शास्त्रीय चिकित्सा : वैज्ञानिक चिकित्सा

 शास्त्रीय चिकित्सा : वैज्ञानिक चिकित्सा

मानव का मानसिक और शारीरिक स्वास्थ्य दिनचर्या, रात्रिचर्या, ऋतुचर्या यानी ‘काल’ शरीर की इन्द्रियों तथा मन, वाणी शरीर की सम्यक् चेष्टाओं के संतुलन पर टिका है। जब भी व्यक्ति के जीवन में काल (दिनचर्या, रात्रिचर्या आदि) ऋतुचर्या शारीरिक इन्द्रियों और मन, वाणी शरीर की चेष्टाओं में असंतुलन आता है तभी शरीर व मन में विषाक्तता/असंतुलन आता है उसी का नाम है बीमारी। (अष्टांग हृदय सूत्रस्थान १/१९)

इस वैषम्यता के कारणों का अच्छी तरह अध्ययन-अन्वेषण कर उसका निवारण करने तथा संतुलन कारकों को निरन्तर अपनाने से धीरे-धीरे शरीर के धारक तत्त्व संतुलित होने लगते हैं और व्यक्ति स्वस्थ होने लगता है। (च.सू. १६/३६) इस प्रकार असंतुलित तत्त्वों को संतुलित करना शरीर के विषाक्त पदार्थों को बाहर निकालना तथा आवश्यक तत्वों की पूर्ति यही सही चिकित्सा पद्धति है। इसके लिए भारत की वैदिक चिकित्सा, ‘आयुर्वेद’ खान-पान, जीवनशैली में सुधार, वनस्पतियों, खनिजों एवं लवणों तथा जान्तव द्रव्यों का आश्रय लेता है। 

प्रकृति की बहुत ही सुन्दर व्यवस्था है जिस भौगोलिक क्षेत्र में जिस ऋतु में जिस तत्व की मानव में प्राय: कमी आती है और जिस प्रकार की बीमारियाँ होती हैं प्रकृति उससे सम्बन्धित औषधियाँ उसके समीप उस ऋतु में उत्पन्न करके प्राणियों के लिए उपलब्ध कराती है। इसी ज्ञान का आधार बनाकर भारत के ऋषि परम्परा के चिकित्सा वैज्ञानिक भगवान् धन्वन्तरि, चरक, सुश्रुत, वाग्भट, शांर्गधर, भावमिश्र आदि ने औषधियों को प्राणि मात्र के हित में प्रकाशित किया। इनके चिकित्सा सिद्धान्त त्रिकालाबाधित हैं। 



भारत के वैदिक चिकित्सा विज्ञान आयुर्वेद का बहुत ही समृद्ध और विज्ञान सम्मत इतिहास रहा है, आज के २०० साल पूर्व इसी वैदिक चिकित्सा विज्ञान ‘आयुर्वेद’ से मानव केवल रोगमुक्त ही नहीं होता था वरन् नई-नई बीमारियों के उद्भव से बचता था। 

भारत के वैदिक चिकित्सा विज्ञान ‘आयुर्वेद’ जैसी समृद्धि और वैज्ञानिकता अन्यत्र दुर्लभ है। भारत के इस ऋषि प्रणीत चिकित्सा विज्ञान आयुर्वेद के अलावा अन्य किसी चिकित्सा विज्ञान में इतना सूक्ष्म अन्वेषण (रिसर्च) नहीं हुआ। दुर्भाग्य है अच्छे चिकित्सक, चिकित्सा संस्थान सर्वत्र सुलभ नहीं हो पा रहे। रात्रि के अंत में गरम पानी पीने से क्या लाभ हानि मिलेंगे और सुबह पीने से क्या लाभ हानि, बाल्यावस्था का बैंगन खायेंगे तो शरीर में क्या प्रभाव पड़ेगा और रूढ़ बैंगन खायेंगे तो क्या प्रभाव पड़ेगा, धारोष्ण दूध पीने से शरीर और मन की निर्मिति कैसी होगी और रात को दुहकर रखे दूध का शरीर और मन पर कैसा  प्रभाव पड़ेगा?

