डायलेसिस से ऐसे बचे हैं हरिओम अग्रवाल जी!!




स्वस्थ होने के लिए अच्छे डॉक्टर के साथ यह भी चाहिए कि रोगी भी ऐसे आचरण का हो जो स्वास्थ्य, बीमारी तथा डॉक्टर की सलाह के प्रति गंभीर हो। इसीलिए चिकित्सा के चतुष्पादों में १ महत्वपूर्ण पाद रोगी होता है। इसका जीते जागते प्रमाण हैं काशीपुर (उत्तराखण्ड) के बहुत बड़े औषधि व्यवसायी श्री हरिओम अग्रवाल। इन्हें काशीपुर (उत्तराखण्ड) में सभी जानते हैं। 
२ साल पहले आयुष ग्राम (ट्रस्ट) चिकित्सालयम्, चित्रकूट में काशीपुर (उत्तराखण्ड) से ६३ वर्षीय हरिओम अग्रवाल जी आये। रजिस्टे्रशन हुआ, जब यहाँ के डॉक्टरों ने केसहिस्ट्री लेना शुरू किया तो बताया कि आज के ३० साल पहले हाई ब्लडप्रेशर और मधुमेह हुआ। 

  •  अंग्रेजी दवा करते रहे, डॉक्टर केवल दवा की डोज बढ़ाते गये।
  •  कुछ दिन बाद इंसुलिन लगने लगा, तब भी शुगर कण्ट्रोल नहीं हुयी। अब डॉक्टरों ने इंसुलिन की मात्रा बढ़ा दी। दिल्ली के अपोलो, फोर्टीस अस्पतालों तक गया, लेकिन पता चला कि अंग्रेजी चिकित्सा में डायलेसिस के अलावा कोई उपाय नहीं है। जिस समय हरिओम अग्रवाल जी आयुष ग्राम चित्रकूट में आये उस समय-
  • २०-२० यूनिट इंसुलिन ४ बार लगती थी। 
  • पूरे शरीर में भयंकर शोथ था। 
  • चलने में साँस फूलती थी। 
  • भूख समाप्त थी। 
  • पेशाब की मात्रा कम थी। 
  • शरीर में सूजन रात्रि में बढ़ जाती थी। 
  • मुँह में लार गिरती थी। 
  • अरोचकता थी। 
  • नींद की अधिकता थी। 

