२३ जून २०१९ के दिन वाराणसी से श्री विनोद कुमार श्रीवास्तव उम्र ६४ वर्ष को लेकर उनके बेटे पत्नी आयुष ग्राम (ट्रस्ट), चित्रकूट के आयुष ग्राम चिकित्सालयम् चित्रकूट में आये।
उन्होंने पर्चे में समस्या लिखायी कि ६-७ साल से शुगर की बीमारी है। बीएचयू और पीजीआई में दिखाते रहे, दवायें चलती रहीं। बाद में सोडियम घटने लगा, जो फिर नार्मल नहीं आया। अब उल्टी, भोजन के प्रति अरुचि, हिचकी, भूख की कमी, दुर्बलता, साँस फूलना शुरू हो गया।
रोगी के परीक्षण के दौरान उनकी रिपोर्ट देखी गयी तो पाया गया कि यूरिया ८३.० एमजी/डीएल, क्रिटनीन ३.३२ एमजी/डीएल, सोडियम ११०.०० और क्लोराइड ८१.०० था।
रोगी के परिजनों ने बताया कि वाराणसी, लखनऊ के अस्प्तालों में डॉक्टर इसी पर परेशान रहे कि इनका शरीर सोडियम नहीं बना रहा और कैपसूल में भर-भर कर नमक देते रहे तो उधर सूजन बढ़ने लगी।
आयुष ग्राम (ट्रस्ट) चिकित्सालयम्, चित्रकूट में ओपीडी क्रमांक १६/५८३१ पर उनका रजिस्ट्रेशन हुआ। केस हिस्ट्री लेने के पश्चात् जब रोग के मूल कारण (निदान) की ओर जाया गया तो पाया गया कि रोगी श्री विनोद श्रीवास्तव में-
¬ क्लेदक कफ की मात्रा बढ़ी हुयी थी जिससे स्रोतोरोध, शोथ, मन्दाग्नि और शरीर का गलना शुरू हो गया था।
विश्व के महान् चिकित्सा वैज्ञानिक आचार्य चरक बताते हैं-
गुरुस्निग्धाम्ललवणान्यतिमात्रं समश्नताम्।
नवमन्नं च पानं च निद्रमास्यासुखानि च।।
त्यक्तव्यायामचिन्तानां संशोधनमकुर्वताम्।
श्लेष्मा पित्तं च मदेश्च मांसं चातिप्रवर्धते।
... ... ... यदा वस्तिं तदा कृच्छ्रो मधुमेह: प्रवर्तते।।
(च.सू. १७/७८-८०।।)
जो लोग लम्बे समय तक गरिष्ठ, चिकनाई युक्त खट्टे, नमकीन पदार्थ अधिक खाते हैं, उचित श्रम नहीं करते तथा वमन, विरेचन आदि से शरीर का शोधन भी नहीं करते, ऐसे में कफ, पित्त, मेद तथा मांस की वृद्धि होती जाती है जिससे शरीर के स्रोत (चैनल्स) अवरुद्ध हो जाते हैं। परिणामत: वायु (विभिन्न गैसेज के संचरकण में रुकावट होने लगती है एवमेव वायु की गति शरीर में सम्यक् नहीं रह जाती।) जैसे ही वायु की गति में रुकावट होगी या अस्त-व्यस्तता होगी तो शरीर का अग्निबल (चयापचय प्रणाली) में गड़बड़ी होने लगती है। क्योंकि-
प्राणापान समानैस्तु सर्वत: पवनैस्त्रिभि:।
ध्मायते पाल्यते चापि स्वां स्वां गतिमवस्थितै:।।
उन्होंने पर्चे में समस्या लिखायी कि ६-७ साल से शुगर की बीमारी है। बीएचयू और पीजीआई में दिखाते रहे, दवायें चलती रहीं। बाद में सोडियम घटने लगा, जो फिर नार्मल नहीं आया। अब उल्टी, भोजन के प्रति अरुचि, हिचकी, भूख की कमी, दुर्बलता, साँस फूलना शुरू हो गया।
रोगी के परीक्षण के दौरान उनकी रिपोर्ट देखी गयी तो पाया गया कि यूरिया ८३.० एमजी/डीएल, क्रिटनीन ३.३२ एमजी/डीएल, सोडियम ११०.०० और क्लोराइड ८१.०० था।
रोगी के परिजनों ने बताया कि वाराणसी, लखनऊ के अस्प्तालों में डॉक्टर इसी पर परेशान रहे कि इनका शरीर सोडियम नहीं बना रहा और कैपसूल में भर-भर कर नमक देते रहे तो उधर सूजन बढ़ने लगी।
