आयुष चिकित्सा से ऐसे जीवनदान पाते किडनी रोग!!
आज दिनांक ०७.०८.२०१९ को पूर्व विदेश मंत्री सुषमा स्वराज का निधन हो गया, वे २० साल से मधुमेह से ग्रस्त थीं। डायबिटीज की अंग्रेजी इलाज करते-करते उनकी किडनी फेल हुयी। इसके बाद २०१६ में किडनी ट्रान्सप्लाण्ट हुआ। लेकिन ३ साल के अन्दर ही निधन हो गया। अंग्रेजी इलाज और किडनी ट्रान्सप्लाण्ट जब इतने उच्च साधन, सुविधा और चिकित्सा सम्पन्न देश के महामानवी को नहीं बचा पाया तो इस चिकित्सा के बारे में क्या कहा जाय यह कितनी सफल है मानव को स्वास्थ्य देने में। इतना लिखने के बाद हम एक नई चिकित्सा सफलता आपके समक्ष प्रस्तुत कर रहे हैं।१८ जुलाई २०१९ को आयुष ग्राम (ट्रस्ट) चिकित्सालयम् की ओपीडी खचाखच चल रही थी, जिला- कौशाम्बी (उ.प्र.) चकसदनपुर, ओसा, मंझनपुर से उदय सिंह यादव उम्र ३७ को लेकर उनके परिजन आयुष ग्राम (ट्रस्ट) चिकित्सालयम् की ओपीडी में आये।
ओपीडी क्रमांक ३/६०३१ था। रोगी में उपद्रव इस प्रकार थे-
साँस फूल रही थी, पूरे शरीर में सूजन थी, दुर्बलता, भोजन के प्रति अरुचि, मुँह में कडुवापन, खाना खाने के बाद उल्टी हो जाना, रोगी का इलाज प्रयागराज (इलाहाबाद) के एक हास्पिटल में चल रहा था, वहाँ की सभी रिपोर्टें देखी तो यूरिया १२०.००एमजी/डीएल, क्रिटनीन ६.० एमजी/डीएल था।
रोगी उदय सिंह के ‘यूरोबैग’ भी लगा था। रोगी वेदना से कराह रहा था। सभी परिजन उसे जल्दी देखने के लिए आग्रह कर रहे थे। रोगी को तुरन्त अन्तरंग विभाग में भर्ती किया गया और नर्स को कुछ औषधियाँ देने का निर्देश दिया गया, उधर रक्त परीक्षण के लिए लिखा गया।
आयुष ग्राम चित्रकूट द्वारा करायी गयी जब रक्त परीक्षण की रिपोर्ट आयी तो हेमोग्लोबिन ११.०, ब्लड यूरिया नाइट्रोजन ५९.७ एमजी/डीएल, यूरिया १२७.९ एमजी/डीएल, क्रिटनीन ६.२ एमजी/डीएल, यूरिक एसिड ८.७ किन्तु फास्फोरस १०.२था। मूत्र परीक्षण में एल्ब्यूमिन ४ + में आ रहा था।
उदयवीर सिंह यादव के रोग का जब इतिवृत्त लिया गया तो बताया गया कि यह दूध बेचने का काम करता है, सुबह १ चाय पी और चल दिया अपने काम में। बताया २४ जून को हाथ-पैर और चेहरे में सूजन आ गयी, पेशाब कम होने लगी, मुझे इलाहाबाद के अंग्रेजी अस्पताल ले गये, वहाँ बताया गया कि आपके दोनों गुर्दे फेल हो गये।
२७ जून २०१७ से १७ जुलाई २०१९ तक इलाहाबाद में इलाज कराते रहे, उन्होंने पेशाब में नली भी लगा दी और अब डायलेसिस के लिए कहने लगे तो हम वहाँ से ले आये।
आयुष ग्राम, चित्रकूट के डॉक्टरों ने अब रोग की सम्प्राप्ति का अध्ययन शुरू किया तो पाया कि- रुक्ष, कषाय, वातवर्धक पदार्थों का सेवन, अतिश्रम → वात प्रधान त्रिदोष प्रकोप → बस्ति प्रदेश में स्थान संश्रय → बस्ति में विकृति → मूत्राघात → यूरिया, क्रिटनीन की वृद्धि।
रोगी में रोग की सम्प्राप्ति घटक इस प्रकार पाये गये- दोष वातप्रधान त्रिदोष, दूष्य-मेद धातु और मूत्र, स्रोतस् → मूत्रवहस्रोतस्, स्रोतोदुष्टि → ‘संग’ प्रकार, साध्यता → कृच्छ्रसाध्य । यदि रोगी पुराना हो जाता या रोगी का प्रतिरक्षा तंत्र कमजोर गया होता तो असाध्य हो जाता।
