थी ओजक्षय की बहोशी : डॉक्टर दे रहे थे इकोस्प्रिन

१८ जून २०१७ के राष्ट्रीय सहारा में ‘परत दर परत’ स्तम्भ के लेखक श्री राजकिशोर जी ने लिखा कि- 
‘‘पहले जब मैं इवान इलिच तथा अन्य गैरपारम्परिक विचारों द्वारा आधुनिक औषधि विज्ञान की सख्त आलोचना पढ़ता था तब मुझे यकीन नहीं होता था। मुझे लगता था कि यह फालतू की नुक्ताचीनी है। किन्तु अब जिन्दगी और मौत के थपेड़ों के बीच से गुजरते हुये मुझे लगता है कि जिसे एलोपैथी कहा जाता है उसके बारे में शक करने की पूरी गुंजाइश है। अधिकांश मामलों में वह स्वस्थ करने का भ्रम पैदा करती है, पर स्वस्थ करती नहीं है। उन्होंने आगे लिखा कि मेरा मानना है कि अगर कोई वैज्ञानिक मधुमेह और उच्च रक्तचाप को ठीक करने वाली दवा का अविष्कार कर ले तो इसकी भनक मिलते ही उसकी हत्या कर दी जायेगी क्योंकि इन दोनों विश्वव्यापी बीमारियों का विश्व बाजार अरबों का नहीं, खरबों रुपयों का है। लेकिन एलोपैथ में इनका कोई इलाज नहीं सिर्पâ मैनेजमेन्ट है, जब तक दवा खाते रहेंगे, आप ठीक महसूस करेंगे। जैसे ही आपने दवा छोड़ी आप धड़ाम से बिस्तर पर जा गिरेंगे। यही बात हृदयरोग, दमा ,एसिडिटी, मनोरोग, गठिया वात इत्यादि की दवाओं पर भी लागू होती है। एक बार आपको इनमें से कोई रोग हो गया तो, आप दवा कम्पनियों के लिये करोड़ों का खजाना हो गये। श्री राजकिशोर जी लिखते हैं कि जब तक आप आखिरी सांस न ले लें तब तक हर महीने आपको इन मुनाफाखोर दवा कम्पनियों का कर्ज चुकाते रहना होगा।’’
मानव का दुर्भाग्य ही है कि हमारे देश में ७ लाख के आसपास आयुष चिकित्सक हैं, हमारे पूर्वज, चरक, सुश्रुुत, धन्वन्तरि और वाग्भट्ट जैसे महान् स्वास्थ्य  वैज्ञानिक चिकित्सक हुये और उनका विज्ञान आज भी हमारे बीच उपलब्ध है पर इतने बड़े स्तर पर उपलब्ध आयुष चिकित्सा के प्रति जैसी जागरूकता चाहिये हम वैसी जागरूकता नहीं ला पा रहे और न ही मानव को एलोपैथी के इस ठगी पाश से मुक्त कर वास्तविक चिकित्सा की ओर उन्मुख कर पा रहे। यद्यपि कुछ आयुष चिकित्सक जिनकी आत्मायें जागृत हैं, जो कल्याणमयी भावना से ओतप्रोत हैं, वे मानव को उचित मार्गदर्शन करने में तत्पर भी हैं, पर उनकी संख्या नगण्य ही है।
ऐसा ही एक केस आयुष ग्राम (ट्रस्ट) चिकित्सालय चित्रकूट में लाया गया। फतेहपुर (उ.प्र.) के अमदरा (जाम) से श्री मूलनारायण पाण्डेय जो कि पुलिस सब इन्सपेक्टर पद से सेवा निवृत्त हैं, अपनी ६६ वर्षीया धर्म पत्नी श्रीमती उर्मिला देवी को लेकर १८ अक्टूर २०१६ को आये। 
अपना क्रम आने पर उप पुलिस इन्सपेक्टर ने बताया कि-
१. डॉक्टर साहब ये मेरी धर्मपत्नी उर्मिला जी हैं।   
२. ये एक साल से हृदयरोग से पीड़ित हैं, तभी से इनका इलाज  हार्ट लाइन, इलाहाबाद में चल रहा है और इन्हें कोई लाभ नहीं है।
३. एलोपैथिक डॉक्टर इन्हें tab.belycool-DSR,prolonet-XL-50 Sorbitreate-5 ecosprine75,winitro2.6 गोलियां  खिला रहे हैं। इसके बावजूद कोई फायदा नहीं। घबराहट, पसीना आना, तेज चलने पर घबराहट होना, धड़कन बढ़ना, बेहाशी के लक्षण, हार्ट में दर्द आदि समस्यायें होती हैं।
४. जब इन्हें ये दौरा पड़ता है, तो लगता है कि अभी जान चली जायेगी। गोलियों पर गोलियां खा रही हैं पर कोई लाभ नहीं, उल्टा ये बहुत कमजोर होती जा रही हैं और चलने फिरने में भी परेशान हो रही है। तभी मेरे भतीजे बालगोविन्द पाण्डेय जिनकी रीढ़ का इलाज यहाँ चल रहा है और उन्हें बहुत लाभ है, उन्होंने आयुष ग्राम (ट्रस्ट) चिकित्सालय चित्रकूट  के बारे में बताया है, तो मैं इन्हें लेकर आया हूँ।
