६ जुलाई २०१७ से आयुष ग्राम ट्रस्ट, चित्रकूट के ‘आयुष ग्राम चिकित्सालयम्’ में निराला नगर, १०५३ ए.के., रायबरेली (उ.प्र.) से ज्ञानेन्द्र प्रताप सिंह नामक १० वर्षीय बच्चे को लेकर उसके माता-पिता चिकित्सा हेतु आये। ओपीडी रजिस्ट्रेशन नम्बर- १०/९७१९ पर उनका रजिस्ट्रेशन हुआ।
बच्चे का परीक्षण किया गया तो पाया गया कि उसकी प्रकृति वात कफज है, विकृति- रस, रक्त, मांस और अस्थि में अस्थिवहस्रोतस की दुष्टि। वात-कफ विकृत होकर रसधातु, अस्थि धातु और अस्थिवहस्रोतस दूषित होकर दाँतों का क्षरण, गलन, सड़न और कुपोषण होने लगा।
स्रोतस में विकार आया ‘संग’ प्रकार का, जिससे निर्विकार वायु तथा पोषक द्रव्य मांसधातु और अस्थिधातु तक पहुँच नहीं रहे थे अत: इस व्याधि की सम्प्राप्ति बन गयी।
भगवान् पुनर्वसु आत्रेय सूत्र बताते हैं-
केशलोमनख श्मश्रुद्विज प्रपतनं श्रम:।
ज्ञेयमस्थि क्षये लिङ्गं संधिशैथिल्यमेव च।।
च.सू. १७/६७
आचार्य वाग्भट्ट बताते हैं-
अस्थ्न्यस्थि तोद: शदनं दन्तकेशनखादिशु।।
अ.हृ.सू. ११/१९।।
विचार करिये समस्या छोटी सी थी, पर अंग्रेजी डॉक्टर रोगी और उसके घर वालों में भय इतना बड़ा भर चुके थे कि जिसकी उन्होंने कल्पना नहीं की थी।
दरअसल अंग्रेजी डॉक्टर और अस्पतालों की स्थिति यह है कि इस प्रकार रोग की गहराई तक पहुँचने की क्षमता ही नहीं है वहाँ, जैसी आयुर्वेद में हैं। वहाँ तो जो मशीनों ने निदान करके दिया उसी के आधार पर ट्रीटमेण्ट करने लगना है चाहे नफा हो या नुकसान।
इस प्रकार रोग के सही कारण पर पहुँचने के बाद तीन प्रकार की औषधियों का चयन करना है-
१. वातकफ दोष संतुलन
२. अस्थिवह स्रोतोरोध नाशक
क्योंकि इसके बिना और औषधि रुग्ण स्थान तक पहुँच ही नहीं सकती।
३. अस्थि पोषक।
अंग्रेजी अस्पताल बच्चे को केवल अस्थिधातु पोषक दवाइयाँ, कैल्सियम आदि दे रहे थे स्रोतोरोध होने के कारण दवाइयाँ वहाँ तक पहुँच ही नहीं पा रही थी तो लाभ क्या करेंगी। खाक!
