३ दिन जीवन घोषित लीवर सिरोसिस से ग्रस्त प्रतापगढ़ की एक रिटायर्ड शिक्षिका की सफल चिकित्सा!!
अंग्रेजी की औपनिवेशक परिवेश ने भारत की जीवन पद्धति को उसकी शिक्षा व्यवस्था और शासन प्रणाली गैर भारतीय सांचे में ढाला। परिणाम यह हुआ कि हम दूसरों की दृष्टि से स्वयं को और दुनिया को देखने के अभ्यासी होते गये। नए भारत की चिकित्सा शिक्षा और अन्य विकास नीति निर्धारण में पश्चिम देश हमारी प्रेरणा का केन्द्र बन गया। यही कारण है कि आज ऐसे-ऐसे रोगों से हम ग्रस्त हो रहे हैं जिनका समाधान यदि है तो अपने भारत की वैदिक चिकित्सा में है। किन्तु अपनी मानसिकता से हम वैदिक चिकित्सा में या तो तब पहुँचते हैं जब रोग बिगड़ जाता है या पहुँच ही नहीं पाते।
आज हम चिकित्सा, शिक्षा के स्तर में जिन समस्याओं से जूझ रहे हैं उनका एक मुख्य कारण यह भी है कि अपने स्वभाव के विरुद्ध पराई दृष्टि के अनुसार जीवनचर्या अपनाना। हमारा देश सशक्त हो और समस्याओं का समाधान हो इसका मार्ग हमारी देशज व्यवस्था, ज्ञान सम्पदा और जीवन पद्धति की ओर ही जाता है।
प्रतापगढ़ (उ.प्र.) से 27 सितम्बर 2021 को श्रीमती सुधा मिश्रा (65 वर्ष), (रिटायर्ड शिक्षिका) पता- 16/266, माल गोदाम रोड, सहोदरपुर भगवान चौकी को लेकर आयुष ग्राम चिकित्सालय, चित्रकूट आए। उनकी समस्यायें इस प्रकार थीं-
2010 में खून की उल्टी, डॉ. आलोक मिश्रा प्रयागराज में दिखाया, बताया कि लीवर खराब हो गया।
दूसरे माह बैडिंग करानी पड़ती। 2012 में मधुमेह हो गया। इसकी भी दवा चलने लगी।
पेट में पानी भी बढ़ने लगा। पेट से 5-5 लीटर पानी निकाला जाता रहा।
2 अगस्त 2021 को प्रयागराज के डॉ. आलोक मिश्रा जी ने कह दिया कि अब इन्हें घर ले जाइये 3 दिन की मेहमान हैं।
अगस्त 2021 को पीजीआई लखनऊ ले गये वहाँ लीवर ट्रान्सप्लाण्ट के अलावा कोई रास्ता नहीं ऐसा बताया गया। पर सुधा मिश्रा के लड़के ने पूछा कि क्या लीवर ट्रान्सप्लाण्ट के बाद माँ स्वस्थ हो जायेंगी तो पीजीआई के डॉक्टरों ने कहा कि इस बारे में भी कोई निश्चितता नहीं है। तो वे उन्हें घर ले आये।
27 सितम्बर 2021 को जब आयुष ग्राम चिकित्सालय, चित्रकूट लेकर आये। रजिस्ट्रेशन हुआ। वैदिक पद्धति से प्रकृति परीक्षण हुआ तो पाया गया कि रोगी की प्रकृति वातज (वातदुष्टि), आद्योपान्त धात्वाग्नियों की मन्दता, आमविषोत्पत्ति, जाठराग्निमन्दता, उदकवहस्रोतस् दुष्टि, उदकत्वक् व मांस धातु के बीच संचय ¨ जलोदर (Ascites)।
श्रीमती सुधा मिश्रा शिक्षिका थी, बीमार होने के कुछ वर्षों पूर्व उनकी कुछ ऐसी स्थिति बनती रही कि व्यस्ततावश कई बार समय पर भोजन का अवसर नहीं मिला, इस भूख को भोजन से न बुझाकर पानी से बुझा लेती रहीं और यह क्रम बार-बार दोहराता रहा।
क्षेमाकुतूहलकार ३/३३ में लिखते हैं-
तृषितस्तु न चाश्नीयात्क्षुधितो न पिबेज्जलम्।
तृषितस्तु भवेद्गुल्मी क्षुधितस्तु जलोदरी। (Ascites)