सोंठ डालकर पकाये पानी का शरीर में क्या प्रभाव पड़ेगा और अजवायन डालकर पकाये पानी का क्या? ‘पालक’ शाक किस शरीर की प्रकृति वालों के लिए हितकर है और किसके लिए हानिकर? बथुआ और सरसों का साग किसे फायदा करेगा किसे हानि? मूली, फूल  गोभी, पत्ता गोभी, गाँठ गोभी तथा सलाद किसे अनुकूल होगी, किसे नहीं? नमकीन, खटाई और दूध के साथ सेवन मानव को कौन सी बीमारी दे जाएगा? रात में दही खाने से शरीर को क्या हानि होगी और दिन में खाने से क्या लाभ मिलेगा। अधजमा दही, अधबिलोरा दही, मक्खन युक्त दही शरीर को किस स्थिति में खड़ा कर देगा? ऐसे गहन और सूक्ष्म शोध यदि कहीं हैं तो वह हैं वैदिक चिकित्सा विज्ञान ‘आयुर्वेद’ में। 

नारियल की खीर किस शरीर के लिए उपयोगी है और चावल की खीर या सेवई किसके लिए क्या गुण दोष करेगी? इतना गंभीर और सूक्ष्म ज्ञान केवल एक आयुर्वेद विशेषज्ञ को ही होता है। आग या तेल में भुने चने में कौन-कौन से औषधीय गुण उत्पन्न हो जाते हैं तथा गीले भुने चने में कौन-कौन से? गीला चना सेवन कितनी सीमा तक औषधि है और कितनी सीमा तक रोगकारक? इतना सूक्ष्म अध्ययन आयुर्वेद के अलावा अन्य किस चिकित्सा पद्धति में पढ़ाया जाता है?

सुबह स्नान करेंगे और गुनगुने पानी को मुँह भरकर मुँह चलायेंगे तो कौन से औषधीय गुण शरीर को मिलेंगे और भोजन के बाद नहायेंगे तो कौन सी बीमारी मिलेगी? मूली और मूली के पत्तों को तेल, घी में छौंककर खायेंगे तो कौन से चिकित्सीय लाभ मिलेंगे और बिना छौंके खाने पर कौन से गुण-दोष? यह ज्ञान भारत की वैदिक चिकित्सा के अलावा और कहाँ है? पुराने गेंहूँ में कौन से रासायनिक परिवर्तन आ जाते हैं और नये में कौन? 

और तो और आयुर्वेद में इतना बरीक अध्ययन कराया जाता है कि बिना जोती बोई जमीन में पैदा हुये चावल कौन-कौन से रासायनिक और शरीरोपयोगी गुण लेकर आते हैं तथा जोती बोई जमीन में पैदा चावल कौन से?

दही, मठा, चाय, कॉफी आदि खाद्य पदार्थ गर्मी में सेवन करने से कौन से शारीरिक-मानसिक परिवर्तन लाते हैं तो वसंत ऋतु, शरद ऋतु में सेवन से कौन से बदलाव? ऐसे मानवोपयोगी शोध हजारों साल से आयुर्वेद में ही हैं। 

तप, जप, ईश्वराराधनापूर्वक साधना, गऊ, गुरु, माता-पिता की सेवा के साथ औषधि और चिकित्सा सेवन और चिकित्सा करने से शरीर में कौन-कौन से विशिष्ट  चिकित्सीय परिवर्तन आते हैं। इतना गहन शोध आयुर्वेद विज्ञान में ही है और तो और कच्चा कैथा , कच्चा बेल किसे उपयोगी है और पका कैथा  और पका बेल किसे? ऐसे विज्ञान सम्मत दिग्दर्शन आयुर्वेद विज्ञान में ही हैं। तभी प्राचीन भारत की मानवीय परम्परा में कायाकल्प, पुनर्यौवन जैसी चिकित्सा उपलब्धियाँ थीं और भारत का व्यक्ति पुरुषव्याघ्र, पुरुषसिंह, आर्य, तेजस्वी, मनस्वी, यशस्वी और ओजस्वी, दीर्घायु, शतायु और हितायु होता था। द्रव्यगुण और उसके संयोग से उत्पन्न प्रकृति सम और प्रकृति विषम समवायों का उल्लेख महान् आयुर्वेद वैज्ञानिक आत्रेय से बढ़कर कहीं हो तो कोई बतायें। पदार्थ का रस-गुण वीर्य, विपाक और प्रभाव तक जान लेने की जैसी तल्लीनता आत्रेय में है वह अन्यत्र नहीं। चिकित्सक और औषधि का चुनाव वैज्ञानिक होना चाहिए (च.सू. ११/५०-६३) इसका सर्वोत्कृष्ट निर्देश आयुर्वेद विज्ञान में है। हुमायूँ से लेकर इब्राहीम लोदी के कष्टों का निवारण इसी तरह के ज्ञान से हुआ है। 

