सावधान! हार्ट अटैक के खतरे से डरे लोगों को अंग्रेजी डॉक्टर खिला रहे सेहत की दुश्मन एस्प्रिन!

        सावधान! हार्ट अटैक के खतरे से डरे लोगों को अंग्रेजी डॉक्टर खिला रहे सेहत की दुश्मन एस्प्रिन !!

  एस्प्रिन के दुष्प्रभाव से पीड़ित बुजुर्गों को ऐसे मिलता  जीवनदान!!

यदि आप हार्ट की सेहत के प्रति जरा भी गम्भीर और जागरूक हैं तो अंग्रेजी डॉक्टरों/अस्पतालों के एक मजेदार तरीके के प्रति भी जागरूक और गम्भीर होने की जरूरत है। आप देखेंगे कि कोई भी ४० साल या इसके आस-पास की उम्र की महिला-पुरुष अंग्रेजी डॉक्टर के पास या अस्पताल में गया और उसने डॉक्टर को बताया कि छाती में दर्द रहता है, चुभन और भारीपन भी रहता है, थोड़ा साँस फूलती है। बस! क्या है, डॉक्टर साहब उसे एस्प्रिन या इकोस्प्रिन का कैप्सूल/गोली थमा ही देंगे। 


ऐसे ही चाहे राम जाये या श्याम, सीता जाये या सविता, यदि उसने सीने में किसी भी तरह की समस्या बतायी, तो बस, समझ लीजिये उसे एस्प्रिन या इकोस्प्रिन मिलना तय है।

अब डॉक्टर से पूछिये कि सर! यह दवा क्यों लिख रहे हैं, तो कहेंगे कि खून पतला करने के लिए?

फिर पूछें कि सर! इनका खून गाढ़ा है क्या? क्या आपने ऐसी कोई जाँच करायी है क्या? जिससे आपको पता चल गया कि इसका खून गाढ़ा है? 

अंग्रेजी डॉक्टर साहब! कहेंगे, नहीं-नहीं ब्लॉकेज होने की सम्भावना है या ब्लॉकेज हो रहा तो खूना पतला रहेगा तो धमनियों (Arteries) से पास होता रहेगा। 

आगे आप डॉक्टर साहब से पूछिये या न पूछिये पर आप अपने से पूछिये और उत्तर लीजिये कि यदि आर्टरी में ब्लॉकेज हैं या ब्लॉकेज होने की सम्भावना है तो ब्लॉकेज को मिटाने का इलाज होना चाहिए या खून पतला करने की एस्प्रिन या इकोस्प्रिन जहरीली दवा का सेवन करना चाहिये?

