५ मई २०१९ को जयसिंहपुर जिला- सुल्तानपुर (उ.प्र.) से श्री भोलानाथ सिंह उम्र ४० को लेकर उनके बेटे आयुष ग्राम (ट्रस्ट), चित्रकूट के आयुष ग्राम चिकित्सालयम् में पहुँचे। रोगी का ओपीडी क्रमांक ४/३८६४ पर रजिस्ट्रेशन हुआ।
केसहिस्ट्री के क्रम में उन्होंने बताया कि कुछ सालों पहले ब्लडशुगर हुआ, शुगर की गोलियाँ खाते रहे १ माह पहले शरीर में सूजन आने लगी और श्वास फूलने लगी, कमजोरी, कभी पतले दस्त तो कभी कोष्ठबद्धता, मूत्रदाह के लक्षण आ गये। लखनऊ के चन्दन हास्पिटल ले गये, वहाँ जाँच हुयी तो बताया कि किडनी फेल्योर हो गया, फिर ३ डायलेसिस कर दी। घर आ गये तो फिर दिक्कत होने लगी तो राममनोहर लोहिया इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल सांइसेज ले गये वहाँ भी डायलेसिस की गयी।
इस प्रकार ६ डायलेसिस हो गयीं। रोगी के पैरों में सूजन बहुत थी, अरुचि थी, चलने में साँस फूल रही थी, भूख नहीं लग रही थी, गले में डायलेसिस की नेकलाइन पड़ी थी। बहुत ही आत्यायिक अवस्था थी, लग रहा था था कि मरीज किसी भी समय... ... ...।
भोला नाथ सिंह को आयुष ग्राम में रखा गया। आयुष ग्राम के डॉक्टरों ने रोग की जड़ और रोग की सम्प्राप्ति तक पहुँचने का अध्ययन शुरू किया। तो पाया कि भोलानाथ सिंह में बहुत पहले से स्थौल्य (मोटापा) था। मोटापा में मेद (Fat) धातु बढ़ती ही है इस समस्या के कारण शरीर के स्रोतों (चैनल्स) में रुकावट हो जाती है जिससे वायु अपनी प्रवृत्ति कोष्ठ में बनाये रहती है। वायु की इस प्रवृत्ति के कारण पेट की अग्नि भी विकृत हो जाती है।
यही विकृत अग्नि (metabolic Fire) और वायु (Gases) दोनों मिलकर मेदस्वी (मोटापा ग्रस्त) व्यक्ति में इस प्रकार अनेक प्रकार मारक रोग पैदा करने लगते हैं जैसे जंगल की आग जंगल को जला डालती है।
शरीर के अनुपात से अधिक बढ़ी हुयी मेद (Fat) के कारण कई बार शरीर के वायु (Gases), पित्त आदि दोष विकृत होकर ऐसे-ऐसे मारक रोगों को पैदा कर देते हैं जिसकी कल्पना भी नहीं कोई कर सकता।
इस विज्ञान को चरकाचार्य जी इस प्रकार बताते हैं-
‘मेदसाऽऽवृतमार्गत्वाद्वायु: कोष्ठे विशेषत:।
चरन् सन्धुक्षयत्यग्निमाहारं शोषयत्यपि।।
एतावुपद्रवकरौ विशेषादग्नि मारुतौ।
एतौ हि दहत: स्थूलं वनदावो वनं यथा।।
मेदस्यतीव संवृद्धे सहसैवानिलादय:।
विकारान् दारुणान् कृत्वा नाशयन्त्याशुजीवितम्।।
च.सू. २१/५-७-८।।
श्री भोलानाथ के इस भयंकर रोग होने की जड़ और सम्प्राप्ति के अध्ययन के क्रम में यह पता चला कि रोगी में स्थूलता (मोटापा), मूल कारण है, इससे स्रोतोरोध → वात प्रकोप → धातु परिपोषण क्रम की अव्यवस्था → आम विष (यूरिया, क्रिटनीन) की निर्मिति → कफ/जल धातु की वृद्धि → वैगुण्य → प्रमेह/मधुमेह → ओजक्षय → मृदूकता → वृक्कसन्यास।
मोटापा से ग्रस्त लोगों में किडनी की बीमारी होने का खतरा हमेशा मड़राता रहता है, यह बात अमेरीका के वैज्ञानिकों ने भी अपनी रिसर्च में पाया है। भारत के महान् चिकित्सा वैज्ञानिक भगवान् पुनर्वसु आत्रेय ने भी स्पष्ट लिखा है कि-
