मई २०१९ में चित्रकूटधाम के समीपस्थ जनपद कौशाम्बी से एक ३६ वर्षीय महिला को लेकर उनके पति आयुष ग्राम (ट्रस्ट) चिकित्सालयम् चित्रकूट आये। उनके शरीर में भयंकर दाह, आस्यतिक्तता, दुर्बलता थी। सबसे बड़ी समस्या यह थी कि उन्हें दस्त भी पतले होते थे। महिला को बनारस बीएचयू, पीजीआई लखनऊ तक दिखाया गया। किसी डॉक्टर ने आईबीएस बताया और तो किसी ने डायरिया तो किसी ने आँतों की टी.बी. की बात कह दी। पर उनके पति मेडिकल स्टोर संचालक थे, टी.बी. की दवाओं की घातकता के बारे में कुछ समझते थे तो उन्होंने टी.बी. की दवायें नहीं खिलायीं। आयुर्वेद के डॉक्टरों/वैद्यों ने पंचामृत पर्पटी, कुटज, चित्रकादि वटी, पीयूषवल्ली, नृपतिवल्लभ रस, अग्नितुण्डी वटी आदि सेवन कराया, पर उससे लाभ नहीं मिला। रोगिणी बार-बार यही कहती कि मेरे शरीर की जलन (दाह) ठीक कर दीजिये, बाकी सब ठीक होता रहेगा। अंग्रेजी डॉक्टरों ने उसे एल्प्राजोलम और विटामिन थमा दिये। इससे उसे पूरे दिन सुस्ती रहती और भी कई साइड इफेक्ट होने लगे।
इस अवस्था की रोगिणी की चिकित्सा बहुत ही चुनौतीपूर्ण जैसी थी। रोगिणी को शीघ्र लाभ भी चाहिये। हमने पूछा कि शालिनी (रोगिणी का नाम) तुम कितने दिन में लाभ चाहती हो। उसने कहा 5 दिन में हमने समझाया कि यदि समस्या कोई साधारण होती तो निश्चित् रूप से आप इतने जगहों में से कहीं न कहीं से तो ठीक हो गयी होतीं। इसलिए रोग कठिन है अत: थोड़ा समय चाहिये। शालिनी के पति ने कहा कि सर! समय देंगे।
इस केस में हमने ‘दोष प्रत्यानीक’ चिकित्सा का आश्रय न लेकर केवल व्याधि प्रत्यानीक चिकित्सा का आधार लिया। व्याधि प्रत्यानीक चिकित्सा का आधार रोग के लक्षण तद्नुसार चिकित्सा का चुनाव होता है।
अत: हमने ‘मखान्न’ का औषधि रूप में ग्रहण किया। क्योंकि भाव प्रकाशकार मखान्न (मखाना) और कमलगट्टा के गुणों की साम्यता बताते हुये लिखते हैं-
मखान्नं पद्मबीजस्यगुणैस्तुल्यं विनिर्दिशेत्।
पद्मबीजं हिमं स्वादु कषायं तिक्तवकं गुरु।।
विष्टम्भिवृष्यं रूक्ष्यञ्चगर्भस्यस्थापकं परम्।
कफ वातहरं बल्यं ग्रहिपित्तास्रदाहनुत्।।
इस प्रकार मखान्न में बलवर्धन, ग्राही, रक्तपित्त और दाहनाशक का अद्भुत गुण है। पाठकगण एक सन्देह कर सकते हैं कि हमने मल को बाँधने वाले किसी द्रव्य का चुनाव क्यों नहीं किया, तो स्पष्ट कर दें कि आयुर्वेद चिकित्सकों द्वारा प्राय: कुटज, अरलु, सर्जरस आदि जितने भी उपशोषण द्रव्य या बिल्व जातीफल आदि जितने भी ग्राही द्रव्य प्रयोग किये जाते हैं उनमें से कोई भी दाहहर और बलवर्धक नहीं है। यदि आयुष ग्राम चित्रकूट में भी वही रटी-रटायी और प्रचलित थैरापी अपनायी जाती तो सफलता मिलने की संभावना कम ही थी।
जैसा कि आपने ऊपर पढ़ा कि मखान्न में बलवर्धन के साथ-साथ ग्राही और दाहनाशक गुण भी है। ध्यान रखना चाहिए कि-
दीपनं पाचनं यत् स्यादुष्णत्वाद् द्रवशोषकम्।
ग्राहि तत् ... ... ...।। शा.पू. ख. ४/११।।