महामति श्री माधवकर जी इस रोग के विषय में बहुत ही सुन्दर सूत्र बताते हैं-
जायन्ते कुपितैर्दोषैर्मूत्रघातात्रयोदश।
प्रायो मूत्रविघाताद्यैर्वातकुण्डलिकादय:।।
मूत्राघात निदान- १।।
अर्थात् उत्पन्न हुआ मूत्राघात १३ प्रकार का होता है। दुनिया के प्रथम शल्यशास्त्री आचार्य सुश्रुत बताते हैं कि-
रौक्ष्याद्वेगविघाताद्वा वायुर्वस्तौ सवेदन:।
मूत्रमाविश्य चरति विगुण: कुण्डलीकृत:।।
मूत्रमल्पाल्पथवा सरुजं संप्रवर्तते।
वातकुण्डलिकां तां तु व्याधिं विद्यात्सुदारुणम्।।
सु.उ. ५८/५-६।।
अर्थात् वातवर्धक खान-पान और जीवनशैली अपनाने से बस्ति (मूत्रवह संस्थान) में निवसित वायु प्रतिलोम होकर मूत्र को कुण्डलाकार संचार करता है इससे मूत्राशय, वृक्क (किडनी) में पीड़ा होती है, मूत्र त्याग या तो होता नहीं, यदि होता है तो कम मात्रा में पीड़ा के साथ होता है। इसे वातकुण्डलिका कहते हैं पर यह बीमारी बहुत कष्ट दायक होती है।
रोग की सम्प्राप्ति स्पष्ट हो जाने के बाद तो रोगी को सम्हालना कोई कठिन था ही नहीं। अत: निम्नांकित चिकित्सा व्यवस्था विहित की गयी-
¬ श्यामादिवर्ति (चरक संहिता) दिन में २ बार। क्योंकि निरूह बस्ति देने तो शरीर में द्रव बढ़ने की सम्भावना थी। श्यामादिवर्ति देने के बाद वायु और मल का निर्हरण हुआ। रोगी की वेदना कम हुयी।
आचार्य चरक ने स्पष्ट बताया है कि- न च देहशुद्धिर्मर्मोपघातो ... ... ...श्वयथा प्रदिष्ट:।।
च.चि. १२/६
मर्म स्थान अर्थात् वृक्क (किडनी), हृदय, शिर आदि के रुग्ण हो जाने से भी शोथ आता है। यदि शरीर में विषाक्तता या मल एकत्र है और पंचकर्म से उन्हें बाहर नहीं किया गया तो भी शोथ आने की सम्भावना रहती है।
उदय सिंह यादव में मूत्राघात और वातकुण्डलिका के कारण ‘मर्मोपघात’ हुआ, परिणाम ‘शोथ’ भी आया। ‘आयुष ग्राम (ट्रस्ट) चिकित्सालयम्’ के डॉक्टरों ने पाया कि यह रोगी साध्य है यानी ठीक होने योग्य है। क्योंकि-
अहीनमांसस्य य एकदोषजो नवो बलस्थस्य सुख: स साधने।।
च.चि. १२/१५।।
ऐसा शोथ रोगी जिसका मांस गुणहीन न हुआ हो तथा शोथ एक दोष से उत्पन्न हो, नया हो और रोगी बलवान् हो तो उसका शोथ सुखसाध्य (आराम से ठीक होने योग्य) होता है।
यहाँ पर ‘अहीन मांसस्य’ शब्द लिखना यह भी संकेत देता है कि सीरम क्रिटनीन बहुत खतरनाक स्थिति में न हो गया हो या खतरनाक स्थिति न बना दिया हो, ऐसा शोथ रोगी आराम से ठीक हो जाता है।
आज भले ही ‘क्रिटनीन’ रसायन की खोज हो गयी हो पर आयुर्वेद विज्ञान के आचार्य चरक जैसे माहन् ऋषि को शोथ में मांस धातु की भूमिका का ज्ञान था। यह आप जानते हैं कि क्रिटनीन का सम्बन्ध मांसधातु से है। चरक का ‘अहीन मांसस्य’ शब्द यह बताता है कि मांसधातु यदि दोषरहित होगी तो उसमें ‘क्रिटनीन’ सामान्य होगा।
अहीनमांसस्य → अपगतं, हीनं ⇉ दोषयुत्तं, मांसम् ⇉ मांसधातु:
यस्य तस्य अहीनमांसस्य। इदं मम नवप्रस्थापना- डॉ. मदनगोपाल वाजपेयी।
"Creatinine is a breakdown product of creatine phosphate in muscle, and is usually produced at a fairly, constant rate by the body."
