चिकित्सा में चमत्कार के लिए शास्त्रीय रहस्य खोजना होगा-
मद्यपान से उत्पन्न रोगों में अचूक महाकल्याण
वटी
विश्व स्वास्थ्य संगठन की एक रिपोर्ट के अनुसार शराब पीने से हर १० सेकेण्ड में एक व्यक्ति की मौत हो रही है और कुछ कम्पनियाँ युवाओं तथा नशे के आदी लोगों को अपना निशाना बना रही हैं। अल्कोहल से सम्बन्धित मौतों में युवाओं का अनुपात १३.५ प्रतिशत है।
दुनियाभर में हर २० में से १ मौत शराब की वजह से होती है। शराब से लीवर को भारी नुकसान पहुँचता है। किडनी और मूत्रवह तंत्र को शराब भी रुग्ण करती है, इसके अलावा निमोनिया और तपेदिक जैसी बीमारी होने की अधिक सम्भावना होती है। मद्यपान भोजन नलिका पर भी असर डालता है तथा यह ब्रेस्ट और आँतों का कैंसर भी पैदा करता है और तो और शराब २०० से अधिक बीमारियाँ पैदा करती हैं, पारिवारिक सम्बन्धों को भी प्रभावित करती है।
आयुर्वेद संहिता काल में शराब से होने वाली बीमारी जिसे मदात्यय रोग भी कहते हैं और उसके निवारण पर बहुत कार्य किया गया है। उसी क्रम में भैषज्य रत्नावली में मदात्यय रोग नाशक एक कल्प का उल्लेख प्राप्त होता है जिसका नाम है ‘महाकल्याण वटी।’
हेमाभ्राञ्च रसं गन्धमयो मौक्तिमेव च।
धात्रीरसेन सम्मद्र्य गुञ्जामात्रां वटीं चरेत्।।
भक्षयेत्प्रातरुत्थाय तिलक्षोधमधुप्लुताम्।
सितक्षौद्रायुतां वापि नवनीतेन वा सह।
अयथापानजा रोगा वातजा: कफपित्तजा:।।
गदा: सर्वे विनश्यन्ति ध्रुवमस्य निषेवणात्।।
स्वर्ण भस्म, अभ्रक भस्म, शु. पारद, शु. गन्धक, लौह भस्म और मोती भस्म समान भाग।
सर्वप्रथम पारा गन्धक की कज्जली बनाकर फिर उसमें सभी औषधियाँ मिलाकर आँवले के रस में घोंटकर १२५-१२५ मि.ग्रा. की गोलियाँ बना लें।
१ गोली प्रात: जागकर तिल के चूर्ण और शहद के साथ अथवा खांड और शहद के साथ या गाय के ताजे मक्खन के साथ सेवन करने से मद्यपान से उत्पन्न वातज, कफपित्तज रोग मिट जाते हैं।
आयुष ग्राम चिकित्सालय, चित्रकूट में अपने रोगियों के प्रयोग हेतु इस महौषधि का निर्माण कराया जाता है।
आयुष ग्राम चित्रकूट में महाकल्याण वटी का प्रयोग विभिन्न अनुपान, सहपान, औषध योग, संस्कार और युक्ति से उन असाध्य घोषित रोगियों पर प्रयोग कर उन्हें स्वास्थ्य लाभ दिया जा रहा है जो एलोपैथ से त्यक्त थे।
यह एक ऐसा संतुलित कल्प है जिसमें स्वर्ण, अभ्रक, लौह और मुक्ता का समान मिश्रण है और आँवले के रस की भावना है।
इसमें आँवला रस की ४ और भूमि आँवला और मंजिष्ठा की भी भावना दिलाते हैं तथा रौप्य भस्म का भी योग कराते हैं। इस प्रकार यह औषधि बहुत ही प्रभावशाली बन जाती है।
आचार्य चरक चि. २४ अध्याय में बताते हैं कि ‘मद्य’ हृदय को अपने प्रभाव से आक्रान्त कर हृदयस्थ ‘ओज’ धातु के गुरु आदि दश गुणों को अपने लघु आदि दश गुणों को सक्षुब्ध कर ‘मन’ को विकारी बना देता है।
