भारत की चामत्कारिक जड़ी-बूटियाँ-




 

ऐन्द्री (Bacopa Monnieri)

को जानें बचेंगे हार्ट अटैक से !!    

युवकों में हार्ट अटैक के मामले बढ़ रहे हैं। ये हार्ट अटैक युवकों में तनावअशान्तिअधीरताबेचैनी और मानसिक अस्त-व्यस्तता के कारण भी बन रहे हैं वैज्ञानिक शोधों से भी यह प्रमाणित हो चुका है कि हार्ट की स्वस्थता में मानसिक चिन्तनआचरण और मानसिक व्यवस्था तथा अव्यवस्था की बहुत बड़ी भूमिका है।

                इसके लिए यह केस जीता जागता प्रमाण है। पिछले वर्ष अक्टूबर में भोपाल (म.प्र.) से एक आईएएस अधिकारी अपने २१ वर्षीय बेटे को लेकर आयुष ग्राम चिकित्सालयचित्रकूट आयेसमस्या यह थी कि भोपाल के जाने माने कार्डियोलॉजिस्ट ने चेतावनी दी है कि तनाव के चलते इसे एक बार माइनर हार्ट अटैक आ चुका है अब दुबारा कब आ जाय हम कह नहीं सकते। उसे वे सोने की दवाइयाँ तो दे रहे थे पर उससे उस बालक की याददाश्त (Memory) प्रभावित हो रही थी।

                आयुष ग्राम चिकित्सालयचित्रकूट में १५ दिन चिकित्सा करके नींद लाने वाली दवाइयाँ बन्द करायी गयींउसकी याददाश्त दुरुस्त हुयी और एक वर्ष हो गये कोई हार्ट अटैक नहीं आया। अभी पिछले माह अपने बेटे और उसकी १ साल बाद की रिपोर्ट लेकर वे आईएएस अधिकारी आयुष ग्राम चित्रकूट आये तो बहुत ही प्रसन्न थे। कहा कि पूरा साल हो गया कोई हार्ट अटैक नहीं आया। बच्चे की सेहत बदल गयी। रिपोर्ट भी संतोषजनक हैहार्ट की खराबी आगे नहीं बढ़ी।

                रअसल चिकित्सा और औषधियों का चुनाव उतना ही सटीक होता है जितना सटीक रोग की सम्प्राप्ति होगी। जब यह स्पष्ट हो गया कि तनाव के कारण ही इसका हार्ट बीमार हुआ है तो हमें वही चिकित्सा देनी पड़ेगी।

                आयुष ग्राम चित्रकूट में सन् २०१३ में अकीक पिष्टीमाणिक्य पिष्टीरससिन्दूरमुक्ता पिष्टी और रजत भस्म में ऐन्द्री (Bacopa Monnieri) की २१ भावनायें दिलाकर एक कल्प तैयार कराया गया था इसका नाम मेधा हृदय कल्प’ दिया था। पंचकर्म के साथ-साथ इस कल्प का प्रयोग और साथ-साथ ब्राह्म रसायनब्राह्मी घृत और ब्राह्मीद्राक्षादि कषायम् का प्रयोग किया गया। जिसके सुन्दर परिणाम आये। आचार्य प्रियव्रत शर्मा लिखते हैं-

ऐन्द्री तु जल निम्बाख्या तिक्तोष्णा दीपनी सरा।

मेध्या हृद्या च कुष्ठघ्नी ज्वरघ्नी कफवातजित्।।

उन्मादवन्हिमांद्यामविवन्धसृग्रुजापहा।

ज्वरे कासे विषे शोथे दौर्बल्ये चाऽथ शस्यते।।

                ऐन्द्री जिसे जलनीम कहते हैं वह गरम रस में तिक्त और गरम होती है। तनाव के कारण शरीर में जो विषैले हार्मोन्स का स्राव होता है उसका संचय आँतों में होता है वहीं से वायु’ के संयोग से रसफिर रक्तधातु में मिलकर हृदय को प्रभावित कर दोषों को उन्मार्ग गामी कर उन्माद पैदा करता है। ऐन्द्री’ उस विष को अपने सर’ गुण से आँतों से हटाकर मल मार्ग से बाहर कर देती हैयह भूख को जगाती है और रोग प्रतिरोधक क्षमता वर्धक है। लम्बे समय तक तनावअवसाद या मनोविकारों से ग्रस्त रहने से रक्त दूषित हो जाता हैयदि किसी कारण से रक्त दूषित हो जाता है तो मनोविकार आ जाते हैं।

                आचार्य चरक स्पष्ट लिखते हैं- संतापै ... ... ... शोणितं संप्रदुष्यति।। सू.२४/१०।। यानी मानसिक और शरीर के दु:खित (संतप्त) रहने से रक्त दूषित हो जाता है। इसके अलावा महर्षि चरक का चिकित्सा कौशल देखिए वे कहते हैं- क्रोधप्रचुरताबुद्धे: सम्मोहो मद:स्वरक्षय:तन्द्रानिद्रातियोगश्च विकारा सर्व एवैते विज्ञेया: शोणिताश्नया:।। च.सू. २४/१६।। यानी दूषित रक्त से क्रोधाधिक्यताबुद्धि भ्रमआलस्य और निद्रातियोग आदि विकार होते हैं। उन्होंने यह भी बता दिया कि-