एक सुयोग्य आयुर्वेद विशेषज्ञ आयुर्वेदोक्त सिद्धान्त काल, इन्द्रिय, मन, वाणी शरीर के वैषम्य आदि को परखते हुए चिकित्सा करता है तभी तो कोरोना काल में आयुर्वेद सर्वाधिक सुरक्षित, प्राणरक्षक और परिणामोत्पादक सिद्ध हुआ। भारतीय जीवन पद्धति का मूल तत्व क्या है यह सभी ने कोविड-१९ के दौरान भलीभाँति देखा और समझा।

इसे दुर्भाग्य ही कहेंगे कि भारतीय ऋषि, वेदवाङ्मय और प्रकृतिप्रदत्त इन दिव्य अनुदानों पर ध्यान न देकर आज मानव समुदाय केमिकल्स, टॉनिक्स, एण्टीबायोटिक, पेनकिलर, स्टेरॉयड, व्यर्थ के हार्ट की एंजियोप्लास्टी (स्टेंट), बाईपास सर्जरी, रीढ़ के ऑपरेशन, पेट के ऑपरेशन, व्यर्थ जाँचें और ऐसे घातक प्रयोगों की अपने शरीर में अजमाने की स्वीकृति दे रहा है, अपनी समझ को कुंड कर दिया है जिसके घातक दुष्परिणाम और शारीरिक संकट प्राप्त हो रहे हैं। 

भारत की वैदिक चिकित्सा विज्ञान जैसी सशक्त चिकित्सा प्रणाली का जन-जन तक पहुँचाने के उद्देश्य से देश के जाने-माने प्रख्यात आयुर्वेद विशेषज्ञ विभिन्न सम्मानों, पुरुस्कार से सम्मानित, भारतीय चिकित्सा परिषद् उ.प्र. के विभिन्न पदों से निवृत्त आचार्य डॉ. मदनगोपाल वाजपेयी ने वर्ष १९९२ में अपनी जन्मभूमि पनगरा (बाँदा) में, फिर वर्ष २०१३ में प्रभु श्रीराम की संकल्प भूमि, वैदिक परम्पराओं को ऊर्जित और पोषित करने वाली पवित्र भूमि चित्रवूâटधाम में आयुष ग्राम (ट्रस्ट) की स्थापना की। जिसके अन्तर्गत निम्नांकित सेवा कार्य संचालित हैं-

आयुष ग्राम चिकित्सालय:

(सुपर स्पेशलिटी आयुर्वेद हॉस्पिटल)

सूरजकुण्ड रोड, चित्रकूट धाम 

‘आयुष ग्राम चिकित्सालय’ की स्थापना एक सुपर स्पेशलिटी आयुर्वेद हॉस्पिटल के रूप में हुयी जिनमें चिकित्सा के इन-इन आयामों को संजोया गया। 

१. आयुष ग्राम चिकित्सालय: सुपर स्पेशलिटी आयुर्वेद चिकित्सालय- आचार्य डॉ. मदनगोपाल वाजपेयी जी के कुशल नेतृत्व एवं मार्गदर्शन में प्रशिक्षित एवं अनुभवी आयुर्वेद विशेषज्ञों, प्रशिक्षित आयुर्वेद अनुचिकित्सकों की पूरी टीम कार्य करती है। पंचकर्म विभाग में आवश्यक आधुनिक उपकरण और प्रशिक्षित पंचकर्म उपचारकों की टीम है। ६० रोगियों को आधुनिक सुसज्जित कक्षों में भर्ती करने की क्षमता है। ट्रस्ट का चिकित्सालय होने के कारण चिकित्सालय का सेवा शुल्क एलोपैथ नर्सिंग होमों से बहुत कम है। 



