‘‘सोचिये जब अंग्रेजी दवाइयों और अस्पतालों के जाल में फँसे-फँसे सालों चिकित्सा के बाद एक के बाद एक रोग और दवाइयों में फँसता जाय फिर गुर्दे (किडनी) फेल हो जायें, गुर्दे सिकुड़ जायें और आखिरी में डॉक्टर डायलेसिस करना शुरू कर दें वह सब ३७ साल की उम्र में। अंग्रेजी अस्पताल यह कह दें कि जब तक जीना है तब तक डायलेसिस करानी होगी।’’
तब रोगी और उसके परिवार का मानसिक बल एकदम पाताल में चला जाता है, ऐसे में आयुर्वेद चिकित्सा से केवल डायलेसिस ही नहीं बन्द होती बल्कि अंग्रेजी दवाइयाँ भी छूटती हैं, जीने की आशा बन जाये तो इससे और अच्छा क्या हो सकता है? रोगी और उसके परिवार के लिए। तो अब समय आ गया है जन-जन तक भारत के प्राचीन चिकित्सा विज्ञान आयुर्वेद के प्रभाव को पहुँचाने का।
१६ अगस्त २०१९ को १२ बजकर १७ मिनट पर आयुष ग्राम चिकित्सालय, चित्रकूट की ओपीडी में रजिस्ट्रेशन नम्बर- आर.ए.९०/११ पर श्रीमती रश्मि उम्र ३७ वर्ष, मोतीकुंज एक्सटेंशन, मथुरा (उ.प्र.) का रजिस्ट्रेशन हुआ। अपना क्रम आने पर ओपीडी में आये। गले में नेकलाइन लगी, गले के चारों ओर १ मोटा कपड़ा लिपटा हुआ श्रीमती रश्मि और उनके साथ दो युवक प्रवेश किए। रश्मि सिंह कराह-कराह कर बात कर रहीं थीं।
रोगी का इतिवृत्त में उनके पति संजीत सिंह एडवोकेट हाईकोर्ट ने बताया कि-
✔️ ६ साल पहले सीजेरियन डिलेवरी हुयी थी तभी से कुछ न कुछ समस्या बनी रहती है।
✔️ ४ साल से हाईब्लड प्रेशर की समस्या है वह भी केवल ३३ साल की उम्र में।
✔️ १ माह पहले बुखार आना शुरू हुये तो मथुरा के अंग्रेजी अस्पताल ले गये।
✔️ २० दिन तक वहाँ इलाज हुआ खूब अंग्रेजी दवाइयाँ ठोकी गयीं, पर बुखार नहीं गया।
✔️ २० दिन बाद दूसरे डॉक्टर को दिखाया तो उन्होंने खून की जाँच करायी रिपोर्ट आयी तो यूरिया १३१.५ एमजी/डीएल, क्रिटनी ८.१८ एमजी/डीएल, कैल्सियम ६.०१ एमजी/डीएल और मूत्र में एल्ब्युमिन ३ + में जा रहा था। यह जाँच १२ अगस्त २०१९ की है।
✔️ उस समय इनका ब्लड प्रेशर १८०-२०० तक हो जाता, उल्टी, कमजोरी, पेट फूलना, श्वास लेने में समस्या, बुखार, नींद न आना। इन समस्याओं के कारण मथुरा से इन्हें आगरा रिफर कर दिया गया।
✔️ १४ अगस्त २०१९ को पहली डायलेसिस हुयी और हफ्ते में २ डायलेसिस का निर्देश दे दिया।
‘‘विडम्बना देखिए युवावस्था में वी.पी. १८०-२०० तक हो जाता है, बी.पी. की दवाई लगातार खानी पड़ रही है, इससे स्पष्ट संकेत मिल रहा है कि रोगी का ‘वात दोष’ प्रकुपित है।’’
रोगी और उसके घर वाले पढ़े-लिखे प्रबुद्ध होने के बावजूद यह नहीं सोच पा रहे कि मैं मूलकारण की चिकित्सा कराऊँ और अंग्रेजी डॉक्टर तो इसलिए सोच नहीं सकते कि उन्हें दोष-दूष्य (रोग के मूल कारण) का सिद्धान्त पढ़ाया ही नहीं जाता।
यह जान लेना चाहिए कि यदि जवानी में हाई वी.पी. की शिकायत हो रही है तो ९० प्रतिशत सम्भावना है कि आगे गुर्दे (किडनीज) सिकुड़ेंगी और फेल्योर होगा।
क्योंकि भगवान् पुनर्वसु आत्रेय बता बताते हैं कि-