अब चिकित्सा की ओर चलें तो भगवान् पुनर्वसु आत्रेय सूत्र देते हैं-
अथामजं लङ्घनपाचनक्रमैर्विशोधनैरुल्वणदोषमादित:।
प्रकल्पयेत् स्नेहविधिं च रुक्षजे।।
च.चि. १२/१७
यदि शोथ ‘आम’ से सम्बन्ध रखता है तो लघुत्वजनक और पाचन, क्रियाक्रम अपनाना है यदि वात दोष के कारण रुक्षता और रुक्षता के कारण वात प्रकोप हो तज्जन्य किडनी फेल्योर हो तो स्नेहविधि पूर्ण चिकित्सा करनी चाहिए।
तद्नुसार निम्नांकित औषधि व्यवस्था विहित की गयी-
कटिपक्वाशय स्वेदन - योगवस्ति (अर्धबिल्व कषाय, मदनफल, मधु, सैन्धव लवण और महाराज प्रसारिणी तैल) इसके अलावा, शिरोधारा, तक्रधारा, शिरोबस्ति।
औषधि व्यवस्था-
१. अद्र्ध बिल्वकषाय का घनसत्व ३० ग्राम, माहेश्वर वटी ५ ग्राम, ब्राह्मी वटी (स्वर्ण) एसडीएल ३० गोली, कपर्द भस्म ५ ग्राम, मुक्ता पंचामृत ६० गोली सभी को घोंटकर ६० मात्रा। १²२ गोदुग्ध के अनुपान से।
२. चन्द्रप्रभा वटी २-२ गोली दोपहर और रात में।
३. त्रिवृल्लेहम् १० ग्राम रात में सोते समय।
रोगी में मूच्र्छा, बेचैनी, जलन और प्यास जैसे उपद्रव थे।
ऐसी अवस्था में आचार्य चरक का निर्देश है-
पयश्च मूच्र्छाऽरतिदाहतर्षिते।। च.चि. १२/१८।।
अर्थात् ऐसी अवस्था में तिक्त पदार्थों से साधित गोदुग्ध रोगी को सेवन कराना चाहिए। तदनुसार हमने श्री उदय सिंह को केवल गोदुग्ध पर रख दिया।अर्धबिल्व कषाय घनसत्व और चन्द्रप्रभावटी तिक्त रस है ही। जो औषध व्यवस्था में चल रहे हैं।
आयुष ग्राम ट्रस्ट, चित्रकूट की गौशाला में पर्याप्त गीर नस्ल की गायें हैं, जिनका पर्याप्त दूध उपलब्ध रहता है |
चमत्कार हो गया- चामत्कारिक परिणाम आया, १ सप्ताह में ही रोगी में शोथ (Edema) मिट गया, दुर्बलता, चलने में साँस फूलना, भूख न लगना आदि समस्यायें मिट गयीं। रक्त परीक्षण कराया तो यूरिया १२७ एमजी/डीएल से घटकर ७९.९ एमजी/डीएल, क्रिटनीन ६.२ से घटकर ४.२ एमजी/डीएल, यूरिक एसिड १२७ एमजी/डीएल से घटकर ८.१ एमजी/डीएल और फास्फोरस १०.४ से घटकर ९.४ हो गया।
रोगी हायपर फोस्फेटिमिया से भी ग्रस्त था। शरीर में फास्फेस्ट को अवशोषित होने के लिए विटामिन डी की जरूरत होती है। यह भी मेटाबोलिक समस्या है और किडनी को खराब कराने में अहम भूमिका रखता है।
२ अगस्त २०१९ को जब पुन: रक्त परीक्षण करया तो यूरिया घटकर ६८.८, क्रिटनीन ३.६ एमजी/डीएल, यूरिक एसिड ७.८ और फास्फोरस ६.५ हो गया। मूत्र में एल्ब्यूमिन ३ ± में हो गया था।
अब एक माह की औषधि व्यवस्था पत्र तथा पथ्याहार में केवल गोदुग्ध का निर्देश देकर रोगी को डिस्चार्ज कर दिया गया। जब १ माह बाद आयेगा तो अब निश्चित है कि यूरिया, क्रिटनीन नार्मल होगा।
ऐसे केसों में ऐसी सफलताओं में केवल गुरुकृपा, शास्त्र में असीम श्रद्धा और आयुष ग्राम के सभी सहयोगियों का हाथ है। इन सबके बिना ऐसे रोगियों में यश मिल ही नहीं सकता।
मैं आयुर्वेद (आयुष) के सभी मनीषियों, अध्येताओं, प्रेमियों से निवेदन करता हूँ कि यदि ऐसे चुनौतीपूर्ण केस की सफलतायें और प्रस्तुति पसन्द आये तो इसे सभी जगह शेयर करें।
हमने चिकित्सा व्यवस्था को बीच में परिवर्तित नहीं किया। भगवान् धन्वन्तरि का स्पष्ट निर्देश है कि चिकित्सा को शीघ्र लाभ की लालसा में सहसा नहीं बदलना चाहिए। क्योंकि-
गुणलाभेऽपि सपदि यदि सैव क्रिया हिता।
कर्तव्यैव तदा व्याधि: कृच्छ्रसाध्यतमो यदि।।
सु.सू. ३५/४८।।
रोगी ने डिस्चार्ज होते समय निम्नांकित विचार व्यक्त किये-
मैं डायलेसिस से बच गया!!
