देश में अंग्रेजी अस्पताल और दवाइयों का प्रचलन ज्यों-ज्यों बढ़ा त्यों-त्यों ऐसी लाखों घटनायें सामने आ रही हैं कि रोग कुछ और इलाज कुछ। वह इसलिए ऐसा हो रहा है कि अंग्रेजी इलाज का सम्पूर्ण दरोमदार मशीनी जाँच पर और रोग लक्षणों पर निर्भर है और विडम्बना भी यह है कि देश का एक वर्ग उसी अस्पताल में ज्यादा भरोसा करता है जहाँ अधिक से अधिक जाँच मशीने हों। तभी तो देखा जा रहा है कि हिस्टीरिया तक के रोगी में सी.टी. स्केन, ईसीजी करा रहे हैं और रोगी के अभिभावक भी डॉक्टर पर जाँच कराने का दबाव बनाते देखे जाते हैं।
अब किसी को जीर्ण बुखार है तो उसमें भी शिर दर्द बना रहता है, पित्तवृद्धि, वातपित्तवृद्धि में भी शिर दर्द बनता है, आँतों में उष्णता है तो भी शिर दर्द होता है पर अंग्रेजी अस्पतालों में सभी प्रकार के शिर दर्द को ‘माइग्रेन’ घोषित कर देते हैं और रोगी को दवा खिलाते-खिलाते उसके शरीर में नई-नई बीमारियाँ पैदा कर देते हैं।
जब भारत के मरीज और उसके अभिभावक यह ध्यान देंगे कि हमारे भारत की चिकित्सा का गौरवशाली इतिहास रहा है क्योंकि इसका आविष्कार भारत के ऋषियों और वैज्ञानिकों ने किया है तथा इस गौरवशाली चिकित्सा विज्ञान के माध्यम से ही सम्पूर्ण मानव जगत को स्वस्थ और समृद्ध भावनामय बनाते थे।
अरे!! आज भारत के प्रधानमंत्री जब कह रहे हों कि मैं ‘‘आयुर्वेद योग और प्राणायाम का भरपूर उपयोग करता हूँ और मेरी गाड़ी इसी से चल रही है।’’
यदि इसके बाद भी सर्व सामान्य व्यक्ति आयुर्वेद का उपयोग कर अपनी गाड़ी न चला पाये और फालतू के ऑपरेशन या अंग्रेजी आडम्बर में फँसकर धन और शरीर का नाश करता है तो उसमें किसका दोष?
५ जून २०१९ को जिला- कासगंज, ग्राम/पोस्ट- बहोरा से राजकिशोर उम्र ६५ को लेकर आयुष ग्राम चित्रकूट आये। उनका पर्चा बना और अपना क्रम आने पर ओपीडी में आये। उनके साथी ने बताया कि- वर्ष २०१४ में पेट में बहुत तेज दर्द उठा, यूरिन बहुत कम हो रही थी, जलन, घबराहट, बेचैनी होने लगी, मैं बेहोश हो गया तो मिशन हास्पिटल रायबरेली में दिखाया। डॉक्टरों ने सी.टी. स्केन, एमआरआई, अल्ट्रासाउण्ड कराया तो बताया कि आपके हार्ट और किडनी में खराबी है।
✔️ दवा चलती रही, जब तक दवा चली तब तक बेहोशी और पेटदर्द का दौड़ा नहीं आया जैसे ही दवा चलती तो फिर से वैसी स्थिति।
✔️ फिर कलावती हास्पिटल ले जाया गया, लेकिन जब तक दवा खाते रहे तब तक आराम रहता और फिर बेहोशी का दौड़ा।
तभी मेरी भेंट डॉक्टर रामदेव दीक्षित से हो गयी उन्होंने यहाँ का पता बताया हम यहाँ आ गये। यह बताया कि यह प्रदेश का सबसे बड़ा आयुर्वेद हास्पिटल है।
दर्शन, स्पर्श, प्रश्नादि के द्वारा रोग के आदि कारण (निदान) की ओर जाने की ओर अग्रसर हुये तो पाया कि रोगी को ‘वातज मूर्च्छा’ (fainting) है ।