‘...शोषशूलसुप्तिसंकोचनस्तम्भ ... ... ... वायो: कर्माणि तैरान्वितं वातविकारमेवाध्यवस्येत्।’ च.सू. २०/१२।।
यानी शोष, शूल, सुप्ति (सूनापन), संकोचन (सिकुड़ना), स्तम्भन और खंजता आदि वायु के कर्म हैं। वायु के लक्षणों तथा कर्मों से युक्त विकार को वात विकार जानें।
ऐसे ही यदि इंसुलिन पर निर्भरता आयी तो समझ लेना चाहिए कि आगे ‘किडनी फल्योर’ होगी। ये संकेत यदि मिलने लगें तो रोग के समूल उपचार में तुरन्त लगना चाहिए न कि लक्षणों को दबाने की दवाइयाँ खानी चाहिए।
दशविध परीक्षण में रोगी की प्रकृति वात-कफज, विकृति, रस, रक्त, मेद, मूत्र, ओज स्थिति मध्यम-निद्रा, अल्प, नख रक्ताभ,वजन ६१ किलो ग्राम।
रोगी का स्वभाव प्रसन्नचित्, हँसमुख। ऐसा रोगी उच्च मनस्क होता है और जल्द स्वस्थ होते हैं। चरक निर्देश देते हैं कि निदान करते समय ‘देहाग्निबलचेतासाम्।।’ च.नि. ८/३६।। पर अवश्य ध्यान रखें।
अब रोगी की सम्प्राप्ति पर जब अध्ययन कियागया तो स्पष्ट हुआ-
सीजेरियन डिलेवरी के समय प्रयुक्त रुक्ष, तीक्ष्ण औषधियों का प्रयोग और मन:क्षोभ के कारण वात प्रधान त्रिदोष प्रकोप ➡️ रस, रक्त, मेद में रुक्षता, खरता, विशदता, अतिचलता की वृद्धि ➡️ कफ से मार्गावरोध, पित्त से दाह आदि व्यानवायु और अपान वायु प्रकोप ➡️ व्यानवायु द्वारा रक्त के साथ मिलकर रक्त संवहन की मिथ्यागति ➡️ उच्च रक्तचाप तथा अपान वायु प्रकोप के कारण उदावत्र्त ➡️ मन्दाग्नि ➡️ आध्मान, शूल, छर्दि, विबन्ध मर्मावयवघात (गुर्दों का सिकुड़ना और उनका क्षतिग्रस्त होना) ➡️ मूत्राघात ➡️ वृक्कसन्यास (सी.आर.एफ.)
इस केस में दोष-व्याधि उभय हेतु मूलक चिकित्सा करनी थी, यानी पहला रोगी ऐसे उपद्रवों से बच जाये जिसके कारण उसे डायलेसिस में जाना पड़े। दूसरा रोग के कारण जो शारीरिक क्षति हुयी है उसका निर्मूलन और निवारण हो जाय अन्यथा पुन: रोगोत्पत्ति हो जायेगी।
इसके लिए वात दोष के ऊध्र्व और तिर्यक् मिथ्या गति को रोकना होगा, उसे अव्याहत और प्रकृतिस्थ करना था तो धातुपोषण क्रम ठीक करना था और मार्गावरण का निवारण करना था यह कार्य पंचकर्म आहार और औषध तीनों से सम्भव था। तभी डायलेसिस रुक सकती थी।
✔️ औषधि व्यवस्था में- मृगांकवटी १ ग्राम, रौप्य भस्म १ ग्राम, बेर पत्थर भस्म ५ ग्राम, इन्दुकान्त क्वाथ घनसत्व, शतावरी घनसत्व, बला घनसत्व ५-५ ग्राम घोंटकर २४ मात्रा। १x३ सुबह, दोपहर, शाम गोदुग्ध से।
✔️ आहार में केवल मखान्नक्षीर पाक। (१०-१५ मखाने को एक पाव गोदुग्ध में अच्छी तरह पकाकर) दिन में २-३ बार अग्निबल के अनुसार। क्योंकि ‘‘आहार मात्रा पुनरपि अग्निबलापेक्षिणी।’’
एक सप्ताह में ही रश्मि जी की स्थिति सुधर गयी, वमन, अनिद्रा, मूत्रकृच्छ्रता, क्षुधाहानि, विबन्ध, घबराहट, बेचैनी में पर्याप्त कमी आ गयी। वह अपने से शौचादि क्रिया करने लगी, टहलने लगी। जबकि इसके पूर्व पकड़कर ले जाना पड़ता था।
