हार्ट अटैक : स्टेंट काम नहीं आये राजू श्रीवास्तव के क्यो?

 



सामयिकी-

हार्ट अटैक : स्टेंट काम नहीं आये राजू श्रीवास्तव के क्यो?

                पिछले कुछ सालों में कई मशहूर हस्तियों की हार्ट अटैक या कार्डियक अरेस्ट से मौत हो चुकी। ५३ साल के बॉलीवुड सिंगर कृष्णकुमार कुन्नत, पिछले साल २९ अक्टूबर को कन्नड़, सुपर स्टार पुनीत राजकुमार, ९ अगस्त को मराठी फिल्म अभिनेता प्रदीप पटवर्धन की मौत भी हार्ट अटैक से हुयी।

                २ सितम्बर को फिटनेस फ्री, बालिका वधू स्टार सिद्धार्थ शुक्ला १६ जुलाई २०२१ को बॉलीबुड अभिनेत्री सुरेखा सीकरी स्वर्ग सिधारीं। ७४ वर्षीय प्रवीण कुमार (महाभारत के भीम) की मौत भी ७ फरवरी को दिल के दौरे के बाद ही हुयी। भारत के बिग बुल कहे जाने वाले राकेश झुनझुनवाला का ६२ वर्ष की उम्र में १४ अगस्त २०२२ को निधन हो गया।

                भारत के मशहूर स्टैण्डअप कॉमेडियन राजू श्रीवास्तव को बुधवार १० अगस्त को दिल का दौरा पड़ा और आज दिनांक १४ अगस्त २०२२ तक भी दिल्ली एम्स में भर्ती हैं, डॉक्टरों के अनुसार उनका ब्रेन रिस्पॉन्स नहीं कर रहा।

                यह भी ध्यान देने योग्य तथ्य है कि इन सबकी जो मृत्यु हुयी है वे सबके सब खून पतला करने वाली दवाई एस्प्रिन, आइसोरडिल खाने वाले हैं फिर हार्ट अटैक क्यों मौत हो गयी?

                राजू श्रीवास्तव की स्थिति जब आप सुनेंगे तो आधुनिक चिकित्सा पद्धति और उसकी हार्ट में स्टेंट डालने की प्रक्रिया से भरोसा उठ जायेगा। एवीपी न्यूज के अनुसार राजू के टोटल ९ स्टेंट पड़े हैं। १० अगस्त को जब उन्हें दिल का दौरा पड़ा और उन्हें एम्स ले जाया गया तो एक नया स्टेंट डाला गया और दो पुराने स्टेंट का रिप्लेस किया गया।

                राजू को १० साल पहले मुम्बई के कोकिलाबेन धीरूबेन अंबानी अस्पताल में स्टेंट डाले गये, उसके बाद सात साल पहले मुम्बई के लीलावती अस्पताल में भी स्टेंट डाले गये। १० अगस्त २०२२ को भी एक स्टेंट डाला गया। इस प्रकार टोटल १० स्टेंट पड़ गये।

                अब यक्ष प्रश्न यह बनता है कि पिछले १० सालों से राजू के हार्ट में स्टेंट डाले जा रहे हैं पर स्टेंट काम क्यों नहीं आये और १० अगस्त को ऐसा अटैक आया कि जिसने ब्रेन तक को रिस्पॉस करने से रोक दिया?

                आखिर चूक कहाँ हो रही है, हार्ट के इलाज में। इसका हम वैदिक चिकित्सा विज्ञान आयुर्वेद के अनुसार विश्लेषण करेंगे, जो समझने योग्य होगा और हार्ट अटैक तथा उनके मौतों से बचाने में उपयुक्त हो सकेगा और यह विश्लेषण भारत सरकार द्वारा ड्रग एक्ट एवं एनसीआईएसएम के अन्तर्गत मान्यता प्राप्त ग्रन्थ चरक संहिता एवं सुश्रुत संहिता के प्रमाणों के साथ करेंगे।