संतर्पित लोगों में-
प्रमेह पिडका कोठकण्डूपाण्ड्वाममज्वरा:।
कुष्ठान्यामप्रदोषाश्च मूत्रकृच्छ्रमरोचक:।
... ... ... शोफाश्चैवं विधाश्चान्ये शीघ्रमप्रतिकुर्वत:।।
च.सू. २३/७।।
प्रमेह (मधुमेह), चर्मरोग, रक्त की कमी, आम विष, मूत्रवहस्रोतस्/तंत्र के रोग और शोथ (Anasarca) आदि होने की सम्भावना रहती है।
रोगी की चूँकि डायलेसिस हो रही थी, बहुत ही उपद्रव थे, भूखमिट चुकी थी, रोगी जीवन की आशा त्याग चुका था और इधर इंसुलिन लगा रहा था। कभी दस्त तो कभी शौच न आने की समस्या थी।
श्रीमती डॉ. अर्चना वाजपेयी एम.डी. (आयु.), रोगी को अपनी चिकित्सा में लिए थी।
रोगी के आने के दिन ५ मई २०१९ को आयुष ग्राम (ट्रस्ट) चित्रकूट में जब खून की जाँच हुयी तो रिपोर्ट इस प्रकार आयी-
राहुल सिंह पुत्र श्री भोलानाथ सिंह
केसहिस्ट्री के क्रम में उन्होंने बताया कि कुछ सालों पहले ब्लडशुगर हुआ, शुगर की गोलियाँ खाते रहे १ माह पहले शरीर में सूजन आने लगी और श्वास फूलने लगी, कमजोरी, कभी पतले दस्त तो कभी कोष्ठबद्धता, मूत्रदाह के लक्षण आ गये। लखनऊ के चन्दन हास्पिटल ले गये, वहाँ जाँच हुयी तो बताया कि किडनी फेल्योर हो गया, फिर ३ डायलेसिस कर दी। घर आ गये तो फिर दिक्कत होने लगी तो राममनोहर लोहिया इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल सांइसेज ले गये वहाँ भी डायलेसिस की गयी।
इस प्रकार ६ डायलेसिस हो गयीं। रोगी के पैरों में सूजन बहुत थी, अरुचि थी, चलने में साँस फूल रही थी, भूख नहीं लग रही थी, गले में डायलेसिस की नेकलाइन पड़ी थी। बहुत ही आत्यायिक अवस्था थी, लग रहा था था कि मरीज किसी भी समय... ... ...।
भोला नाथ सिंह को आयुष ग्राम में रखा गया। आयुष ग्राम के डॉक्टरों ने रोग की जड़ और रोग की सम्प्राप्ति तक पहुँचने का अध्ययन शुरू किया। तो पाया कि भोलानाथ सिंह में बहुत पहले से स्थौल्य (मोटापा) था। मोटापा में मेद (Fat) धातु बढ़ती ही है इस समस्या के कारण शरीर के स्रोतों (चैनल्स) में रुकावट हो जाती है जिससे वायु अपनी प्रवृत्ति कोष्ठ में बनाये रहती है। वायु की इस प्रवृत्ति के कारण पेट की अग्नि भी विकृत हो जाती है।
यही विकृत अग्नि (metabolic Fire) और वायु (Gases) दोनों मिलकर मेदस्वी (मोटापा ग्रस्त) व्यक्ति में इस प्रकार अनेक प्रकार मारक रोग पैदा करने लगते हैं जैसे जंगल की आग जंगल को जला डालती है।
शरीर के अनुपात से अधिक बढ़ी हुयी मेद (Fat) के कारण कई बार शरीर के वायु (Gases), पित्त आदि दोष विकृत होकर ऐसे-ऐसे मारक रोगों को पैदा कर देते हैं जिसकी कल्पना भी नहीं कोई कर सकता।
इस विज्ञान को चरकाचार्य जी इस प्रकार बताते हैं-
‘मेदसाऽऽवृतमार्गत्वाद्वायु: कोष्ठे विशेषत:।
चरन् सन्धुक्षयत्यग्निमाहारं शोषयत्यपि।।
एतावुपद्रवकरौ विशेषादग्नि मारुतौ।
एतौ हि दहत: स्थूलं वनदावो वनं यथा।।
मेदस्यतीव संवृद्धे सहसैवानिलादय:।
विकारान् दारुणान् कृत्वा नाशयन्त्याशुजीवितम्।।