रोगिणी का परीक्षण किया तो पाया कि उनमें रसधातु का पर्याप्त क्षय और उसी क्रम में ओजक्षय के लक्षण स्पष्ट थे। आयुष ग्राम के डॉक्टर ने दरोगा जी को आश्वस्त किया कि आप निश्चिन्त रहें, ये Aअभी आपको रोटी बनाकर खिलायेंगी और आपकी पूरी सेवा करेंगी। दरअसल इनका तो इलाज ही गलत किया जा रहा था। ईकोकार्डियोग्राफी रिपोर्ट में सब कुछ नार्मल है, कितने अन्धेर की बात है कि L.V.E.F.60-65% है तब भी ये डॉक्टर इन्हें एस्प्रिन खिलाखिलाकर मार रहे हैं।
अभी-अभी  (१५ जून २०१७) की ब्रिटेन की ऑक्सफोर्ड  यूनिवर्सिटी की रिपोर्ट है कि ‘‘रोजाना एस्प्रिन इस्तेमाल से जा सकती है जान। बुजुर्गों के लिये स्प्रिन खतरनाक हो सकती है।’’ तब भी ये डॉक्टर बुजुर्गोंं को एस्प्रिन खिलाकर मार रहे हैं।
इनमें रसक्षय, ओजक्षय, पित्त विकृति,वात प्रकोप स्पष्ट है जिसके कारण हृदय रोग के लक्षण है। दरअसल रोग लक्षण हैं मूच्र्छा के पूर्व रूप के, और ये इलाज कर रहे हैं हृदय का, और खिला रहे हैं इकोस्प्रिन। इकोस्प्रिन जैसी रुक्ष,ओजक्षय, रस विकृति कारक, रक्त पित्त प्रकोपक दवा खिलाकर ये निरोग करने का सपना देख रहे हैं। है न विडम्बना!!
भगवान् धन्वन्तरि कहते हैं कि -
हृत्पीडा जृम्भणं ग्लानि: संज्ञादौर्बल्यमेव च।
सर्वासां पूर्वासां पूर्वा यथास्वं तां विभावयेत् ।।
सु॰उ॰ ४६ 
किसी भी प्रकार की मूर्च्छा आने के पूर्व ह्रदय में पीड़ा ,जंभाई अधिक आना, किसी कार्य को करने की इच्छा न होना ज्ञान शक्ति का दुर्बल होना ये सब मुर्च्छाओं के पूर्व रूप हैं |
            जब भी मूर्च्छा या अचेतावस्था आएगी तो दर्द, ह्रदय विकार, अचेतावस्था की चिकित्सा में यह अवश्य ध्यान देने योग्य है की -
रस वातादिमार्गाणां सत्वबुद्धिन्द्रियात्मनाम्।
प्रधानस्यौजसश्चैव हृदयं स्थानमुच्यते।।
च॰चि॰२४/३
स, वात, मन, बुद्धि, इन्द्रिय, आत्मा और ओज में कोई विकृति आयेगी तो हृदय की क्रिया में अवश्य परिवर्तन दिखेगा। क्योंकि इनका स्थान ही हृदय है। ऐसे ही यदि हृदय की क्रिया में परिवर्तन आयेगा तो चैतन्यता अवश्य प्रभावित होगी। क्योंकि- 
हृदय चेतनास्थानमुत्तंâ सुश्रुत! देहिनाम्।।
सुु॰शा॰४
साधक, पित्त और अवलम्बक जब हृदय मेेंं आश्रित होता है तभी व्यक्ति में बुद्धि मेधा और अदीनता विकसित होती है और रहती भी है। आत्म बल, ‘हृदयस्थ-साधक पित्त’ के ही अधीन है। इस प्रकार परीक्षण से स्पष्ट था कि जिस वृद्धा को एलोपैथ वाले डिस्प्रिन, इकोस्प्रिन के द्वारा ठीक करना चाहते थे जबकि उसका निदान ही अप्रसांगिक था। निदान के पश्चात् निम्नाविंâत औषधि व्यवस्था की गयी- - मूच्र्छान्तक रस १२५ मि॰ग्रा॰, प्रवाल पिष्टी २५० मि॰ग्रा॰, मुक्ता पिष्टी १२५ मि॰ग्रा॰, अकीक पिष्टी २५० मि॰ग्रा॰, सभी मिलाकर एक मात्रा। ऐसी एक-एक मात्रा सुबह शाम शहद से चटाने का निर्देश।
- अश्वगंधारिष्ट, द्राक्षासव, २०-२० मि॰लि॰ मिलाकर जल मिलाकर भोजनोपरान्त दिन में २ बार।
- रात में सोते समय त्रिफला चूर्ण ५ ग्राम शहद में मिलाकर चटायें। क्योंकि-
मधुना हन्त्युपयुक्ता रात्रौ गुडाद्र्रवंâ प्रात:।
सप्ताहात्पथ्यभुजो मदमूच्र्छाकामलोन्मादान्।। 
भै॰र॰मूच्र्छा रोगाधिकार
भोजन में- गोघृत, गोदुग्ध, पुरान चावल, जौ की रोटी, रागषाडव, मुनक्का, अंगूर, लौकी, परवल, तुरई, की सब्जी सेवन कराने का निर्देश।
एक माह की पथ्य सह चिकित्सा के पश्चात् जब सब इन्सपेक्टर श्री पाण्डेय जी श्रीमती उर्मिला जी को पुन:  दिखाने आये तो  उनकी खुशी का ठिकाना नहीं था, उन्होंने कहा कि पता नहीं किस मूर्ख ने यह प्रचार कर दिया कि आयुर्वेद धीरे-धीरे काम करता है जबकि आयुर्वेद से तेज कोई चिकित्सा ही नहीं है। दरोगा जी ने कहा कि अब तो उर्मिला जी की अधिकांश परेशानी मिट ही गयी है।
मैंने इतने दिनों तक एलोपैथ का इलाज किया पर हालत खराब ही होती गयी। यदि यहाँ न आते तो निश्चित रूप से पता नहीं इनका क्या होता।