औषधि व्यवस्था-
१. अपूर्वमालिनी वसंत ३ ग्राम, हीरक भस्म १०० मि.ग्रा., अर्जुनघन २० गोली, रजतसिन्दूर २ ग्राम, मुक्ता भस्म ३ ग्राम, हरिद्राघन ३ ग्राम और मुक्तापंचामृत ३ ग्राम। सभी घोंटकर ६० मात्रा। १²२ मधु के साथ।
२. अरविन्दासव १-१ चम्मच दिन में २ बार।
३. गुग्गुलुतिक्त घृतम् ३ ग्राम सुबह खाली पेट।
अपथ्य- बाजार की बनी चीजें, मैदा, ब्रेड, बिस्किट, मैगी, सलाद, ठण्डे फल, तली चीजें, समोसा, खोवा, साबूदाना, दही, बैगन, अरबी, उड़द, राजमा आदि।
पथ्य में- मूँग की दाल, तुरई, परवल, लौकी, चूना गेंहूँ की रोटी, पुराना चावल, शुद्ध जल, गोदुग्ध, गोघृत।
यह स्पष्ट बता दिया गया था कि रोगी में प्रगति त्रैमासिक का ही आंकलन करें और दवाइयों का सेवन २ साल तक करें।
दूसरे माह ही ज्ञानेन्द्र प्रताप सिंह के मुँह की बदबू मिट गयी, बच्चे में विकास दिखने लगा और सबसे बड़ी बात यह हुयी कि नये दाँत निकलने लगे।
६ माह की चिकित्सा से १-२ दाँत छोड़कर सभी दाँत निकल आये। १ साल की चिकित्सा से सभी दाँत पूरी तरह से सामान्य हो गये तथा बच्चे में बल, मेधा, कान्ति, ओज, वजन और लम्बाई में विकास हुआ।
इलाज के अंतिम चरण में २१ जुलाई २०१९ को बच्चे की माँ और उनके भाई ने पूरी दुनिया के लिए अपने विचार इस प्रकार व्यक्त किये-
मेरे भाई को दाँतों की समस्या से मिला छुटकारा : आयुष ग्राम से!!
पहले हमे पता नहीं था कि आयुष ग्राम चित्रकूट के डॉक्टर केवल दवाओं के द्वारा ही बच्चों के दाँतों की समस्या का अच्छा समाधान पा लिया है। हुआ यह कि मेरा चचेरा भाई ज्ञानेन्द्र सिंह के सातवें महीने में दूध के दाँत तो आने लगे थे लेकिन तभी भयंकर डायरिया हुआ जिसमें ३ दिन तक बालरोग विशेषज्ञ डॉ. कुसुम गुप्ता रायबरेली ने भर्ती रखा, लगातार ग्लूकोज की बोतल चढ़ायी पर डायरिया ठीक नहीं हुआ, चौथे दिन दूसरे डॉक्टर को दिखाया तो एक सप्ताह में डायरिया तो ठीक हो गया लेकिन दाँतों में समस्या पैदा हो गयी, कोई भी दाँत ठीक से मसूढ़ों से बाहर नहीं आ रहे थे, किसी का कोना निकला तो कोई टेढ़ा निकलता तो कोई दाँत झलकता बस था यही सिलसिला चार साल तक चलता रहा, लगी कोई दाँत निकला भी तो उसमें सड़न पैदा हो जाती थी, भयंकर बदबू आती थी, मसूढ़ों में गलन पैदा हो गयी थी, कोई भी घर का सदस्य बच्चे की तरफ मुंह करके नहीं लेट पाता था। हमने अपने एक रिश्तेदार डेण्टल डॉक्टर को दिखाया, उनकी दवा से थोड़ा इनफेक्शन में आराम तो हुआ लेकिन दाँत नहीं निकल रहे थे। लखनऊ में चरक हॉस्पिटल में दिखाया, सभी एलोपैथ डॉक्टर अपनी-अपनी राय देते थे। सात-आठ साल की उम्र तक बच्चा कुछ खा नहीं पाता था सिफ दूध पीता था तभी हमारे मित्र ने प्रभु श्री राम की तपोभूमि में स्थित आयुष ग्राम ट्रस्ट (चिकित्सालय) चित्रकूटधाम का पता बताया हम बच्चे को वहाँ लेकर गये। यहाँ पर देखा कि कोई चीर-फाड़ नहीं शुद्ध आयुर्वेदिक चिकित्सा, अंग्रेजी दवा बिल्कुल बन्द करा दी गयी। दूसरे माह से इंपफेक्शन कम होने लगा, तीसरे माह में काफी अन्तर था, धीरे-धीरे दाँतों का गलना और सड़ना बन्द हो गया। छ: माह में नये दाँत आने लगे थे, डेढ़ साल की दवा से लगभग पूरा आराम समझ आने लगा था बस चार दाँत आने को बचे हैं ज्ञानेन्द्र को यहाँ के इलाज से सिर्फ दांत में ही नहीं