दिल की सेहत : वैदिक चिकित्सा समर्थ 



(दिल की सेहत : वैदिक चिकित्सा समर्थ)

वैदिक वाङ्मय में १०० साल तक अदीन (दीनता रहित) रहकर जीवित रहने की कामना और भावना की गयी है। वैदिक चिकित्सा विज्ञान आयुर्वेद में १०० साल से अधिक स्वस्थ जीवन के उपायों पर चर्चा है। पर देश में शतायु होने वालों की संख्या घट रही है तो उधर स्पेन देश के एक नागरिक सैटर्निनो डेला पुएंते ११२ साल पूरा करके परलोक जा रहे हैं। पेशे से वे मोची हैं। 

  अब बूढ़ों की बात छोड़िए, युवक-युवतियाँ हृदय रोग की चपेट में आ चुके हैं और मौतें हो रही हैं।

  रिसर्च आ गये हैं कि ब्लडप्रेशर की अंग्रेजी दवाइयाँ भले ही ब्लडप्रेशर को कम करें पर किडनी को भी खराब करती हैं।

  यह कहने और लिखने में हमें जरा संकोच भी नहीं कि आज हार्ट के इलाज में एलोपैथ में जबरदस्त Blackmail (भयभीत दिखाकर पैसा ऐंठने) का काम किया जा रहा है।

   ३०-३२ साल के युवकों में स्टेंट डाले जा रहे हैं। जबकि इसकी बिल्कुल जरूरत नहीं होती न यह उपाय टिकाऊ है। वैदिक चिकित्सा आयुर्वेद ऐसा उपचार है कि हार्ट के दर्जनों छोटी-छोटी नाड़ियों को खोल कुदरती तौर पर बिना चीर-फाड़ बाईपास कर दिया जाता है। सीना चीरकर दिल की बाईपास सर्जरी में लाखों खर्च होते हैं जबकि नेचुरल बाईपास अपनाने का बहुत कम खर्च आता है और लाभ पर्याप्त। 

   भारत की वैदिक चिकित्सा हृदय रोगियों के लिए इतनी चामत्कारिक है कि २-२ बार स्टेंट डलवायें और निराश रोगी नया जीवन प्राप्त कर रहे हैं।

हृदय रोग के प्रमुख कारण- हम फिर से यह बताना चाहते हैं कि डरने और घबराने की बात नहीं है, आपके भारतीय चिकित्सा विज्ञान आयुर्वेद वाङ्मय में बहुत ही सफल, सक्षम और प्रभावशाली समाधान है हृदय का और वह भी ५००० साल से है। इसी से आर्यवत्र्त के लोग १०० साल जीते थे। जब से विदेशी चिकित्सा विदेशी जीवनशैली अपनायी गयी तभी से हार्ट अटैक से मौतें बढ़ीं, क्योंकि आयुर्वेद में हृदय रोगों के कारणों, चिकित्सा आदि में बहुत ही गंभीरता से विचार हुआ है। मुख्य रूप से वे सभी कारण हृदय रोग को उत्पन्न करते हैं जिनसे रसधातुदूषित होती है जिनसे ओजक्षयहोता है या ओजधातु में विकृति आती है और जिन कारणों से शरीर के रसवह, रक्तवहस्रोतस् अस्वच्छ होते हैं तथा रक्त में दोष आता है।

अत्यन्त गरिष्ठ भोजन, अत्यन्त शीतल पदार्थ, अति चिकनाई युक्त पदार्थ या अधिक मात्रा में भोजन करने तथा चिन्तनीय विषयों के अति चिंतन से रसवह स्रोतस् दूषित होते हैं और हृदय रोग उत्पन्न होता है।

ईर्ष्या द्वेष, असंतोष, अविवेक, आपाधापी, लोभ, काम, क्रोध, मद, मात्सर्य से भी निश्चित रूप से रस-धातु दूषित होकर हृदय रोग उत्पन्न होता है।

वायु प्रदूषण, भैंस का दूध, बिना पूर्व का भोजन पचे पुन: भोजन करने, राजमा, कटहल, भिण्डी, कच्चा आम आदि से आमदुष्टि होकर हृदय रोग उत्पन्न करते हैं।

जलन पैदा करने वाले खान-पान, स्निग्ध, गरम, द्रव पदार्थों के अधिक सेवन, तेज धूप तथा वेगवान् वायु के सेवन से भी रक्तवहस्रोतस् दूषित हो जाते हैं और हृदय रोग उत्पन्न होता है।

अधिक व्यायाम, अधिक शारीरिक श्रम, अनशन, चिंता, अधिक रूखा भोजन, अल्प भोजन, नया तुला भोजन, तीव्र वायु और तेज धूप में रहना, भय, शोक, चिन्ता, मद्यपान, गरम आहार, रात्रि जागरण, कफ, रक्त, शुक्र तथा मलों का अधिक मात्रा में निकालना, बुढ़ापा, ग्रीष्म ऋतु आदि तथा कीटाणुओं के आक्रमण से ओज:क्षय होता है। यह ओजक्षय हृदय रोगी बनाता है। इसके अलावा मधुमेह के कारण भी हृदय रोग होता है, ओज विस्रंसन से मधुमेह होता है। क्योंकि-

र्वायुरोज आदाय गच्छति।

यदा बस्तिं तदा कृच्छ्रो मधुमेह: प्रवर्तते।।

च.सू. १७/८०।।

‘‘जब ओजक्षय हो जाता है तब व्यक्ति का आत्मबल कमजोर हो जाता है सदैव भयभीत रहता है शरीर में दुर्बलता रहती है, मनोबल गिरा रहता है और चिन्तित बहुत रहता है इन्द्रियाँ दु:खित रहती हैं।