  • इकोस्प्रीन/एस्प्रिन तो एक ‘धीमा जहर’ (slow poison) है। जो धीरे-धीरे आपको अन्दर से कमजोर, नपुंसक और शक्तिहीन करता जाता है। इसे खाते-खाते न जाने कितने किडनी के मरीज हो गये। 
  • ऑस्ट्रेलिया में हुये सबसे बड़े क्लीनिकल ट्रायल में स्पष्ट बताया गया है कि एस्प्रिन लेने वालों को सचेत हो जाना चाहिए कि इससे मौत, अपंगता या दिल से सम्बन्धित बीमारी का खतरा कम नहीं होता, बल्कि इससे धीरे-धीरे रक्तस्राव का खतरा बढ़ने लगता है, जो व्यक्ति को मौत का कारण बनता है। यह रिपोर्ट मोनाश यूनिवर्सिटी के शोधकत्र्ताओं ने सितम्बर २०१८ में प्रकाशित की। 
  • रिसर्च के आधार पर मॉर्डन मेडिकल साइंस ने उजागर किया है कि एस्प्रिन के दुष्प्रभाव के कारण अपच, पेट में सूजन, रक्त में प्लेटलेट्स की कमी, आँतों में घाव, सीने में जलन, कब्ज, श्वास सम्बन्धी परेशानी, गुर्दे की खराबी आदि परेशानियाँ हो सकती हैं। 
  • ब्रिटेन की ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी में हुये शोध में से यह बात उजागर हुयी कि रोजाना एस्प्रिन का सेवन ज्यादा उम्र के लोगों के लिए बहुत ही खतरनाक है। इससे पेट में काफी रक्तस्राव हो सकता है। यह शोध लैंसेट नामक मेडिकल जर्नल में भी प्रकाशित हुआ। वहीं शेफील्ड यूनिवर्सिटी के हृदय रोग विशेषज्ञ डॉ. टिम चिको बताते हैं कि यह महत्वपूर्ण रिसर्च है। 
  • एस्प्रिन मारक है- १५ जून २०१७ को दैनिक जागरण के देश-विदेश पेज में शोध-अनुसंधान शीर्षक से प्रकाशित एक रिपोर्ट में स्पष्ट कहा गया है कि एस्प्रिन के दुष्प्रभाव को लेकर एक बड़ी जानकारी सामने आयी है कि स्ट्रोक या हार्ट अटैक से बचने के लिए एस्प्रिन का इस्तेमाल जानलेवा भी हो सकता है। 
  • २९ जुलाई २०१९ को प्रकाशित एक रिपोर्ट में बताया गया कि लाखों लोग रोज एस्प्रिन नामक दवा का सेवन करते हैं लेकिन यह दवा स्वास्थ्य को बेहतर करने के स्थान पर नुकसान पहुँचा सकती है। अमेरिकी स्वास्थ्य मंत्रालय ने लोगों को एस्प्रिन लेने से मना कर दिया है। अमेरिका के वैज्ञानिकों ने चेतावनी दी है कि डॉक्टरों को अपने मरीजों को एस्प्रिन सेवन से मना करना चाहिए। 
  • हाल में ही, एक रिसर्च में पाया गया है कि जो लोग दिल का दौरा रोकने के लिए एस्प्रिन खा रहे हैं उन्हें अब यह दवा खाने के पहले १० बार सोचना चाहिए, क्योंकि एस्प्रिन खाना दिल की सेहत के लिये बुरा हो सकता है। यह रिसर्च हार्वर्ड और बेथ इजराइल डीकोनेस मेडिकल सेण्टर के वैज्ञानिकों द्वारा किया गया। इस टीम का नेतृत्व करने वाले डॉ. कॉलिन ओ ब्रायन कहते हैं कि एस्प्रिन के सेवन से नुकसान बड़ा हो सकता है। 

इन रिसर्चों और वैज्ञानिक तथ्यों की अनदेखी करते हुये आज भी भारत में अंग्रेजी डॉक्टर और अस्पताल रोगियों में एस्प्रिन ठोक रहे हैं। भारत में जिस प्रकार अंग्रेजी अस्पतालों और डॉक्टरों द्वारा इलाज किया जा रहा है वैसा तो विदेशों में पशुओं का भी नहीं किया जाता। पर धन्य है भारतीय मानव की मजबूत रोगप्रतिरोधक शक्ति जो उसे पूर्वजों से मिली है, जिसके बल पर वह सब झेल जाता है। 

आयुष ग्राम (ट्रस्ट) चिकित्सालयम्, चित्रकूट के कार्डियोलॉजी विभाग में रोज ऐसे केस आ रहे हैं जिन्हें अंग्रेजी डॉक्टर इकोस्प्रिन/एस्प्रिन दे-देकर शारीरिक, मानसिक और आत्मिक रूप से कमजोर कर देते हैं। रोगी में ऐसा मृत्युभय पैदा कर देते हैं कि रोगी को लगने लगता है कि किसी भी समय हार्ट अटैक हो जायेगा और वे मर ही जायेंगे।

ऐसे ही एक हार्ट रोगी श्री रमेश प्रताप  सिंह, उम्र ६८ वर्ष, को लेकर जून २०१८ में परिवारीजन आयुष ग्राम (ट्रस्ट) की आयुष कार्डियोलॉजी में आये। रोगी की लम्बाई और शरीर का संहनन देखकर लग रहा था कि यह व्यक्ति कभी अच्छे शरीर और स्वास्थ्य का धनी रहा होगा, जो आज चल नहीं पा रहा वह भी मात्र ६८ साल की उम्र में। श्री रमेश सिंह (म.प्र.) वन विभाग से सेवानिवृत्त थे। 

उन्होंने जो कहानी बतायी उसे सुनकर तरस आ रहा था कि कैसा इलाज किया जा रहा है भारत में। 

उन्होंने बताया कि सन् २०१७ में उनकी छाती में अचानक दर्द हुआ, जबलपुर में एंजियोग्राफी हुयी और आर्टरी में ब्लॉकेज बताया गया तथा स्टेंट डालने की सलाह दी गयी। रोगी समझदार था उसने स्टेंट डालने से तो मना कर दिया और दवाइयाँ लेकर चला आया। 