बल्कि शरीर में भी बहुत अच्छा विकास हुआ और बच्चों की अपेक्षा इसके दाँत और शरीर ज्यादा मजबूत हैं। २-२ माह में दवा लेने दिखाने जाते रहे। इस बच्चे की दाँतों की समस्या चली गयी वह भी केवल दवाओें से। इसलिये मेरे लिये चमत्कार से कम नहीं था। यहाँ के डॉक्टर और स्टॉफ बहुत ही मृदुभाषी है। इलाज शुरू होने के २-३ माह में असर दिखने लगा। इसलिये आप कोई या आपका बच्चा किसी ऐसी समस्या से परेशान है जिसके लिये बार-बार अंग्रेजी अस्पताल जाना पड़ता है तो आप आयुष ग्राम (ट्रस्ट) चिकित्सालयम् सूरकुण्ड रोड चित्रकूट की शरण लें। ट्रस्ट का अस्पताल है यहाँ सेवाभाव ही रहता है।
- क्रम आने पर ओपीडी में वे आये डॉक्टर साहब ने केसहिस्ट्री लेना शुरू किया तो बताया कि जब यह ७ माह का था तब इसे भयंकर डायरिया हुआ। ३ दिन तक बाल रोग विशेषज्ञ कुसुम गुप्ता के यहाँ भर्ती रहा। डायरिया तो ठीक हो गया पर दाँतों की समस्या हो गयी।
- दूध के दाँत गलने लगे, जड़ तक दाँत तो गल जाते पर जड़ बनी रहती, कोई भी नया दाँत नहीं निकलता।
- यदि कोई नया दाँत निकला भी तो उसमें सड़न पैदा हो जाती है, भयंकर बदबू आती है। मसूड़ों में गलन हो जाती है।
- कोई भी घर का सदस्य बच्चे की तरफ मुँह करके लेट नहीं पाता।
- डेण्टल डॉक्टरों और कॉलेजों में दिखाया तो वे मसूड़ों के ऑपरेशन की सलाह देते हैं। अंग्रेजी दवायें बहुत चलायीं पर उससे कोई लाभ नहीं मिला।
- इस बीमारी के कारण बच्चे के सर्वांग शरीर में कुपोषण और अविकसन स्पष्ट था।
- इसके बाद ‘आयुष ग्राम चिकित्सालयम्’, चित्रकूट की जानकारी प्राप्त होने पर यहाँ लेकर आये हैं।
बच्चे का परीक्षण किया गया तो पाया गया कि उसकी प्रकृति वात कफज है, विकृति- रस, रक्त, मांस और अस्थि में अस्थिवहस्रोतस की दुष्टि। वात-कफ विकृत होकर रसधातु, अस्थि धातु और अस्थिवहस्रोतस दूषित होकर दाँतों का क्षरण, गलन, सड़न और कुपोषण होने लगा।
स्रोतस में विकार आया ‘संग’ प्रकार का, जिससे निर्विकार वायु तथा पोषक द्रव्य मांसधातु और अस्थिधातु तक पहुँच नहीं रहे थे अत: इस व्याधि की सम्प्राप्ति बन गयी।
भगवान् पुनर्वसु आत्रेय सूत्र बताते हैं-
केशलोमनख श्मश्रुद्विज प्रपतनं श्रम:।
ज्ञेयमस्थि क्षये लिङ्गं संधिशैथिल्यमेव च।।
च.सू. १७/६७
आचार्य वाग्भट्ट बताते हैं-
अस्थ्न्यस्थि तोद: शदनं दन्तकेशनखादिशु।।
अ.हृ.सू. ११/१९।।
विचार करिये समस्या छोटी सी थी, पर अंग्रेजी डॉक्टर रोगी और उसके घर वालों में भय इतना बड़ा भर चुके थे कि जिसकी उन्होंने कल्पना नहीं की थी।
दरअसल अंग्रेजी डॉक्टर और अस्पतालों की स्थिति यह है कि इस प्रकार रोग की गहराई तक पहुँचने की क्षमता ही नहीं है वहाँ, जैसी आयुर्वेद में हैं। वहाँ तो जो मशीनों ने निदान करके दिया उसी के आधार पर ट्रीटमेण्ट करने लगना है चाहे नफा हो या नुकसान।
इस प्रकार रोग के सही कारण पर पहुँचने के बाद तीन प्रकार की औषधियों का चयन करना है-
१. वातकफ दोष संतुलन
२. अस्थिवह स्रोतोरोध नाशक
क्योंकि इसके बिना और औषधि रुग्ण स्थान तक पहुँच ही नहीं सकती।
३. अस्थि पोषक।
अंग्रेजी अस्पताल बच्चे को केवल अस्थिधातु पोषक दवाइयाँ, कैल्सियम आदि दे रहे थे स्रोतोरोध होने के कारण दवाइयाँ वहाँ तक पहुँच ही नहीं पा रही थी तो लाभ क्या करेंगी। खाक!