                यह ध्यान देने योग्य तथ्य है कि हृदय केवल न तो मांस का लोथड़ा है और न ही केवल रक्तसंवहन यंत्र है जैसा मॉर्डन मेडिकल साइंस मानता है, बल्कि यह ऐसा विशिष्ट अवयव है जिसके बारे में आप जानकर दंग रह जायेंगे।

                महान् चिकित्सा वैज्ञानिक चरक बताते हैं कि मानव हृदय (षडंग) सम्पूर्ण शरीर, विज्ञान (आत्मा), ज्ञानेन्द्रियों और उनके पाँच विषय शब्द, स्पर्श, रूप, रस, गन्ध तथा इच्छ, द्वेष, सुख, दु:ख आदि के सहित आत्मा, मन और चिन्तन योग्य जितने भी विषय (विचारण योग्य विषय, ऊह्य, ध्येय और संकल्प) इन सबका आश्रय है। पढ़ें-

षडंगमङ्गं विज्ञानमिन्द्रियाण्यर्थपंचकम्।

आत्मा च सगुणश्चेतश्चिन्त्यं च हृदि संस्थितम्।।

(च.सू. ३०/४)

                हृदय के इतने गहरे रहस्य को जानने वाले प्राचीन चिकित्सा वैज्ञानिक आचार्य चरकहृदय को उसी तरह इन सबका आवश्यक आधार मानते हैं जिस प्रकार घर को आच्छादित करने की लकड़ी को सहारा देने के लिए धरन या बड़ेरी।

                पर अभी इतनी गहराई तक भौतिकवादी विज्ञान, आधुनिक चिकित्सा विज्ञान द्वारा खोजना तो दूर सोच नहीं पाया।


                आचार्य चरक बहुत ही प्रामाणिकता के साथ बताते हैं कि जब शरीर का निर्माण हो रहा होता है तो शरीर में सर्वप्रथम गर्भावस्था में ही ओजनामक पदार्थ की उत्पत्ति होती है इसका वर्ण घृत के समान, रस मधु के समान और गन्ध धान के लावा जैसी होती है। यह कुछ लालिमा और पीलापन लिए श्वेत पदार्थ हृदय में रहता है, यह पदार्थ इतना महत्वपूर्ण है कि इसके नष्ट होने से मानव की मृत्यु हो जाती है।

प्रथमं जायते ह्योज: शरीरेऽस्मिञ्छरीरिणाम्।

सर्पिर्वर्णं मधु रसं लाजगन्धि प्रजायते।।

च.सू. १७/२५।।


हृदि तिष्ठति यच्छुद्धं रक्तमीषत्सपीतकम्।

ओज: शरीर संख्यातं तन्नाशान्ना विनश्यति।।

(च.सू. १७/७४)

                आचार्य बताते हैं कि जब गर्भावस्था में हृदय का निर्माण हो रहा होता है तब वह ओज अपने स्वरूप में हृदय में मुख्य जीवनीय शक्ति के रूप में प्रवेश करता है, जो कि गर्भ में कलल अवस्था में रस के सार के रूप में रहता है। यदि यह (पर) ओज नष्ट हुआ तो मृत्यु हो ही जाती है। हृदय में रहकर यह ओज ही शरीर को नष्ट होने से बचाता है। इसी में प्राणस्थिर हैं। धमनियाँ हृदय से ओजको लेकर समस्त शरीर में प्रसरित करती हैं इसीलिए धमनियों को तत्फला या महाफला कहते हैं।

‘‘संवर्तमानं हृदयं समाविशति यत्पुरा।

तस्य नाशात्तु नाशोऽस्ति धारि यद् हृदयाश्रितम् ... ... ...।।’’

(च.सू. ३०/१०-१२)