दवाइयों में अंग्रेजी डॉक्टर श्री रमेश सिंह को एस्प्रिन सहित १२ तरह की गोलियाँ, कैपसूल खिला रहे थे। 

श्री रमेश सिंह एस्प्रिन सहित १२ गोली, कैपसूल खाते जा रहे थे उधर उनमें मांशपेशियों की कमजोरी, शरीर में रूखापन, थकावट, मन का विचलित रहना जैसे लक्षण आते जा रहे थे। 

श्री रमेश सिंह की उम्र तो थी ६८ साल पर ७८ साल के लग रहे थे। अब चिकित्सा के उद्देश्य से व्याधि की सम्प्राप्ति पर आयुष ग्राम के डॉक्टरों ने अध्ययन शुरू किया। तो पाया कि-

एस्प्रिन तथा अन्य रूक्ष, उष्ण, तीक्ष्ण दवाओं के लगातार सेवन से वात और पित्त प्रकोप  रक्तदुष्टि ळ् पित्त तथा रक्त का संयोग धातुओं का पित्त की ऊष्मा से पिघलना और वात की रूक्षता, खरता, लघुता से सूखना (क्षय होना)  ओजक्षय। परिणाम सामने थे कि -

विभेति दुर्बलोऽभीक्ष्णं ध्यायति व्यथितेन्द्रिय:।

दुश्छायो दुर्मना रूक्ष : क्षामश्चैवोजस: क्षये।। 

च.सू. १७/७३।।


यानी श्री रमेश सिंह में मृत्युभय, दुर्बलता, चिन्तित रहना, इन्द्रियों का व्यथित रहना, प्रसन्नता का अभाव, शरीर की छाया विकृत होना, शरीर में रूखापन, कृशता, थकावट, मन का विचलित रहना और शरीर की कान्ति नष्ट होने जैसे उपद्रव शुरू हो गये थे।
उधर श्री रमेश सिंह जी अपने डॉक्टर से बताते कि मुझे ये-ये परेशानी है तो डॉक्टर कहते कि स्टेंट डलवाइये। 
अब श्री रमेश सिंह जी ने आयुष ग्राम चिकित्सालयम्, चित्रकूट की आयुष कार्डियोलॉजी की ओर रुख किया। रजिस्ट्रेशन कराया, यहाँ ओपीडी में उनकी नाड़ी, मूत्र, जिह्वा, शब्द स्पर्श आदि की विधिवत् परीक्षा की गयी
 जब वर्तमान उपद्रवों के प्रधान कारण की खोज की गयी तो पाया गया कि सर्वप्रथम वय के प्रभाव, विकृत, खान-पान आदि के प्रभाव से वात दोष प्रकोप  कायाग्नि मन्दता  सामरसधातु का निर्माण ओजक्षय धमनी प्रतिचय। 
यदि इस प्रकार से रोग की गहराई तक नहीं जाया जायेगा तो हम एलोपैथ से निराश, हताश और बिगाड़े हुये केस में लाभ भी नहीं दे सकते। हार्ट, किडनी, शिर (मर्म) रोगों से पीड़ित मानव को सुख भी नहीं पहुँचा सकते। इस सम्बन्ध में भगवान् पुनर्वसु आत्रेय बहुत ही वैज्ञानिक एक सूत्र बताते हैं- 
‘‘उपद्रवस्तु खलु रोगोत्तरकालजो रोगाश्रयो रोग एव स्थूलोऽणुर्वा, रोगात् पश्चाज्जायत इत्युपद्रवसंज्ञ:। 
तत्र प्रधाने व्याधि:, तस्य प्राय: प्रधानप्रशमे प्रशमो भवति।।
स तु पीडाकरतरोभवित पश्चादुत्पद्यमानो व्याधिपरिक्लिष्ट शरीरत्वात् तस्मादुपद्रवं त्वरमाणोऽभिबाधते।।’’ 
च.चि. २१/४०।। 
अर्थात् जो लक्षण रोग के उत्पन्न होने के बाद उत्पन्न होता है उसे ‘उपद्रव’ कहते हैं। यह रोगजनक कारणों से उत्पन्न होने के कारण रोग पर ही निर्भर होता है। वह बड़ा भी हो सकता है और छोटा भी हो सकता है। रोग प्रधान होता है और रोग का लक्षण अप्रधान होता है। प्राय: प्रधान रोग के शान्त होने पर अप्रधान उपद्रव अपने आप शान्त हो जाता है। किन्तु जब रोग के कारण शरीर परेशान होकर कमजोर हो जाता है तब बाद में उपद्रव की उत्पत्ति होती है जिससे वह रोग की अपेक्षा अधिक कष्टप्रद होता है इसलिए शीघ्रतापर्वूक उपद्रव की चिकित्सा करनी चाहिए। 
इस शास्त्रीय निर्देशानुसार श्री रमेश सिंह की चिकित्सा प्रारम्भ की गयी और श्री रमेश सिंह जी और उनके परिजनों को आश्वासन दिया गया कि आप चिन्ता न करें, हार्ट अटैक से आप नहीं मरने पायेंगे। 