रक्त परीक्षण कराया तो यूरिया २०० एमजी/डीएल, क्रिटनीन ६.३८ एमजी/डीएल, हेमोग्लोबिन १०.२, मूत्र में एल्ब्यूमिन ४± में था। 
रोगी तो गम्भीर था पर उसमें जीवन की इच्छा थी, आत्मबल था, रोग प्रतिरोधक क्षमता ठीक थी, रोगी में दीर्घायु लक्षण थे, पित्त प्रकृति थी, रोगी कटु आहार का भी पूर्व में पर्याप्त सेवन करता था, अत: उसे कटु सात्म्य था, मानसिक और शारीरिक बल सम्पन्न था। इस आधार पर यह अनुमान हो गया कि वह ठीक तो हो जायेगा पर कठिनाई होगी। इसी अनुमान और आशा से उसे अन्तरंग विभाग में रख लिया गया। भगवान् धन्वन्तरि का उपदेश है कि ऐसा रोगी कृच्छ्रसाध्य (Curable with difficulty) होता है- 
देशप्रकृतिसात्म्यर्तुविपरीतोऽचिरोत्थित:।
सम्पत्तौ भिषगादीनां बलासत्त्वायुषां तथा।।
केवल समदेहाग्ने: सुखसाध्यतमो गद:।
अतोऽन्यथा त्वसाध्य: स्यात् कृच्छ्रो व्यामिश्र लक्षण:।।
सु.सू. ३५/४६-४७
अर्थात् देश विपरीत रोग, प्रकृति विपरीत रोग, सात्म्य विपरीत रोग, ऋतु विपरीत रोग, अचिरोत्थ, चिकित्सक सम्पत्,मानसिक और शारीरिक बल सम्पन्न, आयुष्मान्, साथ में कोई अन्य उपद्रव न हो तथा समदेह और समाग्नि से युक्त लक्षणों वाला रोगी सुखसाध्य (Easily curable) होता है तथा मिले जुले लक्षणों वाला रोगी कृच्छ्रसाध्य (Curable with difficulty) होता है। 
चूँकि श्री हरिओम अग्रवाल में सुखसाध्यता के उपर्युक्त लक्षणों में से ६० प्रतिशत ही पाये जा रहे थे अत: यह स्पष्ट था कि यह रोगी ठीक तो हो जायेगा पर चिकित्सक को श्रम खूब करना पड़ेगा और रोगी के सहयोग की पर्याप्त वाञ्छा रहेगी।
रोगी के रोग की सम्प्राप्ति का अध्ययन शुरू किया गया तो स्पष्ट हुआ कि श्री हरिओम अग्रवाल जी की व्याधि का मूल कारण मधुमेह नहीं था, इन्हें तो अंग्रेजी दवाओं ने मधुमेह और इन्सुलिन आधारित बना दिया था। 
निदान सेवन वात प्रधान त्रिदोष  अग्निमांद्य  → आम निर्माण  → स्रोतोरोध (रसवह)  → ओजक्षय   मधुमेह। 
रसवहस्रोतस् में संग प्रकार की दुष्टि हो ही गयी थी और अग्निमांद्य होकर मधुमेह हो गया था और ओज व्यापत् भी अत: आगे वृक्कसन्यास (सीआरएफ) की अवस्था इस प्रकार बन गयी थी- 
मधुमेह  कफ रक्त और पित्त विकृति  → रक्तवह स्रोतस् में अवरोध  → वायु संचरण में बाधा  → अपान वायु का घोर असंतुलन  → वृक्कसन्यास  → यूरिया क्रिटनीन का निर्गमन न हो पाने के कारण रक्त में इस विष की वृद्धि।  
रोग के सम्प्राप्ति का ज्ञान गहराई से हो जाने पर चिकित्सा करना बहुत ही सुकर और सहज हो गया था। 
चिकित्सा में आमनाशन, स्रोतोशोधन, सह ओजवर्धन, रक्तशुद्धि, वातानुलोमन का कार्य किया जाना था। अत: निम्नांकित चिकित्सा व्यवस्था विहित की गयी-