बिभेति दुर्बलोऽभीक्ष्णं ध्यायति व्यथितेन्द्रिय:।

दुश्छायो दुर्मना रुक्ष: क्षामश्चैवोजस: क्षये।।

च.सू. १७/७३।।

    अब विचार करें जहाँ भारत में हृदय रोग के इतने सारे कारण ढूँढ लिए गये थे, वहाँ केवल मशीनों से ब्लॉकेज का पता लगाकर स्टेंट डाल देने या बाईपास सर्जरी कर देने से क्या कोई हृदय रोगी को स्वस्थ किया जा सकता है? बिल्कुल नहीं, बिल्कुल नहीं।

यही कारण है कि स्टेंट डलवाये या बाईपास कराये लोगों की मौतें हार्ट अटैक से हो रही हैं।

         हृदय रोगी की ईसीजी, सीटी एंजियोग्राफी, ईको आदि आधुनिक जाँचें तो करानी चाहिए पर सदैव ध्यान रखें कि इन जाँचों से केवल हृदय की गतिविधि का पता चलता है? यह नहीं पता चलता कि हृदय के बीमार होने का मूल और सही कारण क्या है? यही कारण है कि आधुनिक चिकित्सा विज्ञान हृदय रोगियों की मौतें नहीं रोक पा रहा।

         जबकि आपका भारतीय चिकित्सा विज्ञान/वैदिक चिकित्सा विज्ञान इन सब बातों पर ध्यान रखता है। इसीलिए यह भारतीय चिकित्सा विज्ञान ऐसे-ऐसे हृदय रोगियों तक को जीवन दे देता है जहाँ पर एलोपैथ पूरी तरह से हाथ खड़े कर चुका होता है।

चिकित्सा-

हृद्यं यत्स्याद्यदौजस्यं स्रोतसां यत्प्रसादनम्।

तत्तत् सेव्यं प्रयत्नेन प्रशमो ज्ञानमेव च।।

                                                                             च.सू. ३०/१४।।

    हृदय के लिए जीवन स्वरूप उक्त सूत्र ५००० वर्ष से अधिक प्राचीन है चरक संहिता का, चरक वैज्ञानिक तरीके से बताते हैं कि हृदय के स्वस्थता के लिए ऐसा उपक्रम अपनायें जो हृदय को हितकर हो, ओजवर्धक हो तथा स्रोतस् (धमनी,स्रोतस्, सिरा आदि) को साफ रखने वाला हो तथा शांतिमय और ज्ञान युक्त वातावरण में रहना चाहिए।

    जब उक्त का पालन हो तभी कोई चिकित्सक हृदय को सम्पूर्ण स्वास्थ्य दे सकता है और यह कार्य केवल वैदिक चिकित्सा से ही संभव है। क्योंकि एलोपैथ में धमनी को साफ करने के लिए स्टेंटिग तो कर दी जाती है पर ओजवर्धन की कोई अवधारणा ही नहीं वहाँ। आयुष ग्राम में वैदिक चिकित्सा के अन्तर्गत हृदय रोगियों को ये उपचार क्रम दिये जाते हैं-

पंचकर्म- शिरोधारा, शिरोबस्ति, हृद् बस्ति, निरूह, अनुवासन बस्ति, सर्वांग अभ्यंग, पादाभ्यंग आदि।

आहार- सात्विक, सुपाच्य, अग्निबल को ध्यान में रखकर आहार का चयन। गेंहूँ/जौ या चावल से बना अष्टगुणमण्ड इसके लिए उत्तम आहार है।

विहार- संध्योपासना, प्रात: भ्रमण, ध्यान, योग, प्राणायाम, जप में कम से कम १-२ घण्टे समय लगाया जाये, इससे ओजवृद्धि निश्चित होती है और हृदय रोग मिटता है तथा हृदय रोग पैदा ही नहीं होता। वैज्ञानिक परीक्षणों से भी सिद्ध है कि अध्यात्म हृदय के लिए बहुत उपयोगी है।

औषधियाँ- वैदिक चिकित्सा में हृदय रोगों के लिए सैकड़ों औषधियाँ हैं जो चमत्कार दिखाती हैं, मृत्यु मुख से तक निकालकर लाती हैं।

१. स्वर्णमुक्तादि गुलिका, गोरोचनादि गुलिका, विश्वेश्वर रस, अर्जुन चूर्ण, पुष्करमूल, दशमूल।

२. शिलाजीत, मुक्ता, प्रवाल, कपर्द, शंख के योग, जवाहरमोहरा, यावूती, अभ्रक आदि।

३. प्रभाकरवटी, प्रभाकर मिश्रण, सर्पगन्धा मिश्रण, ब्राह्मी वटी स्वर्णयुक्त, त्रैलोक्य चिन्तामणि रस।

४. अश्वगन्धा, पंचकोल, आमलकी, शुण्ठी, कटुकी, वंशलोचन आदि भी लाभकर हैं।

५. गोदुग्ध (धारोष्ण), गोघृत।

    औषधियों का प्रयोग और चुनाव रोग, रोगी, वय, ऋतु, देश, सात्म्य और असात्म्य को ध्यान में रखकर करने से शीघ्र और अच्छे परिणाम प्राप्त होते हैं।

    ‘‘हम चाहते हैं अब हार्ट अटैक से मृत्यु नहीं।’’ यह हमारा अभियान और संकल्प आप तक पहुँचे और सभी के सहयोग से सफल हों।

                                                    - डॉ0 अर्चना वाजपेयी, एम॰डी॰ (काय चिकित्सा)

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