रोगी को पेट दर्द का भय उत्पन्न होता था, छाती में दर्द होता था, जम्भाई आती थी, कमजोरी महसूस होती थी, ग्लानि (Depression) होता था, फिर ऐसा होता कि मानो बेहोशी आ जायेगी। भूख भी कम हो जाती थी। आँखों के सामने अँधेरा छा जाता था, सुख-दु:ख की संज्ञा का नाश हो जाता था, रोगी सूखे काठ की तरह गिर पड़ता था, मोह पैदा होता था किन्तु वेग कुछ समय के लिए होता था, रोगी तुरन्त होश में आ जाता था, रोगी के शरीर में कम्पन होता था, शरीर में मसलने जैसी पीड़ा, छाती में दर्द, दुबलापन था ही, कई बार रोगी के होंठ, हाथ नीले पड़ते थे।
रोगी की सारी जाँचें देखी गयीं और प्रश्नों के आधार पर ऊपर की सारी जानकारी ली गयी इससे स्पष्ट हो गया कि इसे वातज मूर्च्छा है।
भगवान् धन्वन्तरि बताते हैं-
तमोऽभ्युपैति सहसा सुख दु:ख व्यपोहकृत्।
सुख दु:ख व्यपोहाच्च नर: पतति काष्ठवत्।।
मोहो मूर्च्छेति तां प्राहु: षडविधा सा प्रकीर्तिता।
वातादिभि: शोणितेन मद्येन च विषेण वा।।
हृत्पीड़ा जृम्भणं ग्लानि: संज्ञानाशो बलस्य च।
सर्वासां पूर्वरूपाणि, यथास्वं ता विभावयेत्।।
सु.सू. ४६/६-८।।
इसीलिए हम बार-बार लिखते हैं कि रोगी का निदान करते समय खूब प्रश्न पूछें, छोटी से छोटी जानकारी भी लेने का प्रयास करें फिर उनका ग्रुप बनाकर रोग निदान तक पहुँचें।
वातज मूर्च्छा के बारे में आचार्य माधवकर कहते हैं-
नीलं वा यदि वा कृष्णमाकाशमथवाऽरुणम्।
पथ्यंस्तम: प्रविशति शीघ्रं च प्रतिबुध्यते।।
वेपथुश्चाङ्गमर्दश्च प्रपीड़ा हृदयस्य च।
काश्र्यं श्यावाऽरुणाच्छाया मूर्च्छाये वातसम्भवे।।
मा.नि. १७/७-८।।
ये वही लक्षण हैं जो रोगी में पाये गये और प्रश्न के द्वारा जानकारी कर ऊपर अंकित किया गया।
रोगी कृश था, हीनसत्व था, वातदोष कुपित था, खान-पान भी जो करता था उसमें विरुद्धाविरूद्ध का कोई ध्यान नहीं देता था।
मूर्च्छा रोग की उत्पत्ति में ऐसे कारण भी अच्छी भूमिका निभाते हैं।
यह बात भी भगवान् धन्वन्तरि बताते हैं-
क्षीणस्य बहुदोषस्य विरुद्धाहार सेविन:।
वेगाघातादभीघाताद्धीनसत्वस्य वा पुन:।।
सु.उ. ४६/३
रोग और रोगी का विधिवत् जब अध्ययन किया गया तो पाया गया कि इसमें मूर्च्छा रोग की सम्प्राप्ति इस प्रकार बनीं-
निदान सेवन की परिस्थितियाँ ➡️ वातादि शरीर दोष एवं तमोदोष (मानस) का प्रकोप ➡️ उग्र दोष अल्पसत्व व्यक्ति के बाह्य एवं आभ्यन्तर आयतन में प्रवेश ➡️ संज्ञावह एवं मनोवहस्रोतसों का आच्छादन और अवरोध ➡️ सुख दु:ख की संज्ञा का नाश ➡️ रोगी का शुष्क काष्ठवत् पृथ्वी पर गिर पड़ना ➡️ मूर्च्छा रोग की उत्पत्ति।
(माधव निदान १७/२-३)
अब चिकित्सा के प्रसंग में हमने सम्प्राप्ति विघटन के उद्देश्य से निम्नांकित चिकित्सा व्यवस्था विहित की-