रक्त परीक्षण कराया तो पाया हेमोग्लोबिन ७.४ से बढ़कर ८.० जीएम%, ब्लड यूरिया ९८.१ से बढ़कर १०५.१ एमजी/डीएल, क्रिटनीन ७.५ से घटकर ६.५ एमजी/डीएल, फॉस्फोरस ७.२ एमजी/डीएल से घटकर ६.५ हो गया। डायलेसिस बन्द करा देने से यूरिया, क्रिटनीन बढ़ता ही है। पर इनका तो यूरिया ही बढ़ा और सब ठीक रहा।
अब उनकी डायलेसिस में डाली गयी ‘नेकलाइन’ निकाल दी गयी। रश्मि जी में अब बल का आधान हो गया था।
अत: पंचकर्म का क्रम परिवर्तन किया गया।
सर्वांगधारा, सर्वांग अभ्यंग और स्वेद का प्रयोग कर दोषों को द्रवीभूत कर निरूहबस्ति के द्वारा बाहर करना था,
ऐसा करने का निर्देश भगवान् पुनर्वसु आत्रेय देते हैं-
तं तैलशीतज्वरनाशनाक्तम स्वेदैर्यथोक्तै: प्रविलीनदोषम्।
उपाचरेद्वर्तिनिरूहबस्तिस्नेहैर्विरेकैरनुलोमनान्नै:।।
च.चि. २६/११।।
औषधि व्यवस्था में अब निम्नवत् परिवर्तन किया गया क्योंकि अब रश्मि जी बलवान् औषध प्रयोग को सहन करने योग्य हो गयीं थीं।
➡️ माहेश्वर वटी २ ग्राम, अभ्रक भस्म सहस्रपुटी २ ग्राम, अमृतोत्तरम क्वाथ चूर्ण ५ ग्राम, गोक्षुरादि गुग्गुल ५ ग्राम, टंकण ३ ग्राम घोंटकर २४ मात्रा। १²३ नाश्ता व भोजन के ३० मिनट पूर्व।
➡️ भोजन के बाद- सुकुमार क्वाथ (अष्टांग हृदय) ४ चम्मच, नेफ्रोसिया २ चम्मच मिलाकर भोजनोत्तर ३ बार।
➡️ रात में सोते समय- एरण्डपाक ५ ग्राम।
पंचकर्म द्वारा शरीर शोधन औषध प्रयोग तथा पथ्याहार (अब पथ्याहार में ५ दिन तक विलेपी फिर कृत मुद्ग यूष पर लाया गया) के पश्चात् जब पुन: २ सप्ताह बाद रिपोर्ट आयी तो सभी लोग खुश हो गये कि अब डायलेसिस नहीं कराना होगा। हेमोग्लोबिन ८० जीएम%, यूरिया ७८.७ एमजी/डीएल, क्रिटनीन ५.९ एमजी/डीएल, फॉस्फोरस ५.८ हो गया।
इन तीन सप्ताह की चिकित्सा से रश्मि जी ऐसी हो गयीं कि जैसे कोई रोग ही न हो। जाते समय उनके पति संजीत सिंह, एडवोकेट और रश्मि जी ने अपने रोगमुक्ति की कहानी अपनी जुबानी से इस प्रकार कही जो लोकहित में उनकी स्वीकृति पूर्वक प्रकाशित की जा रही है।
यदि यह चिकित्साऽनुभव आपको पसन्द आये तो दूसरों को भी शेयर करें ताकि मानवता का लाभ उठा सकें।
३ सप्ताह में मेरी पत्नी की डायलेसिस छूटी, मौत से उबरीं : संजीत सिंह, एडवोकेट हाईकोर्ट
मैं अध्यापक पद में कार्यरत हूँ। मुझे ६ साल पहले सीजेरियन डिलेवरी हुयी थी तभी से कुछ न कुछ शारीरिक परेशानियाँ बनी रहती थीं जो आखिर में ‘किडनी फेल्योर’ तक ले गयीं। ४ साल से हाईब्लड प्रेशर की समस्या हो गयी, वह भी ३३ साल की उम्र में। अब १ माह पहले बुखार आना शुरू हुआ तो मथुरा के अंग्रेजी अस्पताल ले गये।२० दिन तक वहाँ इलाज हुआ खूब अंग्रेजी दवाइयाँ ठोकी गयीं, पर बुखार नहीं गया। २० दिन बाद दूसरे डॉक्टर को दिखाया तो उन्होंने खून की जाँच करायी रिपोर्ट आयी तो यूरिया १३१.५ एमजी/डीएल, क्रिटनी ८.१८ एमजी/डीएल, कैल्सियम ६.०१ एमजी/डीएल और मूत्र में एल्ब्युमिन ३ + में जा रहा था। उस समय मेरा ब्लड प्रेशर १८०-२०० तक हो जाता, उल्टी, कमजोरी, पेट फूलना, श्वास लेने में समस्या, बुखार, नींद न आना। इन समस्याओं के कारण मथुरा से इन्हें आगरा रिफर कर दिया गया। वहाँ सभी जाँचें देखकर डायलेसिस के लिए बोले। लेकिन मैं और मेरे पति डायलेसिस नहीं करवाना चाहते थे, लेकिन आगरा के डॉक्टरों ने कहा कि डायलेसिस के अलावा कोई और दूसरा उपाय नहीं है इस प्रकार १४ अगस्त २०१९ को मेरी पहली डायलेसिस हुयी तथा हफ्ते में २ डायलेसिस करवाने के लिए कहा।
