हर पाँचवें को करोना ओमिक्रोन कैसे निपटे आराम से ?

 

**हर पाँचवें को करोना ओमिक्रोन कैसे निपटे आराम से**               

२५ जनवरी को सरकार ने घोषित कर दिया कि इस समय हर पाँचवाँ व्यक्ति संक्रमित मिल रहा है। १३ जनवरी २०२२ को विश्व स्वास्थ्य संगठन ने आगाह किया था कि कोरोना का ओमीक्रॉन स्वरूप डेल्टा से तेजी से आगे निकल रहा है, उन्होंने आगे यह भी चेताया कि ओमीक्रोन प्रतिरक्षा शक्ति से बच निकल सकता है। १६ जनवरी को विशेषज्ञों ने कहा कि देश में कोरोना की तीसरी लहर चल रही है जिससे दैनिक संक्रमण १६ फीसदी पार चली गयी है। विशेषज्ञों ने यह भी कहा दुनिया में ओमिक्रॉन वैरिएंट के कारण कोरोना के मरीजों की बढ़ती संख्या अब मौतों की संख्या भी बढ़ रही है।

२१ जनवरी २०२२ को विश्व स्वस्थ्य संगठन ने कहा कि कोरोना खत्म नहीं हो रहा बल्कि ओमिक्रॉन के बाद नये वैरिएंट आ सकते हैं। अमेरिका के महामारी संक्रामक रोग विशेषज्ञ डॉ. एंटनी फॉसी ने कहा कि टीकों के चकमा देन वाले वैरिएंट आ सकते हैं। २३ जनवरी २०२२ को वैज्ञानिकों ने चिंता व्यक्त की कि ओमीक्रोन का नया स्वरूप ज्यादा संक्रामक है। यह पता लगाना संभव नहीं कि इस रूप की उत्पत्ति कहाँ से हुयी।

२४ जनवरी की रिपोर्ट आयी कि ब्राजील जो कि भारत के उत्तर प्रदेश के राज्य लगभग बराबर हैं उसमें कोविड संक्रमण बहुत भयावह रूप में हो गया।

हमने पिछले वर्ष कोरोना काल में मीडिया स्वराजके एक्सपर्ट पैनल वार्ता में कई बार यह बात दोहरायी थी कि कोरोना जैसी समस्या कोई नहीं है, हमेशा से ऋतुजन्य व्याधियाँ होती आयी हैं और आगे भी आती रहेंगी नाम चाहे जो रहे। हमारी यह भविष्य वाणी सच सिद्ध हुयी न।

दरअसल आयुर्वेद ने हजारों साल पहले बता दिया था कि असात्म्येन्द्रियार्थ संयोग, प्रज्ञापराध और कालविपर्यय से रोग होते हैं। जब भी मौसम में परिवर्तन आयेगा तो विषाणुओं की उत्पत्ति और प्रसार होना अवश्यम्भावी है। इसीलिए सरङ्ग्धर ने ऋतुसंधिको यमराज की दाढ़ कहा है।

भारत के महान् चिकित्सा वैज्ञानिक आचार्य चरक ने लिखा है कि किस ऋतु में किस प्रकार की जीवनशैली (स्नान, मैथुन, व्यायाम, मालिश, निद्रा आदि व्यवहार) और भोजनशैली अपनानी है इसका गहराई से ज्ञान कर उसका कड़ाई से पालन करता है, उसका बल/इम्युनिटी वर्ष की वृद्धि होती है और रोगों से बचा रहता है। (च.सू. ६/३)

 ➤ योगरत्नाकर कार आपके स्वास्थ्य की गारण्टी लेते हैं वे कहते हैं ‘‘छह ऋतुओं की जीवनशैली (निद्रा, मैथुन, शारीरिक श्रम, मालिश) और आहारशैली के जो नियम होते हैं उन-उन नियमों का जो व्यक्ति पालन करता है तो उसे उन-उन ऋतुओं में फैलने वाली बीमारियाँ नहीं होतीं, उनकी व्याधि क्षमत्व शक्ति (इम्युनिटी) बहुत अच्छी रहती है। (यो.र. ऋतुचर्या प्रकरण)

ऋतुचर्या का पालन न करने और प्रमाद करने से शरीर के वातादि दोष प्रकुपित हो जाते हैं जिसका प्रभाव कायाग्नि (इम्युनिटी) पर पड़ता है। आचार्य कश्यप कल्प स्थान में बताते हैं कि ऐसी दशा में पाचन प्रणाली बिगड़ जाती है, परिणामत: किया गया भोजन शरीर को पोषित न कर कफ रूप धारण कर लेता है, उसी कफ को शारीरिक वायु, लेकर शरीर के स्रोतस् (चैनल्स) में गति करता है जिससे शारीरिक चैनल्स अवरुद्ध हो जाते हैं फिर पित्त भी उभड़ जाता है और वायु से प्रेरित कफ और पित्त मिल जाते हैं परिणामत: ज्वर, हृल्लास, अरुचि, पर्वभेद, विसूचिका और भी अनेक प्रकार के रोग पैदा होकर रोगी को कष्ट देते हैं। (कश्यप संहिता कल्प स्थान) जिसका २१वीं सदी में नाम होगा कोरोना, भोरोना, सार्स, ओमिक्रॉन, स्वाइन फ्लू और न जाने क्या-क्या?

