![]() |
राजू द्विवेदी |
हमें लगता है कि यदि अधिकांश रोगों की चिकित्सा
का भार आयुष चिकित्सा को दे दिया जाय और उपयुक्त अर्ह आयुष चिकित्सक भारत के मानव
को मिल जाये तो अधिकांश लोग शुगर, मोटापा, कोलेस्ट्राल, हृदय
रोग आदि के शिकार होने से बच सकते हैं इसे दूसरे शब्दों में यह भी कह सकते हैं कि
आजकल जो शुगर, मोटापा, थायरायड, रक्तचाप, कोलेस्ट्राल, हृदय
रोग की बीमारी की बाढ़ आ गयी है वह सही चकित्सा, सही
निदान, रोग के मूल कारण की खोज के अलावा
और कुछ नहीं।
फरवरी माह में ओरन (बाँदा) के एक प्रतिष्ठित
द्विवेदी परिवार से राजू द्विवेदी उम्र ४३ वर्ष आयुष ग्राम ट्रस्ट चित्रकूट में ‘आयुष ग्राम चिकित्सालय’ सूरजकुण्ड रोड, चित्रकूट आए। उनकी
बड़ी भयंकर शारीरिक समस्यायें थीं-
- कुछ वर्षों पूर्व हार्ट की समस्या आयी, प्रयागराज में इलाज चला।
- कुछ समय बाद बायें चेहरे से ऊपर की ओर चढ़ता और बना रहने वाला सिर दर्द होने लगा। इसका इलाज कानपुर में चला। डॉक्टरों ने Neuralgia (न्यूरेल्जिया तंत्रिकाशूल)/(T.N.) घोषित कर इलाज किया। पर लाभ नहीं।
- वजन बढ़ते-बढ़ते १०७ किलो ग्राम हो गया।
- नींद न आने के कारण लगातार १०-१० दिनों तक नींद की गोलियाँ खानी पड़ती थीं।
- उधर वजन बढ़ता गया इधर शरीर में कमजोरी भी बढ़ती जा रही थी। कब्जियत और गैस की शिकायत भी हो गयी।
- पूरी दिनचर्या अस्त-व्यस्त हो गयी, घबराहट, बेचैनी, निराशा, अवसाद किसी भी काम में मन न लगना।
रक्त परीक्षण कराया तो पाया कि कोलस्ट्राल बढ़ा है, यूरिक एसिड बढ़ा है, हेमोग्लोबिन १२.४, ब्लडशुगर की जाँच कराने पर खाली पेट १४६ एमजी/डीएल, HbA1c १०.२।
➡ मॉडर्न मेडिसिन के डॉक्टर तो
इन्हें मधुमेह रोगी घोषित करेंगे। जबकि रोग का मूल कारण कुछ और ही था।
परिवार के लोग चिन्तित थे कि उनके परिवार में मधुमेह का कोई इतिहास नहीं है न ही वर्तमान में किसी को मधुमेह है, सभी इस बात का लेकर चिन्तित थे कि अभी गैस, एसिडिटी, न्यूरेल्जिया, नींद, कब्ज आदि की दवायें चल रही हैं।
आयुष ग्राम चिकित्सालय, चित्रकूट में चिकित्सा हेतु आने वाले
सैकड़ों रोगियों को देखा जाता है कि ऐसे एलोपैथ दवायें लेते-लेते ब्लडप्रेशर, शुगर
और थायरायड तथा बाद में किडनी फेल्योर
तक पहुँच गये
और जीवन संकटमय हो गया।
यदि रोगी समय पर आयुष चिकित्सा में आ जाता है