➡️ अष्टमूर्ति ३ ग्राम, श्रेष्ठ जवाहर मोहरा ३० गोली, कामदुधा रस मुक्तायुक्त १५ ग्राम, स्वर्ण वंग ३ ग्राम, वंशलोचन ५ ग्राम, शतावर घन १० ग्राम और बलापुनर्नवादि क्वाथ घनसत्व २० ग्राम सभी घोंटकर ६० मात्रा। १x२ सुबह-शाम भोजन के ४५ मिनट पूर्व।
➡️ अर्क गावजवाँ २० मि.ली., गन्धर्वहस्तादि काढ़ा २० मि.ली. उबालकर ठण्डा किया जल दिन में २ बार। भोजन के १ घण्टा बाद।
➡️ रात में एरण्ड पाक १० ग्राम सोते समय।
➡️ ब्राह्मी तैल का शिरोपिचु १ घण्टा तक।
पथ्य- नाश्ते में कुष्माण्डावलेह १० ग्राम चाटकर १ गिलास गोदुग्ध के अनुपान से, दोपहर में रोटी, पुराने चावल का माड़ निकाला भात, मूँग की दाल, गोघृत, आँवले की चटनी। रात का भोजन सोने के २ घण्टा पूर्व कम मात्रा में।
एक माह बाद जब राजकिशोर आयुष ग्राम, चित्रकूट में ‘फॉलो-अप’ में आये तो बताया कि इन १ माह में एक बार भी बेहोशी नहीं आयी और उसमें कार्यक्षमता, बल, उत्साह का आधान हुआ है।
उपर्युक्त चिकित्सा व्यवस्था और पथ्य पालन से ३ माह में ही रोगी पूर्ण स्वस्थ हो गया। हालांकि आयुष ग्राम, चित्रकूट के डॉक्टरों ने ६ माह तक दवायें सेवन और पथ्य पालन की सलाह दी थी और दवाइयों को धीरे-धीरे बन्द करने की सलाह दी है।
उपर्युक्त चिकित्सा व्यवस्था में निदान सेवन से उत्पन्न हुये धातुक्षय का अपवारण हुआ, परिणामत: रज और तम दोष का भी निवारण हुआ क्योंकि ‘न रजस्क: तम: प्रवर्तते।’ संज्ञावह एवं मनोवह स्रोतस के आच्छादन और अवरोध निवारण की जितनी श्रेष्ठ क्षमता आयुर्वेद चिकित्सा कल्पना में हमने पायी है वह शायद अन्य चिकित्सा में हो। अंग्रेजी चिकित्सा में तो नशे में सोने की दवाइयाँ खिला-खिलाकर जीवनभर के लिए पागलकर देते हैं।
बस! समय आ गया है अपने देश के महान् चिकित्सा विज्ञान आयुष के साथ जुड़ने का, उससे सभी को जोड़ने का। तो ऐसे पीड़ित मानव की सेवा हो सकती है और मानव का कष्ट निवारण हो सकता है।
तो आइये, इस दिशा में आगे बढ़ें। श्री राजकिशोर जी ने स्वस्थ होने के बाद जनहित में अपने विचार इस प्रकार दिये-
बेहोशी की बीमारी से आयुष ग्राम (ट्रस्ट), चित्रकूट ने उबारा
मेरी उम्र ६५साल, मुझे सन् २०१४ में अचानक पेट में बहुत तेज दर्द उठा, पेशाब बहुत कम हो रही थी, जलन बहुत होने लगी, घबराहट, बेचैनी होने लगी , मैं बेहोश हो गया तो मेरा बेटा मुझे मिशन हॉस्पिटल, रायबरेली ले गये, वहाँ पर डॉक्टरों ने सीटी स्केन, एम.आर.आई., यू.एस.जी., एंजियोग्राफी इत्यादि सभी जाँचें करवाने के बाद मुझे बताया गया कि किडनी में पथरी की समस्या है।