मैं और मेरा परिवार यह सुनकर जमीन पर आ गया, मेरे पिता जी प्रोफेसर रूपेश्वर श्याम लाल आचार्य, आयुष ग्राम गुरुकुलम्, चित्रकूट में पिछले साल अध्यापन कार्य कर रहे थे, उन्होंने मेरे पति को आयुष ग्राम चिकित्सालय, चित्रकूट के बारे में कहा। मेरे पति संजीत जो हाईकोर्ट में वकील हैं मुझे १६ अगस्त २०१९ को चित्रकूट लेकर आये, यहाँ की ओपीडी चल रही थी, मेरा रजिस्ट्रेशन हुआ, फिर नम्बर आने पर मुझे बुलाया गया, केसहिस्ट्री ली गयी और फिर से खून की जाँच करवायी गयी तब मेरा क्रिटनीन ७.५ एमजी/डीएल, यूरिया ९८.१ एमजी/डीएल, फास्फोरस ७.२, हीमोग्लोबिन ७.४ जीएम% और यूरिन एल्ब्युमिन ३ + आया। आयुष ग्राम चित्रकूट के डॉक्टरों ने मेरी सारी समस्यायें सुनीं, जाँचें देखीं और मुझसे कहा कि आप परेशान न हों अब आपकी डायलेसिस नहीं होगी और ३ सप्ताह भर्ती रखकर पंचकर्म चिकित्सा करवाने के लिए कहा। हम भर्ती हो गये और चिकित्सा होने लगी। डॉ. अर्चना वाजपेयी, एम.डी. (आयु. कायचिकित्सा) प्रतिदिन सुबह राउण्ड में आतीं, शाम को दूसरे डॉक्टर आते। पंचकर्म उपचार लिखते। नर्सें और पंचकर्म उपचारक बढ़िया उपचार लेते। जो खान-पान बताया गया वह मिलने लगा। खाने में केवल और केवल गाय का दूध दिया जाता रहा। आयुष ग्राम चित्रवूâट में गीर नस्ल की देशी गायें जहाँ दूध भी अच्छा मिल जाता है। इस प्रकार मेरी चिकित्सा हुयी, दवायें डॉ. मदनगोपाल वाजपेयी जी ने लिखीं। मेरा बुखार तो यहाँ की दवाओं से २ दिन में ठीक हो गया और खाना भी अच्छा लगने लगा, लेकिन डॉक्टर साहब ने केवल गोदुग्ध पर रखा, मुझे सारी समस्याओं में आराम मिलने लगा। मेरा बी.पी. नार्मल हो गया और अंग्रेजी दवायें भी बन्द हो गयीं।
आज ०६.०९.२०१९ को मुझे यहाँ से डिस्चार्ज किया जा रहा है, आज मेरी जाँच में क्रिटनीन ५.९ एमजी/डीएल, यूरिया ७८.७ एमजी/डीएल, हीमोग्लोबिन ८.०% , फास्फोरस ५.८ हो गया। मेरी नेक लाइन निकलवा दी गयी।
मैं आज यहाँ से ७० प्रतिशत ठीक हूँ। मैं और मेरे पति यहाँ से बहुत खुश हैं। मैं यही कहना चाहती हूँ कि यदि शुरू में ही मैं आयुष ग्राम आ जाती जैसा कि मेरे पिता प्रो. श्यामलाल जी कहते थे तो आज मेरी डायलेसिस न होती और शारीरिक कष्ट न मिलता।
- श्रीमती रश्मि पत्नी श्री संजीत एडवोकेट
ए-७४, मोतीकुंज एक्सटेंशन, मथुरा (उ.प्र.)२८१००१
आयुष ग्राम ट्रस्ट चित्रकूट द्वारा संचालित
आयुष ग्राम चिकित्सालयम, चित्रकूट
मोब.न. 9919527646, 8601209999
website: www.ayushgram.org
डॉ मदन गोपाल वाजपेयी आयुर्वेदाचार्य, पी.जी. इन पंचकर्मा (V.M.U.) एन.डी., साहित्यायुर्वेदरत्न,विद्यावारिधि, एम.ए.(दर्शन),एम.ए.(संस्कृत )