प्यासा व्यक्ति यदि भोजन करता है तो गुल्मरोगी हो जाता है और भूखा व्यक्ति अपनी भूख पानी से बुझाता है तो जलोदर होता है। क्योंकि इससे उदकवहस्रोतस् दूषित होकर मन्दाग्नि और वात प्रकोप होता है। सुधा जी का ऑक्सीजन लेबल 93 चल रहा था। रक्तपरीक्षण में क्रिटनीन 1.4, यूरिया 46.6, सीरम बिलरूबिन 3.4 आया।
हालत तो यह थी कि सुधा मिश्रा का पेट ढोल जैसा था। 5-5 लीटर पानी निकाला जा चुका है। 70 किलो ग्राम वजन था।
आयुष ग्राम चिकित्सालय, चित्रकूट के आर.एम.ओ. ने उन्हें 1 माह के लिए भर्ती किया गया। चिकित्सा प्रारम्भ हुयी-
चिकित्सा के आलोक में जब हम अपने आयुर्वेद ऋषि ज्ञान का आलोडन करते हैं तो ये सूत्र प्राप्त होते हैं-
‘शुद्धं संसृज्य च क्षीरं बालार्थं पाययेत्तु तम्।
प्रागुत्क्लेशान्निवत्र्यं च बले लब्धे क्रमात् पय:।।’
च.चि. १३/६२।।
सर्वमेवोदरं प्रायो दोषसंघातजं मलम्।
तस्मात् त्रिदोषशमनीं क्रियां सर्वत्र कारयेत्।।
च.चि. १३/९५-९६।।
आस्थापने चैव विरेचने च पाने तथा हारविधिक्रियाम्।
सर्वोदरिभ्य: कुशलै: प्रयोज्यं क्षीरं शृतं जांगलजो रसो वा।।
सु.चि. १४/१९।।
कुशल चिकित्सक को चाहिए कि सभी प्रकार के उदर रोगियों को अस्थापन, विरेचन, पान तथा आहारविधि क्रियाओं में उबला हुआ दूध तथा जांगल प्राणियों के मांसरस का प्रयोग करें।
तदनुसार सुधा मिश्रा को डॉ. अर्चना वाजपेयी के निर्देशन में पंचकर्म में श्यामादिवर्ति, पिप्पल्यादि तैल की मात्रा बस्ति, अनुवासनबस्ति, अभ्यंग, जलस्वेदन दिया जाता रहा।
जलोदर रोगियों की चिकित्सा में भगवान् धन्वन्तरि की गाइड लाइन पढ़ने योग्य है-
दकोदरिणस्तु वातहरतैलाभ्यक्तस्योष्णोदकस्विन्नस्य स्थितस्याप्तै: सुपरिगृहीतस्यात्कक्षात्परिवेष्टितस्या धोनाभेर्भामतश्चतुरंगुलमपहाय रोमराज्या ब्रीहिमुखेनांगुष्ठोदरप्रमाणवगाढ़ं विध्येत् ... ... ... ... ... ... ... ... ... ... ... ... ... ... ... ... ... ... ... ... ... ... ... ... ... ...
नि:स्रुते च दोषे गाढतरमाविककौशेयचर्मणामन्यतमेन परिवेष्टयेदुदरं तथा नामापयति वायु:। षण्मासांश्च पयसा भोजयेत् जांगलरसेन व, ततस्त्रीन्मासानर्धोदकेन पयसा फलमम्लेन जांगलरसेन वा, अवशिष्टं मासत्रयमन्नं लघु हितं वा सेवेत, एवं संवत्सरेणागदो भवति।। सु.चि. १४/१८।।
जलोदरी को वातघ्न तैलों से अभ्यंग और गरम जल से स्वेदन करें फिर बैठकर दोषोदक (दूषित जल) को तीसरे-चौथे, पाँचवें, छठे, आठवें, दसवें, बारहवें या सोलहवें दिन में से किसी का भी अन्तर कर उदर में संचित तरल को थोड़ा-थोड़ा कर निकालें, फिर उदर बन्धन करें।
रोगी को 6 माह तक दूध से भोजन करायें, रोगी मांसाहरी हो तो जांगल प्राणियों का मांसहार दें। इनमें तीन माह तक आधा पानी मिला दूध, फलाम्ल या जांगल प्राणियों का मांसरस दें और शेष तीन-तीन मास में लघु एवं हितकर अन्न दें।
आप सभी गंभीर होकर अपने भारत के चिकित्सा विज्ञान पर गर्व करें कि आज एलोपैथ में जलोदर रोगी के पेट का पानी निकालते हैं वह भारतीय आयुर्वेद वैज्ञानिकों ऋषियों की 5000 साल पुरानी देन है।