आयुष ग्राम चिकित्सालय अब हार्ट, किडनी, लीवर, रीढ़ की बीमारी से अपंग, सफेद दाग, सोरायसिस आदि चर्मरोगों आथ्र्रराइटिस और बच्चों के दौरा, न्यूमोनिया, माइग्रेन, बच्चों का पीलिया आदि रोगों का सफल उपचार करने वाला एक राष्ट्रीय आयुष चिकित्सा संस्थान बन गया है। ‘आयुष ग्राम’ चिकित्सालय में उन शास्त्रीय रसौषधियों, कषायों, कल्पों का भण्डारण है जो भारत के अन्य आयुर्वेद चिकित्सा संस्थान में है ही नहीं। इन्हीं की शक्ति से आयुष ग्राम चिकित्सालय हार्ट के ऐसे रोगी, जो स्टेंट और बाईपास सर्जरी करा चुके हैं या डॉक्टरों ने स्टेंट या बाईपास के लिए भी असमर्थ बताया है, को भी लगातार जीवनदान दे रहा है। रीढ़ के रोगी, किडनी के रोगियों में चामत्कारिक प्रभाव इन्हीं औषधियों/कल्पों की शक्ति से है। रियायती बेड चार्ज, रियायती परामर्श शुल्क पर सेवा इस ट्रस्ट का उद्देश्य है। 

आयुष ग्राम (ट्रस्ट) की सफलता का रहस्य यहाँ का शास्त्रोक्त पंचकर्म, अपने रोगियों के प्रयोग हेतु उत्कृष्ट, शास्त्रोक्त, दुर्लभ रसकल्प और औषधियों का स्वयं निर्माण, वैदिक वातावरण का अद्भुत संगम है। इससे यहाँ आरोग्य कारक ऊर्जा का अनन्त और अनवरत प्रवाह बना रहा है 

आयुष त्रिमर्मीय चिकित्सा विभाग- आयुष ग्राम चिकित्सालय में त्रिमर्मीय चिकित्सा विभाग स्थापित किया गया है जिसमें हृदय रोग, बस्ति (किडनी) रोग, शिरोरोग के अलावा संकट लाने वाले सभी रोगों की चिकित्सा की जाती है। हृदय रोगियों को ऑपरेशन, स्टेंट से किडनी रोगियों को डायलेसिस से बचाने में निरन्तर अच्छी सफलता के रिकार्ड दर्ज होते जा रहे हैं।

आयुष न्यूरो स्पाइन एवं अस्थिरोग विभाग- आयुष ग्राम चिकित्सालय का न्यूरो स्पाइन एवं अस्थिरोग विभाग के अन्तर्गत रीढ़ और जोड़ों के दर्द, या उनके किसी स्थिति में गिरावट आने को बिना ऑपरेशन ठीक किया जाता है। ऐसे-ऐसे रोगी जिन्हें रीढ़, जोड़ों के दर्द के कारण घुटने बदलने, कमर दर्द तथा अन्य अस्थिरोगों में जहाँ ऑपरेशन की अनिवार्यता बतायी जाती है उन्हें बिना ऑपरेशन सम्हाला जाता है वे अच्छा जीवन व्यतीत करते हैं।

आयुष बाल रोग विभाग- बाल रोग विभाग में उन बच्चों की सफल चिकित्सा की जा रही है जिनकी रोग प्रतिरोधक क्षमता कमजोर है और जो बार-बार बीमार होते रहते हैं। इसके अलावा निम्नांकित रोगो की चिकित्सा हेतु विशेष सुविधा है |

¬ विशेष- त्रिमर्मीय चिकित्सा (हार्ट, किडनी, शिरो रोग)

¬ अन्नवह स्रोतस् के रोग- पाचन विकार, अपच, पेट फूलना , ग्रहणी विकार (कोलाइटिस), जलन, उल्टी, वायुगोला, अम्लपित्त, पेट दर्द, उदर रोग।

¬ प्राणवह स्रोतस् के रोग- श्वास, खाँसी, कमजोरी, स्वरभेद, छाती में दर्द, हृदयाभिघात, हृदय रोग।

¬ रसवहस्रोतस् रोग- ज्वर, पाण्डु (खून की कमी), आमवात (जोडों की बीमारी), सूजन)। 

¬ चयापचय एवं धातु विकृति रोग- मधुमेह (प्रमेह), वातरक्त (गाउट), धमनी प्रतिचय (कोलेस्ट्रॉल बढ़ना़ धमनियों में रुकावट ण्.A.D./ण्.प्.D.), क्षार अम्ल असंतुलन, मोटापा, थायराइड।