तो आयुष चिकित्सा में रोग के मूल कारण को खोजकर चिकित्सा करने के सिद्धान्त के
आधार पर ऐसे रोगी सफल चिकित्सा हो जाती है। यदि असाध्य और बहुत बिगड़े हुयी अवस्था
या जीवन-मृत्यु से जूझ रहे की स्थिति में रोगी आता है तो उसकी प्राण रक्षा और जीवन
की बढ़ोत्तरी ही हो पाता है, अत: रोगी को समय पर ही आना चाहिए।
राजू द्विवेदी तो समय पर यहाँ चिकित्सा हेतु आ
गये, दूसरी बात उनमें एक विशेषता पायी
कि नियम, संयम और परहेज के मामले में एकदम
चुस्त और आज भी उन्हें सारे नियमों और संयम का अपने घर में भी पालन कर रहे हैं।
महर्षि चरक
स्पष्ट कहते हैं कि-
‘‘... ... ... निन्दितानि प्रमेहाणां
पूर्वरूपाणि यानि च।। च.सू. २८/१५।।’’
कि प्रमेह के
जितने भी पूर्व रूप होते हैं वे सब के सब मेदोधातु के दूषित होने से ही उत्पन्न
होते हैं।
श्री राजू द्विवेदी में जो प्रमेह (मधुमेह) आया
वह कुलज मोटापा और लगातार गलत चिकित्सा (अंग्रेजी दवायें खाने) से चयापचय क्रिया
बाधित होने से।
यह ध्यान देने की बात है कि हमारे शरीर को एक्टिव
रखने के लिए इंसुलिन का उत्पादन और इसका अवशोषण दोनों ही बहुत जरूरी है, यदि
इस प्रक्रिया में कोई दिक्कत होती है तो व्यक्ति में बहुत से उपद्रव मिलते हैं।
ऐसे ही ग्लूकोज का अवशोषण सही तरीके से न हो तो रक्त में शुगर का स्तर बढ़ जाता है।
स्थूलता से ग्रस्त कई रोगियों में यह पाया जाता
है कि इंसुलिन का उत्पादन नहीं हो पाता और अवशोषण नहीं हो पाता या कई लोगों का
ग्लूकोज का अवशोषण ही सही तरीके नहीं हो पाता।
चिकित्सा
शास्त्र के महान् वैज्ञानिक चरक ने इस बात को अपने शब्दों में इस प्रकार (च.सू. २१/५-६,७ में) कहा
है-
मेदसाऽऽवृतमार्गत्वाद्वायु:
कोष्ठे विशेषत:।
चरन् सन्धुक्षयत्यमग्निमाहारं
शोषयत्यपि।
तस्मात् स शीघ्रं जरयत्याहारं
चातिकाङ्क्षति।
विचारांश्चाश्नुते घोरान्
कांश्चित्कालव्यतिक्रमात्।
... ... ... ... ... ... ... ... ... ... ... ...
... ... ... ...
मेदस्यतीव संवृद्धे
सहसैवानिलादय:।
विकारान् दारुणान् कृत्व
नाशयन्त्याशु जीवितम्।।
च.सू. २१/५-६,८।।
मेदस् धातु
द्वारा स्रोतों के मार्गों का अवरोध हो जाने से वायु विशेषत: कोष्ठ में
घूमता हुआ जठराग्नि को तीव्र कर देता है और आहार को भी सुखा देता है, वह
भोजन को शीघ्र पचा देता है अतएव आहार भी अधिक चाहता है, ऐसे