अन्तर इतना अवश्य है कि भारतीय चिकित्सा वैज्ञानिक धन्वन्तरि जी पेट से पानी निकालने के पूर्व वातघ्न तैलों से मालिश और गरम जल से स्वेदन करते थे जिससे इम्युनिटी बढ़ती थी और आज एलोपैथ में बिना किसी ऐसे पूर्व कर्म के पेट से पानी निकालते रहते हैं परिणाम रोगी का जीर्ण और असाध्यता की ओर जाता हुआ मौत के आगोश में चला जाता है।
औषधि व्यवस्था पत्र- 29.09.2021 को डॉ. अर्चना वाजपेयी द्वारा- याक़ूती रसायन 125 मि.ग्रा., संजीवनी वटी 125 मि.ग्रा., मुक्तापिष्टी 500 मि.ग्रा., हृदयार्णवरस 250 मि.ग्रा. और पुनर्नवादि मण्डूर 500 मि.ग्रा. सभी मिलाकर 1 मात्रा १²३।
¬ अर्धबिल्वकषाय २ चम्मच, अमृतोत्तर कषाय २ चम्मच, भूम्यामलकी स्वरस 15 मि.ली. मिलाकर हर 3 घण्टे में 4 बार।
¬ न्यग्रोधादि चूर्ण 3-3 ग्राम दिन में 2 बार गरम पानी से।
उपर्युक्त चिकित्सा व्यवस्था से सुधारात्मक परिवर्तन तो हुआ श्वासकृच्छ्रता, उदरोदक में थोड़ा कमी आयी और सबसे बड़ी बात यह हुयी कि श्रीमती सुधा मिश्रा बलवान् हुयीं औषधि लेने लायक हो गयीं।
अत: 3 अक्टूबर 2021 को डॉ. अर्चना वाजपेयी एम.डी. (काय चिकित्सा) ने इस प्रकार परिवर्धन किया-
¬ बृहत्यादि कषाय 15 मि.ली., वैर्यादि कषाय 10 मि.ली. समभाग पक्वजल मिलाकर हर 4 घण्टे में।
¬ अर्धबिल्व कषाय चूर्ण 4 ग्राम, प्रवाल भस्म 250 मि.ग्रा. मिलाकर १²२। खाना के पूर्व गरम पानी से।
¬ पुनर्नवादि मण्डूर 500 मि.ग्रा., हृदयार्णवरस 1 गोली दिन में 2 बार।
¬ त्रैलोक्य चिन्तामणि रस युक्त १-१ गोली आद्र्रक स्वरस से।
¬ त्रैलोक्य चिंतामणि रस १ ग्राम, (रसराजसुन्दरम्/ योगरत्नाकर) के मत से बना जवाहरमोहरा (नं.-१) 1 ग्राम, मुक्ता भस्म 1 ग्राम, अभ्रक भस्म शतपुटी 1 ग्राम, चतु:षष्ठिप्रहरी पिप्पली 2 ग्राम घोंटकर 16 मात्रा। १²२ दिन में 2 बार।
पंचकर्म थैरेपी- वचा, इच्छाभेदी रस, दशांगलेप, इन्द्रायणमूल, दन्ती और घृतकुमारी का मिश्रित लेप का नित्य उदर लेपन।
उपर्युक्त औषधि व्यवस्था, पंचकर्म थैरापी और दुग्धाहार से श्रीमती सुधा मिश्रा में आश्चर्यजनक सुधार हुआ।
16 नवम्बर 2022 को डिस्चार्ज कर दिया गया था। डिस्चार्ज के दिन वजन 63 कि.ग्रा. से घटकर 49.9 कि.ग्रा. हो गया था।
26 दिसम्बर 2021 को उनके बेटे अपनी माँ सुधा मिश्रा को लेकर फॉलो-अप में आये तो उनका वजन 50.1 किलो ग्राम था, सुधा जी ने बताया कि गैस बनती है, गुदामार्ग में खुजली होती है। रक्त जाँच में हेमोग्लोबिन 9.7 से बढ़कर 11.30 हो गया था, थोड़ा यूरिया बढ़ा था, क्रिटनीन, यूरिया एसिड, एएलपी सब सामान्य था, सीरम बिलरूबिन 3.4 से घटकर 1.77 हो गया था।
अब इस औषधि व्यवस्था पत्र में हमने यह विहित किया योगेश्वर रस 125 मि.ग्रा., चन्द्रकला रस मु.यु. 250 मि.ग्रा., पुनर्नवा भूधात्र्यादि चूर्ण 1 ग्राम, मिलाकर सुबह-शाम गोदुग्ध से। ताप्यादि लौह (नं.-१) २० ग्राम, प्रवाल भस्म २० ग्राम, गिलोयघन 40 ग्राम, पुनर्नवादिमण्डूर 30 ग्राम सभी का मिश्रण 90 मात्राओं में विभक्त कर दिन में 3 बार देने को लिखा गया। जाते-जाते श्रीमती सुधा और उनके बेटे इस प्रकार अपना साक्षात्कार दिया।
डॉक्टरों ने कहा था कि ३ दिन का जीवन!!