रायबरेली में मेरी ६ माह तक इलाज चला, एलोपैथ की जब तक दवा खाते तब तक ठीक रहता और एक भी दिन दवा न खाने पर फिर से समस्या हो जाती है। एक दिन फिर से पेट और छाती में दर्द उठा और मैं बेहोश हो गया तो मुझे कासगंज के कलावती हॉस्पिटल ले जाया गया, वहाँ पर मेरी जाँचें देखकर दवा दी गयी, मेरा कलावती हॉस्पिटल में ३ साल तक अंग्रेजी दवायें चलीं, लेकिन जब तक दवा खाते तब तक आराम रहता, एक भी दिन दवा छूट जाने पर फिर से वही सारी दिक्कतें होने लगतीं।
तभी मुझे मेरे यहाँ के ही एक डॉक्टर रामदेव दीक्षित के द्वारा आयुष ग्राम चिकित्सालय, चित्रकूट के बारे में पता चला। मैं आयुष ग्राम चिकित्सालय, चित्रकूट आया, मेरा नम्बर आने पर मुझे डॉक्टर साहब के पास बुलाया गया, डॉक्टर साहब ने मुझे देखा और सभी समस्यायें पूछीं। जब मैं यहाँ पर आया था तब मेरे पेट में बहुत दर्द हो रहा था, घबराहट, बेचैनी, पेशाब बहुत कम हो रही थी, मुझे नींद बिल्कुल नहीं आती थी, मैं बहुत परेशान था। लेकिन डॉक्टर साहब ने मुझे बहुत अच्छे से समझाया और कहा कि आपको मैं ६ माह में बिल्कुल स्वस्थ्य करूँगा। मुझे लगा कि ऐसे इतनी जल्दी जो ५-६ साल की बीमारी है जो एलोपैथ वाले इतने दिन से नहीं ठीक कर पाये वह ६ माह में कैसे ठीक हो सकता है।
मुझे एक माह की दवा दी गयी, मैं बताये अनुसार सेवन करने लगता तो मुझे पहले माह से ही आराम मिलना शुरू हो गया और डॉक्टर साहब ने तो ६ माह के लिए बोला था, मैं तो ३ माह में ९५ प्रतिशत ठीक हो गया हूँ, एलोपैथ की दवायें तो पहले माह ही बन्द हो गयीं थी। अब न तो दर्द होता न बेहोशी।
बताइये जो काम अंग्रेजी दवायें ५ साल में नहीं कर पायीं वहीं आयुर्वेद चिकित्सा ने ३ माह में ही कर दिया। मैं तो सभी से कहता हूँ आयुर्वेद अपनायें।
राजकिशोर
बहोरा, जिला- कासगंज (उ.प्र.)
अब किसी को जीर्ण बुखार है तो उसमें भी शिर दर्द बना रहता है, पित्तवृद्धि, वातपित्तवृद्धि में भी शिर दर्द बनता है, आँतों में उष्णता है तो भी शिर दर्द होता है पर अंग्रेजी अस्पतालों में सभी प्रकार के शिर दर्द को ‘माइग्रेन’ घोषित कर देते हैं और रोगी को दवा खिलाते-खिलाते उसके शरीर में नई-नई बीमारियाँ पैदा कर देते हैं।
जब भारत के मरीज और उसके अभिभावक यह ध्यान देंगे कि हमारे भारत की चिकित्सा का गौरवशाली इतिहास रहा है क्योंकि इसका आविष्कार भारत के ऋषियों और वैज्ञानिकों ने किया है तथा इस गौरवशाली चिकित्सा विज्ञान के माध्यम से ही सम्पूर्ण मानव जगत को स्वस्थ और समृद्ध भावनामय बनाते थे।
अरे!! आज भारत के प्रधानमंत्री जब कह रहे हों कि मैं ‘‘आयुर्वेद योग और प्राणायाम का भरपूर उपयोग करता हूँ और मेरी गाड़ी इसी से चल रही है।’’
यदि इसके बाद भी सर्व सामान्य व्यक्ति आयुर्वेद का उपयोग कर अपनी गाड़ी न चला पाये और फालतू के ऑपरेशन या अंग्रेजी आडम्बर में फँसकर धन और शरीर का नाश करता है तो उसमें किसका दोष?