औषधि व्यवस्था-
१. अपूर्वमालिनी वसंत ३ ग्राम, हीरक भस्म १०० मि.ग्रा., अर्जुनघन २० गोली, रजतसिन्दूर २ ग्राम, मुक्ता भस्म ३ ग्राम, हरिद्राघन ३ ग्राम और मुक्तापंचामृत ३ ग्राम। सभी घोंटकर ६० मात्रा। १²२ मधु के साथ।
२. अरविन्दासव १-१ चम्मच दिन में २ बार।
३. गुग्गुलुतिक्त घृतम् ३ ग्राम सुबह खाली पेट।
अपथ्य- बाजार की बनी चीजें, मैदा, ब्रेड, बिस्किट, मैगी, सलाद, ठण्डे फल, तली चीजें, समोसा, खोवा, साबूदाना, दही, बैगन, अरबी, उड़द, राजमा आदि।
पथ्य में- मूँग की दाल, तुरई, परवल, लौकी, चूना गेंहूँ की रोटी, पुराना चावल, शुद्ध जल, गोदुग्ध, गोघृत।
यह स्पष्ट बता दिया गया था कि रोगी में प्रगति त्रैमासिक का ही आंकलन करें और दवाइयों का सेवन २ साल तक करें।
दूसरे माह ही ज्ञानेन्द्र प्रताप सिंह के मुँह की बदबू मिट गयी, बच्चे में विकास दिखने लगा और सबसे बड़ी बात यह हुयी कि नये दाँत निकलने लगे।
६ माह की चिकित्सा से १-२ दाँत छोड़कर सभी दाँत निकल आये। १ साल की चिकित्सा से सभी दाँत पूरी तरह से सामान्य हो गये तथा बच्चे में बल, मेधा, कान्ति, ओज, वजन और लम्बाई में विकास हुआ।
इलाज के अंतिम चरण में २१ जुलाई २०१९ को बच्चे की माँ और उनके भाई ने पूरी दुनिया के लिए अपने विचार इस प्रकार व्यक्त किये-
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पहले हमे पता नहीं था कि आयुष ग्राम चित्रकूट के डॉक्टर केवल दवाओं के द्वारा ही बच्चों के दाँतों की समस्या का अच्छा समाधान पा लिया है। हुआ यह कि मेरा चचेरा भाई ज्ञानेन्द्र सिंह के सातवें महीने में दूध के दाँत तो आने लगे थे लेकिन तभी भयंकर डायरिया हुआ जिसमें ३ दिन तक बालरोग विशेषज्ञ डॉ. कुसुम गुप्ता रायबरेली ने भर्ती रखा, लगातार ग्लूकोज की बोतल चढ़ायी पर डायरिया ठीक नहीं हुआ, चौथे दिन दूसरे डॉक्टर को दिखाया तो एक सप्ताह में डायरिया तो ठीक हो गया लेकिन दाँतों में समस्या पैदा हो गयी, कोई भी दाँत ठीक से मसूढ़ों से बाहर नहीं आ रहे थे, किसी का कोना निकला तो कोई टेढ़ा निकलता तो कोई दाँत झलकता बस था यही सिलसिला चार साल तक चलता रहा, लगी कोई दाँत निकला भी तो उसमें सड़न पैदा हो जाती थी, भयंकर बदबू आती थी, मसूढ़ों में गलन पैदा हो