¬ उदकवह स्रोतस् रोग- अतिसार, प्रवाहिका, विसूचिका,  जलोदर,तृष्णा रोग।

¬ रक्तवह स्रोतस रोग- यकृत् (लिवर) के रोग, (लिवर सिरोसिस) शरीर में दाह, रक्तपित्त, रक्तगतवात (हायपरटेंशन)।

¬ शुक्रवह स्रोतस् रोग- नपुंसकता, स्वप्नदोष, शीघ्रपतन, शुक्राणु अल्पता, वेरिकोसील (शिरागुच्छ), बाँझपन,यौन विकार।

¬ मूत्रवहस्रोतस् विकार- पेशाब कठिनाई से उतरना, पथरी, पेशाब कम बनना, प्रोस्टेट, मूत्राशय के विकार। 

¬ पुरीषवहस्रोतस के रोग- विबन्ध (कब्ज), पेट में वायु घूमना, पेट में कीड़े, बवासीर आदि।

¬ त्वचा विकार- सोरायसिस, एक्जिमा, दाद, सपेâद दाग (श्वित्र), शीतपित्त। 

¬ वात व्याधि- पक्षाघात, गृध्रसी (सर्वाइकल स्पॉण्डिलाइटिस, लम्बर स्पॉण्डिलाइटिस आदि) कमर दर्द, जोड़ों के दर्द।

¬ मानसिक विकार- मिरगी, हिस्टीरिया, उन्माद, डिप्रेशन, ओ.एस.डी., भ्रम, घबराहट।

¬ महिलाओं के रोग- गर्भाशयसिस्ट (बिना ऑपरेशन), प्रदर रोग, कष्ट के साथ मासिक धर्म, गर्भाशय शोथ, बाँझपन।

¬ बच्चों के रोग- बच्चों का अविकास, कुपोषण, बार-बार बीमार होना, ऑटिज्म, मानसिक विकार, दौरे,झटके, शिर में पानी आ जाना।

¬ बुढ़ापे के रोग- स्मृतिदौर्बल्य, अनिद्रा, कम्पवात, शारीरिक दर्द आदि।

२. आयुष ग्राम गुरुकुलम् (इण्टर मीडिएट तक)- मानव जीवन को भारतीय वाङ्मय ने बहुत अच्छे ढंग से चार भागों में विभक्त किया है इसमें पहला भाग ब्रह्मचर्य है। इस भाग को यानी २५ वर्ष तक नियम, संयम पूर्वक रहते हुए अपनी ऊर्जा का विशेष निर्माण जिसे आज की भाषा में वैâरियर निर्माण कहते हैं लगता है ताकि अगले भाग पारिवारिक जीवन का सुख पूर्वक निर्वाह हो। शुरुआती के २५ सालों तक यदि मानव अच्छी तरह ढाल दिया जाय तो जीवन सुनहरा बन जाय। ध्यान रखें यदि इस उम्र तक बच्चों को आप नहीं ढालेंगे तो बाजार अपने में ढालने के लिए पूरी तरह तैयार है। एक समय जब बाजार पर ९०³ अधिकार स्त्रियों का था धीरे-धीरे वह घटता गया और अब ५०³ कब्जा बच्चों का है। आज स्त्रियाँ प्रदर्शन की वस्तु और बच्चे खिलौने बना दिये गये। यदि बच्चे अपने माता-पिता या बड़ों से संस्कार नहीं ले पाये और हम दे नहीं पाये तो समझो बाजार हमारे बच्चों को वह सब देने को तैयार है जिससे हमारा आगे आने वाला गृहस्थ जीवन विकृत हो जाएगा। आज ऐसे शिक्षण संस्थान भी हैं जहाँ लड़के, लड़कियाँ १०वीं-१२वीं में दारू, सिगरेट और न जाने कौन-कौन नशा उड़ा रहे हैं। क्या होगा इनका भविष्य? कौन सम्हालेगा इन्हें? इन परिस्थितियों पर चिन्तित होकर आचार्य डॉ. मदनगोपाल वाजपेयी जी ने आयुष ग्राम गुरुकुलम् की स्थापना आयुष ग्राम (ट्रस्ट) की स्थापना के साथ वर्ष २०१३ में ही की थी। इसके साथ-साथ गुरुकुलम् की मान्यता हेतु शासन स्तर पर आवेदन किया गया। ट्रस्ट के संस्थापक आचार्य डॉ. मदनगोपाल वाजपेयी जी के निजी प्रयासों से शिक्षण सत्र २०१८-१९ में कक्षा ६ से १०वीं तक और १२वीं की मान्यता वर्ष २०२१ में प्राप्त हुयी।