५ जून २०१९ को जिला- कासगंज, ग्राम/पोस्ट- बहोरा से राजकिशोर उम्र ६५ को लेकर आयुष ग्राम चित्रकूट आये। उनका पर्चा बना और अपना क्रम आने पर ओपीडी में आये। उनके साथी ने बताया कि- वर्ष २०१४ में पेट में बहुत तेज दर्द उठा, यूरिन बहुत कम हो रही थी, जलन, घबराहट, बेचैनी होने लगी, मैं बेहोश हो गया तो मिशन हास्पिटल रायबरेली में दिखाया। डॉक्टरों ने सी.टी. स्केन, एमआरआई, अल्ट्रासाउण्ड कराया तो बताया कि आपके हार्ट और किडनी में खराबी है।
✔️ दवा चलती रही, जब तक दवा चली तब तक बेहोशी और पेटदर्द का दौड़ा नहीं आया जैसे ही दवा चलती तो फिर से वैसी स्थिति।
✔️ फिर कलावती हास्पिटल ले जाया गया, लेकिन जब तक दवा खाते रहे तब तक आराम रहता और फिर बेहोशी का दौड़ा।
तभी मेरी भेंट डॉक्टर रामदेव दीक्षित से हो गयी उन्होंने यहाँ का पता बताया हम यहाँ आ गये। यह बताया कि यह प्रदेश का सबसे बड़ा आयुर्वेद हास्पिटल है।
दर्शन, स्पर्श, प्रश्नादि के द्वारा रोग के आदि कारण (निदान) की ओर जाने की ओर अग्रसर हुये तो पाया कि रोगी को ‘वातज मूर्च्छा’ (fainting) है ।
रोगी को पेट दर्द का भय उत्पन्न होता था, छाती में दर्द होता था, जम्भाई आती थी, कमजोरी महसूस होती थी, ग्लानि (Depression) होता था, फिर ऐसा होता कि मानो बेहोशी आ जायेगी। भूख भी कम हो जाती थी। आँखों के सामने अँधेरा छा जाता था, सुख-दु:ख की संज्ञा का नाश हो जाता था, रोगी सूखे काठ की तरह गिर पड़ता था, मोह पैदा होता था किन्तु वेग कुछ समय के लिए होता था, रोगी तुरन्त होश में आ जाता था, रोगी के शरीर में कम्पन होता था, शरीर में मसलने जैसी पीड़ा, छाती में दर्द, दुबलापन था ही, कई बार रोगी के होंठ, हाथ नीले पड़ते थे।
रोगी की सारी जाँचें देखी गयीं और प्रश्नों के आधार पर ऊपर की सारी जानकारी ली गयी इससे स्पष्ट हो गया कि इसे वातज मूर्च्छा है।
भगवान् धन्वन्तरि बताते हैं-
तमोऽभ्युपैति सहसा सुख दु:ख व्यपोहकृत्।
सुख दु:ख व्यपोहाच्च नर: पतति काष्ठवत्।।
मोहो मूर्च्छेति तां प्राहु: षडविधा सा प्रकीर्तिता।
वातादिभि: शोणितेन मद्येन च विषेण वा।।
हृत्पीड़ा जृम्भणं ग्लानि: संज्ञानाशो बलस्य च।
सर्वासां पूर्वरूपाणि, यथास्वं ता विभावयेत्।।
सु.सू. ४६/६-८।।
इसीलिए हम बार-बार लिखते हैं कि रोगी का निदान करते समय खूब प्रश्न पूछें, छोटी से छोटी जानकारी भी लेने का प्रयास करें फिर उनका ग्रुप बनाकर रोग निदान तक पहुँचें।
वातज मूर्च्छा के बारे में आचार्य माधवकर कहते हैं-
नीलं वा यदि वा कृष्णमाकाशमथवाऽरुणम्।
पथ्यंस्तम: प्रविशति शीघ्रं च प्रतिबुध्यते।।
वेपथुश्चाङ्गमर्दश्च प्रपीड़ा हृदयस्य च।
काश्र्यं श्यावाऽरुणाच्छाया मूर्च्छाये वातसम्भवे।।
मा.नि. १७/७-८।।
ये वही लक्षण हैं जो रोगी में पाये गये और प्रश्न के द्वारा जानकारी कर ऊपर अंकित किया गया।
रोगी कृश था, हीनसत्व था, वातदोष कुपित था, खान-पान भी जो करता था उसमें विरुद्धाविरूद्ध का कोई ध्यान नहीं देता था।