ग्राही द्रव्य वह होते हैं जो दीपन यानी भूख बढ़ाते हैं, भोजन को पचाते हैं और द्रव का शोषण भी करते हैं। आचार्य भावप्रकाशकार ने मखान्न के गुणों में एक शब्द ‘ग्राही’ लिखकर यह बता दिया कि प्रयोगकर्ता ध्यान रखे कि मखान्न अकेले ही भूख बढ़ाने, भोजन पचाने और द्रव का शोषण करने का गुण रखता है तथा दाह नाशक और बलवर्धक है ही। इसकी चिकित्सीय मात्रा २० ग्राम है।
अब हमने प्रवालपिष्टी २५०-२५० मि.ग्रा., २०-२० ग्राम मखाने का क्षीरपाक (गो दुग्ध पाक) तैयार कर दिन में ३ बार सेवन करने को लिखा। ४ सप्ताह बाद जब शालिनी के पति शालिनी जी को दिखाने आये तो उनकी प्रसन्नता की सीमा नहीं थी। रोगिणी का वजन २ किलो ग्राम बढ़ चुका था, मल की प्रवृत्ति ठीक हो गयी थी, नींद आने लगी थी और शरीर का दाह तो ७० प्रतिशत समाप्त था। २ माह की चिकित्सा से वह महिला निरोग हो गयी पर अभी भी नाश्ते में मखान्न क्षीरपाक सेवन कराया जा रहा है।
इस प्रकार हम कह सकते है आयुर्वेद चिकित्सा विज्ञान का अनुसरण वैज्ञानिक तरीके और गहन ज्ञान के साथ यदि किया जाय तो मानव को महान् सुख और आरोग्य समृद्ध किया जा सकता है।
नवयुवक आयुष चिकित्सकों से अनुरोध है कि वे ऐसे लेखों को बार-बार पढ़ें, उनका अनुशीलन करें निश्चित् रूप से उनका मार्ग प्रशस्त होगा और वे सफल होंगे।
आयुष ग्राम ट्रस्ट चित्रकूट द्वारा संचालित
आयुष ग्राम चिकित्सालयम, चित्रकूट
मोब.न. 9919527646, 8601209999
website: www.ayushgram.org
डॉ मदन गोपाल वाजपेयी आयुर्वेदाचार्य, पी.जी. इन पंचकर्मा (V.M.U.) एन.डी., विद्यावारिधि, साहित्यायुर्वेदरत्न
प्रधान सम्पादक चिकित्सा पल्लव
डॉ परमानन्द वाजपेयी
बी.ए.एम.एस., एम.डी.(अ.)
डॉ अर्चना वाजपेयी एम.डी.(कायचिकित्सा) आयुर्वेद
इस अवस्था की रोगिणी की चिकित्सा बहुत ही चुनौतीपूर्ण जैसी थी। रोगिणी को शीघ्र लाभ भी चाहिये। हमने पूछा कि शालिनी (रोगिणी का नाम) तुम कितने दिन में लाभ चाहती हो। उसने कहा 5 दिन में हमने समझाया कि यदि समस्या कोई साधारण होती तो निश्चित् रूप से आप इतने जगहों में से कहीं न कहीं से तो ठीक हो गयी होतीं। इसलिए रोग कठिन है अत: थोड़ा समय चाहिये। शालिनी के पति ने कहा कि सर! समय देंगे।
इस केस में हमने ‘दोष प्रत्यानीक’ चिकित्सा का आश्रय न लेकर केवल व्याधि प्रत्यानीक चिकित्सा का आधार लिया। व्याधि प्रत्यानीक चिकित्सा का आधार रोग के लक्षण तद्नुसार चिकित्सा का चुनाव होता है।
अत: हमने ‘मखान्न’ का औषधि रूप में ग्रहण किया। क्योंकि भाव प्रकाशकार मखान्न (मखाना) और कमलगट्टा के गुणों की साम्यता बताते हुये लिखते हैं-
मखान्नं पद्मबीजस्यगुणैस्तुल्यं विनिर्दिशेत्।
पद्मबीजं हिमं स्वादु कषायं तिक्तवकं गुरु।।
विष्टम्भिवृष्यं रूक्ष्यञ्चगर्भस्यस्थापकं परम्।
कफ वातहरं बल्यं ग्रहिपित्तास्रदाहनुत्।।
