शोध आधारित चिकित्सा

आयुर्वेद में मिला इलाज बूढ़ों के नारकीय रोग अल्जाइमर का!!

 अल्जाइमर ऐसी बीमारी है जो बूढ़ों को जीते जी नरक बना देती है पर इसका अच्छा समाधान भी निकला अपने भारत के चिकित्सा विज्ञान आयुर्वेद में। जिनका समाधान अमेरिका और आधुनिक विज्ञान आज तक नहीं खोज पाया। 

यदि किसी में भूलने की समस्या होने लगे, याददास्त की कमी, निर्णय न ले पाने की स्थिति, बोलने की दिक्कत, सोचने में कठिनाई, छोटी-छोटी समस्याओं का न सुलझा पाने की स्थिति बने, भटक जाना, व्यक्तित्व में बदलाव, किसी वस्तु का चित्र देखकर यह न समझ पाना कि क्या है, नम्बर जोड़ने घटाने में ध्यान केन्द्रित करने में दिक्कत हो, कब्ज, पाचनतंत्र की समस्या, चिड़चिड़ापन होना तो समझें कि ऐसा व्यक्ति नारकीय रोग अल्जाइमर की ओर जा सकता है, अत: सावधानी से बचाव में लग जायें। 

स्वस्थ मानव मस्तिष्क में दसियों अरब न्यूरॉन्स होते हैं जो विशेष कोशिकायें जो विद्युत और रासायनिक संकेतों के माध्यम से जानकारी को संसाधित और प्रसारित करती हैं ये कोशिकायें मस्तिष्क के विभिन्न हिस्सों के बीच और मस्तिष्क से शरीर की मांसपेशियों और अंगों तक संदेश भेजती हैं। 

अल्जाइमर रोग में यह संचार बाधित होता है परिणामत: मस्तिष्क की कार्यप्रणाली में व्यापक हानि होती है, न्यूरॉन्स लगातार पड़ोसी मस्तिष्क कोशिकाओं के सम्पर्वâ में रहते हैं जब एक न्यूरॉन अन्य न्यूरॉन्स से संकेत प्राप्त करता है तो यह विद्युत आवेश उत्पन्न करता है जो उसके अक्षतंतु की लम्बाई के नीचे जाता है और एक छोटे से अंतराल में न्यूरोट्रांसमीटर रसायनों को छोड़ता है जिसे सिनैप्स कहा जाता है, ताले में फिट होने वाली चाभी की तरह प्रत्येक न्यूरोट्रांसमीटर अणु फिर पास के न्यूरॉन के डेंड्राइट पर विशिष्ट रिसेप्टर साइटो से जुड़ जाता है यह प्रक्रिया रासायनिक या विद्युत संकेतों को ट्रिगर करती है जो संकेत प्राप्त करने वाले न्यूरॉन में गतिविधि को उत्तेजित या बाधित करती है।

भारत अल्जाइमर की बीमारी में विश्व के तीसरे स्थान पर है, चीन इस समय सर्वाधिक अल्जाइमर रोगियों वाला देश बन गया है। संयुक्त राज्य अमेरिका में तो यह बीमारी मृत्यु का सातवाँ प्रमुख कारण है। अल्जाइमर रोग से पीड़ित लोग तीन से ११ साल तक जीवित रहते हैं लेकिन कुछ लोग २० साल या उससे अधिक भी जीवित रहते हैं। शोध में यह भी बताया गया है कि यह बीमारी पुरुषों की अपेक्षा महिलाओं को चपेट में अधिक लेती है। 

संचार अक्सर मस्तिष्क कोशिकाओं के नेटवर्क में होता है, वैज्ञानिक अनुमान करते हैं कि मस्तिष्क के संचार नेटवर्क में एक न्यूरॉन के अन्य न्यूरॉन के साथ ७००० से अधिक सिनैष्टिक कनेक्शन हो सकते हैं, सिनैष्टिक कनेक्शन जल्द नष्ट होने से ही अल्जाइमर संज्ञानात्मक गिरावट के लक्षण आते हैं। 

