⇒ बहुत ही दु:खद विषय है कि दुनिया में जितनी मौतें होती हैं उसमें से ४ में से १ मौत हार्ट अटैक से होती है। हार्ट अटैक से होने वाली मौतों में से ५०³ मौतें ५० साल से कम उम्र वालों की और २५% मौतें ४० साल से कम वालों की होती हैं।

        यह हमारे लिए कितनी शर्मनाक बात है कि दुनिया में जितने हार्ट रोगी हैं उनमें ६०% अकेले भारत में ही हैं। यानी यदि दुनिया में १० करोड़ हार्ट रोगी हैं तो ६ करोड़ भारत में हैं।

विडम्बनापूर्ण स्थिति देखिए कि भारत में प्रतिवर्ष ३० लाख लोग हार्ट अटैक से ही मरते हैं  यानी ९-१० हजार लोग हर माह हार्ट अटैक से मर रहे हैं। पिछले वर्ष कोविड-१९ से लगभग १.५० मौतें हुयीं यह जानकारी सभी को है पर केवल हार्ट अटैक से पिछले ९ माह में २२-२३ लाख मौतें हो गयीं।

⇒ आधुनिक चिकित्सा विज्ञान (एलोपैथ) ने प्रगति तो की है किन्तु युवाओं, की हार्ट अटैक से हो रही मौतें में वह अक्षम हैं।

⇒ २ सितम्बर २०२१ को टी.वी. एक्टर सिद्धार्थ शुक्ला फिर २९ अक्टूबर २०२१ को ४६ वर्षीय सुपर स्टार पुनीत राजकुमार की मौतें भारतवासी भूले नहीं थे कि १३ जनवरी २०२२ को एक प्रसिद्ध अखबार के उप सम्पादक पद पर कार्यरत ५६ वर्षीय अनिल शर्मा की हार्ट अटैक से मौत हो गयी और १४ जनवरी २०२२ को एन.डी. टी.वी. के वरिष्ठ पत्रकार कमाल खान की हार्ट अटैक से मौत ६१ साल में हो गयी। इनमें से कमाल खान साहब और अनिल शर्मा तो अपने स्वास्थ्य को लेकर बहुत सचेत थे, खून पतला रखने की दवा इकोस्प्रीन भी खाते थे। फिर भी मौतें हार्ट अटैक से।

⇒ इतना ही नहीं प्रसिद्ध क्रिकेटर ६१ वर्षीय कपिल देव को हार्ट अटैक का दौरा पड़ा, प्रसिद्ध डांसर रेमोडिसूजा उम्र ४६ को भी हार्ट अटैक हुआ और तो और सफोला तेल का प्रचार करने वाले क्रिकेटर सौरभ गांगुली को ४८ साल की उम्र में हार्ट अटैक हो गया।

⇒ इन घटनाओं से यह तो स्पष्ट है न, कि आधुनिक चिकि
त्सा विज्ञान (एलोपैथी) अभी भी हार्ट से हो रही मौतों के समाधान के पास तक नहीं पहुँची तो किडनी, लिवर आदि रोगों से होने वाली मौतों पर पूरी तरह से पे
âल है। वहीं हमारे देश में आज भी ऐसे-ऐसे व्यक्ति हैं जो १० दशक पूरे कर चुके और उनका हार्ट, किडनी, लिवर एकदम चकाचक हैं।

⇒ हमारे देश के यशस्वी प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी ७१ वर्ष में भी चकाचक हैं तो उनकी माँ की उम्र ९७ साल है। वे पूरी तरह से तन्दुरुस्त हैं।

⇒ दरअसल अकाल हो रही हार्ट अटैक से मौतों के पीछे वैदिक चिकित्सा, वैदिक जीवनशैली और वैदिक स्वास्थ्य परम्परा की घोर उपेक्षा है।

⇒ हमारे वैदिक चिकित्सा वैज्ञानिक और ऋषि एक स्वर से कहते हैं कि यदि शरीर को स्वस्थ एवं दीर्घायु बनाना है तो भोजन, नींद और ब्रह्मचर्य के नियमों का अप्रमत्त होकर पालन हो क्योंकि यह शरीर इनसे उसी प्रकार धारण किया जाता है जैसा खम्भों (Pillar) पर मकान। अन्यथा घातक रोगों से घिरने और पिसने के लिए तैयार रहिये।

⇒ अमेरिका के प्रसिद्ध विज्ञान जर्नल साइंस एडवांसेस में प्रकाशित लेख अल्टनेटिव सेरिल्स केन इम्प्रूव वाटर यूजेस ऐंडन्यूट्रिन में भी यह बताया गया है कि भारत के लोगों ने अपने प्राचीन भोजन परम्परा और अभिरुचियों को बदल दिया है जिससे उनके शरीर में पौष्टिकतत्व कम हो रहे हैं और उनकी मजबूती घट रही है अत: तुरन्त लौटना है भारत की ओर।

                                                                                                     - आचार्य डॉ. मदनगोपाल वाजपेयी!

                                                चिकित्सा पल्लव जनवरी 2022 से 

 

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