        यह सूत्र प्रमाण दे रहा है न, कि हृदय की स्थिति ओज पर निर्भर है।

                चरकाचार्य जी इस सूत्र द्वारा इस विषय को और पुष्ट कर देते हैं कि- ‘‘रस, वात आदि मार्गों का, मन का, बुद्धि का, इन्द्रियों का और ओज का स्थान हृदय बताया जाता है।’’    च.चि. २४/३५।।

... ... ... विहतेनौजसा च तत्।

हृदयं याति विकृतिं तत्रस्था ये च धातव:।।

च.चि. २४/३६।।

                यानी जब किसी कारण से हृदयस्थ ओज डॉवाडोल होता है तो इसका आश्रय स्थल हृदय भी विकृत हो जाता है। जैसे ही या ज्यों-ज्यों हृदय में गड़बड़ी आयी तो सत्त्व, बुद्धि, इन्द्रियाँ, आत्मा जो हृदय में आश्रित होती हैं ये सभी शरीर को छोड़ने लगती हैं।

                अब हम और उन अन्य कारकों पर भी चर्चा करें जो हृदय की स्वस्थता और संतुलन में प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष भूमिका निभाते हैं-

↣ प्राण वायु- प्राणवायु हृदय और मस्तिष्क (स्थानं प्राणस्य मूर्धोर:।। च.चि. २८/१६) में रहकर हृदय को संतुलित और सक्रिय रहता है। प्राणवायु का स्थान चरक ने मस्तिष्क भी बताया है। यही कारण है कि हृदय में गड़बड़ी आने पर मस्तिष्क भी गड़बड़ होने लगता है। इस प्रकार प्राणवायु (Oxygen) की परम आवश्यकता है हृदय के लिए। यही कारण है कि प्रदूषित वायु हृदय को रुग्ण करता है।

↣ साधक पित्त- साधक पित्त नामक पदार्थ भी हृदय में रहकर हृदय को स्वस्थ रखता है, इसकी संतुलित स्थिति से व्यक्ति का आत्मविश्वास संतुलित रहता है, बुद्धि, मेधा का कार्य भी ठीक-ठाक रहता है। साधक पित्त के असंतुलन से ही मानसिक दौर्बल्य, भय, क्रोध, मोह तथा हृदय की विकृतियाँ उत्पन्न हो जाती हैं। सु.सू. २१/१०

↣ अवलम्बक कफ- यह पदार्थ हृदय में स्थित रहकर त्रिक् को धारण करता है तथा अन्न रस की सहायता से हृदय का अवलम्बन करता है इसीलिए इसे अवलम्बक कफ कहते हैं। सु.सू. २१/४।।)

↣ रसधातु- यह शरीर की आद्यधातु है, असंतुलित और दूषित करने वाले कारणों से सबसे पहले यही दूषित होती है तब हृदय का कार्य बाधित हो जाता है, तब हृदय रुग्ण हो जाता है। सु.उ. ४३/४)

                इस प्रकार शास्त्रीय अध्ययन से स्पष्ट हो गया न, हृदय की स्वस्थता ओज (धातु), मानसिक शांति, प्राणवायु, साधक पित्त और अवलम्बक कफ तथा रसधातु के संतुलन पर टिकी है। न कि एस्प्रिन, आइसोसोर्बाइड डाइनाइट्रेट और धमनी विस्फारक दवाओं पर।

                शास्त्र ने हृदय रोग के सही कारण इस प्रकार बताये हैं-

व्यायामतीक्ष्णातिवेरेकबस्तिचिन्ताभयत्रासगदातिचारा:।

द्दद्र्यामसन्धारणकर्शनानि हृद्रोगकर्तृणि तथाऽभिघात:।।

च.चि. २६/७७।।

                व्यायाम की अधिकता, तीक्ष्ण पदार्थों का सेवन, अधिक पेट साफ करना (अधिक विरेचन/बस्ति), चिन्ता, भय, उत्पीड़न के कारण, पूर्व में उत्पन्न बीमारी का सही से उपचार न होना, अधिक वमन, अपच, अजीर्ण से एक प्रकार विष/दोष शरीर में उत्पन्न होना, शरीर को कमजोर करने वाले खान-पान का सेवन और किसी भी तरह का अभिघात (मानसिक, शारीरिक चोट) इन सब कारणों से हृदय रोग उत्पन्न होता है।