कोशिका के भीतर रसायनों और पोषक तत्त्वों का टूटना स्वस्थ कोशिका कार्य और आस्तित्व के लिए महत्वपूर्ण है, इस कार्य को करने के लिए कोशिकाओं को आक्सीजन और ग्लूकोज की आवश्यकता है जो मस्तिष्क के माध्यम से प्रसारित होने वाले रक्त द्वारा आपूर्ति की जाती है। यह ध्यान रहे कि मस्तिष्क किसी भी अंग की तुलना में सबसे समृद्ध रक्त आपूर्ति में से एक है और शरीर द्वारा उपयोग की जाने वाली ऊर्जा का २० प्रतिशत तक उपभोग करता है, अल्जाइमर से पीड़ित लोगों में यह कार्य बाधित हो जाता है। 

अल्जाइमर के सम्पूर्ण समाधान हेतु अमेरिका इलाज ढूँढने में सालों से लगा है पर संभव नहीं हो सका। कुछ दवायें अविष्कृत की गयी पर समय के साथ दवा अपना प्रभाव छोड़ देती हैं।

अब वैज्ञानिकों ने अल्जाइमर के लिए वैदिक चिकित्सा आयुर्वेद में कहे उपायों को संजोया तो बात बनने लगी। इग्लैण्ड स्थित वैकम्ब्रिज विश्वविद्यालय के वैज्ञानिकों ने रिसर्च किया कि लंघन चिकित्सा जिसे ‘उपवास’ नाम से अल्जाइमर पर काबू पाई जा सकती है। विश्वविद्यालय के वैज्ञानिकों ने करीब दो दर्जन लोगों पर शोध किया। इन लोगों ने २४ घण्टे की अवधि में कुछ भी नहीं खाया उन्हें केवल पानी ही पीने को दिया गया। इनका रक्त परीक्षण किया गया तो पाया गया कि अल्जाइमर रोगियों की अस्वस्थ, शोथ युक्त और चयापचय क्रिया बाधित मस्तिष्क की कोशिका में बहुत सुधार था। सुधार क्यों न हो अब तो प्रयास वैदिक परम्परा से चल रहा था न।

वैज्ञानिकों ने पाया २४ घण्टे उपवास के बाद लोगों को जब भोजन दिया गया तो एटैकिडोनिक एसिड का स्तर नीचे चला गया। लैब टेस्ट में खुलासा हुआ कि इस एसिड का उच्च स्तर सूजन वाली कोशिका एनएलआरपी-३ इन्फ्लास्म की गतिविधियों को कम कर देता है। आपको बता दें कि एनएलआरपी-३ इन्फ्लास्म कोशिका अल्जाइमर पार्विक्सन से सम्बन्धित है, यह एक मल्टीप्रोटीन कॉम्लेक्स है जो प्रतिरक्षा प्रणाली और सूजन से जुड़ा है। 

अब वैज्ञानिकों ने अल्जाइमर के लिए वैदिक चिकित्सा आयुर्वेद में कहे उपायों को संजोया तो बात बनने लगी। इग्लैण्ड स्थित वैकम्ब्रिज विश्वविद्यालय के वैज्ञानिकों ने रिसर्च किया कि लंघन चिकित्सा जिसे ‘उपवास नाम से अल्जाइमर पर काबू पाई जा सकती है।

वैज्ञानिकों ने कहा कि यद्यपि इस शोध को अभी १०० प्रतिशत कामयाब बताना जल्दबाजी होगी, फिर भी यह नि:संदेह ‘आकर्षक आइडिया’  कहा जा सकता है। 

यह ‘आकर्षक आइडिया’ इसलिए है कि अभी पिछले दिनों एडिथ कोवान विश्वविद्यालय में एक शोध में स्पष्ट हुआ कि ‘अल्जाइमर और आँत’ विकार के बीच गहरा सम्बन्ध है। जिन लोगों को आँतों की परेशानियाँ हैं उन्हें अल्जाइमर होने की प्रबल संभावना है। यूनिवर्सिटी ऑफ विस्कॉन्सिन स्कूल ऑफ मेडिसिन एण्ड पब्लिक हेल्थ के शोधकर्ताओं ने भी पाया कि अल्जाइमर रोग और आँत के बीच सम्बन्ध है। यह नेचर जर्नल में प्रकाशित हुआ। प्रतिभागियों के मल के नमूनों में वैकलप्रोटेक्टिन, एक सूजन मार्कर का स्तर बढ़ा पाया गया। वैज्ञानिकों ने कहा कि अल्जाइमर रोग वाले लोगों में आँत में सूजन अधिक होती है। 