प्रधान सम्पादक चिकित्सा पल्लव
डॉ अर्चना वाजपेयी एम.डी.(कायचिकित्सा) आयुर्वेद
डॉ आर.एस. शुक्ल आयुर्वेदाचार्य
तब रोगी और उसके परिवार का मानसिक बल एकदम पाताल में चला जाता है, ऐसे में आयुर्वेद चिकित्सा से केवल डायलेसिस ही नहीं बन्द होती बल्कि अंग्रेजी दवाइयाँ भी छूटती हैं, जीने की आशा बन जाये तो इससे और अच्छा क्या हो सकता है? रोगी और उसके परिवार के लिए। तो अब समय आ गया है जन-जन तक भारत के प्राचीन चिकित्सा विज्ञान आयुर्वेद के प्रभाव को पहुँचाने का।
१६ अगस्त २०१९ को १२ बजकर १७ मिनट पर आयुष ग्राम चिकित्सालय, चित्रकूट की ओपीडी में रजिस्ट्रेशन नम्बर- आर.ए.९०/११ पर श्रीमती रश्मि उम्र ३७ वर्ष, मोतीकुंज एक्सटेंशन, मथुरा (उ.प्र.) का रजिस्ट्रेशन हुआ। अपना क्रम आने पर ओपीडी में आये। गले में नेकलाइन लगी, गले के चारों ओर १ मोटा कपड़ा लिपटा हुआ श्रीमती रश्मि और उनके साथ दो युवक प्रवेश किए। रश्मि सिंह कराह-कराह कर बात कर रहीं थीं।
रोगी का इतिवृत्त में उनके पति संजीत सिंह एडवोकेट हाईकोर्ट ने बताया कि-
✔️ ६ साल पहले सीजेरियन डिलेवरी हुयी थी तभी से कुछ न कुछ समस्या बनी रहती है।
✔️ ४ साल से हाईब्लड प्रेशर की समस्या है वह भी केवल ३३ साल की उम्र में।
✔️ १ माह पहले बुखार आना शुरू हुये तो मथुरा के अंग्रेजी अस्पताल ले गये।
✔️ २० दिन तक वहाँ इलाज हुआ खूब अंग्रेजी दवाइयाँ ठोकी गयीं, पर बुखार नहीं गया।
✔️ २० दिन बाद दूसरे डॉक्टर को दिखाया तो उन्होंने खून की जाँच करायी रिपोर्ट आयी तो यूरिया १३१.५ एमजी/डीएल, क्रिटनी ८.१८ एमजी/डीएल, कैल्सियम ६.०१ एमजी/डीएल और मूत्र में एल्ब्युमिन ३ + में जा रहा था। यह जाँच १२ अगस्त २०१९ की है।
✔️ उस समय इनका ब्लड प्रेशर १८०-२०० तक हो जाता, उल्टी, कमजोरी, पेट फूलना, श्वास लेने में समस्या, बुखार, नींद न आना। इन समस्याओं के कारण मथुरा से इन्हें आगरा रिफर कर दिया गया।
✔️ १४ अगस्त २०१९ को पहली डायलेसिस हुयी और हफ्ते में २ डायलेसिस का निर्देश दे दिया।
‘‘विडम्बना देखिए युवावस्था में वी.पी. १८०-२०० तक हो जाता है, बी.पी. की दवाई लगातार खानी पड़ रही है, इससे स्पष्ट संकेत मिल रहा है कि रोगी का ‘वात दोष’ प्रकुपित है।’’
रोगी और उसके घर वाले पढ़े-लिखे प्रबुद्ध होने के बावजूद यह नहीं सोच पा रहे कि मैं मूलकारण की चिकित्सा कराऊँ और अंग्रेजी डॉक्टर तो इसलिए सोच नहीं सकते कि उन्हें दोष-दूष्य (रोग के मूल कारण) का सिद्धान्त पढ़ाया ही नहीं जाता।
यह जान लेना चाहिए कि यदि जवानी में हाई वी.पी. की शिकायत हो रही है तो ९० प्रतिशत सम्भावना है कि आगे गुर्दे (किडनीज) सिकुड़ेंगी और फेल्योर होगा।
क्योंकि भगवान् पुनर्वसु आत्रेय बता बताते हैं कि-
‘...शोषशूलसुप्तिसंकोचनस्तम्भ ... ... ... वायो: कर्माणि तैरान्वितं वातविकारमेवाध्यवस्येत्।’ च.सू. २०/१२।।