   प्रसन्नवर्णेन्द्रियमिन्द्रियार्थानिच्छन्तमव्याहतपक्तृवेगम्।

सुखान्वितं पुष्टिबलोपपन्नं विशुद्ध रक्तम पुरुषं वदन्ति।।

                                                                  च.सू. २४/२४।।

                शुद्ध रक्त वाले स्त्री-पुरुष में सुन्दरताइन्द्रियों की स्वस्थता और पाचन स्वस्थता उसकी दासी बन जाती है उसे न कब्ज की शिकायत रहती न कमजोरी न वह कुपोषित होता।

                वैदिक चिकित्सा में ऐन्द्री’ एक ऐसी जड़ी-बूटी है जो अकेले अपने तिक्त’ रस से रक्त दोष का निवारण करने में तो रसवह और रक्तवह स्रोतस् में कार्यकर उन्मार्गगामी हुए दोषों को व्यवस्थित कर हृद्य को आरोग्यवान् बनानेआम पाचन कर शरीर को निराम बनानेविबन्ध (कब्ज) को हटाने में समर्थ है। साथ ही अग्निमांद्य को निरस्त कर अन्दर से मनोबलआत्मबल को सुदृढ़ कर दुर्बलता भी मिटाती है। आचार्य वाग्भट कहते हैं कि करुणाद्र्र मन: शुद्धं सर्व ज्वर विनाशनम्।’ यानी सात्विक और करुणा से परिपूर्ण मन सभी ज्वरों को नष्ट कर देता है और श्रीमद्भागवतकार कहते हैं कि- चित्तं विशुद्धं वसुदेव संज्ञितम्।।’ यानी विशुद्ध चित्त ही वसुदेव हैं और ऐसे चित्त से ही वासुदेव (भगवान्) का प्रकाट्य होता है।

                इस प्रकार ऐन्द्री मन को उन्माद रहित कर सतोगुण युक्त कर ज्वर (पीड़ा) को मिटती तथा मन को बहुत उन्नत बना देती है। आवश्यकता है ऐसी दिव्य औषधियों का उपयोग कर अपनाने और अपनो को बचाने की। प्रभु श्रीराम की तपोभूमि चित्रकूट में स्थित आयुष ग्राम चिकित्सालय इसी दिशा में कार्य कर रहा है। अन्यथा अंग्रेजी चिकित्सा की पाश्चात्य परम्परायें मानव के स्वास्थ्य मिटाने के लिए मुँह बाये खड़ी हैं।

ऐन्द्री ने मधुमेह मिटाया!!

                मथुरा (उ.प्र.) से एक परिवार में माता-पिता और बड़े भाई (सभी) को मधुमेह हो गया। वे आयुष ग्राम चिकित्सालयचित्रकूट आये। केसहिस्ट्री के दौरान उन्होंने बताया कि हमारे छोटे बेटे की मृत्यु एक दुर्घटना में हो गयीउसके ६ माह बाद हम सबको मधुमेह ने जकड़ लिया। कारण स्पष्ट था कि शोक और मानसिक आघात से मधुमेह का आगमन हुआ। चिकित्सा में प्रमेह नाशक औषधियों के साथ ऐन्द्री स्वरस ३०-३० मि.ली. और हल्दी चूर्ण १-१ ग्राम सेवन कराया, ब्राह्मी वटी रसयोग सागर ग्रन्थ के मत से बनी पर उसमें २१ भावना ऐन्द्री रस की दिलाकर तैयार करायीउसका भी प्रयोग कराया गया। भोजन में देशी चने की रोटी गोघृत और लौकीपरवल की सब्जीआँवला की चटनी। १ साल की चिकित्सा से पूरा परिवार मधुमेह मुक्त हो गया कई बार जाँचें कराने पर सामान्य ही आती हैं।

ज्वर मिट गया!!

                आयुष ग्राम ट्रस्ट के १ पदाधिकारी को अचानक ज्वर आने लगा जो १०४एफ तक हो जाता। कु. वन्दना यादव नर्स को ड्यूटी देकर निम्नांकित औषध व्यवस्था दी गयी। भूमि आँवला क्वाथ २०-२० मि.ली. हर २ घण्टे में। ब्राह्मी वटी स्वर्ण (रसयोग सागर) (ऐन्द्री स्वरस की २१ भावना युक्त) १-१ गोली संजीवनी वटी और कालमेघ घनसत्व ५००-५०० मि.ग्राम दिन में २ बार दिया गया। २४ घण्टे में बुखार मिट गया और ५ दिन में पूर्ववत् स्वस्थ हो गया।

                                                                                                                                               

                                                                                                                 आचार्य डॉ0 मदन गोपाल वाजपेयी

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*आयुष ग्राम चिकित्सालय* 

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