आयुष ग्राम (ट्रस्ट) चिकित्सालयम्, चित्रकूट में ओपीडी क्रमांक १६/५८३१ पर उनका रजिस्ट्रेशन हुआ। केस हिस्ट्री लेने के पश्चात् जब रोग के मूल कारण (निदान) की ओर जाया गया तो पाया गया कि रोगी श्री विनोद श्रीवास्तव में-
¬ क्लेदक कफ की मात्रा बढ़ी हुयी थी जिससे स्रोतोरोध, शोथ, मन्दाग्नि और शरीर का गलना शुरू हो गया था।
विश्व के महान् चिकित्सा वैज्ञानिक आचार्य चरक बताते हैं-
गुरुस्निग्धाम्ललवणान्यतिमात्रं समश्नताम्।
नवमन्नं च पानं च निद्रमास्यासुखानि च।।
त्यक्तव्यायामचिन्तानां संशोधनमकुर्वताम्।
श्लेष्मा पित्तं च मदेश्च मांसं चातिप्रवर्धते।
... ... ... यदा वस्तिं तदा कृच्छ्रो मधुमेह: प्रवर्तते।।
(च.सू. १७/७८-८०।।)
जो लोग लम्बे समय तक गरिष्ठ, चिकनाई युक्त खट्टे, नमकीन पदार्थ अधिक खाते हैं, उचित श्रम नहीं करते तथा वमन, विरेचन आदि से शरीर का शोधन भी नहीं करते, ऐसे में कफ, पित्त, मेद तथा मांस की वृद्धि होती जाती है जिससे शरीर के स्रोत (चैनल्स) अवरुद्ध हो जाते हैं। परिणामत: वायु (विभिन्न गैसेज के संचरकण में रुकावट होने लगती है एवमेव वायु की गति शरीर में सम्यक् नहीं रह जाती।) जैसे ही वायु की गति में रुकावट होगी या अस्त-व्यस्तता होगी तो शरीर का अग्निबल (चयापचय प्रणाली) में गड़बड़ी होने लगती है। क्योंकि-
प्राणापान समानैस्तु सर्वत: पवनैस्त्रिभि:।
ध्मायते पाल्यते चापि स्वां स्वां गतिमवस्थितै:।।
(सु.सू. ३५/२८।।)
यदि ‘वायु’ की गति ठीक है और संतुलित है तो यही वायु प्राण, समान और अपान रूप से अग्नि को ज्वलित तथा पलित (preserve) करते हैं अर्थात् चयापचय क्रिया ठीक रहती है।
इस पर दुनिया के प्रथम शल्य वैज्ञानिक आचार्य सुश्रुत की महान् वैज्ञानिकता से भरा एक और सूत्र इस बात को प्रमाणित करता है कि-
दोषधात्वाग्निसमतां सम्प्राप्तिं विषयेषु च।
क्रियाणामानुलोम्यं च करोत्यकुपितोऽनिला:।।
(सु.नि. १/१०।।)
यदि शरीर में वायु (विभिन्न Gases) की स्थिति ठीक/संतुलित रहने पर ही पित्त, कफादि दोष, धातु, उपधातु और अग्नि (Metabolic Fire) की समता तथा ज्ञानेन्द्रियों और मन का अपने-अपने विषयों से सम्पर्क और उनकी क्रियायें भली भाँति सम्पन्न होती हैं।
इस प्रकार यह सिद्ध हो गया न कि गलत जीवनशैली से दोष और दूष्य की गड़बड़ी, फिर वायु की व्याहतगति परिणामत: अग्नि (metabolic Fire) की विकृति जिससे खवैगुण्य होकर ‘मधुमेह’ की भूमिका व्यक्ति के (जठराग्नि कायाग्नि) के गड़बड़ होने पर भी यदि वह खान-पान को ठीक नहीं करना चाहता तो-
काश्यप संहिताकार बताते हैं कि-
काश्यप संहिताकार बताते हैं कि-
तस्योपहत कायाग्ने पूर्ववत् पिवतोऽश्नत:।
कफीभवति भूयिष्ठं यदादत्रे चतुर्विधम्।।
(का.सं. कल्प स्थान।।)
कायाग्नि के दुर्बल या मन्द हो जाने के बाद भी जो व्यक्ति पहले के समान ही खान-पान को ठोंकता जाता है तो चबाया, चूसा, चाटा और पिया आहार भूयिष्ठ कफ रूप में परिणित होता जाता है। जब ऐसा होगा तो फिर कफ के भौतिक द्रव्य और जल तथा पृथ्वी महाभूत शरीर में बढ़ेंगे और अग्नि महाभूत दुर्बल रहेगा। क्योंकि अग्नि का सबसे बड़ा शुत्रु ‘जल’ ही तो है।
जब शरीर में अग्निमहाभूत कम रहेगा तो अग्निमहाभूत के प्रतिनिधि लवण (Sodium), रक्त, उष्मा, रूप, तेज कैसे बढ़ सकता है?