                अब एक बार ओज के क्षयके कारणों पर पढ़ लीजिए-

व्यायामोऽनशनं चिन्ता रुक्षाल्पप्रमिताशनम्।

वातातापौ भयं शोको रुक्षपानं प्रजागर:।।

कफ शोणित शुक्राणां मलानां चातिवर्तनम्।

कालो भूतोपघातश्च ज्ञातव्या: क्षयहेतव:।।

च.सू. १७/७६-७७।।

                व्यायाम की अधिकता, अनशन, चिन्ता, अधिक रुक्ष भोजन, अल्प भोजन, बहुत सीमित भोजन, तेज वायु और तेज धूप का अधिक सेवन, भय, शोक, (क्रोध) रुक्ष मद्यपान, रात्रि जागरण, कफ, रक्त, शुक्र और मलों का अधिक निकल जाना, आदानकाल/वृद्धावस्था काल तथा कीटाणुओं के आक्रमण आदि का प्रभाव सीधे ओज पर पड़ता है और वह क्षय होता है। ऐसा ही सुश्रुत ने भी सूत्र १५/२३ में भी बताया है।

                अब आप ध्यान दें कि आज यही हो रहा है, व्यायाम (जिम) का बेतरतीब, असमय, जब चाहें तब सेवन हो रहा है जबकि व्यायाम का सही समय प्रात: होता है। लोग या तो मसल्स बनाने के नाम पर अशास्त्रीय ढंग से अहार ले रहे हैं या स्लिम होने के चक्कर सही ढंग से आहार नहीं ले रहे हैं,ब्लडप्रेशर, शुगर होने पर उसका सही उपचार नहीं करा रहे। कोलेस्ट्राल के भय से गोघृत, गोदुग्ध तक को बन्द रख रहे हैं। जबकि ये द्रव्य ओजवर्धक हैं। उधर मद्यपान से कोई दूरी नहीं, काम या बेकाम से, रात्रि जागरण, तीक्ष्ण दवाइयाँ, डिस्प्रिन आदि का सेवन, तीक्ष्ण मिर्च-मसाले, नमक का भोजन, मैथुन आदि के द्वारा शुक्रधातु का क्षय, उधर वृद्धावस्था आ ही रही है कोई न कोई जीवाणु संक्रमण।

                उसका परिणाम हृदयाघात (हार्ट अटैक) और मौत। न स्टेंट काम आ रहे न खून पतला करने की दवाइयाँ।

                वैसे भी स्टेंट पर अमेरिका जैसे विकसित देश के वैज्ञानिक ने अपने शोध में स्पष्ट कह चुके हैं कि स्टेंट की अपेक्षा औषधीय चिकित्सा सफल है। आचार्य चरक ने ५००० साल पहले ही लिख चुके हैं कि-

तस्योपघाताान्मूच्र्छाय भेदान्मरणमृच्छति।।’   च.सू. ३०/६।।

                अर्थात् हृदय में आघात (चोट) होने पर मूच्र्छा और भेदन से मृत्यु तक हो जाती है। पर लोग स्टेंट के द्वारा हृदय को भेद रहे हैं। एक स्टेंट, दूसरा स्टेंट, स्टेंट रिप्लेस आदि और कुछ दिन बाद मौतें हो जाती हैं।

                अब चर्चा करें हार्ट अटैक से बचाव पर शास्त्रीय और वैदिक स्वरूप में। आचार्य चरक ने एक महत्वपूर्ण सूत्र दिया है कि जिन कारणों से धातु वैषम्य यानी रोग उत्पन्न होता है उनका त्याग करने से तथा धातुसाम्यता यानी आरोग्य की प्राप्ति कराने वाले कारकों का सेवन करने से किसी भी रोग की परम्परा ही नष्ट होने लगती है और आरोग्य प्राप्त होने लगता है। च.सू. १६/३६।।