मूर्च्छा रोग की उत्पत्ति में ऐसे कारण भी अच्छी भूमिका निभाते हैं।
यह बात भी भगवान् धन्वन्तरि बताते हैं-
क्षीणस्य बहुदोषस्य विरुद्धाहार सेविन:।
वेगाघातादभीघाताद्धीनसत्वस्य वा पुन:।।
सु.उ. ४६/३
रोग और रोगी का विधिवत् जब अध्ययन किया गया तो पाया गया कि इसमें मूर्च्छा रोग की सम्प्राप्ति इस प्रकार बनीं-
निदान सेवन की परिस्थितियाँ ➡️ वातादि शरीर दोष एवं तमोदोष (मानस) का प्रकोप ➡️ उग्र दोष अल्पसत्व व्यक्ति के बाह्य एवं आभ्यन्तर आयतन में प्रवेश ➡️ संज्ञावह एवं मनोवहस्रोतसों का आच्छादन और अवरोध ➡️ सुख दु:ख की संज्ञा का नाश ➡️ रोगी का शुष्क काष्ठवत् पृथ्वी पर गिर पड़ना ➡️ मूर्च्छा रोग की उत्पत्ति।
(माधव निदान १७/२-३)
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➡️ अष्टमूर्ति ३ ग्राम, श्रेष्ठ जवाहर मोहरा ३० गोली, कामदुधा रस मुक्तायुक्त १५ ग्राम, स्वर्ण वंग ३ ग्राम, वंशलोचन ५ ग्राम, शतावर घन १० ग्राम और बलापुनर्नवादि क्वाथ घनसत्व २० ग्राम सभी घोंटकर ६० मात्रा। १x२ सुबह-शाम भोजन के ४५ मिनट पूर्व।
➡️ अर्क गावजवाँ २० मि.ली., गन्धर्वहस्तादि काढ़ा २० मि.ली. उबालकर ठण्डा किया जल दिन में २ बार। भोजन के १ घण्टा बाद।
➡️ रात में एरण्ड पाक १० ग्राम सोते समय।
➡️ ब्राह्मी तैल का शिरोपिचु १ घण्टा तक।
पथ्य- नाश्ते में कुष्माण्डावलेह १० ग्राम चाटकर १ गिलास गोदुग्ध के अनुपान से, दोपहर में रोटी, पुराने चावल का माड़ निकाला भात, मूँग की दाल, गोघृत, आँवले की चटनी। रात का भोजन सोने के २ घण्टा पूर्व कम मात्रा में।
एक माह बाद जब राजकिशोर आयुष ग्राम, चित्रकूट में ‘फॉलो-अप’ में आये तो बताया कि इन १ माह में एक बार भी बेहोशी नहीं आयी और उसमें कार्यक्षमता, बल, उत्साह का आधान हुआ है।
उपर्युक्त चिकित्सा व्यवस्था और पथ्य पालन से ३ माह में ही रोगी पूर्ण स्वस्थ हो गया। हालांकि आयुष ग्राम, चित्रकूट के डॉक्टरों ने ६ माह तक दवायें सेवन और पथ्य पालन की सलाह दी थी और दवाइयों को धीरे-धीरे बन्द करने की सलाह दी है।
उपर्युक्त चिकित्सा व्यवस्था में निदान सेवन से उत्पन्न हुये धातुक्षय का अपवारण हुआ, परिणामत: रज और तम दोष का भी निवारण हुआ क्योंकि ‘न रजस्क: तम: प्रवर्तते।’ संज्ञावह एवं मनोवह स्रोतस के आच्छादन और अवरोध निवारण की जितनी श्रेष्ठ क्षमता आयुर्वेद चिकित्सा कल्पना में हमने पायी है वह शायद अन्य चिकित्सा में हो। अंग्रेजी चिकित्सा में तो नशे में सोने की दवाइयाँ खिला-खिलाकर जीवनभर के लिए पागलकर देते हैं।
बस! समय आ गया है अपने देश के महान् चिकित्सा विज्ञान आयुष के साथ जुड़ने का, उससे सभी को जोड़ने का। तो ऐसे पीड़ित मानव की सेवा हो सकती है और मानव का कष्ट निवारण हो सकता है।
तो आइये, इस दिशा में आगे बढ़ें। श्री राजकिशोर जी ने स्वस्थ होने के बाद जनहित में अपने विचार इस प्रकार दिये-
बेहोशी की बीमारी से आयुष ग्राम (ट्रस्ट), चित्रकूट ने उबारा