चिकित्सा व्यवस्था-
¬ सर्वांगधारा क्षीरबला तैल से, अनुवासन महातिक्तघृतं से, निरूहबस्ति इन्दुकान्त कषाय, चिरबिल्वकषाय, यवक्षार मिश्रण से। 
¬ रत्नेश्वर रस २ ग्राम, त्रैलोक्य चिन्तामणि रस २ ग्राम, स्वर्ण भस्म ५०० मि.ग्रा., बलाघनसत्व, कपूरकचरी घनसत्व, वंशलोचन और अश्वगन्धा घनसत्व १०-१० ग्राम सभी घोंटकर ६० मात्रा। १ मात्रा दिन में २ बार भोजन के बाद। 
¬ हिंग्वष्टक चूर्ण २-२ ग्राम भोजन के पहले।
¬ पार्थाद्यारिष्ट २ चम्मच, द्राक्षारिष्ट २ चम्मच और अभयारिष्ट २ चम्मच बराबर पानी मिलाकर खाना खाने के बाद दिन में २ बार। 
¬ रात में सोते समय- द्राक्षावलेह १ चम्मच। 
¬ भोजन में- मखान्नक्षीरपाक सुबह नाश्ते में, दोपहर में चना-गेंहूँ की रोटी, हरी सब्जी, मूँग की पतली दाल, गोघृत, रात को सोते समय मखान्नक्षीरपाक और २ रोटी। 
परिणाम- उपर्युक्त चिकित्सा व्यवस्था से एस्प्रिन के सारे कुप्रभाव तेजी से मिटने लगे, ओज बढ़ने लगा, शक्ति का संचार होने लगा और मौतभय मिटने लगा। श्री रमेश सिंह जी की चलने में साँस फूलना बंद हो गई भूख लगने लगी, निर्बलता दूर हो गई, पेट साफ होने लगा । दो माह की चिकित्सा से शरीर में ओज, बल, स्मृति, आत्मविश्वास ऐसा बढ़ गया कि मानो कोई बीमारी ही न हो। ११ माह के बाद दवाइयाँ कम कर दी गयीं। आज श्री रमेश सिंह और उनका परिवार किस प्रकार आयुष चिकित्सा के प्रति कृतज्ञ है यह उनके शब्द बता रहे हैं-


