हरियाणा की बेटी
ने चित्रकूट में पाया दमा व इन्हेलर से छुटकारा !!
चरक के ५००० साल पुराने तरीके से लाखों
बच्चों को बचाया जा सकता है इन्हेलर और दमा से!!
मुझे यह लिखने में बार-बार गर्व हो रहा
है कि जब भारत के यशस्वी प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी ३० अगस्त २०१९ को
हरियाणा में एक भाषण कह चुके हैं कि मेरी गाड़ी योग, प्राणायाम और आयुर्वेद से चल रही है। मैं
इनका भरपूर उपयोग करता हूँ, तो अब भी भारत का मानव यदि रोग और स्वास्थ्य समस्या को लेकर
यत्र-तत्र भटकता है और भारतीय चिकित्सा विज्ञान का अच्छी तरह उपयोग कर अपना जीवन
स्वस्थ और समर्थ नहीं बना पाता तो इसमें उसका दुर्भाग्य है। आयुर्वेद का मतलब
जड़ी-बूटी नहीं बल्कि मन, आत्मा, शरीर, इन्द्रिय का वैज्ञानिक रूप से स्वास्थ्य
होना है।
आयुर्वेद
का मतलब सही खान-पान, जीवनशैली, आचार-विचार और व्यवहार का
ज्ञान प्राप्त करना है। आयुर्वेद का मतलब ऐसी मानसिक और आत्मिक चेतना प्राप्त करना
है जिससे अद्वितीय रूप से मानव का विकास हो सके।
आयुर्वेद का मतलब महान् समृद्ध, वैज्ञानिक और समूल रोगहारी चिकित्सा और स्वास्थ्य विज्ञान का आश्रय है।
‘‘आज भारत के १० प्रतिशत शहरी बच्चे और किशोर दमा से ग्रस्त
हैं और अंग्रेजी डॉक्टरों के पास कोई इसका समाधान नहीं। इन बच्चों और किशोरों की
रोगप्रतिरोधक क्षमता घट रही है बच्चों का शारीरिक और मानसिक विकास नहीं हो पा रहा, फेंफड़े कमजोर हो रहे हैं।’’
७ अप्रैल २०१९ को हरियाणा के अच्छेज, झज्जर से श्रीमती पूनम १४ साल की बेटी
सोनाली लेकर आयुष ग्राम चिकित्सालय, चित्रकूट आये। १४/३०३१ पर ओपीडी रजिस्ट्रेशन हुआ।
रोगी की केसहिस्ट्री के दौरान उसने बताना शुरू किया-
✔️ यह
मेरी बेटी जब ८ साल की थी तब अचानक जुकाम हुआ, नाक से पानी आता रहा, गले में खराश हुयी।
✔️ हमने
अंग्रेजी दवाइयाँ करायीं तो फायदा तो मिल गया किन्तु डेढ़ माह बाद पुन: यही समस्या
हो गयी।
✔️ तब
से लगातार समस्या बनी है अब श्वास लेने में दिक्कत है, नाक से पानी आता है, गले में खराश बनी रहती है, दिनभर बलगम आता है और
कमजोर भी होती जा रही है।
✔️ हमने
दादरी में बच्चों के डॉक्टर को दिखाया ३ माह तक इलाज कराया वहाँ नेजल ड्राप, दवाइयाँ, कैपसूल न जाने क्या-क्या
दिया गया। ३ माह तक इलाज चला पर स्थायी आराम नहीं मिला।
✔️ फिर
इन्हीं डॉक्टर ने टी.बी. की जाँच करवायी और टी.बी. की समस्या बता दी तथा कहा कि
टी.बी. की दवा चलेगी।
✔️ मुझे और मेरे घर वालों को विश्वास नहीं हो
रहा था कि मेरी बेटी को टी.बी. हो गयी तब मैं रोहतक में डॉ. घोषला को दिखाया
उन्होंने बताया कि टी.बी. नहीं है केवल दमा है।
✔️ उन्होंने दवायें तथा इन्हेलर जोड़ दिया और कहा
कि दवाइयाँ इन्हेलर जीवनभर लेनी पड़ेंगी।
✔️ इस
प्रकार ६ साल से लगातार दिन में २-३ बार या इससे अधिक बार इन्हेलर और अंग्रेजी
दवाइयाँ दे रहे हैं। इससे बेटी का शारीरिक और मानसिक विकास रुक गया। हम परेशान
हैं।
✔️ हम पता
करते रहे कि कोई ऐसा अस्पताल है जहाँ से इन्हेलर और अंग्रेजी दवाइयाँ छूट सकती हैं