आयुष ग्राम गुरुकुलम् इसी लक्ष्य पर कार्य कर रहा है कि यहाँ से शिक्षित छात्र आई.ए.एस./आई.पी.एस., मेडिकल, इंजीनियरिंग, शिक्षा के क्षेत्र में जायें पर भारतीय संस्कार, रहन-सहन, खान-पान, भावना और पवित्रता में दृढ़ रहे बच्चे में श्रम, ज्ञानार्जन, समयबद्धता के संस्कार भरे जाते हैं तो उनके तथा शरीर को सर्दी, गर्मी सहने की क्षमतावान् बनाया जाता है।

सरकार द्वारा मान्यता प्राप्त इस गुरुकुलम् में विज्ञान, गणित, अंग्रेजी, हिन्दी, संस्कृत, वेद, प्राच्य मेडिकल साइंस (आयुर्वेद), धर्म, नैतिक शिक्षा, सामाजिक विज्ञान की मान्यता ली गयी है। सुयोग्य, संस्कारित, तपस्वी और आदर्श गुरुजनों के संरक्षण में विद्यार्थी ब्रह्ममुहूत्र्त से उठकर रात्रि १० बजे तक सुव्यवस्थित, अनुशासित पद्धति से शिक्षा ग्रहण करते हैं। चरित्र, आचरण और शरीर निर्माण पर विशेष ध्यान दिया जाता है। 


गुरुकुल में प्रवेश- मार्च के अंतिम सप्ताह से होता है, बहुत ही जाँच-परख कर छात्र लिये जाते हैं। गुरुकुलम् में छात्र संख्या १०० ही रखी जाती है ताकि छात्रों की अच्छी देख-रेख हो सके। शिक्षण और आवास पूरी तरह से नि:शुल्क है। 


३. आयुष ग्राम गोसेवालय- आचार्य डॉ. मदनगोपाल वाजपेयी जी का गो सेवा सर्वाधिक प्रिय कर्म है अत: उन्होंने ट्रस्ट की स्थापना के साथ ही आयुष ग्राम गो सेवालय की स्थापना भी वर्ष २०१३ में की है। गो सेवालय की स्थापना का उद्देश्य निर्बल, अशक्त, बेसहरा व दूध न देने वाली गायों को सुरक्षा प्रदान कर, देश की समृद्धि का मूल आधार गोवंश को संरक्षित करना था। वर्तमान में गोसेवालय में १५१ गोवंश की सेवा परिवार के बुजुर्ग सदस्यों की भाँति सेवा की जाती है। 

४. आयुष ग्राम प्रकाशन- आयुष ग्राम (ट्रस्ट) की मातृ संस्था दिव्य चिकित्सा भवन, पनगरा (बाँदा) से संचालित दिव्य चिकित्सा भवन प्रकाशन को आयुष ग्राम ट्रस्ट में समायोजित कर आयुष ग्राम प्रकाशन की स्थापना की गयी। इस प्रकल्प के अन्तर्गत, आयुर्वेद, स्वास्थ्य, धर्म, अध्यात्म, एवं भारतीय साहित्य का प्रकाशन कर जन सामान्य को मात्र लागत मूल्य में उपलब्ध कराया जाता है। 

५. दिव्य चिकित्सा भवन- अपनी जन्मभूमि पनगरा (बाँदा) में आचार्य डॉ. मदनगोपाल वाजपेयी जी ने इस संस्था के अन्तर्गत, आयुर्वेद चिकित्सालय, चिकित्सा पल्लव ‘मासिक’ एवं अन्य आयुर्वेद सम्बन्धी का प्रकाशन, कालान्तर में, इसी परिसर में आचार्य डॉ. मदनगोपाल वाजपेयी जी द्वारा अपने पूज्य पिता श्री की स्मृति में पं. शिवदत्त वाजपेयी मेमोरियल आयुर्वेद नर्सिंग एवं फार्मेसी कॉलेज की स्थापना की जिसमें उत्तर प्रदेश शासन द्वारा नर्सिंग एवं फार्मेसी कक्षाओं में प्रवेश हेतु ५०-५० सीटों में प्रवेश की मान्यता प्राप्त है। 