यानी शोष, शूल, सुप्ति (सूनापन), संकोचन (सिकुड़ना), स्तम्भन और खंजता आदि वायु के कर्म हैं। वायु के लक्षणों तथा कर्मों से युक्त विकार को वात विकार जानें।
ऐसे ही यदि इंसुलिन पर निर्भरता आयी तो समझ लेना चाहिए कि आगे ‘किडनी फल्योर’ होगी। ये संकेत यदि मिलने लगें तो रोग के समूल उपचार में तुरन्त लगना चाहिए न कि लक्षणों को दबाने की दवाइयाँ खानी चाहिए।
दशविध परीक्षण में रोगी की प्रकृति वात-कफज, विकृति, रस, रक्त, मेद, मूत्र, ओज स्थिति मध्यम-निद्रा, अल्प, नख रक्ताभ,वजन ६१ किलो ग्राम।
रोगी का स्वभाव प्रसन्नचित्, हँसमुख। ऐसा रोगी उच्च मनस्क होता है और जल्द स्वस्थ होते हैं। चरक निर्देश देते हैं कि निदान करते समय ‘देहाग्निबलचेतासाम्।।’ च.नि. ८/३६।। पर अवश्य ध्यान रखें।
अब रोगी की सम्प्राप्ति पर जब अध्ययन कियागया तो स्पष्ट हुआ-
सीजेरियन डिलेवरी के समय प्रयुक्त रुक्ष, तीक्ष्ण औषधियों का प्रयोग और मन:क्षोभ के कारण वात प्रधान त्रिदोष प्रकोप ➡️ रस, रक्त, मेद में रुक्षता, खरता, विशदता, अतिचलता की वृद्धि ➡️ कफ से मार्गावरोध, पित्त से दाह आदि व्यानवायु और अपान वायु प्रकोप ➡️ व्यानवायु द्वारा रक्त के साथ मिलकर रक्त संवहन की मिथ्यागति ➡️ उच्च रक्तचाप तथा अपान वायु प्रकोप के कारण उदावत्र्त ➡️ मन्दाग्नि ➡️ आध्मान, शूल, छर्दि, विबन्ध मर्मावयवघात (गुर्दों का सिकुड़ना और उनका क्षतिग्रस्त होना) ➡️ मूत्राघात ➡️ वृक्कसन्यास (सी.आर.एफ.)
इस केस में दोष-व्याधि उभय हेतु मूलक चिकित्सा करनी थी, यानी पहला रोगी ऐसे उपद्रवों से बच जाये जिसके कारण उसे डायलेसिस में जाना पड़े। दूसरा रोग के कारण जो शारीरिक क्षति हुयी है उसका निर्मूलन और निवारण हो जाय अन्यथा पुन: रोगोत्पत्ति हो जायेगी।
इसके लिए वात दोष के ऊध्र्व और तिर्यक् मिथ्या गति को रोकना होगा, उसे अव्याहत और प्रकृतिस्थ करना था तो धातुपोषण क्रम ठीक करना था और मार्गावरण का निवारण करना था यह कार्य पंचकर्म आहार और औषध तीनों से सम्भव था। तभी डायलेसिस रुक सकती थी।
✔️ औषधि व्यवस्था में- मृगांकवटी १ ग्राम, रौप्य भस्म १ ग्राम, बेर पत्थर भस्म ५ ग्राम, इन्दुकान्त क्वाथ घनसत्व, शतावरी घनसत्व, बला घनसत्व ५-५ ग्राम घोंटकर २४ मात्रा। १x३ सुबह, दोपहर, शाम गोदुग्ध से।
✔️ आहार में केवल मखान्नक्षीर पाक। (१०-१५ मखाने को एक पाव गोदुग्ध में अच्छी तरह पकाकर) दिन में २-३ बार अग्निबल के अनुसार। क्योंकि ‘‘आहार मात्रा पुनरपि अग्निबलापेक्षिणी।’’
एक सप्ताह में ही रश्मि जी की स्थिति सुधर गयी, वमन, अनिद्रा, मूत्रकृच्छ्रता, क्षुधाहानि, विबन्ध, घबराहट, बेचैनी में पर्याप्त कमी आ गयी। वह अपने से शौचादि क्रिया करने लगी, टहलने लगी। जबकि इसके पूर्व पकड़कर ले जाना पड़ता था।
रक्त परीक्षण कराया तो पाया हेमोग्लोबिन ७.४ से बढ़कर ८.० जीएम%, ब्लड यूरिया ९८.१ से बढ़कर १०५.१ एमजी/डीएल, क्रिटनीन ७.५ से घटकर ६.५ एमजी/डीएल, फॉस्फोरस ७.२ एमजी/डीएल से घटकर ६.५ हो गया। डायलेसिस बन्द करा देने से यूरिया, क्रिटनीन बढ़ता ही है। पर इनका तो यूरिया ही बढ़ा और सब ठीक रहा।