यही कारण है कि हमारे भारत के महान् चिकित्साचार्य महर्षि चरक (चि. ९/४ में) ने दूषित आहार प्रणाली को उन्माद होने के कारणों में से पहले स्मरण किया है, क्योंकि ‘अल्जाइमर’ रोग आयुर्वेदोक्त ‘उन्माद’ रोग ही है। आचार्य चरक स्पष्ट कहते हैं कि-

उन्मादं पुनर्मनोबुद्धिसंज्ञाज्ञानस्मृति भक्तिशीलचेष्टाचार विभ्रमं विद्यात् ।। च.नि. ७/५।। अर्थात् जब मन, बुद्धि, संज्ञाज्ञान, स्मृति, भक्ति, शील, चेष्टा और आचार इन आठ मानसिक भावों की विकृति आती है तो उन्माद होता है। 

अब आप अपने भारत के प्राचीन चिकित्सा वैज्ञानिकों जिन्हें ऋषि कहा जाता है उन्हें पढ़िये। वे लिखते हैं- 

साध्यानां तु त्रयाणां साधनानि स्नेहस्वेदवमनविरेचनास्थापनानुवासनो पशमननस्त:कर्मधूम धूपनाञ्जनावपीडप्रधमनाभ्ङ्ग प्रदेहपरिषेकानुलेपनवधबन्धनावरोधनवित्रासन विस्मापनविस्मारणापतर्पणसिराव्याधनानि, भोजनविधानं च यथास्वं युक्त्या विंकचिन्निदानविपरीतमौषधं कार्यं तदिपि स्यादिति।। च.नि. ७/८।।

अर्थात् साध्य उन्मादों मे स्नेहन, स्वेदन, वमन, विरेचन, आस्थापन, अनुवासन, उपशमन, उपवास आदि क्रियायें जो चयापचय क्रिया को संतुलन करती हैं, अवरोध हटाती है, पोषण देती हैं और आँतों को स्वस्थ और निर्विकार करती हैं उन्हें अपनाया जाय। भोजन विधान पर ध्यान दिया जाय, मानसिक संतुलन के लिए उचित उपाय अपनाये जायें तथा निदान के विपरीत औषधादि का प्रयोग हो।

आयुष ग्राम चिकित्सालय, में अनेकों अल्जाइमर के रोगियों को वर्षों से लगातार स्वास्थ्य लाभ पहुँचाया जा रहा है। जिसमें सप्ताह में एक दिन रसाहार या फलाहार या उपवास चिकित्सा और साथ में पंचकर्म तथा औषधियाँ। बहुत चमत्कारी लाभ मिलता है।  

अब विचार करें कि हमारे भारतीय ऋषियों का ज्ञान आज के वैज्ञानिकों से कितना आगे था। पर दुर्भाग्य है कि इसका उपयोग हम नहीं कर रहे और अल्जाइमर के रोगियों को सेडेटिव/केमिकल खिला-खिलाकर उन वृद्ध माता-पिता को अपाहिज और नारकीय जीवन जीने के लिए छोड़े देते हैं। हमें चाहिए कि हम अपनी विरासत, अपनी वैज्ञानिकता को अपनाकर उच्च ज्ञान-विज्ञान के माध्यम से अपने और अपनों को सम्यक् स्वास्थ्य प्रदान करें।   

आँतें स्वस्थ रखें तो बुढ़ापे में दिमागी बीमारियों से बचेंगे दिमाग स्वस्थ रहेगा।

लेख पढ़ने के बाद आप अपने विचार और नाम/पता व्हाट्सएप में लिखें। हम सारगर्भित विचारों को आयुष ग्राम मासिक और चिकित्सा पल्लव में स्थान देंगे। धन्यवाद!

सर्व प्रजानां हितकाम्ययेदम्

(चिकित्सा पल्लव)

 मासिक पत्रिका          

पृष्ठ 19-21 अप्रैल  2024 

आयुष ग्राम कार्यालय आयुष ग्राम (ट्रस्ट) परिसर सूरजकुण्ड रोड (आयुष ग्राम मार्ग) चित्रकूट धाम 210205(उ०प्र०)*

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