च.सू. २१/५-७-८।।
श्री भोलानाथ के इस भयंकर रोग होने की जड़ और सम्प्राप्ति के अध्ययन के क्रम में यह पता चला कि रोगी में स्थूलता (मोटापा), मूल कारण है, इससे स्रोतोरोध → वात प्रकोप → धातु परिपोषण क्रम की अव्यवस्था → आम विष (यूरिया, क्रिटनीन) की निर्मिति → कफ/जल धातु की वृद्धि → वैगुण्य → प्रमेह/मधुमेह → ओजक्षय → मृदूकता → वृक्कसन्यास।
मोटापा से ग्रस्त लोगों में किडनी की बीमारी होने का खतरा हमेशा मड़राता रहता है, यह बात अमेरीका के वैज्ञानिकों ने भी अपनी रिसर्च में पाया है। भारत के महान् चिकित्सा वैज्ञानिक भगवान् पुनर्वसु आत्रेय ने भी स्पष्ट लिखा है कि-
संतर्पित लोगों में-
प्रमेह पिडका कोठकण्डूपाण्ड्वाममज्वरा:।
कुष्ठान्यामप्रदोषाश्च मूत्रकृच्छ्रमरोचक:।
... ... ... शोफाश्चैवं विधाश्चान्ये शीघ्रमप्रतिकुर्वत:।।
च.सू. २३/७।।
प्रमेह (मधुमेह), चर्मरोग, रक्त की कमी, आम विष, मूत्रवहस्रोतस्/तंत्र के रोग और शोथ (Anasarca) आदि होने की सम्भावना रहती है।
रोगी की चूँकि डायलेसिस हो रही थी, बहुत ही उपद्रव थे, भूखमिट चुकी थी, रोगी जीवन की आशा त्याग चुका था और इधर इंसुलिन लगा रहा था। कभी दस्त तो कभी शौच न आने की समस्या थी।
श्रीमती डॉ. अर्चना वाजपेयी एम.डी. (आयु.), रोगी को अपनी चिकित्सा में लिए थी।
रोगी के आने के दिन ५ मई २०१९ को आयुष ग्राम (ट्रस्ट) चित्रकूट में जब खून की जाँच हुयी तो रिपोर्ट इस प्रकार आयी-
औषधि व्यवस्था पत्र-
१. अर्धबिल्व कषाय (सहस्रयोगम्) से निरूह वस्ति प्रतिदिन दी जान लगी।
२. इन्दुकान्त घृतम् ५ ग्राम नित्य प्रात: ६ बजे नर्स द्वारा सेवन।
३. काकमाची, शरपुंखा और भूम्यामलकी घनसत्व का मिश्रण १ ग्राम, महेश्वर वटी २५० मि.ग्रा., मुक्तापंचामृत २ गोली घोंटकर १ मात्रा। १²३ अर्धविल्व कषाय २० मि.ली. और दशमूल पंचकोल कषाय १० मि.ली. को १ कप गोदुग्ध में पकाकर छानकर।
४. रात में दशमूल हरीतकी १० ग्राम।
रिपोर्ट बढ़कर आयी- डायलेसिस बन्द कराने पर ८ मई २०१९ को रिपोर्ट बढ़कर इस प्रकार आयी-
- ब्लड शुगर १७२.०, ब्लड यूरिया १८१.५, नाइट्रोजन ८४.९, क्रिटनीन १३.०।
श्री भोलानाथ के बेटे घबराने लगे, डॉ. अर्चना वाजपेयी और स्नेहा, शालिनी, शालू सचान, दीप्ति नर्सों ने उन्हें समझाया कि डायलेसिस बन्द होने पर यूरिया, क्रिटनीन आदि बढ़ते हैं, क्योंकि डायलेसिस की बराबरी दवायें नहीं कर पातीं। पर डायलेसिस से कभी यूरिया, क्रिटनीन सामान्य भी नहीं आते।
रोगी में साँस फूलना आदि उपद्रव कुछ बढ़े तो उनका शमन किया गया।
चिकित्सा व्यवस्था पूर्ववत् ही चलती रही।
रोगी में शोथ था ही अत: अब भगवान् पुनर्वसु द्वारा निर्देशित आहार व्यवस्था का आधार लिया गया-
मासं पय: पिबेद् भोजनवारिवर्जी।
गव्यं समूत्रं महिषीपयो व क्षीराशनो मूत्रमथो गवां वा।।
च.चि. १२/२६