दरअसल, आयुष ग्राम (ट्रस्ट) चिकित्सालय चित्रकूट  और दिव्य चिकित्सा भवन पनगरा (बाँदा) में रोगियों के लिये  शास़्त्रीय और पुरानी उन रस औषधियों का निर्माण करा कर रखा गया है जो या तो लुप्त हो गई थीं या कम्पनियों ने बनाना ही बन्द कर दिया था। ये रस मरणासन्न रोगियों तक में प्राण पूंâक देते हैं, इन्जेक्शन से तेज काम करते हैं। आयुर्वेद चिकित्सा करने में श्रम तो बहुत आता है पर परिणाम बहुत आनन्ददायक मिलता है।
दरोगा जी जब दूसरे माह दिखाने आये तो  पुन: उपर्युक्त चिकित्सा व्यवस्था के साथ- साथ दोपहर में गुडूची, अपमार्ग, विडंग, शंखपुष्पी, अभया, वचा वूâठ और शतावरी समभाग मिश्रित चूर्ण का ३-३ ग्राम सेवन कराया गया।
आज श्रीमती उर्मिला जी अपना सारा काम करती हैं, मूच्र्छा, हृदय विकृति जैसी कोई समस्या नहीं है। सबसे बड़ी बात यह है कि दरोगा जी हर माह चित्रकूट  आते हैं और कामता नाथ जी परिक्रमा करते हैं। उनके साथ ‘माता जी’ भी आनन्द से परिक्रमा करती हैं। 
उपर्युक्त चिकित्सा व्यवस्था ने रस धातु का पोषण करते हुये ओज की वृद्धि की तथा प्रवृद्ध वायु, का शमन किया जिससे नाड़ी तंत्र सबल हुआ। इस योग ने ‘साधक पित्त’ को पूरी तरह से व्यवस्थित किया, परिणामत:  अदीनता का लोप हुआ और आत्म विश्वास की वृद्धि होने लगी। साधक पित्त के व्यवस्थित होने से पाचकादि पित्त भी ‘सम’ हुये जिससे पित्ताग्नि बढ़ी और भूख लगने लगी, भोजन का पाचन होने लगा।जिससे ओज की वृद्धि होने लगी। ओज की वृद्धि होने से उनमें ‘युुक्तिकृत बल’ का आधान हुआ और रोगमुक्ति हो गई। विचार करें कितनी उत्तम और जीवनदायिनी है हमारे ऋषियों पूर्वर्जों की चिकित्सा पद्धति आयुष। हमें इसका सर्वाधिक प्रचार करना चाहिये, जन-जन तक पहुँचाना चाहिये ताकि मानव जीवन बचे और सुखी हो। 
उर्मिला देवी के पति मूलनारायण पाण्डेय ने अपने विचार इस प्रकार व्यक्त किये-
मेरी पत्नी श्रीमती उर्मिला देवी, उम्र ६६ वर्ष की हार्ट की गति अचानक बहुत तेजी से बढ़ जाती थी, हाथ-पैर शिथिल हो जाते थे, ऐसा लगता था कि मानो जान ही निकल जायेगी। पूरा शरीर पसीने से भर जाता था। मैं उर्मिला जी को हार्टलाइन हॉस्पिटल इलाहाबाद ले गया। उन्होंने तमाम तरह की जाँचें कीं फिर अंग्रेजी दवा देकर कहा कि हार्ट में प्रॉब्लम है, जल्दी आराम मिलना शुरू हो जायेगा। मैंने वहाँ ५ माह तक दवा करायी लेकिन आराम मिलने के बाद फिर वही समस्या शुरू हो गयी। तब मैंने हार्ट लाइन के डॉक्टर से कहा कि दवा चलते-चलते बीमारी फिर लौट आती है और वही दशा हो जाती है ऐसा लगने लगता है कि अभी जान चली जायेगी ऐसा कब तक चलेगा, डॉक्टर साहब के पास इसका कोई सन्तोषजनक उत्तर नहीं था, उन्होंने कहा कि दवा चलाते रहिये। मुझे उनकी बातों से लगा कि इनके बस का नहीं है। तब किसी ने आयुष ग्राम ट्रस्ट, चित्रकूट  के आयुर्वेद हॉस्पिटल के बारे में बताया। मैं दिनांक १८ अक्टूबर २०१६ को आयुष ग्राम (ट्रस्ट) चिकित्सालय पहुँचा और रजिस्ट्रेशन कराया, डॉ. वाजपेयी जी ने सारी रिपोर्ट देखने के बाद कहा कि माता जी को जल्दी ही आराम लगना शुरू हो जायेगा। खान-पान में दूध, घी, मेवा, पौष्टिक आहार, आयुर्वेद के तरीके से खाने को बताया। दवा लेकर आये और शुरू कराया व हमें फायदा मिलने लगा, लेकिन कभी-कभी सिर घूमता था। जब दूसरे माह दिखाने गये व बताया कि इनका सिर घूमता है, तब डॉक्टर साहब ने कहा कि इस बार की दवा से और लाभ बढ़ेगा व फिर १ महीने की दवा लिखी। इस प्रकार दो माह में ५० प्रतिशत आराम मिल गया और सारी दिक्कतें धीरे-धीरे समाप्त होने लगीं। अब वे चलने व काम करने लगीं। ८-९ माह बाद श्रीमती उर्मिला जी पूर्णतया स्वस्थ हैं।