¬ आमपाचन हेतु दशमूलपंचकोल क्वाथ (सहस्रयोग) २०-२० मि.ली. गरम जल में मिलाकर हर ३ घण्टे में। लगातार ३ दिन तक।
¬ माहेश्वर वटी २५०-२५० मि.ग्रा. दिन में २ बार गोदुग्ध से।
¬ रात में सोते समय- फलत्रिकादि क्वाथ ३० मि.ली., मुक्ता पंचामृत २ गोली के साथ।
भगवान् पुनर्वसु आत्रेय सीधे निर्देश देते हैं कि-
विमुक्तामप्रदोषस्य पुन: परिपक्वदोषस्य दीप्ते चाग्नावभ्यङ्गस्थापनानुवासनं विधिवत् स्नेहपानं च युक्त्या प्रयोज्यंप्रसमीक्ष्य दोषभेषजदेशकालबलशरीरान हारसात्म्यसत्त्वप्रकृतिवयसामवस्थान्तराणि विकारांश्च सम्यगिति।। 
च.वि. २/१३।। 
आमदोष के दूर हो जाने पर, दोषों का पाचन हो जाने पर और अग्नि के प्रदीप्त हो जाने पर दोष, औषध, देश, काल, बल, शरीर, आहार, सात्म्य, सत्व, प्रकृति और आयु इन सबके अवस्था भेदों को तथा रोगों को अच्छी तरह से जान-समझकर तब अभ्यंग, निरूह, अनुवासन और स्नेहपान का विधिवत् प्रयोग करना चाहिए। 
उपर्युक्त चिकित्सा से ५ दिन में ‘निराम’ लक्षण प्राप्त हो गये। शरीर में लघुता आ गयी। हमने अधिकांश केसों में देखा है कि सर्वांगशोथ अवस्था में जैसे शरीर में निराम अवस्था आती है तो रक्त परीक्षण में यूरिया, क्रिटनीन बढ़ा पाया जाता है। श्री हरिओम अग्रवाल में भी यही हुआ। रोगी और उसके परिजन थोड़ा विचलित होने लगे। डॉक्टरों ने उन्हें समझाया। 
अब निम्नांकित चिकित्सा व्यवस्था विहित की गयी-
भगवान् पुनर्वसु आत्रेय चिकित्सा सूत्र देते हैं-
विबद्धविट्केऽनिजले निरूहणम्।
च.चि. १२/१७
कि यदि शोथ वात की प्रधानता से हो साथ ही मल का विबन्ध हो तो निरूह बस्ति का प्रयोग करना चाहिए। तदनुसार ‘कंसहरीतकी’ १५० ग्राम का क्वाथ तैयार कर निरूह बस्ति दी गयी। 
औषधि में- 
¬ काकमाची, शरपुंखा मूल और भूम्यामलकी का घनसत्व २५०-२५० मि.ग्रा., त्रिनेत्र रस २५० मि.ग्रा., स्वर्ण भस्म २० मि.ग्रा., प्रवाल पंचामृत मु.यु. २५० मि.ग्रा. सभी घोंटकर १ मात्रा। ऐसी १-१ मात्रा दिन में २ बार। 
¬ शोथारि मण्डूर १-१ ग्राम दोपहर व रात में मकोय अर्क २०-२० मि.ली. से। 
¬ चिरबिल्वादि कषाय १५ मि.ली., अर्ध बिल्वादि कषाय १५ मि.ली. गरम पानी समभाग मिलाकर दिन में ३ बार। 
¬ आहार में गोदुग्ध सुबह-शाम शुण्ठी चूर्ण साधित और मूँग की पतली दाल, जौ चना की रोटी अजवायन मिलाकर। 
इन्सुलिन की जरूरत कम हुयी- उपर्युक्त चिकित्सा से एक सप्ताह में शोथ तो ७५ प्रतिशत कम हो गया, इंसुलिन की आवश्यकता लगभग खत्म हो गयी, रक्त शर्करा (बी.एस.) का स्तर काफी ठीक हो गया, अत: इंसुलिन कम कर दी गयी। रक्त परीक्षण में ब्लड यूरिया २०० से भी अधिक और क्रिटनीन ६.३८ एमजी/डीएल से थोड़ा बढ़ गया।