इस प्रकार पाठक-पठिकाओं को समझ में आ गया होगा कि हमारे ऋषि चिकित्सा ज्ञान ने सबकुछ बता रखा है आवश्यकता है समझने, पालन करने, सावधानी बरतने की। यही बात हमारे भारतीय ज्ञान-विज्ञान ने कही है और यही आज के चिकित्सा वैज्ञानिक।

खान-पान में ध्यान रखें- घर का बना ताजा, हल्का, सुपाच्य भोजन करना चाहिए। सुबह आँवला १ अदरक २० ग्राम, मुनक्का १०, लौंग १० और तुलसी २० पत्ती को कुचलकर ५०० मि.ली. पानी में पकायें पकते समय स्वादानुसार गुड़ डाल दें। पकते-पकते जब १५० मि.ली. बचे तो उतारकर सभी ४०-५० मि.ली. गरम-गरम पानी का ही सेवन करें। संक्रमित व्यक्ति को होम आइसोलेशन में रहना चाहिए तथा मानसिक शारीरिक पर्याप्त आराम करें।

बेवजह दवायें न लें- एम्स नई दिल्ली ने सवाल उठाया है कि बीते २ साल में भारतीय लोगों के शरीर में इन डॉक्टरों ने लगभग ५०० करोड़ की वे दवायें तक घुसेड़ दी हैं, इन दवाओं को न तो कोरोना प्रोटोकॉल में शामिल किया गया है और न ही उपयोगी हैं ये दवायें २ डीजी, पिराविर, आइवरमेक्टिन और एचीसीक्यू। पैरासीटामोल तो इतनी खायी गयीं कि जिसका १ पहाड़ बन सकता है।

बुखार होने पर संजीवनी वटी २ गोली, कलौंजी चूर्ण ५ ग्राम, थोड़ा गुड़ मिलाकर दिन में २-३ बार सेवन करना चाहिए। तेज हवा से बचना चाहिए। अपामार्ग (चिरचिटा) के पौधे का काढ़ा गरम-गरम बनाकर दिन में २-३ बार सेवन करने से जुकाम, बुखार, सिरदर्द, बदन दर्द में चामत्कारिक लाभ होता है। १ पौधे को जड़ सहित उखाड़कर छाया में सुखाकर कूटकर रख लें, १० ग्राम यह पाउडर, ८ कालीमिर्च १०० मि.ली. में पकायें, जब १ कप बचे तो छानकर पिलायें, स्वाद के लिये थोड़ा गुड़ भी डाल सकते हैं। ५ दिन में सारे विषाणुजन्य ज्वर और कमजोरी मिट जायेगी।


च्यवनप्राश का सेवन अवश्य करें- ध्यान रहे सही ढंग से निर्मित च्यवनप्राश इतना सस्ते में नहीं उपलब्ध हो सकता जितना आजकल कम्पनियाँ उपलब्ध कराती हैं। आयुष ग्रामचित्रकूट में अब च्यवनप्राश का निर्माण होगा, च्यवनप्राश का निर्माण हम फाल्गुन मास में तोड़े गये पेड़ में ही पक चुके आँवले से कराते हैं बहुत ही अद्भुत गुण प्रदर्शित करता है।

➤   बीमारी के बाद की कमजोरी में- चिकित्सक के परामर्श से त्रैलोक्यचिंतामणि रस, स्वर्णमालती बसंत, स्वर्ण ब्राह्मी वटी, सितोपलादि चूर्ण भी मधु से ले सकते हैं।

➤   बुजुर्ग, गर्भवती, बच्चे व बीमार लोग विशेष ध्यान दें क्योंकि इनको संक्रमित होने का जोखिम बहुत रहता है।

 योग प्राणायाम, शंख बजाना, जप, ध्यान- रोगी और स्वस्थ दोनों के लिए गहरी सांस लेने वाला योग बहुत ही लाभप्रद है इससे प्राणवहस्रोतस् और फेफड़े स्वस्थ तथा मजबूत रहते हैं। वैज्ञानिक तथ्यों से यह प्रमाणित हो चुका है कि ध्यान, जप, योग, प्राणायाम से आस्था मजबूत होती है यह आध्यात्मिक शक्ति रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाती है।

➤   १५ मई २०२० को दैनिक जागरण ने भी अपनी सम्पादकीय में आत्मबल की महिमाशीर्षक से सम्पादकीय लिखा, बताया कि प्रयागराज में एक ही परिवार के २६ लोगों ने पूरी दमदारी से मात दिया कोरोना को और यह साबित कर दिखाया कि जहाँ कोरोना होते ही घर-परिवार के लोग भयभीत होकर आक्सीजन और अस्पताल में बेड के लिए जूझते रहे, वहीं इस परिवार जिसमें लोग कोरोना पॉजिटिव थे, सभी लोग ३२ कमरों वाले मकान में अलग-अलग आइसोलेट हुये खान-पान सात्विक लिया, मंत्र, जप, ध्यान, योग, हवन, प्राणायाम पर विशेष ध्यान दिया, सबसे बड़ी बात यह कि सभी सामर्थ्य के अनुसार शंख ध्वनि करते रहे। कुछ दवाइयाँ लेते रहें और सब के सब ठीक हो गये।

                आयुर्वेद शास्त्र में इसीलिए देवव्यापाश्रय चिकित्सापर विशेष ध्यान देने की बात बतायी गयी है। इसे अवश्य अपनाना चाहिए।

✒ आचार्य डॉ मदन गोपाल वाजपेयी

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