➡ मैं सुधा मिश्रा सरकारी अध्यापिका पद से 2018 में रिटायर्ड हूँ। 10 सालों तक लगातार आलोक मिश्रा जी का इलाज चला, मेरे पेट से 5-5 लीटर पानी निकाला गया। बीच-बीच में आराम रहता था फिर समस्या होने लगती थी।
➡ २ अगस्त को डॉ. आलोक मिश्रा जी ने मेरे बेटे से कहा कि आप अपनी माँ को घर ले जाइये और आपकी माँ केवल 2-3 दिनों की ही मेहमान हैं। हमें घर ले आया गया फिर मुझे 4 अगस्त 2021 को लखनऊ पीजीआई ले जाया गया और कहा कि लीवर ट्रांसप्लांट करना पड़ेगा इसके लिए मेरा बेटा मान भी गया कि ठीक है लेकिन फिर डॉक्टर से पूछने पर कि लीवर ट्रांसप्लांट के बाद मेरी माँ बच जायेंगी तो डॉक्टर ने कहा कुछ कह नहीं सकते। अब मेरा बेटा मुझे घर ले आया।
➡ फिर घर पर आखरी उम्मीद में मेरा बेटा नेट में खोजता रहता था, तभी प्रभु श्रीराम की तपोभूमि चित्रकूट आयुष ग्राम ट्रस्ट के आयुष ग्राम चिकित्सालय के रोगियों के वीडियों देखकर मेरे बेटे को एक नयी उम्मीद सी जगी और दूसरे दिन ही मुझे लेकर वह आयुष ग्राम चित्रकूट पहुँचा।
➡ सितम्बर 2021 को आयुष ग्राम चित्रकूट पहुँचे, मेरे पेट में पानी बहुत था जिससे न तो चल-फिर पा रही थी न ही टट्टी-पेशाब का पता चल पा रहा था, कुछ भी खाने से उल्टी हो जाती थी।
➡ यहाँ भर्ती किया गया, चिकित्सा हुयी, मुझे केवल गोदुग्ध पर रखा गया, पंचकर्म थैरेपी हुयी, मुझे ५वें दिन से आराम मिलने लगा, मैं उठकर बैठ जाने लगी। मैं रोज-रोज सुधरती गयी। मैं जब आयी थी उस समय वजन 70 किलो ग्राम था, आज मेरा वजन 50 किलो ग्राम है।
➡ खूब चल-फिर लेती हूँ, गोदुग्ध का सेवन अभी भी कर रही हूँ। भगवान् मेरी तरह सबको सुखी और स्वस्थ करे, बस! रोगी यहाँ समय पर पहुँच जाये और पूरी बात माने।
- सुधा मिश्रा रिटायर्ड शिक्षिका, कुटिलिया मिश्रान जेठवारा, प्रतापगढ़ (उ.प्र.)