वजन घटा- श्री हरिओम अग्रवाल जी की १० दिन में सूजन काफी घट गयी जिससे वजन घटकर ८५ किलो ग्राम हो गया। 
यूरिया क्रिटनीन घटने लगा- १०वें दिन रक्त परीक्षण कराया तो ब्लड यूरिया २१० से घटकर १८७.८ हो गया और क्रिटनीन ६.३८ एमजी/डीएल से घटकर ५.५ एमजी/डीएल हो गया। पंचकर्म, उचित खान-पान और औषधियाँ जारी रहीं। तीसरे सप्ताह जब रक्त परीक्षण कराया तो यूरिया १३०.७ एमजी/डीएल, क्रिटनीन ४.५ एमजी/डीएल हो गया। 
तीन सप्ताह की चिकित्सा के बाद अग्रवाल जी को डिस्चार्ज कर दिया और परामर्श दिया गया कि हर २-३ माह में पंचकर्म कराते रहें जिससे रोग प्रतिरोधक क्षमता व्यवस्थित रहे और रोगकाकरक दोषों का निष्कासन होता रहे। 
श्री हरिओम अग्रवाल जी आज भी ऐसा नियम बनाये हुये हैं कि वे स्वत: ही हर २-३ माह में ‘आयुष ग्राम’ चित्रकूट आ जाते हैं और १०-१५ दिन तक पंचकर्म कराकर काशीपुर (उत्तराखण्ड) चले जाते हैं। 
अभी जुलाई २०१९ को चौथी बार आयुष ग्राम, चित्रकूट में रहकर और पंचकर्म कराकर २२ जुलाई २०१९ को डिस्चार्ज हुये। उस दिन उनका यूरिया ९६.७, ब्लड यूरिया नाइट्रोजन ४५.१ एमजी/डीएल, क्रिटनीन ३.६ एमजी/डीएल था। 
श्री हरिओम अग्रवाल जी इस मैथेड से इलाज कराते हुये आज भी डायलेसिस से बचे हुये हैं तथा सुखी जीवन जी रहे हैं। यह है आयुष चिकित्सा की क्षमता और प्रभाव।
इस प्रकार के उदाहरणों, चिकित्साऽनुभवों के आधार पर यह कहा जा सकता है कि यह तो निश्चित है कि ‘किडनी फेल्योर’ जैसी बीमारी बहुत ही घातक और एक मारक स्वरूप में है किन्तु यह भी निश्चित है कि केवल और केवल आयुष चिकित्सा में ही समर्थ है कि ‘किडनी फेल्योर’ मानव का जीवन बढ़ा सकती है और जीवन रक्षा कर सकती है। 
हम सुधी पाठकों/पाठिकाओं को लेख के अंत में पुन: ध्यान दिलाना चाहते हैं कि भगवान् धन्वन्तरि द्वारा निर्दिष्ट सूत्र (सु.सू.४६-४७ जिसका उल्लेख हम इस लेख में स्पष्ट कर चुके हैं।) ने ही चिकित्सा करने का मार्गदर्शन किया था अन्यथा श्री हरिओम अग्रवाल जैसा भयानक उपद्रवों (Complications) वाले केस को ‘आयुष ग्राम’ में लेने का साहस ही न होता और हरिओम अग्रवाल जी डायलेसिस तथा इन्सुलिन में पड़े-पड़े अभी तक निपट गये होते। 
आप सभी से निवेदन है कि यदि आपको लगे कि ऐसे ज्ञान का प्रकाश होना चाहिए, मानवता का कल्याण होना चाहिए तो इनका खूब प्रचार करें, शेयर करें। 
श्री हरिओम अग्रवाल, काशीपुर, (उत्तराखण्ड) दुनिया के नाम अपना सन्देश इस प्रकार दिया-
किडनी काम करने लगी इन्सुलिन छूटी :