मद्य द्वारा हृदय के आक्रान्त होने से रस आदि धातु, वात आदि के मार्ग (नाड़ी तंत्र), मन, बुद्धि, इन्द्रिय, चित्त और ओज में विकार आ जाता है जिससे उसके कार्य, व्यवहार और विचारशक्ति में भी अंतर आ जाता है। जैसा कि आचार्य चरक २४/३५ में बताते हैं-
रसावातादिमार्गाणां सत्त्वबुद्धीन्द्रियात्मनाम्।
प्रधानस्यौजसश्चैव हृदयं स्थानमुच्यते।।
किन्तु ‘मृत स्वर्ण’ इस विकृति को मिटाने में जितना कारगर है उतना शायद अन्य औषधि हो। तरंगकार लिखते हैं-
मृतं सुवर्णं मधुरञ्च वृष्यं हृद्यञ्च नेत्र्यं परमञ्च मेध्यम्।
रसायनं पुंसवनोपयोगि विषापहं कांतिकरं च शस्तम्।।
यह हृदय और मेधाशक्ति को निर्विकार करता है, शरीर में उपस्थित किसी भी विषाक्तता का निवारण करता है। आगे तरंगकार लिखते हैं-
‘‘स्वर्णं स्निग्धं मधुर मधुरं वृष्यमायुष्यमग्र्यम्।।’’
यानी स्वर्ण स्निग्ध, अति मधुर, वीर्य वर्धक, आयु के लिए हितकर है। यह रसायनगुण युक्त है। इसीलिए महाकल्याण वटी के आविष्कारक आचार्य ने इस कल्प में स्वर्ण भस्म को एक घटक के रूप में स्थान दिया है। इसमें-
‘‘चिंताशोकभयक्रोधसम्भूतानामयनाशनम् ।।’’ तरंग।।
चिंता, शोक, भय, क्रोध आदि मानसिक विकारों से उत्पन्न रोगों को मिटाने की सामथ्र्य है। महाकल्याण वटी में अभ्रक भस्म भी है जो कि ‘मेधा जनयतितराम्’ (तरंग) यानी मस्तिष्क बलवर्धक और मस्तिष्क पोषक है। अतएव यह मस्तिष्क के विकारों का नाशक एक अद्भुत योग है।
महाकल्याण वटी में मुक्ता भस्म का योग कितनी युक्ति एवं वैज्ञानिकता पूर्वक किया गया है यह शोधाध्ययन करने पर समझ में आता है।
यह तो वैज्ञानिकता सिद्ध है न कि मद्यपायी व्यक्ति के मन, मस्तिष्क, बुद्धि, बल और हृदय पर मद्य का भारी कुप्रभाव पड़ता है। आधुनिक चिकित्सीय अध्ययनों में यह भी पाया गया है कि मद्यपायी व्यक्ति में कैल्शियम का क्षय होने लगता है, रक्त में अम्लीयता बढ़ने लगती है जो कि शरीर में घातक विष के रूप में आता है, इसके निवारण के लिए मुक्ता भस्म से उपयुक्त शायद ही कोई अन्य औषध द्रव्य हो। तरंगकार बताते हैं कि-
मौक्तिकं वृष्यमायुष्यं मधुरं शिशिरं परम्।
इसके अलावा यह दीपनम्, दाहशमन्, हृद्यम्, मेध्यम्, विषापहम्, देहवीर्यबलबुद्धिवर्धनम् भी है।
मोती भस्म शरीर में वीर्य बढ़ाती है, यह आयुवर्धक है, भूख बढ़ाती है तथा दाह को शांत करती है, हृदय के लिए हितकर, मस्तिष्क और मेधा के लिए लाभकर, शरीर और उसके अन्य अवयवों को विषाक्तता रहित करने की सामथ्र्य रखती है।
महाकल्याण वटी में जब आँवला रस की भावना लग जाती है तो यह सर्वदोषघ्न हो जाती है, सुश्रुत ने आँवले को सर्वदोषघ्न (सु.सू. ४६) कहा है। जब हम इसमें भूमि आँवला और मंजिष्ठा भी भावना दिलाते हैं तो यह विशेष रूप से रस, रक्त शोधक, यकृतशोधक, आरोग्यकर और विषघ्न हो जाता है।
चिकित्सा पल्लव जुलाई 2022
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