अब चिकित्सीय दृष्टि से विचार करते हैं कि श्रीमती सुधा जी के केस में गड़बड़ी कहाँ पर हो रही थी। सन् २०१० में जब उन्हें खून की उल्टी हुयी वह बीमारी ऊध्र्वगरक्तपित्त थी, रक्त का दूषित पित्त के द्वारा दुष्ट हो जाने की अवस्था में यह रोग होता है। शोक, भय, तनाव, अतिमानसिक श्रम, दूध/चाय नमकीन सेवन करने, दूध के साथ लवण या क्षारयुक्त भोजन, मूली, लहसुन आदि गरम पदार्थों का अतिप्रयोग, उष्ण, तीक्ष्ण, क्षार, अम्ल, लवण एवं कटु पदार्थों के सेवन अतिधूप, अतिवायु सेवन से पित्त की स्थिति बढ़कर रक्त में मिल जाती है इसमें यकृत्, प्लीहा अधिष्ठान शामिल होते हैं।
इनकी उस समय चिकित्सा रक्तपित्त की होनी चाहिए थी, वैंडिग कोई समाधान नहीं था। किन्तु गलत चिकित्सा होते-होते ओजक्षय होने लगा। वही ओजक्षय का स्वरूप मधुमेह था। महर्षि चरक बताते हैं कि-
ओजपुनर्मधुरस्वभावं तद्यथा रौक्ष्याद् वायु: कषयत्वेनाभिसंसृज्य मूत्राशयेऽभिवहति तदा मधुमेहं करोति।
च.चि. ४/३७।।
तैरावृतगतिर्वायुरोज आदाय गच्छति। तदा बस्ति तदा कृच्छ्रो मधुमेह प्रवर्तते।।
च.साू. १७/८०।।
यानी जिसका रस मधुर होता है और जो सब धातुओं का प्रसादभूत है वह ‘ओज’ विकार में मूत्रमार्ग से बाहर निकलता है।
द्राक्षाशर्करा (Glucose) हमारे शरीर के धातुओं को आहार रस से उपलब्ध होती है। द्राक्षाशर्करा स्वस्थ अवस्था में अपनी पूर्व रूप ग्लाइकोजन के रूप में पेशियों और विशेषत: यकृत् में संचित रहती है और प्रयोजन होने पर तत्काल द्राक्षाशर्वâरा रस में परिणत हो जाती है। मधुमेह में यही द्राक्षा शर्वâरा तो मूत्र मार्ग से बाहर आती है जिसे आयुर्वेद में ‘ओज’ कहा गया है।
२०१२ में जब सुधा मिश्रा को मधुमेह स्पष्ट हो गया तब मधुमेह की अंग्रेजी दवा के साथ-साथ ओजक्षय नाशक ओजवर्धक चिकित्सा अवश्य की जानी चाहिए थी सो एलोपैथ में वह सिस्टम है नहीं। परिणामत: सुधा जी मौत के करीब आ गयीं।
आयुष ग्राम चिकित्सालय में डॉ. अर्चना वाजपेयी ने यह ध्यान रखते हुए ओजवर्धक ओजक्षयनाशक चिकित्सा पर तो ध्यान रखा। उधर गोदुग्धाहार दिया। आपको बताते चलें कि गोदुग्ध से उत्तम ओजवर्धक कोई दुनिया की अन्य वस्तु नहीं है।
भगवान् पुनर्वसु आत्रेय बताते हैं-
स्वादुशीतं मृदु स्निग्धं बहलं श्लक्ष्णपिच्छिलम्।
गुरु मन्दं प्रसन्नं च गव्यं दशगुणं पय:।
तदेवंगुणमेवौज: सामान्यदभिवर्धयेत्।
प्रवरं जीवनीयानां क्षीरमुत्तंâ रसायनम्।।
च.सू. २७/२१७-२१८।।
सच तो यह है कि प्रत्येक राष्ट्र की अपनी संस्कृति होती है खान-पान, प्रकृति और तदनुसार जीवनशैली होती है। तदनुसार उस देश की चिकित्सा पद्धति होती है। भारत की भी अपनी पृथक वैदिक चिकित्सा पद्धति है जिसे आयुर्वेद कहा जाता है उसका एक विस्तृत विज्ञान है दरअसल आजादी के बाद तक भारतीय ज्ञान परम्परा को अंधविश्वास कहा गया, उसके प्रति अनास्था पैदा की गयी। भारत में चिकित्सा, दर्शन, अध्यात्म विज्ञान, शोध और बोध की परम्परा रही है उसी के आधार पर यहाँ मानव विश्व गुरु था।
भारत अब स्वाधीनता का अमृत का उत्सव मना रहा है। भारत के लोग इतिहास और संस्कृति के प्रति सजग हो चुके हैं, अपने वैदिक चिकित्सा की ओर से तेजी से उन्मुख हो रहे हैं। उसके सकारात्मक परिणाम भी मिल रहे हैं, उन्हें जीवनदान भी मिल रहा है।
हमें आशा है कि सुधा मिश्रा के केस विश्लेषण को पढ़कर आप सभी अपनी भारतीय संस्कृति ज्ञान, विज्ञान के प्रति अवश्य गौरव महसूस करेंगे तथा समाज और राष्ट्र को भी जागरूक तथा गौरवान्वित बनायेंगे।
- आचार्य डॉ. मदनगोपाल वाजपेयी!
................................................................................................................
आयुष ग्राम चिकित्सालय (सुपर स्पैशलिटी आयुर्वेद हॉस्पिटल )
आयुष ग्राम (ट्रस्ट ) सूरजकुंड रोड (पुरवा तरोहा मार्ग ) , चित्रकूट धाम (उ.प्र. ) 210205
contact : 9919527646 , 8948111166
0 टिप्पणियाँ