यानी शोथ रोगी १ मास तक अन्न और जल का त्याग कर केवल गोदुग्ध का सेवन करें। तदनुसार भोलानाथ सिंह को केवल दुग्धाहार पर रख दिया गया। उनके बेटे श्री राहुल सिंह बहुत ही सकारात्मक भाव रखने लगे। आयुष ग्राम ट्रस्ट चित्रकूट में बीच-बीच में अपान वायु के साथ कभी पतला, कभी विबन्ध युक्त शौच होने लगा, ऐसी अवस्था में- ‘गुडाभयां वा गुडनागरं वा सदोषभिन्नामविबद्धवर्चा:।।’ चि.चि. १२/२७
सूत्र के अनुसार पुराना गुड़ १२ ग्राम, हर्र चूर्ण ५ ग्राम सुबह तथा शाम को गुड़ और सोंठ चूर्ण सेवन कराने के लिए नर्स को निर्देश दिया गया।
इन सबसे बहुत सुधार हुआ। रोगी कमजोरी की शिकायत करता रहता।
इन सबसे बहुत सुधार हुआ। रोगी कमजोरी की शिकायत करता रहता।
- १७ मई २०१९ को जाँच करया तो हेमोग्लोबिन ८.०, यूरिया १७२.३, क्रिटनीन १२.५ पर पोटोशियम थोड़ा बढ़कर ५.७ हो गया। यूरिन में एल्ब्युमिन +++ से घटकर ++ हो गया।
- २४ मई२०१९ को जब रिपोर्ट करायी तो यूरिया १६०.३ एमजी/डीएल और क्रिटनीन ९.८ एमजी/डीएल आ गया तथा यूरिन में एल्ब्युमिन २+ से घटकर 'Traces' में आ गया।
आयुष ग्राम (ट्रस्ट), चित्रकूट में लगभग १०० देशी गौवंश हैं, जिनमें से १० गउयें गीरवंश की हैं। गीर वंश का दुग्ध वैज्ञानिक शोधों में भी विशेष रोगहर, पोषक, बल्य और ओजवर्धक माना गया है।
- गीरवंश के दुग्धाहार, पंचकर्म और औषधियों से रोगी के शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ने लगी। अत: स्वास्थ्य के लक्षण स्पष्ट दिखने लगे।
- २९ मई २०१९ को जब पुन: रक्तपरीक्षण कराया गया तो इन चार दिनों में यूरिया १७२.३ से घटकर १४८.३, क्रिटनीन १२.५ से घटकर ७.३ एमजी/डीएल हो गया। यह देखकर सभी की खुशी का ठिकाना नहीं रहा।
इस प्रकार २४ दिन के बाद ही भोलानाथ सिंह को एक माह की दवा देकर डिस्चार्ज कर दिया गया।
श्री भोलानाथ सिंह के दूसरे चरण के पंचकर्म हेतु उनके बेटे लेकर ३० जून २०१९ को आये। रक्त परीक्षण हुआ तो हीमोग्लोबिन ८.४, यूरिया ६२.१, क्रिटनीन ३.०, कैल्शियम ३.० आदि पाया गया। इतना सुन्दर परिणाम देखकर आयुष ग्राम चिकित्सालयम् के पूरे चिकित्सा स्टॉफ में प्रसन्नता थी।
रोगी का पुन: पंचकर्म किया गया और ७ जुलाई २०१९ को डिस्चार्ज कर दिया गया। श्री भोलानाथ जी की डायलेसिस छूट चुकी थी और सभी प्रसन्न थे।
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मरीजों को देखती डॉ. अर्चना वाजपेयी, एम.डी.(काय चिकित्सा) आयुर्वेद |
इस प्रकार श्री भोलानाथ सिंह में आशातीत लाभ हुआ, डायलेसिस छूटी ‘किडनी फंक्शन’ ठीक हुये। यद्यपि श्री भोलानाथ सिंह जी की उम्र मात्र ५५ ही आयु है। पर लम्बे समय से शुगर आदि की अंग्रेजी दवा खाते-खाते शरीर गल गया था। आज आवश्यकता है कि जन-जन को जागरूक करें सभी को आयुष चिकित्सा के प्रभाव के बारे में बतायें। हम आपसे निवेदन करते हैं कि यह लेख आपको पसन्द आये तो दूसरों को भी भेजने का कष्ट करें ताकि मानवता का हित हो सके और आयुष का प्रकाश सर्वत्र हो सके।
जाते-जाते श्री भोलानाथ के बेटे राहुल सिंह ने अपने विचार इस प्रकार व्यक्त किये-
पिता जी को २१ दिन में ही डायलेसिस और इंसुलिन से छुटकारा मिला!!