         आयुष ग्राम ट्रस्ट चित्रकूट द्वारा संचालित
           आयुष ग्राम चिकित्सालयम, चित्रकूट 
            मोब.न. 9919527646, 8601209999
             website: www.ayushgram.org

  डॉ मदन गोपाल वाजपेयी                                                आयुर्वेदाचार्य, पी.जी. इन पंचकर्मा (V.M.U.)                   एन.डी., विद्यावारिधि, साहित्यायुर्वेदरत्न
          प्रधान सम्पादक चिकित्सा पल्लव                                   
डॉ परमानन्द वाजपेयी 
          बी.ए.एम.एस., एम.डी.(अ.)

डॉ अर्चना वाजपेयी                                                                    एम.डी.(कायचिकित्सा) आयुर्वेद 

डॉ आर.एस. शुक्ल                                                                           आयुर्वेदाचार्य 


                                



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5 टिप्पणियाँ

  1. 👍👍👌💐💐
    मौलीक सिद्धांतो के अनुसार चिकीत्सा से ही प्राय: हर व्याधी को निर्मूल किया जा सकता है।
    आयुर्वेद का यश अक्षुण्ण बनाये रखने के लिये बहुत बधाईया💐💐💐

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  2. मैंने आयुष ग्राम में अपना इलाज कराया वैदय जी ने दवा देकर खाने के लिए कहा दवा खाई मुझे 25 परसेंट आराम हुआ दवा अभी भी ले रहा हूं एलोपैथी दवा लेने से कोई आराम नहीं होता था मुझे यह आशा नहीं थी कि मैं कुछ तरीके से ठीक हो सकता हूं अनुरोध सभी से करता हूं की एलोपैथिक दवा को छोड़कर आयुर्वेद की दवाओं का ही सेवन करें धन्यवाद

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