में यदि भोजन न मिल सकता तो अनेक प्रकार के रोग पैदा होते हैं।
मेदस् धातु के अधिक बढ़ जाने पर सहसा कुपित हुए
वातादि दोष भयंकर रोगों को उत्पन्न कर अतिस्थूल पुरुष का जीवन नाश कर देते हैं।
आचार्य माधवकार ने भी यह बताया है कि -
‘‘मेदसाऽऽवृतमार्गत्वात्
पुष्यन्त्यन्ये न धातव:।
मेदस्तु चीयते तस्मादशक्त:
सर्वकर्मसु।।’’
मा.नि. ३४/२१।।
यानी जब शरीर मेद बढ़ता है तो सारे स्रोतस्
(बॉडी चैनल्स) में रुकावट हो
जाती
है जिससे अन्य धातुओं का पोषण नहीं हो पाता। अत: व्यक्ति असमर्थ होने लगता है। इसी
को आधुनिक चिकित्सा विज्ञान कहता है कि ग्लूकोज का अवशोषण शरीर में नहीं हो पाता
जिससे शरीर निर्बल होने लगता है।
राजू जी की चिकित्सा में केवल इतना ध्यान देना
चाहिए था कि शरीर के स्रोतस् को स्वच्छ (अवरोध मुक्त) कर दिया जाता। यह कार्य तभी
हो सकता था जब आम, मेद आदि का
पाचन होकर अग्नि, वायु की स्थिति संतुलित हो जाय। इससे रोगी की सारी समस्यायें
चली जातीं।
रोगी में जो उपद्रव हैं वे स्पष्ट बता रहे हैं
कि इनमें अग्नि, आम, वात
और मेद धातु की विकृति है। पर एलोपैथ में पता नहीं क्या ‘थ्योरी
एण्ड थैरापी’ अपनायी जा रही है इसका भगवान् ही
मालिक है, क्या नींद की गोलियाँ खिलाकर किसी
रोग या रोगी का समाधान किया जा सकता है? आयुष ग्राम चिकित्सालय में
इस प्रकार चिकित्सा व्यवस्था विहित की गयी।
चिकित्सा व्यवस्था-
➡ सर्वांग रुक्ष अभ्यंग (कोलकुत्थादि
चूर्ण से) और लेखन बस्ति) प्रत्येक दूसरे दिन।
➡ सप्ताह में २ बार
कोट्टमचुक्कादि तैल से सर्वांग अभ्यंग और वाष्प स्वेदन। यह उपक्रम स्थूल/मेदस्वी
रोगियों के स्रोतोरोध को मिटाता है, वात की गति को निर्बाध करता है, परिणामत: स्फूर्ति प्राप्त होती है।
➡ शिरोधारा ब्राह्मी शंखपुष्पी तैल की। (विधि पूर्वक की गयी, शिरोधारा
स्नायुदौर्बल्य, अनिद्रा, हृद्रोगी को शीघ्र लाभ देती है)।
पथ्य-
चना, गेंहूँ, जौ, अजवायन मिश्रित आटे की रोटी, परवल, लौकी, तुरई की
सब्जी, अदरक, पुदीना की चटनी। पानी पका हुआ।
दैवव्यापाश्रय चिकित्सा एवं दिनचर्या पालन-
प्रात: ब्रह्म मुहूत्र्त में
जागरण,
संध्योपासन, जप, यज्ञ, हवन, शिवार्चन, ध्यान।
औषधि
व्यवस्था पत्र-
१. आमवातारि रस २ गोली, वातगजांकुश रस १ गोली १*२ दोपहर व
रात में।
२. योगेन्द्र रस १ गोली दिन में १
बार।
३. फलत्रिकादि कषाय घन ५०० मि.ग्रा.