मेरे पिता श्री भोलानाथ सिंह उम्र ५५ को १८ अप्रैल २०१९ को अचानक ज्वर आ गया, पास के ही एक दुकान से कुछ एण्टीबायोटिक और पेन किलर लेकर खा लिया, बुखार में कुछ आराम तो मिला, लेकिन दूसरे दिन बहुत तेज अचानक श्वास फूलने लगी, शरीर में सूजन आ गयी हम घबराकर लखनऊ के मेडिकल कॉलेज में ले गये, वहाँ डॉक्टर ने देखा सारी जाँचें करवायी बताया कि किडनी फेल हो गयी है। ६ दिन में ४ डायलेसिस कर दी गयीं और बोला गया कि १ हफ्ते में २ डायलेसिस करवानी पड़ेगी।
जाते-जाते श्री भोलानाथ के बेटे राहुल सिंह ने अपने विचार इस प्रकार व्यक्त किये-
पिता जी को २१ दिन में ही डायलेसिस और इंसुलिन से छुटकारा मिला!!
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भोलानाथ जी और उनके पुत्र राहुल सिंह जी |
तभी मुझे आयुष ग्राम ट्रस्ट चिकित्सालयम , चित्रकूट के बारे में पता चला। मैं पिता जी को तुरन्त लखनऊ के हास्पिटल से निकाल लाया और लेकर आयुष ग्राम चिकित्सालयम, चित्रकूट पहुँचा, वहाँ पर ओपीडी चल रही थी मेरा नम्बर आने पर मुझे डॉक्टर साहब ने देखा और कहा कि यदि १-२ हफ्ते में परिणाम सही आया तो ४ हफ्ते तक रखेंगे और आशा करें कि ये ठीक हो जायेंगे। जाँचें भी करवायीं तो मेरे पिता जी का क्रिटनीन १०.२ एमजी/डीएल, ब्लड यूरिया १३२.५ एमजी/डीएल था।
इलाज शुरू हो गया, पहले हफ्ते में मेरी इंसुलिन छूट गयी और मधुमेह की एलोपैथ की दवा भी छूट गयी पर जब खून की जाँच करवायी गयी तो क्रिटनीन १३.० एमजी/डीएल, ब्लड यूरिया १८१ एमजी/डीएल आया। मैं फिर से घबरा गया लेकिन मुझे डॉक्टर साहब ने समझाया कि डायलेसिस छूटने पर यूरिया, क्रिटनीन पहले बढ़ता है, फिर घटता है और बिल्कुल ऐसा ही हुआ।
मैं पिता जी को यहाँ २४ दिन लेकर रहा, आज जब पिता जी को डिस्चार्ज किया गया तो क्रिटनीन ७.८ एमजी/डीएल आया है और पिता जी को बहुत आराम है। इस बात का खूब प्रचार होना चाहिये तभी किडनी रोगियों का जीवन बच सकता है।
राहुल सिंह पुत्र श्री भोलानाथ सिंह
जयसिंहपुर, सुल्तानपुर (उ.प्र.)
डॉ अर्चना वाजपेयी एम.डी.(कायचिकित्सा) आयुर्वेद
मोब.न. 9919527646, 8601209999
website: www.ayushgram.org
डॉ मदन गोपाल वाजपेयी आयुर्वेदाचार्य, पी.जी. इन पंचकर्मा (V.M.U.) एन.डी.,साहित्यायुर्वेदरत्न,विद्यावारिधि, एम.ए.(दर्शन),एम.ए.(संस्कृत )
'प्रधान सम्पादक चिकित्सा पल्लव'
डॉ परमानन्द वाजपेयी
बी.ए.एम.एस., एम.डी.(अ.)
डॉ अर्चना वाजपेयी एम.डी.(कायचिकित्सा) आयुर्वेद
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