यही आयुर्वेद की वैज्ञानिकता और रोग के जड़ में पहुँचाने की युक्ति है। आप सभी जानते हैं कि आचार्य नागार्जुन ने लवण रस को अग्नि+जल से उत्पन्न बताया है।
रोगी श्री विनोद कुमार श्रीवास्तव को भर्ती कर चिकित्सा प्रारम्भ की गयी। चिकित्सा में ध्यान रखा गया कि- क्लेदक कफ को संतुलित कर स्रोतोरोध का निवारण कर वायु की गति को अव्याहत किया जाय जिससे प्राण, समान, अपानवायु का कार्य सम्यक् हो सके।
इनके सम्यक् होने से निर्मित धातु, उपधातु शरीर के खनिज, लवण आदि का व्यानवायु के द्वारा पूरे शरीर में भ्रमण हो सके।
अत: पंचकर्म चिकित्सा में-
स्वेदन, लेखनबस्ति का प्रयोग किया गया और औषधियों में निम्नांकित व्यवस्था पत्र को विहित किया गया-
१. स्वर्ण शिलाजित्वादी वटी, लघुसूतशेखर रस, चौंसठप्रहरी पिप्पली, दशमूल और याकूती रसायन का प्रयोग किया गया। क्योंकि स्वर्ण शिलाजित्वादि वटी जहाँ एक ओर रसायन है तो दूसरी ओर बल, अग्निवर्धक, कफनाशक है, इसके संयोग में लघुसूतशेखर रस जिसके निर्माण में पान के रस की भावना होती है, जो अग्निवर्धक और कफ नाशक है। चौंसठप्रहरी पिप्पली और दशमूल का गुण कफनाशक, स्रोतोरोधनाशक स्पष्ट है ही।
क्लेदक कफ का कार्य और स्थान आमाशय है इसके बढ़ने से यहीं से अग्नि का कार्य मन्द पड़ना शुरू होता है। उपर्युक्त औषध योग आमाशय में पहुँचकर इसको ठीक करता है।
२. सहायक औषध योग के रूप में चरक का तेजस सीरप और पुनर्नवासव का प्रयोग किया गया।
३. रात में सोते समय कंसहरीतकी (चरक संहिता) १० ग्राम गरम जल से।
इस प्रकार चिकित्सा कर जब ३० जून २०१९ को पुन: रक्त परीक्षण कराया गया तो ब्लड यूरिया १०६.५ एमजी/डीएल, क्रिटनीन ४.८ एमजी/डीएल और सोडियम ११० से बढ़कर ११६.७ एमईक्यू/एल हो गया।
रोगी में पर्याप्त बल और उत्साह आ गया। भूख भी लगने लगी। शोथ कम हो गया।
७ जुलाई २०१९ को रोगी श्री विनोद कुमार श्रीवास्तव को डिस्चार्ज कर दिया गया। ८ जुलाई २०१९ को विनोद कुमार श्रीवास्तव जी ने वाराणसी से जब जाँच करायी तो सोडियम १३२.६ हो गया, वह भी नमक के कैपसूल बिना खिलाये।
इस प्रकार यदि पूरी वैज्ञानिकता, आयुर्वेद के सिद्धान्तों के अनुसार चिकित्सा की जाय, तद्नुसार औषधियों का चुनाव किया जाय तो ऐसे परिणाम और प्रमाण मिलते हैं जिनके सामने एलोपैथ कहीं नहीं टिक सकता।
आशा है कि आप सभी इसे आत्मसात करेंगे तथा मानव को सुखी करेंगे।
आयुष ग्राम ट्रस्ट चित्रकूट द्वारा संचालित
आयुष ग्राम चिकित्सालयम, चित्रकूट
मोब.न. 9919527646, 8601209999
website: www.ayushgram.org
डॉ परमानन्द वाजपेयी
बी.ए.एम.एस., एम.डी.(अ.)
डॉ अर्चना वाजपेयी एम.डी.(कायचिकित्सा) आयुर्वेद
आशा है कि आप सभी इसे आत्मसात करेंगे तथा मानव को सुखी करेंगे।
आयुष ग्राम ट्रस्ट चित्रकूट द्वारा संचालित
आयुष ग्राम चिकित्सालयम, चित्रकूट
मोब.न. 9919527646, 8601209999
website: www.ayushgram.org
डॉ मदन गोपाल वाजपेयी आयुर्वेदाचार्य, पी.जी. इन पंचकर्मा (V.M.U.) एन.डी., विद्यावारिधि, साहित्यायुर्वेदरत्न
'प्रधान सम्पादक चिकित्सा पल्लव' डॉ परमानन्द वाजपेयी
बी.ए.एम.एस., एम.डी.(अ.)
डॉ अर्चना वाजपेयी एम.डी.(कायचिकित्सा) आयुर्वेद
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