प्रायः करते हैं। चोट में हल्दी, चूना और शहद को मिला कर लेप करने से चोट में बहुत लाभ होता है। रक्त
स्राव में हल्दी और चीनी मिला कर लगा देने से तुरंत रक्त स्तंभन होता है और रक्त
बहना बंद हो जाता है।
रामदत्त त्रिपाठी: आजकल गोल्डेन दूध का बहुत चलन है।
हल्दी-दूध का सेवन कितने समय तक करना चाहिए? क्या इसका लंबे समय
तक प्रयोग किया जा सकता है?
डॉ. रजनीश ओलोनकर: चूंकि हल्दी उष्णवीर्य होती है
इसलिए पित्त प्रकृति के लोगों को इसका सेवन लंबे समय तक नहीं करना चाहिए। यदि करना
ही है तो बीच बीच में कुछ दिन तक रोक देना चाहिए। हम लोग एक निशा-अमलकी चूर्ण नामक
योग तैयार करते हैं। इसमें आंवला शीतवीर्य होने से हल्दी की उष्णता को कम कर देता
है लेकिन उसके गुण प्रभावित नहीं होते हैं। जिन लोगों को गर्मी सहन नहीं होती वे
इस हल्दी का आंवला के साथ कुछ दिन प्रयोग कर सकते हैं। हल्दी का एक प्रयोग संतति
निरोध (फैमिली प्लानिंग) में भी बहुत अच्छा है। ऋतुकाल में और उसके तीन दिन बाद तक
1-1 ग्राम हल्दी रोज जल से लेने से गर्भधारण की संभावनाएं बहुत कम हो जाती है।
ट्रांसिलाइटिस में भी इसका बहुत अद्भुत प्रयोग है। हल्दी का काढ़ा बना कर सेवन करने
से ट्रांसिलाइटिस में बहुत लाभ करता है।
रामदत्त त्रिपाठी: रजनीश जी! हल्दी में कौन कौन से घटक
दृव्य पाये जाते हैं?
डॉ. रजनीश ओलोनकर: इसमें विटामिन ए,
प्रोटीन और वसा पायी जाती है। इसमें 69% कार्बोहाइड्रेट होता है। 5-6% करक्यूमिन
होता है। यह एक कंपाउंड है जिसकी तुलना केसर से की गई है।

आचार्य
डॉ0 मदन गोपाल वाजपेयी, बी0ए0 एम0 एस0, पी0
जीo इन पंचकर्मा, विद्यावारिधि (आयुर्वेद), एन0डी0, साहित्यायुर्वेदरत्न, एम0ए0(संस्कृत)
एम0ए0(दर्शन), एल-एल0बी0।
संपादक- चिकित्सा पल्लव,
पूर्व
उपाध्यक्ष भारतीय चिकित्सा परिषद् उ0 प्र0,
संस्थापक
आयुष ग्राम ट्रस्ट चित्रकूटधाम।
आयुष ग्राम चिकित्सालय:, चित्रकूट

प्रधान सम्पादक चिकित्सा पल्लव और आयुष ग्राम मासिक
पूर्व उपा. भारतीय चिकित्सा परिषद
उत्तर प्रदेश शासन
डॉ अर्चना वाजपेयी एम.डी.(कायचिकित्सा-आयुर्वेद)
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