तो आयुष ग्राम सूरजकुण्ड रोड, चित्रकूट का पता चला तो यहाँ आये हैं।
अब सोनाली का दर्शन स्पर्श और प्रश्नादि से परीक्षण किया तो पाया कि जिस लड़की का अंग्रेजी डॉक्टर दमा का इलाज इन्हेलर आदि से कर रहे थे उसे तो नासार्श (Nasal Polyps यानी नाक के अन्दर होने वाला मस्सा) था। भारत के एक महान् चिकित्सा वैज्ञानिक आचार्य शाङ्गधर ने १८ प्रकार के नासा रोग बताये हैं उनमें ८वाँ नासार्श (नाक में होने वाला बवासीर जैसा मस्सा) बताया है।
भगवान्
पुनर्वसु आत्रेय ने च.चि.. १४/६ में स्पष्ट बताया है-
केचित्तु भूयांसमेव देशमुपदिशन्त्यर्शसां-शिश्नमपत्यपथं गलतालुमुखनाशिका कर्णाक्षिवत्र्मानि त्वक् चेति।।
वाग्भट्ट जी ने बताया है कि-
दोषास्त्वङ्मांसमेदांसि सदूष्य विविधाकृतीन्।
मांसाङ्करानपानादौ
कुवत्त्र्यर्शांसि ताञ्जगु:।।
अ.हृ.नि. ७/२।।
जब नासार्श (Nasal Polyps) का समग्र अध्ययन किया जाता है तो दो ग्रहणीय सूत्र मिले
पहला-
अर्शोर्बुदानि
विभजयेद्दोष लिङ्गैर्यथायथम्।। अ.हृ. १९/२६
अर्थात् नासा शरीर या नासाछिद्रों में उत्पन्न अर्शांकुर तथा अर्बुदों का विभाजन उन-उन के दोषज लक्षणों से करें।
दूसरा-
दुर्नाम्नामित्युदावर्त्त: परमोऽयमुपद्रव:।। अ.हृ.नि. ७।।
अर्थात् अर्श रोग और उदावर्त्त का आश्रय आश्रयी सम्बन्ध है।
इस प्रकार आचार्य चरक की निदान सम्प्राप्ति के अनुसार गलत
जीवनशैली, गलत खान-पान, शीत वस्तु और वातावरण का सेवन करने से या
जन्मजात रोग प्रतिरोधक क्षमता कम रहने या रोग को दबा देने से मन्दाग्नि ➡️ वातादि त्रिदोष प्रकोप ➡️ नासा प्रदेश में स्थान संश्रय ➡️ रक्त प्रकोप ➡️ मांसांकुरोत्पत्ति ➡️ मांसवत् कठिन अंकुर ➡️ नासार्श (Nasal Polyps) की उत्पत्ति।
दुनिया के प्रथम शल्य वैज्ञानिक आचार्य
सुश्रुत खोज की थी कि-
घ्राणजेषु
प्रतिश्यायोऽतिमात्रं क्षवथु: कृच्छ्रोच्छावासता पूतिनस्यं सानुनासिक वाक्यत्वं
शिरोदु:खं च ... ... ...।।
सु.नि. २/१८।।
यानी नासार्श (नाक में मस्सा) होने पर प्रतिश्याय (Catarrh जुकाम बना रहना), अत्यधिक छींक (Sneezing) आना, ऊपर को साँस लेने में कठिनाई, पूतिनस्य (Pusdischarge), नाक से बोलना (Nasal twang) और शिरदर्द होते हैं।
सोचने का विषय है न कि आज के हजारों साल पहले भारत में कितना महान् चिकित्सा वैज्ञानिक हुआ जिसने नासार्श (Nasal Polyps) के बारे में केवल अध्ययन और शोध ही नहीं कर लिया था बल्कि अपना ऐसा शोध दुनिया को सौंपा कि ये लक्षण होते हैं, इस रोग में जो कि आज भी पाये जाते हैं।
विश्व के महान् चिकित्सक आचार्य चरक ने खोज
की थी कि-
तस्मादर्शांसि दु:खानि बहुव्याधिकराणि च।
सर्वदेहोपतापीनि
प्राय: कृच्छ्रतमानि च।।
च.चि. १४/२५।।
सभी प्रकार के अर्श रोग कष्टदायक तो होते हैं पर कई प्रकार की बीमारियाँ भी इससे पैदा हो जाती हैं, पूरा का पूरा शरीर तप्त रहता है और प्राय: कठिनाई से ठीक होते हैं।
आचार्य चरक इस अवस्था के लिए बहुत ही वैज्ञानिक और सरल चिकित्सा सूत्र देते हैं-
यद्वायोरानुलोम्याय यदग्निबलवृद्धये।
अन्नपानौषधद्रव्यं
तत् सेव्यं नित्ययर्शसै:।।
च.चि. १४/२४७।।