हार्ट के ऑपरेशन और स्टेंट से बचा : रमेश प्रताप सिंह


रमेश प्रताप सिंह जी 
मैं रमेश प्रताप सिंह, वन विभाग से सेवा निवृत्त हूँ। उम्र ६५ साल है।
मुझे सन् २०१७ में अचानक सीने में दर्द उठा, मेरे परिवार वाले मुझे जबलपुर के एक अंग्रेजी हॉस्पिटल में ले गये, वहाँ सभी जाँचें हुयीं, डॉक्टरों ने हार्ट में ५० प्रतिशत ब्लॉकेज बताया और कहा कि एंजियोप्लास्टी करनी पड़ेगी, छाती में स्टेंट डालना होगा। मैं डर गया और डॉक्टर से कुछ समय लेकर दवा लेकर घर चला आया। जबलपुर की दवा दो माह चली, लेकिन मुझे कोई आराम महसूस नहीं हुआ और अब डॉक्टर ने फिर एंजियोप्लास्टी के लिए कहा। लेकिन मुझे पता था कि एंजियोप्लास्टी (स्टेंट) से फिर ब्लॉकेज हो जाते हैं। शरीर और पैसा दोनों बर्बाद होता है।
मुझे आयुष ग्राम पत्रिका के माध्यम से आयुष ग्राम ट्रस्ट चित्रकूट के आयुष ग्राम चिकित्सालयम् चित्रकूट के बारे में पता चला, मैं दूसरे दिन ही चित्रकूट पहुँचा। ओपीडी चल रही थी, बहुत भीड़ थी, मेरा नम्बर शाम ४ बजे आया। मुझे ओ.पी.डी. में बुलाया गया, सर ने देखा और सब कुछ पूछा, रिपोर्ट देखी नाड़ी और जीभ परीक्षण करने के बाद मुझसे कहा कि आप बिल्कुल चिंता न करें न आपको ऑपरेशन कराना पड़ेगा न ही स्टेंट और आप बिल्कुल स्वस्थ हो जायेंगे और एलोपैथ की जो दवायें खा रहे हैं वह भी सभी बन्द करवा दूँगा। 
यह सब सुनकर ही मुझे आश्चर्य लगा उन्होंने कहा कि यहाँ ऐसी ही दवाओं का आविष्कार किया गया है आप चिंता न करें। मुझे जैसा कहा गया वैसा किया। मुझे पहले माह से ही आराम महसूस होने लगा, मेरे सीने का दर्द कम हो गया और श्वास फूलना बन्द हो गयी और पहले माह ही मेरी एलोपैथ की बहुत सी दवायें बन्द हो गयीं। 
मैं और मेरा परिवार बहुत खुश हो गया कि स्टेंट और ऑपरेशन से बच गया। इस समय मुझे यहाँ का इलाज करवाते ११ माह हो गये हैं और मैं अब अपने आपको पूरी तरह से स्वस्थ महसूस करता हूँ, मैं अपने सारे नित्यकर्म आसानी से करता हूँ। 
एक सच और लिखना चाहता हूँ कि मैं अंग्रेजी दवा, इकोस्प्रिन और न जाने क्या क्या खाते खाते बहुत कमजोर हो गया था। मेरी अच्छी लम्बाई थी पर धीरे धीरे इतना दुबला हो गया कि बहुत बूढ़ा लग रहा था। पर जबसे अंग्रेजी दवायें बन्द हुयीं और आयुष ग्राम चित्रकूट में ट्रीटमेन्ट होने लगा तो मेरा शरीर सम्भलने लगा। कमजोरी दूर हुयी और शरीर पुष्ट हो गया।
इस संस्थान में अच्छे क्वालीफाईड डॉक्टर, नर्सेज, फार्मासिस्ट हैं, जो बहुत अच्छे से मार्गदर्शन करते हैं। बीमारी के बारे में सम्पूर्ण जानकारी देते हैं और उसके विषय में गहन चर्चा करके सभी मरीजों को बताते व समझाते हैं। 
मुझे यहाँ के जैसा स्टॉफ एलोपैथ में अभी तक कभी देखने को नहीं मिला। 
अन्त में मैं सब से यही कहता हूँ कि यदि अंग्रेजी डॉक्टर हार्ट के ऑपरेशन या स्टेट की बात करें तो आप आयुष ग्राम ट्रस्ट चित्रकूट की आयुष कार्डियोलॉजी में पहुँचे। आप भी मेरी तरह ऑपरेशन/स्टेंट से बचेंगे।


रमेश प्रताप सिंह, सेवा निवृत्त फॉरेस्ट विभाग
 लगरगँवा, जिला- सतना (म.प्र.)
मोबा.नं.- ९६८५४४७५८८


 आयुष ग्राम ट्रस्ट चित्रकूट द्वारा संचालित
           आयुष ग्राम चिकित्सालयम, चित्रकूट 
            मोब.न. 9919527646, 8601209999
             website: www.ayushgram.org
  डॉ मदन गोपाल वाजपेयी                                          आयुर्वेदाचार्य, पी.जी. इन पंचकर्मा (V.M.U.)       एन.डी.,साहित्यायुर्वेदरत्न,विद्यावारिधि, एम.ए.(दर्शन),एम.ए.(संस्कृत )       
          ‌‌‍‌‍'प्रधान सम्पादक चिकित्सा पल्लव'                              
डॉ परमानन्द वाजपेयी 
                         बी.ए.एम.एस., एम.डी.(अ.)

डॉ अर्चना वाजपेयी                                                                    एम.डी.(कायचिकित्सा) आयुर्वेद 



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