६. मनोरमा पथ्यशाला- आयुष ग्राम न्यास द्वारा यहाँ चिकित्सा हेतु आगन्तुकजनों के लिए मनोरमा पथ्यशाला का संचालन किया जाता है। इस पथ्यशाला में आगन्तुकों हेतु शुद्ध एवं बिना प्याज, लहसुन के सात्विक भोजन स्वल्प मूल्य पर उपलब्ध कराया जाता है। 

७. उद्यानशाला- 

जड़ी-बूटी पहचान- धन्वन्तरि पीठ आयुष ग्राम न्यास का उद्देश्य व्यवसाय और धन संचय नहीं बल्कि ऋषि परम्परा पुनर्जागरण और उसे जन-जन तक पहुँचाकर सर्वविधहित करना है। वनौषधियाँ और जड़ी-बूटियों का शुद्ध रूप में प्राप्त करना, संग्रह करना एक चुनौतीपूर्ण कार्य है। यद्यपि चित्रवूâट में पैâले विशाल और प्रदूषण रहित भू भाग से जड़ी-बूटियों का संग्रह हो जाता है। कौन सी जड़ी-बूटी वैâसी होती है इसका नमूना प्रस्तुत करने के लिए आयुष ग्राम न्यास परिसर में वनौषधि उद्यान स्थापित किया गया है ताकि लोग उन औषधियों के सही स्वरूप को पहचान सवेंâ।

आयुष ग्राम (ट्रस्ट) द्वारा पर्यावरणीय सुरक्षा एवं औषधीय वनस्पतियाँ की उपलब्धता के उद्देश्य से एक उद्यानशाला की भी स्थापना की गयी है। इसके अन्तर्गत, औषधीय वृक्षों के रोपण के साथ-साथ, शाक-सब्जियाँ भी उगाई जाती हैं जिसके खाद के रूप में केवल गाय का गोबर एवं गोमूत्र का ही प्रयोग किया जाता है। 

८. आयुष ग्राम केन्द्रीय पुस्तकालय- आयुष ग्राम (ट्रस्ट) द्वारा प्रशिक्षित पुस्तकालयाध्यक्ष के अनुरक्षण में यहाँ के अन्तेवासियों, गुरुकुलम् के विद्यार्थियों एवं आगन्तुकों के लिए केन्द्रीय पुस्तकालय है जिसमें आयुर्वेद, धर्म, अध्यात्म, स्वास्थ्य एवं समसामयिक विषयों से सम्बन्धित पुस्तवेंâ एवं पत्रिकायें हैं। चारों वेद, अट्ठारह पुराण और उपनिषद् भी यहाँ संग्रहीत हैं।

९. भगवान् धन्वन्तरी

 
न्तरि पीठ - श्रीमद्भागवत महापुराण २/७/२१ के अनुसार भगवान् धन्वन्तरि का नाम जप मात्र ही मानव को आरोग्य प्रदान करता है। भगवान् धन्वन्तरि के मार्ग का अनुगमन करने से मानव आरोग्य, धन, सुख, शांति और समृद्धि प्राप्त करता है। भगवान् धन्वन्तरि के मार्गानुगामियों के लिए ‘धन्वन्तरि पीठ’ और धन्वन्तरि परिवार की स्थापना की गयी है। इसके अन्तर्गत प्रत्येक सात्विक परिवारों को जोड़कर उन्हें ‘भगवान् धन्वन्तरि’ के मार्ग में चलने का मार्गदर्शन किया जा रहा है जिससे परिवार, समाज, राष्ट्र में आरोग्य, धन, सुख, शांति और समृद्धि लौटे।

१०. नि:शुल्क चिकित्सा शिविर- आयुष ग्राम ट्रस्ट चित्रकूट  द्वारा समय-समय पर सभी के लिए नि:शुल्क आयुर्वेद चिकित्सा शिविर आयोजित किये जाते हैं।

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