अर्थात् अर्श रोगी के लिए ऐसे अन्न पान औषध या द्रव्य का ही सर्वथा सेवन कराना चाहिए जिससे वायु का अनुलोमन हो और अग्निबलवर्धन हो।
इसी
क्रम में जो दुनिया के प्रथम शल्य वैज्ञानिक आचार्य सुश्रुत को पढ़ते हैं तो वे कुछ
और बारीकियाँ बताते हैं-
तत्र वातप्रायेषु
स्नेहस्वेदवमनविरेचनास्थापनानुवासनमप्रतिषिद्धं, पित्तजेषु विरेचनम् एवं
रक्तजेषु संशमनं, कफजेषु शृंगवेरकुलत्थोपयोग:
सर्वदोषहरं यथोक्तं सर्वजेषु यथास्वौषसिद्धं वा पय: सर्वेष्विति।।
सु.चि. ६/१६।।
सारांश यह है कि दोषानुसार पंचकर्म द्वारा शरीर में एकत्रित विकारों को बाहर निकाल देना आवश्यक है तभी रोग जड़ से समाप्त हो सकता है।
हमने सोनाली की माँ पूनम को बताया कि यदि आप चाहती हैं कि लड़की का इन्हेलर छूट जाय और सभी प्रकार की दवाइयाँ छूट जायें तो २ सप्ताह का समय ‘आयुष ग्राम’ में दीजिये जिससे शरीर के अन्दर एकत्रित रोग के कारण को बाहर किया जा सके और रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ सके।
श्रीमती पूनम जी तैयार थी हीं। बताइये! यदि किसी परिवार की
लड़की इन्हेलर पर निर्भर हो और उसे ऐसा समाधान मिल जाय जिससे उसका इन्हेलर छूट सके
और दमा भी मिट सके तो कौन से माँ-बाप नहीं चाहेंगे कि वही चिकित्सा अपनायी जाये।
श्रीमती पूनम जी अपनी बेटी सोनाली को लेकर यहाँ भर्ती हो गयीं, भर्ती के दिन पूनम जी ने बताया मुझे भी यही हल्की-हल्की शिकायत है अत: मैं भी चिकित्सा कराना चाहती हूँ तो मैं चाहती हूँ कि मेरा भी पंचकर्म द्वारा शरीर शोधन हो जाय।
अब चिकित्सा क्रम इस प्रकार तैयार किया गया-
✔️ षट्पलघृतम्
५,१०,१५,२०,२५ ग्राम अनुपान में उष्ण
जल।
आचार्य चरक ने बता रखा है कि-
पिप्पलीपिप्पलीमूलचव्यचित्रकनागरै:।
सयावशूकै:
सक्षीरै: स्रोतसां शोधनं घृतम्।।
च.चि. ८/१७०।।
अर्थात् यह घृत श्रेष्ठ स्रोतोरोध नाशक और आमपाचक, दीपन, वातानुलोमन भी है। इसलिए स्नेह हेतु इसका उपयोग किया गया।
✔️ ५
दिन तक स्नेहपान के पश्चात् २ दिन तक स्वेदन फिर मृदु विरेचन कराया गया। पश्चात् ५
दिन तक संसर्जन क्रम कराकर २ दिन अनुवासन फिर २ दिन तक निरूह दिया गया।
आश्चर्यजनक
परिणाम-
इतने पंचकर्म से ही ‘सोनाली’ का जुकाम ७० प्रतिशत मिट गया, छींकें आना ५० प्रतिशत समाप्त और दमा का दौरा तो ऐसा मिटा कि जिसकी उन्होंने कल्पना नहीं की थी।
पंचकर्म के बाद निम्नांकित औषधि व्यवस्था
विहित की-
१. अम्बर शिलादि योग ५ ग्राम, योगेन्द्र रस १० गोली, स्वर्ण वंग ३ ग्राम, मुक्ता भस्म ३ ग्राम, बला घनसत्व १५ ग्राम, ग्रीन टी घनसत्व १० ग्राम, वंशलोचन ५ ग्राम और अभ्रक
भस्म सहस्रपुटी ३ ग्राम। सभी घोंटकर ६० पुड़िया। १x२ मधु से दिन में २ बार।
यह योग बलवर्धक, रसायन, प्राणवहस्रोतसदुष्टि नाशक, अग्निवर्धक और आयुष्य तथा
मेध्य है।
२. एलाकणादि कषाय २ चम्मच, बलाजीरकादि कषाय २ चम्मच, उबालकर ठण्डा किया पानी
दिन में २ बार भोजन के १ घण्टा पूर्व।
३. रात में सोते समय- अगस्त्य
हरीतकी ५ ग्राम, भूम्यामलकी घनसत्व मिलाकर
चाटकर, १ गिलास गोदुग्ध लेना है।
पथ्य-
परवल, लौकी, तुरई, मूँग, अरहर की पतली दाल, सहजन, छाछ (मठा नहीं), आँवला की चटनी, चना-गेंहूँ की रोटी, गोघृत, पुराने चावल का माड़ निकाला