इस प्रकार मखान्न में बलवर्धन, ग्राही, रक्तपित्त और दाहनाशक का अद्भुत गुण है। पाठकगण एक सन्देह कर सकते हैं कि हमने मल को बाँधने वाले किसी द्रव्य का चुनाव क्यों नहीं किया, तो स्पष्ट कर दें कि आयुर्वेद चिकित्सकों द्वारा प्राय: कुटज, अरलु, सर्जरस आदि जितने भी उपशोषण द्रव्य या बिल्व जातीफल आदि जितने भी ग्राही द्रव्य प्रयोग किये जाते हैं उनमें से कोई भी दाहहर और बलवर्धक नहीं है। यदि आयुष ग्राम चित्रकूट में भी वही रटी-रटायी और प्रचलित थैरापी अपनायी जाती तो सफलता मिलने की संभावना कम ही थी।
जैसा कि आपने ऊपर पढ़ा कि मखान्न में बलवर्धन के साथ-साथ ग्राही और दाहनाशक गुण भी है। ध्यान रखना चाहिए कि-
दीपनं पाचनं यत् स्यादुष्णत्वाद् द्रवशोषकम्।
ग्राहि तत् ... ... ...।। शा.पू. ख. ४/११।।
ग्राही द्रव्य वह होते हैं जो दीपन यानी भूख बढ़ाते हैं, भोजन को पचाते हैं और द्रव का शोषण भी करते हैं। आचार्य भावप्रकाशकार ने मखान्न के गुणों में एक शब्द ‘ग्राही’ लिखकर यह बता दिया कि प्रयोगकर्ता ध्यान रखे कि मखान्न अकेले ही भूख बढ़ाने, भोजन पचाने और द्रव का शोषण करने का गुण रखता है तथा दाह नाशक और बलवर्धक है ही। इसकी चिकित्सीय मात्रा २० ग्राम है।
अब हमने प्रवालपिष्टी २५०-२५० मि.ग्रा., २०-२० ग्राम मखाने का क्षीरपाक (गो दुग्ध पाक) तैयार कर दिन में ३ बार सेवन करने को लिखा। ४ सप्ताह बाद जब शालिनी के पति शालिनी जी को दिखाने आये तो उनकी प्रसन्नता की सीमा नहीं थी। रोगिणी का वजन २ किलो ग्राम बढ़ चुका था, मल की प्रवृत्ति ठीक हो गयी थी, नींद आने लगी थी और शरीर का दाह तो ७० प्रतिशत समाप्त था। २ माह की चिकित्सा से वह महिला निरोग हो गयी पर अभी भी नाश्ते में मखान्न क्षीरपाक सेवन कराया जा रहा है।
इस प्रकार हम कह सकते है आयुर्वेद चिकित्सा विज्ञान का अनुसरण वैज्ञानिक तरीके और गहन ज्ञान के साथ यदि किया जाय तो मानव को महान् सुख और आरोग्य समृद्ध किया जा सकता है।
नवयुवक आयुष चिकित्सकों से अनुरोध है कि वे ऐसे लेखों को बार-बार पढ़ें, उनका अनुशीलन करें निश्चित् रूप से उनका मार्ग प्रशस्त होगा और वे सफल होंगे।
आयुष ग्राम ट्रस्ट चित्रकूट द्वारा संचालित
आयुष ग्राम चिकित्सालयम, चित्रकूट
मोब.न. 9919527646, 8601209999
website: www.ayushgram.org
डॉ मदन गोपाल वाजपेयी आयुर्वेदाचार्य, पी.जी. इन पंचकर्मा (V.M.U.) एन.डी., विद्यावारिधि, साहित्यायुर्वेदरत्न
प्रधान सम्पादक चिकित्सा पल्लव
डॉ परमानन्द वाजपेयी
बी.ए.एम.एस., एम.डी.(अ.)
डॉ अर्चना वाजपेयी एम.डी.(कायचिकित्सा) आयुर्वेद
2 टिप्पणियाँ
बहुत ही सुखद अनुभूति होती है ऐसे प्रयोग पढ़कर आप शतायु हो
जवाब देंहटाएंआपके द्वारा आयुर्वेदिक चिकित्सा के क्षेत्र में किए जा रहे अनुसंधानमय चिकित्सा के अद्भुत परिणाम आने वाली पीढ़ी के लिए वरदान साबित होंगे! आप त्रिमूर्तियों का हार्दिक अभिनन्दन है!
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