हरिओम अग्रवाल 

मैं हरिओम अग्रवाल, लगभग २८-३० वर्ष पूर्व, मुझे हाई ब्लडप्रेशर और डायबिटीज की समस्या हो गयी। बस! यहीं से शुरू हो गया मेरी बर्बादी का खेल जिस दिन मैं काशीपुर में ही एक अंग्रेजी अस्पताल से दवा लेने लगा। परेशानी तो गयी नहीं तो काशीपुर और उधमसिंह नगर के कई अंग्रेजी डॉक्टरों को दिखाया, लेकिन ये डॉक्टर अंग्रेजी दवा की खुराक बढ़ाते गये। डॉक्टर का कहना था कि इसका कोई परमानेण्ट इलाज नहीं है। कुछ साल बाद डॉक्टरों ने इंसुलिन के इंजेक्शन लगाने शुरू कर दिया। समस्या बढ़ने पर दिल्ली के फोर्टिस और अपोलो अस्पतालों में दिखाना आरम्भ कर दिया। 
लेकिन वहाँ भी दवा और इंसुलिन की मात्रा बढ़ती रही। अब किडनी की समस्या पैदा हो गयी। दिसम्बर २०१७ में जाँच कराने पर मेरा ब्लड यूरिया २२० और क्रिटनीन ७ निकला तो अपोलो अस्पताल में डायलेसिस कराने की सलाह दी गयी। लेकिन मुझे मालूम था कि डायलेसिस कोई इलाज तो है नहीं, जीवन भर डायलेसिस पर ही निर्भर रहना पड़ेगा। इसलिए मैं किडनी के किसी अच्छे आयुर्वेद अस्पताल की इण्टरनेट पर खोज करने लगा। इण्टरनेट मुझे आयुष ग्राम (ट्रस्ट) के आयुष ग्राम चिकित्सालयम्, चित्रकूट के बारे में पता चला। 
मैं २२ जनवरी २०१८ को पहली बार, आयुष ग्राम चिकित्सालय, चित्रकूट आया। प्राकृतिक वातावरण में बना हुआ यह विशाल परिसर देखकर मेरा मन प्रसन्नता से भर गया। अपना रजिस्ट्रेशन कराने के बाद जब मेरा नम्बर आया तो यहाँ के डॉक्टर ने नाड़ी देखी, जीभ देखी, पेट टटोला फिर रिपोर्टें देखकर कहा कि आप चिन्ता न करें, आप यहाँ सही समय पर आ गये हैं, आप जल्द ही ठीक हो जायेंगे। फिर मुझे यहाँ पर भर्ती करके पंचकर्म चिकित्सा और दवायें दी गयीं। रोज डॉक्टर मेरे कमरे में आते, उपचार लिखते, उपचारक उपचार देते। एक सप्ताह में ही मेरा इंसुलिन का इंजेक्शन बन्द करा दिया गया, जबकि मुझे ६० यूनिट इन्सुलिन दी जाती थी। दवा चलती रही। २ माह के बाद मैं १५ दिन के लिए फिर पंचकर्म चिकित्सा के लिए आया। उससे मेरे शरीर में काफी सुधार हुआ। इसके बाद २-३ माह के बाद पंचकर्म चिकित्सा और दवाओं के सेवन से मेरा यूरिया २२० से घटकर ९६ तक रहता है तथा क्रिटनीन ३.६ एमजी/डीएल रहता है। मैं अपने आपको बहुत स्वस्थ और प्रसन्न महसूस कर रहा हूँ। इससे अच्छा मेरे लिए और क्या हो सकता है कि मेरा जीवन बच गया।
यह ट्रस्ट का अस्पताल है यहाँ सारा चिकित्सा कार्य सेवाभाव से किया जाता है। सारा स्टाफ मेहनत और सेवाभाव से कार्य कर रहा है। इससे होने वाली सारी आय गौ माता की सेवा और संस्कृति तथा संस्कृत के प्रचार-प्रसार में खर्च की जाती है। मैं सभी लोगों को सुझाव देता हूँ कि अगर अंग्रेजी डॉक्टर डायलेसिस की सलाह दें तो एक बार आयुष ग्राम ट्रस्ट, चित्रकूट में आकर दिखायें। मुझे विश्वास है कि आप भी मेरी तरह जल्द ही स्वस्थ होंगे।



हरिओम अग्रवाल
न्यू काशीपुर ड्रग्स सप्लायर, फिनगैन स्ट्रीट
काशीपुर, उधमसिंह नगर (उत्तराखण्ड)
मोबा.नं.- ७३५१२७११००, ९८९७०१२२८०





 आयुष ग्राम ट्रस्ट चित्रकूट द्वारा संचालित
           आयुष ग्राम चिकित्सालयम, चित्रकूट 
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  डॉ मदन गोपाल वाजपेयी                                          आयुर्वेदाचार्य, पी.जी. इन पंचकर्मा (V.M.U.)       एन.डी.,साहित्यायुर्वेदरत्न,विद्यावारिधि, एम.ए.(दर्शन),एम.ए.(संस्कृत )       
          ‌‌‍‌‍'प्रधान सम्पादक चिकित्सा पल्लव'                              
डॉ परमानन्द वाजपेयी 
                         बी.ए.एम.एस., एम.डी.(अ.)

डॉ अर्चना वाजपेयी                                                                    एम.डी.(कायचिकित्सा) आयुर्वेद 




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