भात और शृतशीत जल।
अपथ्य-
दही, उड़द, भिण्डी, कटहल, गोभी, अरबी, आलू, मठा, मन्द, भैंस का दूध, घृत, दिवाशयन, धूल, धुँआ का प्रयोग, भोजन के बाद अति जल का निषेध
बताया गया।
११ दिन बाद डिस्चार्ज कर दिया।
श्रीमती पूनम जी सोनाली को दो माह तक दवा सेवन के पश्चात् ‘फॉलो-अप’ में ८ सितम्बर
२०१९ को आयीं तो बहुत ही खुश थीं। वे कहने लगीं कि ८० प्रतिशत आराम है। इन्हेलर और
अंग्रेजी दवाओं की जरूरत ही नहीं पड़ी। यह है भारत के महान् चिकित्सा शास्त्र
आयुर्वेद का प्रभाव। किन्तु भारत का दुर्भाग्य है कि मानव आयुर्वेद का लाभ नहीं
उठा पा रहा। पर अब समय आ गया है कि मानवता की सेवा हेतु सभी आगे आयें आयुर्वेद की
ओर सभी को प्रेरित करें।
इस प्रकार दमा, श्वास, इन्हेलर के चंगुल में फँसे प्रतिवर्ष हजारों बच्चों और
किशोर-किशोरियों को ‘आयुष ग्राम’ चित्रकूट मुक्त कर पा रहा है।
भारत का आयुर्वेद विज्ञान इतना शोधपूर्ण, वैज्ञानिक और महान् है कि
अंग्रेजी चिकित्सा उसकी कभी बराबरी नहीं कर सकती।
इसके लिए इसी क्रम में एक उदाहरण लिख रहे हैं
कि अभी कुछ साल पहले आधुनिक चिकित्सा वैज्ञानिकों ने भूमि आँवला (Phyllanthus Niruri) वनस्पति पर कुछ काम करके
उसकी अनेकों नाम से दवाइयाँ बनाकर दुनिया को यह बताकर श्रेय लेने लगे कि हमने भूमि
आँवला में एण्टीवायरस फेंफड़ों और श्वास तंत्र के लिए लाभकारी गुण खोज लिए, इसमें अमेरिका भी शामिल
था। पर उन्हें कौन बताये कि आज पाँच हजार साल पहले दुनिया के प्रथम भारतीय
चिकित्सा वैज्ञानिक आचार्य चरक ने राज्यक्ष्मा (टी.बी.) में फुफ्फुस तंत्र को
मजबूत करने तथा रोग प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाने के लिए भूमि आँवला (Phyllanthus Niruri) से साधित जल का प्रयोग
किया था और आगे के चिकित्सकों को भी ऐसा करने का निर्देश दिया था-
धान्यनागरसिद्धं
वा तामलक्याऽथवा शृतम्।
पर्णिनीभिश्चतसृभिस्तेन
चान्नानि कल्पयेत्।।
च.चि. ८/७०।।
पर भारत का दुर्भाग्य है कि जब अमेरिका किसी
भारतीय विज्ञान पर मुहर लगा देता है तब हमारी आँख खुलती है।
श्रीमती पूनम से ८ सितम्बर
२०१९ को दुनिया को जागरूक करने के उद्देश्य से अपनी बेटी ‘सोनाली’ की रोगमुक्ति के बारे में
इस प्रकार जानकारी दिया-
मेरी बेटी को दमा व इन्हेलर से मिला छुटकारा
: आयुष चिकित्सा से
मेरी बेटी का नाम सोनाली
है उसकी उम्र १४ साल है, वह ९वीं की छात्रा है।
मेरी बेटी जब ८ साल की थी तब अचानक जुकाम हुआ, नाक से पानी आता रहा, गले में खराश हुयी। हमने
अंग्रेजी दवाइयाँ कर दी तो फायदा तो मिल गया किन्तु डेढ़ माह बाद पुन: यही समस्या
हो गयी। तब से लगातार समस्या बनी है अब श्वास लेने में दिक्कत है, नाक से पानी आता है, गले में खराश बनी रहती है, दिनभर बलगम आता है और
कमजोर भी होती जा रही है। हमने दादरी में बच्चों के डॉक्टर को दिखाया ३ माह तक
इलाज कराया वहाँ नेजल ड्राप, दवाइयाँ, कैपसूल न जाने क्या-क्या
दिया गया। ३ माह तक इलाज चला पर स्थायी आराम नहीं मिला। फिर इन्हीं डॉक्टर ने टी.बी.