मेरी उम्र ६५साल, मुझे सन् २०१४ में अचानक पेट में बहुत तेज दर्द उठा, पेशाब बहुत कम हो रही थी, जलन बहुत होने लगी, घबराहट, बेचैनी होने लगी , मैं बेहोश हो गया तो मेरा बेटा मुझे मिशन हॉस्पिटल, रायबरेली ले गये, वहाँ पर डॉक्टरों ने सीटी स्केन, एम.आर.आई., यू.एस.जी., एंजियोग्राफी इत्यादि सभी जाँचें करवाने के बाद मुझे बताया गया कि किडनी में पथरी की समस्या है।
रायबरेली में मेरी ६ माह तक इलाज चला, एलोपैथ की जब तक दवा खाते तब तक ठीक रहता और एक भी दिन दवा न खाने पर फिर से समस्या हो जाती है। एक दिन फिर से पेट और छाती में दर्द उठा और मैं बेहोश हो गया तो मुझे कासगंज के कलावती हॉस्पिटल ले जाया गया, वहाँ पर मेरी जाँचें देखकर दवा दी गयी, मेरा कलावती हॉस्पिटल में ३ साल तक अंग्रेजी दवायें चलीं, लेकिन जब तक दवा खाते तब तक आराम रहता, एक भी दिन दवा छूट जाने पर फिर से वही सारी दिक्कतें होने लगतीं।
तभी मुझे मेरे यहाँ के ही एक डॉक्टर रामदेव दीक्षित के द्वारा आयुष ग्राम चिकित्सालय, चित्रकूट के बारे में पता चला। मैं आयुष ग्राम चिकित्सालय, चित्रकूट आया, मेरा नम्बर आने पर मुझे डॉक्टर साहब के पास बुलाया गया, डॉक्टर साहब ने मुझे देखा और सभी समस्यायें पूछीं। जब मैं यहाँ पर आया था तब मेरे पेट में बहुत दर्द हो रहा था, घबराहट, बेचैनी, पेशाब बहुत कम हो रही थी, मुझे नींद बिल्कुल नहीं आती थी, मैं बहुत परेशान था। लेकिन डॉक्टर साहब ने मुझे बहुत अच्छे से समझाया और कहा कि आपको मैं ६ माह में बिल्कुल स्वस्थ्य करूँगा। मुझे लगा कि ऐसे इतनी जल्दी जो ५-६ साल की बीमारी है जो एलोपैथ वाले इतने दिन से नहीं ठीक कर पाये वह ६ माह में कैसे ठीक हो सकता है।
मुझे एक माह की दवा दी गयी, मैं बताये अनुसार सेवन करने लगता तो मुझे पहले माह से ही आराम मिलना शुरू हो गया और डॉक्टर साहब ने तो ६ माह के लिए बोला था, मैं तो ३ माह में ९५ प्रतिशत ठीक हो गया हूँ, एलोपैथ की दवायें तो पहले माह ही बन्द हो गयीं थी। अब न तो दर्द होता न बेहोशी।
बताइये जो काम अंग्रेजी दवायें ५ साल में नहीं कर पायीं वहीं आयुर्वेद चिकित्सा ने ३ माह में ही कर दिया। मैं तो सभी से कहता हूँ आयुर्वेद अपनायें।
राजकिशोर
बहोरा, जिला- कासगंज (उ.प्र.)
आयुष ग्राम ट्रस्ट चित्रकूट द्वारा संचालित
आयुष ग्राम चिकित्सालयम, चित्रकूट
मोब.न. 9919527646, 8601209999
website: www.ayushgram.org
डॉ मदन गोपाल वाजपेयी आयुर्वेदाचार्य, पी.जी. इन पंचकर्मा (V.M.U.) एन.डी., साहित्यायुर्वेदरत्न,विद्यावारिधि, एम.ए.(दर्शन),एम.ए.(संस्कृत )
प्रधान सम्पादक चिकित्सा पल्लव
डॉ अर्चना वाजपेयी एम.डी.(कायचिकित्सा) आयुर्वेद
डॉ आर.एस. शुक्ल आयुर्वेदाचार्य
आयुष ग्राम चिकित्सालयम, चित्रकूट
मोब.न. 9919527646, 8601209999
website: www.ayushgram.org
प्रधान सम्पादक चिकित्सा पल्लव
डॉ अर्चना वाजपेयी एम.डी.(कायचिकित्सा) आयुर्वेद
डॉ आर.एस. शुक्ल आयुर्वेदाचार्य
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