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वहाँ से किसी तरह छुट्टी कराकर मेरे भाई घर ला रहे थे तभी रास्ते में प्रतापगढ़ के एक सज्जन मिले जो आयुष ग्राम चिकित्सालयम्, चित्रकूट से इलाज करवा रहे हैं, उन्होंने आयुष ग्राम चिकित्सालयम् के बारे में बताया। दूसरे दिन ही मेरा भाई मुझे चित्रकूट लेकर आये, यहाँ ओपीडी चल रही थी, काफी भीड़ भी थी,मेरा पर्चा बना और मेरी हिस्ट्री ली गयी, जाँचें करवाई गयीं, जाँच करवाने के बाद डॉक्टर साहब की ओपीडी में मुझे ले जाया गया, सभी जाँचें देखी गयीं, उस समय मेरा क्रिटनीन ६.२ एमजी/डीएल, यूरिया १२७ एमजी/डीएल था। मुझे बहुत कमजोरी, पूरे शरीर में सूजन, खाना खाने के तुरन्त उल्टी हो रही थी, पेशाब बिल्कुल नहीं हो पा रही थी। तो डॉक्टर साहब ने मेरे भाई से १५ दिन तक रखने को कहा और कहा कि आशा करें कि डायलेसिस की जरूरत नहीं होगी। अन्न बिल्कुल बन्द करवा दिया, सिर्फ गौदुग्ध पीने के लिए कहा। मैं परेशान हो गया कि सिर्फ गौदुग्ध में कैसे रह सकता हूँ लेकिन फिर डॉक्टर साहब ने मुझे समझाया और दवा लिखी और १५ दिन तक रखा। मेरा पंचकर्म हुआ, जिससे मुझे बहुत आराम मिला। तेल की मालिश, उसकी धारा, बस्तिकर्म हुआ जो बहुत आराम दायक रही। जब मैं यहाँ रहा तो देखा यहाँ तो न जाने कितने रोगी किडनी और हार्ट के हैं और स्वस्थ हो रहे हैं, डायलेसिस से बच रहे हैं। आयुष ग्राम चित्रकूट में मेरा २ दिन में कैथेटर निकलवा दिया गया और मेरी अंग्रेजी दवायें बन्द कर दी गयीं। मैं एक सप्ताह में ही अपने से चलने लगा। आज की जाँच में क्रिटनीन ३.६ और यूरिया ६८ हो गया है। मुझे १५ दिन के पंचकर्म के बाद डिस्चार्ज कर दिया गया और घर पर भी १ माह गौदुग्ध पर रहने को कहा है। मैं अब बिल्कुल स्वस्थ्य हूँ।
यहाँ की डॉ. अर्चना वाजपेयी, एम.डी. (आयु.) की निगरानी समझाने का ढंग बहुत ही अच्छा लगा। उन्होंने कहा कि आप इतनी जल्दी इसलिए ठीक हो गये कि आप बहुत दिन एलोपैथ में न फँसे रहकर जल्दी आ गये। अधिकांश रोगी अंग्रेजी दवा से केस बिगाड़ कर ही आते हैं।
मैं और मेरा परिवार मेरे ठीक हो जाने से बहुत खुश हैं और मैं पूर्ण आशा करता हूँ कि मेरी रिपोर्ट भी नार्मल हो जायेगी।
उदय सिंह यादव
चकसहनपुर, ओसा चौराहा, मंझनपुर
कौशाम्बी (उ.प्र.)
मोबा.नं.- ९६७०१२२०७८
मोब.न. 9919527646, 8601209999
website: www.ayushgram.org
डॉ मदन गोपाल वाजपेयी आयुर्वेदाचार्य, पी.जी. इन पंचकर्मा (V.M.U.) एन.डी.,साहित्यायुर्वेदरत्न,विद्यावारिधि, एम.ए.(दर्शन),एम.ए.(संस्कृत )
'प्रधान सम्पादक चिकित्सा पल्लव'
डॉ परमानन्द वाजपेयी
बी.ए.एम.एस., एम.डी.(अ.)
डॉ अर्चना वाजपेयी एम.डी.(कायचिकित्सा) आयुर्वेद
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