अब उनकी डायलेसिस में डाली गयी ‘नेकलाइन’ निकाल दी गयी। रश्मि जी में अब बल का आधान हो गया था।
अत: पंचकर्म का क्रम परिवर्तन किया गया।
सर्वांगधारा, सर्वांग अभ्यंग और स्वेद का प्रयोग कर दोषों को द्रवीभूत कर निरूहबस्ति के द्वारा बाहर करना था,
ऐसा करने का निर्देश भगवान् पुनर्वसु आत्रेय देते हैं-
तं तैलशीतज्वरनाशनाक्तम स्वेदैर्यथोक्तै: प्रविलीनदोषम्।
उपाचरेद्वर्तिनिरूहबस्तिस्नेहैर्विरेकैरनुलोमनान्नै:।।
च.चि. २६/११।।
औषधि व्यवस्था में अब निम्नवत् परिवर्तन किया गया क्योंकि अब रश्मि जी बलवान् औषध प्रयोग को सहन करने योग्य हो गयीं थीं।
➡️ माहेश्वर वटी २ ग्राम, अभ्रक भस्म सहस्रपुटी २ ग्राम, अमृतोत्तरम क्वाथ चूर्ण ५ ग्राम, गोक्षुरादि गुग्गुल ५ ग्राम, टंकण ३ ग्राम घोंटकर २४ मात्रा। १²३ नाश्ता व भोजन के ३० मिनट पूर्व।
➡️ भोजन के बाद- सुकुमार क्वाथ (अष्टांग हृदय) ४ चम्मच, नेफ्रोसिया २ चम्मच मिलाकर भोजनोत्तर ३ बार।
➡️ रात में सोते समय- एरण्डपाक ५ ग्राम।
पंचकर्म द्वारा शरीर शोधन औषध प्रयोग तथा पथ्याहार (अब पथ्याहार में ५ दिन तक विलेपी फिर कृत मुद्ग यूष पर लाया गया) के पश्चात् जब पुन: २ सप्ताह बाद रिपोर्ट आयी तो सभी लोग खुश हो गये कि अब डायलेसिस नहीं कराना होगा। हेमोग्लोबिन ८० जीएम%, यूरिया ७८.७ एमजी/डीएल, क्रिटनीन ५.९ एमजी/डीएल, फॉस्फोरस ५.८ हो गया।
इन तीन सप्ताह की चिकित्सा से रश्मि जी ऐसी हो गयीं कि जैसे कोई रोग ही न हो। जाते समय उनके पति संजीत सिंह, एडवोकेट और रश्मि जी ने अपने रोगमुक्ति की कहानी अपनी जुबानी से इस प्रकार कही जो लोकहित में उनकी स्वीकृति पूर्वक प्रकाशित की जा रही है।
यदि यह चिकित्साऽनुभव आपको पसन्द आये तो दूसरों को भी शेयर करें ताकि मानवता का लाभ उठा सकें।
३ सप्ताह में मेरी पत्नी की डायलेसिस छूटी, मौत से उबरीं : संजीत सिंह, एडवोकेट हाईकोर्ट
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श्रीमती रश्मि साथ में पति संजीत सिंह (अधिवक्ता हाई कोर्ट) |
मैं अध्यापक पद में कार्यरत हूँ। मुझे ६ साल पहले सीजेरियन डिलेवरी हुयी थी तभी से कुछ न कुछ शारीरिक परेशानियाँ बनी रहती थीं जो आखिर में ‘किडनी फेल्योर’ तक ले गयीं। ४ साल से हाईब्लड प्रेशर की समस्या हो गयी, वह भी ३३ साल की उम्र में। अब १ माह पहले बुखार आना शुरू हुआ तो मथुरा के अंग्रेजी अस्पताल ले गये।२० दिन तक वहाँ इलाज हुआ खूब अंग्रेजी दवाइयाँ ठोकी गयीं, पर बुखार नहीं गया। २० दिन बाद दूसरे डॉक्टर को दिखाया तो उन्होंने खून की जाँच करायी रिपोर्ट आयी तो यूरिया १३१.५ एमजी/डीएल, क्रिटनी ८.१८ एमजी/डीएल, कैल्सियम ६.०१ एमजी/डीएल और मूत्र में एल्ब्युमिन ३ + में जा रहा था। उस समय मेरा ब्लड प्रेशर १८०-२०० तक हो जाता, उल्टी, कमजोरी, पेट फूलना, श्वास लेने में समस्या, बुखार, नींद न आना। इन समस्याओं के कारण मथुरा से इन्हें आगरा रिफर कर दिया गया। वहाँ सभी जाँचें देखकर डायलेसिस के लिए बोले। लेकिन मैं और मेरे पति डायलेसिस नहीं करवाना चाहते थे, लेकिन आगरा के डॉक्टरों ने कहा कि डायलेसिस के अलावा कोई और दूसरा उपाय नहीं है इस प्रकार १४ अगस्त २०१९ को मेरी पहली डायलेसिस हुयी तथा हफ्ते में २ डायलेसिस करवाने के लिए कहा।