                ध्यान रहे कि रोग और शरीर इतना खराब न कर लिया गया हो कि कुछ हो ही न सके। इस सूत्र के आधार पर हृदय रोग के जो वैदिक चिकित्सीय कारण बताये गये हैं उनसे विलोम चल देना है, बस! हार्ट चकाचक।

                ‘‘हम संतुलित व्यायाम करें, तीक्ष्ण पदार्थ, चाय, कॉफी, तेल, अचार, नमक, सोड़ा, अम्ल आदि का सेवन बिल्कुल नहीं या बहुत कम मात्रा में, पेट सफा या पेट साफ करने वाले उपक्रमों से दूरी या चिकित्सक की सलाह से उनका प्रयोग। प्रसन्नता, निर्भयता रखना इसके लिए योग-प्राणायाम और भगवान् पर भरोसा यदि कोई बीमारी उत्पन्न हो चुकी तो उसका समूल या अच्छा उपचार। अजीर्ण, अपच न हो इसके लिए आहार के नियमों का सही पालन तथा मानसिक और शारीरिक आघात से दूरी बनाना।

                आचार्य चरक यह भी कहते हैं कि जिन भावों का शुभ और सकारात्मक संयोग व्यक्ति को संतुलित रखते हैं उन्हीं भावों की अशुभ उपस्थिति मानव को रोगी बना देती है। (च.सू. २५/२९)।

                इसीलिए हमें हृदय के आरोग्य के लिए शुभ और सकारात्मक संयोग बनाये रखना है।

                इतने विश्लेषण से काफी तथ्य स्पष्ट हो गये होंगे। अंत में हम लिखते चलें कि आचार्य चरक हृदय के संरक्षण हेतु अकाट्य और पूर्ण वैज्ञानिक चिकित्सा सूत्र बता रहे हैं उन्हीं के आधार पर आयुष ग्राम में लगातार ऐसे-ऐसे हार्ट रोगियों को स्वस्थ किया गया या किया जा रहा है जिन्हें राजू श्रीवास्तव की तरह कई-कई बार स्टेंट डाला चुका था या स्टेंट डालने को कहा गया था या जिन्हें बाईपास सर्जरी के लिए कहा गया था। उनमें से हार्ट रोगी डॉक्टर भी हैं वे आज भी अच्छा जीवन जी रहे हैं। उनमें से कुछ की राय भी प्रकाशित की जा रही है। वह सूत्र हैं-

तन्महत् ता महामूलास्तच्चौज: परिरक्षिता।

परिहार्या विशेषेण: मनसो दु:खेहेतवा:।।

हृद्यं यत्स्याद्यदौजस्यं स्रोतसां यत्प्रसादनम्।

तत्तत् सेव्यं प्रयत्नेन प्रशमो ज्ञानमेव च।।

च.सू. ३०/१३-१४।।

                हृदय की तथा हृदय से निकली धमनियों की और जीवनरक्षक ओज की रक्षा करते हुए, मन को संतप्त करने वाले कारणों का विशेष रूप से परित्याग कर देना चाहिए तथा जो-जो आहार या औषध एवं जीवनशैली हृदयसंरक्षक हों, ओज को बढ़ाने वाले हों, उन-उन का ढूँढ-ढूँढकर सेवन करना चाहिए तथा शान्तिमय वातावरण में रहते हुए ज्ञान की उपासना करना चाहिए।

                प्रज्ञापराध तथा शास्त्रीय स्वास्थ्य नियमों के उल्लंघन की ओर बिल्कुल नहीं जाना चाहिए।