और बरा चूर्ण ४ ग्राम रात में सोते समय गरम पानी से।
अपथ्य- अत्यम्बुपान, सलाद, दही, ठण्डा पानी, तेज हवा, सीधी हवा का सेवन, निष्क्रिय जीवन, चावल, आलू, तली चीजें।
१ माह की चिकित्सा से श्री राजू
द्विवेदी के शरीर में पर्याप्त लघुता आ गयी, तंत्रिकाशूल
में काफी कमी आ गयी और नींद बिना गोलियों के आ गयी, रक्तशर्करा
(ब्लड शुगर) में कमी आ गयी।
श्री राजू द्विवेदी
पूरी तरह लगकर १ माह तक पंचकर्म चिकित्सा ली।
HbA1c (Glycosylated Hemoglobin) और कोलेस्ट्राल में तेजी से सुधार।
यद्यपि HbA1c की जाँच हर ३ माह में
कराते हैं पर राजू ने २ माह में ही कराया तो HbA1c १०.२ % से घटकर ६.८ % आ गया। प्लाज्मा ग्लूकोज २४६
एमजी/डीएल से घटकर १४८ एमजी/डीएल हो गया। कोलेस्ट्राल २२० से १८५.०, ट्राइग्लिसराइड २१८.२ से
१६७.७,
एलडीसी ४३.६४ से ३३.५४ हो गया। जो एक चमत्कार से कम नहीं था।
आज राजू पूर्णतया स्वस्थ हैं और अपनी तरह पीड़ित
न जाने कितने रोगियों के स्वयं मार्गदर्शक बन गये हैं।
अब एक प्रश्न आता है कि हमने राजू द्विवेदी जी
को प्रचलित मधुमेह की दवायें यथा जामुन, करेला, गुड़मार, मेथी आदि
प्रयोग नहीं किया बल्कि आमवातारि रस, वातगजांकुश, फलत्रिकादि कषाय, योगेन्द्र रस प्रयोग किया और रोगी में आश्चर्यजनक सुधार आया। तो
इस पर हमने महर्षि चरक का एक बहुत ही महत्वपूर्ण सूत्र ध्यान में रखा-
दोषाणां बहुसंसर्गात्
संकीर्यन्ते ह्युपक्रमा:।
षट्त्वं तु नाति वर्तन्ते
त्रित्वं वातादयो यथा:।।
च.सू. २२/४३।।
जिस प्रकार दोषों के संसर्ग से असंख्य कल्पनायें होती हैं किन्तु उनका ‘त्रित्व’ नष्ट नहीं होता वैसी ही चिकित्सा के कितने ही भेद क्यों न हों किन्तु छ: उपक्रमों से बाहर नहीं जा सकते हैं, इसमें भी यदि विचार किया जाय तो छ: कर्म भी संक्षेप में दो कर्मों में अन्तर्भूत हो जाते हैं लंघन और बृंहण।
श्री राजू द्विवेदी में पंचकर्म में लेखन
बस्तियों का प्रयोग किया उससे स्थूलता का कर्षण हुआ तो उधर आमवातारि रस, वातगजांकुश
ने आम और मेद का पाचन किया, अग्नि का वैषम्य दूर किया, स्रोतोरोध
का निवारण किया परिणामत: अग्नि और वायु की स्थिति संतुलित हुयी जिससे चयापचय
क्रिया ठीक हुयी और सारे रोग लक्षण मिटने लगे तो उधर कोलेस्ट्राल, यूरिक
एसिड, एचबीए-१सी घटने लगा और निर्बलता
मिटने लगी। उधर फलत्रिकादि कषाय ने यकृत क्रिया को ठीक किया, वातानुलोमन
कर पक्वाशय में पुराने मल को बाहर किया तो योगेन्द्र रस रसायन कर्म से बल, ओज, ऊर्जा
प्रदान की।
चूँकि राजू द्विवेदी, चिकित्सा में समय से आ
गये थे और अभी कोई अंग खराब नहीं हुआ था तथा राजू द्विवेदी पथ्य, देवव्यापाश्रय और
दिनचर्या का विधिवत् पालन आज भी कर रहे हैं।
इस प्रकार सही निदान और चिकित्सा से श्री राजू
द्विवेदी स्वस्थ हुये अन्यथा एलोपैथ में दवायें खाते-खाते नई-नई समस्याओं से घिरते
आ रहे थे।
अंत में हम फिर कहते थे कि आज आवश्यकता है सही
निदान और सही चिकित्सा की अन्यथा रोग और रोगियों का सिलसिला खत्म नहीं होगा और
रोगी नए-नए घातक बीमारियों से घिरते जायेंगे। आशा है कि पाठकगण लाभ उठायेंगे।
0 टिप्पणियाँ