मैं और मेरा परिवार यह सुनकर जमीन पर आ गया, मेरे पिता जी प्रोफेसर रूपेश्वर श्याम लाल आचार्य, आयुष ग्राम गुरुकुलम्, चित्रकूट में पिछले साल अध्यापन कार्य कर रहे थे, उन्होंने मेरे पति को आयुष ग्राम चिकित्सालय, चित्रकूट के बारे में कहा। मेरे पति संजीत जो हाईकोर्ट में वकील हैं मुझे १६ अगस्त २०१९ को चित्रकूट लेकर आये, यहाँ की ओपीडी चल रही थी, मेरा रजिस्ट्रेशन हुआ, फिर नम्बर आने पर मुझे बुलाया गया, केसहिस्ट्री ली गयी और फिर से खून की जाँच करवायी गयी तब मेरा क्रिटनीन ७.५ एमजी/डीएल, यूरिया ९८.१ एमजी/डीएल, फास्फोरस ७.२, हीमोग्लोबिन ७.४ जीएम% और यूरिन एल्ब्युमिन ३ + आया। आयुष ग्राम चित्रकूट के डॉक्टरों ने मेरी सारी समस्यायें सुनीं, जाँचें देखीं और मुझसे कहा कि आप परेशान न हों अब आपकी डायलेसिस नहीं होगी और ३ सप्ताह भर्ती रखकर पंचकर्म चिकित्सा करवाने के लिए कहा। हम भर्ती हो गये और चिकित्सा होने लगी। डॉ. अर्चना वाजपेयी, एम.डी. (आयु. कायचिकित्सा) प्रतिदिन सुबह राउण्ड में आतीं, शाम को दूसरे डॉक्टर आते। पंचकर्म उपचार लिखते। नर्सें और पंचकर्म उपचारक बढ़िया उपचार लेते। जो खान-पान बताया गया वह मिलने लगा। खाने में केवल और केवल गाय का दूध दिया जाता रहा। आयुष ग्राम चित्रवूâट में गीर नस्ल की देशी गायें जहाँ दूध भी अच्छा मिल जाता है। इस प्रकार मेरी चिकित्सा हुयी, दवायें डॉ. मदनगोपाल वाजपेयी जी ने लिखीं। मेरा बुखार तो यहाँ की दवाओं से २ दिन में ठीक हो गया और खाना भी अच्छा लगने लगा, लेकिन डॉक्टर साहब ने केवल गोदुग्ध पर रखा, मुझे सारी समस्याओं में आराम मिलने लगा। मेरा बी.पी. नार्मल हो गया और अंग्रेजी दवायें भी बन्द हो गयीं।
आज ०६.०९.२०१९ को मुझे यहाँ से डिस्चार्ज किया जा रहा है, आज मेरी जाँच में क्रिटनीन ५.९ एमजी/डीएल, यूरिया ७८.७ एमजी/डीएल, हीमोग्लोबिन ८.०% , फास्फोरस ५.८ हो गया। मेरी नेक लाइन निकलवा दी गयी।
मैं आज यहाँ से ७० प्रतिशत ठीक हूँ। मैं और मेरे पति यहाँ से बहुत खुश हैं। मैं यही कहना चाहती हूँ कि यदि शुरू में ही मैं आयुष ग्राम आ जाती जैसा कि मेरे पिता प्रो. श्यामलाल जी कहते थे तो आज मेरी डायलेसिस न होती और शारीरिक कष्ट न मिलता।
- श्रीमती रश्मि पत्नी श्री संजीत एडवोकेट
ए-७४, मोतीकुंज एक्सटेंशन, मथुरा (उ.प्र.)२८१००१
आयुष ग्राम ट्रस्ट चित्रकूट द्वारा संचालित
आयुष ग्राम चिकित्सालयम, चित्रकूट
मोब.न. 9919527646, 8601209999
website: www.ayushgram.org
प्रधान सम्पादक चिकित्सा पल्लव
डॉ अर्चना वाजपेयी एम.डी.(कायचिकित्सा) आयुर्वेद
डॉ आर.एस. शुक्ल आयुर्वेदाचार्य
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