                हार्ट अटैक से जितनी या जिनकी मौतें होती हैं आप देखेंगे कि उनमें सभी अशास्त्रीय चिकित्सा के गुलाम होते हैं। शास्त्रीय वैदिक चिकित्सा और वैदिक आचरणवान् एक भी व्यक्ति की हार्ट अटैक से मृत्यु नहीं होती क्योंकि हार्ट की चिकित्सा में वैदिक चिकित्सा बहुत श्रेष्ठ है, उसका कोई जवाब नहीं। इसके कुछ प्रमाण इस प्रकार हैं।

                आज नहीं कल वह समय आयेगा कि जैसे कोराना में अंग्रेजी चिकित्सा से दुनिया का विश्वास उठ गया था और आयुर्वेद ही उपयुक्त चिकित्सा मानी गयी वैसे ही स्टेंट डलवाये, एलोपैथी में आश्रित लोगों की जब इसी तरह हार्ट अटैक से मौतें होती जायेंगी और आयुर्वेद पर आश्रित हार्ट रोगी चकाचक होते जायेंगे तो सभी आयुर्वेद की ओर भागेंगे।


आयुष कार्डियोलॉजी से इनका जीवन बचा!!

  स्टेंट डालकर बर्बाद कर दिया था                              

 
मैंने जल्दबाज़ी में हार्ट में स्टेंट डलवा लिए, वे फेल हो गये, डॉक्टरों ने 
 फिर स्टेंट डाले इसके बाद
 भी कमजोरी, सांस फूलना,उत्साहहीनता और     मरने का भय बना रहता था। फिर मैं "आयुष ग्राम चिकित्सालय" चित्रकूट पहूँचा। वहाँ भर्ती हुआ चिकित्सा शुरू हुयी, पहले माह में ही मुझमें ऊर्जा का संचार हो गया। आज 5 साल हो गये, बिल्कुल चकाचक हूँ। आप भी लाभ उठायें। 

    - रामाधार कुशवाहा, पन्ना मोड,

सेंट्रल बैंक के सामने, कटनी (म.प्र.) 

मेरे भाई का स्वर्गवास हो गया!! 

कहानी यह बनी कि हम दोनो भाई हार्ट के रोगी हुए। भाई ने एलोपैथ पद्धति से हार्ट में स्टेंट आदि कराया, मैंने आयुष ग्राम चिकित्सालय की आयुष कार्डियोलॉजी से चिकित्सा कराया। स्टेंट डलवाने के बाद मेरे भाई 2 साल बाद स्वर्गीय हो गये। मैंने 2-2 बार आयुष ग्राम में पंचकर्म कराया, वहाँ की चिकित्सा ली, आज मैं स्वस्थ हूँ। मैं कह रहा हूँ कि हार्ट का इलाज आयुर्वेद से करायें।  

- डॉ॰ अनिल सिंह, चांदमारी रोड, शिवदुर्गा मंदिर,

गली नं. 2, धवारी, सतना (म.प्र.)       


हमेशा आयुष कार्डियोलॉजी अपनायें : भले ही स्टेंट डलवा चुके हों।  


"इतनी प्रभावशाली है आयुष आयुष से हार्ट की चिकित्सा" 

हार्ट की सर्जरी से बच गया!!

 ↣   मैं वरिष्ठ चिकित्सक डॉ. श्रीप्रकाश त्रिपाठी उम्र ७७, नगरपालिका रोड छिबरामऊ, कन्नौज (उ.प्र.) से हूँ। मेरी पत्नी डॉ. शोभा त्रिपाठी।

↣      मुझे २३ जून २०२१ को हार्ट अटैक आया, मैंने केजीएमयू लखनऊ में दिखाया, वहाँ जाँच हुयी फिर ऑपरेशन के लिए कहा गया।

↣     तभी चिकित्सा पल्लवमासिक से मुझे आयुष ग्राम चिकित्सालय की आयुष कार्डियोलॉजी का पता चला और मैं १५ मार्च २०२२ को आयुष ग्राम चित्रकूट पहुँच गया।