की जाँच करवायी और टी.बी. की समस्या बता दी तथा कहा कि टी.बी. की दवा चलेगी। मुझे
और मेरे घर वालों को विश्वास नहीं हो रहा था कि मेरी बेटी को टी.बी. हो गयी तब मैं
रोहतक में डॉ. घोषला को दिखाया उन्होंने बताया कि टी.बी. नहीं है केवल दमा है।
उन्होंने दवायें तथा इन्हेलर जोड़ दिया और कहा कि दवाइयाँ इन्हेलर जीवनभर लेनी
पड़ेंगी।
इस
प्रकार ६ साल से लगातार दिन में २-३ बार या इससे अधिक बार इन्हेलर और अंग्रेजी
दवाइयाँ दे रहे हैं। इससे बेटी का शारीरिक और मानसिक विकास रुक गया। हम परेशान हो
गये।
हम पता करते रहे कि कोई ऐसा अस्पताल है जहाँ से इन्हेलर और
अंग्रेजी दवाइयाँ छूट सकती हों तभी मुझे अपने यहाँ के एक सज्जन से आयुष ग्राम ट्रस्ट के
चिकित्सालय,
चित्रकूट के बारे में बताया, उन्होंने पूरे विश्वास से मुझसे कहा कि
आप अपनी बेटी को चित्रकूट ले जाइये और वहाँ
से आपकी बेटी १०० प्रतिशत स्वस्थ हो जायेगी।
मैं एक-दो दिन में अपनी बेटी को लेकर आयुष ग्राम चिकित्सालय, चित्रकूट पहुँची। मेरा रजिस्ट्रेशन हुआ उसके बाद
मेरा नम्बर आने पर मुझे ओपीडी में बुलाया गया। मेरी बेटी की नाड़ी परीक्षण किया, जीभ देखी, कुछ अच्छे से पूछताछ किया, नाक का टार्च से परीक्षण किया फिर डॉक्टर साहब ने कहा कि
इसे नासार्श की समस्या है। आप चिन्ता न करें १५ दिन में ही काफी आराम हो जायेगा और
५-६ माह में १०० प्रतिशत ठीक हो जायेंगी। कोई अंग्रेजी दवायें और इन्हेलर की जरूरत
नहीं पड़ेगी।
मैं बेटी को लेकर भर्ती हो
गयी,
उनका
पंचकर्म हुआ,
बहुत
ही आराम दायक चिकित्सा थी। मेरी बेटी को १५ दिन में पर्याप्त लाभ मिल गया, इन्हेलर और अंग्रेजी
दवायें कम हो गयीं फिर २ माह की दवा लेकर घर आ गयी, मेरी बेटी को पहले माह से
ही ५० प्रतिशत आराम मिला और सभी समस्याओं में आराम मिलने लगा।
आज २ माह बाद ८ सितम्बर २०१९ को पुन: बेटी को
डॉक्टर साहब को आयुष ग्राम में दिखाया, आज मेरी बच्ची को ८०
प्रतिशत से ज्यादा आराम है। उसकी पूरी अंग्रेजी दवायें, इन्हेलर सब बन्द हैं जिससे
मैं और मेरा पूरा परिवार बहुत खुश है जो एलोपैथ वाले पूरी जिन्दगी दवा चलने को कह
रहे थे वहीं आयुष ग्राम चिकित्सा से मेरी बच्ची को १ माह में ही छुटकारा मिल गया।
श्रीमती पूनम देवी
अच्छेज गाँव, जिला- झज्जर (हरियाणा)
मोबा.नं.- ९७७२६१०६४०
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