↣      जब मैं आयुष ग्राम चित्रकूट पहुँचा उस समय मेरी श्वास बहुत फूल रही थी, घबराहट, बेचैनी बहुत रहती थी, २ कदम चलने में ही लगता था कि गिर जायेंगे। मुझे १५ दिन में ऐसा आराम, ऐसी ऊर्जा मिलने लगी जो पहले एलोपैथ से कभी नहीं मिली थी।

  आज मुझे ४ माह चिकित्सा करवाते हो गये और इस समय दवायें भी काफी कम करवा दी हैं, मुझे ७०% से अधिक लाभ है। जैसी मेरी उम्र है उसके हिसाब से मैं खूब चल-फिर लेता हूँ, श्वास में पहले से बहुत आराम है, सिर्फ  हल्की कमजोरी महसूस होती है, ब्लडप्रेशर की एलोपैथ दवा बन्द होने के बाद भी ब्लडप्रेशर नार्मल रहने लगा है।

-    डॉ॰ श्रीप्रकाश त्रिपाठी,

   नगरपालिका रोड, छिबरा मऊ,


हार्ट की सर्जरी से बचें - डॉ. बनवाल

       मैं 76 वर्ष डॉ॰ एम.एम.बरनवाल ७ अगस्त २०२० को सुबह फिर से छाती में दर्द और खिंचाव हुआ। मैं मुम्बई कार्डियोलॉजी में गया, मुझे भर्ती कर लिया गया, चिकित्सा शुरू हुयी, ३ दिन तक रखा। मुझे कहा गया कि आपको हायपर अटैक आया है मैं इलाज के लिए कार से जाने लगा तो रास्ते में ही छाती में दर्द और पसीना-पसीना हो गया। वहाँ ७ दिन रहा, वहाँ से आते समय फिर कार में अटैक हुआ। घर आया एक हफ्ते बाद फिर से अटैक हुआ तो मुझे फोर्टेज हॉस्पिटल में भर्ती कराया गया। डॉक्टरों ने एंजियोप्लास्टी, ओपेन सर्जरी की सलाह दी।, मैं आयुष ग्राम आना चाहता था लेकिन कोरोना काल में सभी ट्रेनें बन्द थीं। १ साल तक एलोपैथिक दवायें लेता रहा, जो फलो 35% था वह 1 साल में 30%, दूसरी साल में 25% रह गया। हालत यह हुयी कि मुझे 5 मिनट चलने पर छाती में दर्द और खिंचाव होने लगा। फिर आयुष ग्राम में सम्पर्क  किया, चिकित्सा शुरू हुयी, अब तो दो माह की चिकित्सा से मैं अब ३० मिनट चल लेता हूँ कोई खिंचाव व दर्द नहीं है।

       मैं दोनों समय क्लीनिक जाता हूँ, ओपीडी करता हूँ, मैं पूरा इलाज करूँगा, आयुष में हार्ट का इलाज बहुत अच्छा है यह मैं कह सकता हूँ।

 

- डॉ.एम.एम. बनवाल,

आमोद क्लीनिक, संतोषी माता मंदिर मार्ग कल्याण, थाणे (महाराष्ट्र)



आप अपने मोबाइल फोन से बगल में दिये गये "क्यूआर कोड" को स्कैन कर किसी भी यूपीआई एप से घर बैठे चिकित्सा पल्लव का शुल्क रु॰ 200+250 रजिस्ट्री डाकखर्च कुल मिलाकर रु॰ 450.00 मात्र वार्षिक सदस्यता भुगतान करने का कष्ट करें। ताकि आपको 'चिकित्सा पल्लव' नियमित मिलती रहे यह सुविधा जनक है। भुगतान होने पर मोबाइल का स्क्रीन शॉट व डाक का पूरा पता हमें व्हाट्सएप नं॰ 8009222138, 6388067005 पर भेज दें, चिकित्सा पल्लव का हर अंक पंजीकृत डाक से मिलना प्रारम्भ हो जायेगा।     








आचार्य डॉ. मदनगोपाल वाजपेयी!

चिकित्सा पल्लव अगस्त 2022







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