गयी थी, कोई भी घर का सदस्य बच्चे की तरफ मुंह करके नहीं लेट पाता था। हमने अपने एक रिश्तेदार डेण्टल डॉक्टर को दिखाया, उनकी दवा से थोड़ा इनफेक्शन में आराम तो हुआ लेकिन दाँत नहीं निकल रहे थे। लखनऊ में चरक हॉस्पिटल में दिखाया, सभी एलोपैथ डॉक्टर अपनी-अपनी राय देते थे। सात-आठ साल की उम्र तक बच्चा कुछ खा नहीं पाता था सिफ दूध पीता था तभी हमारे मित्र ने प्रभु श्री राम की तपोभूमि में स्थित आयुष ग्राम ट्रस्ट (चिकित्सालय) चित्रकूटधाम का पता बताया हम बच्चे को वहाँ लेकर गये। यहाँ पर देखा कि कोई चीर-फाड़ नहीं शुद्ध आयुर्वेदिक चिकित्सा, अंग्रेजी दवा बिल्कुल बन्द करा दी गयी। दूसरे माह से इंपफेक्शन कम होने लगा, तीसरे माह में काफी अन्तर था, धीरे-धीरे दाँतों का गलना और सड़ना बन्द हो गया। छ: माह में नये दाँत आने लगे थे, डेढ़ साल की दवा से लगभग पूरा आराम समझ आने लगा था बस चार दाँत आने को बचे हैं ज्ञानेन्द्र को यहाँ के इलाज से सिर्फ दांत में ही नहीं बल्कि शरीर में भी बहुत अच्छा विकास हुआ और बच्चों की अपेक्षा इसके दाँत और शरीर ज्यादा मजबूत हैं। २-२ माह में दवा लेने दिखाने जाते रहे। इस बच्चे की दाँतों की समस्या चली गयी वह भी केवल दवाओें से। इसलिये मेरे लिये चमत्कार से कम नहीं था। यहाँ के डॉक्टर और स्टॉफ बहुत ही मृदुभाषी है। इलाज शुरू होने के २-३ माह में असर दिखने लगा। इसलिये आप कोई या आपका बच्चा किसी ऐसी समस्या से परेशान है जिसके लिये बार-बार अंग्रेजी अस्पताल जाना पड़ता है तो आप आयुष ग्राम (ट्रस्ट) चिकित्सालयम् सूरकुण्ड रोड चित्रकूट की शरण लें। ट्रस्ट का अस्पताल है यहाँ सेवाभाव ही रहता है।
मेरा ये फोन नं. है पर बहुत ही जरूरी होेने पर फोन करें। आयुष ग्राम की वेबसाइट www.ayushgram.org से सब जानकारी पा लें।
शिवेन्द्र प्रताप सिंह
१०५३ के.ए. निरालानगर
रायबरेली (उ.प्र.)
मो. ९६७००००१७१
इस प्रकार सही रोग निदान, सही औषधि का चुनाव, रोगी का सही सहयोग होने पर आयुष चिकित्सा से ऐसी-ऐसी सफलतायें प्राप्त की जा रही हैं जहाँ पर एलोपैथ पूरी तरह से असफल है। ‘आयुष ग्राम चिकित्सालयम्’ उत्तम औषधियों तथा कई हजार कल्पों का अद्भुत संकलन है तभी सफलता मिलती है।
कुछ दिन बाद उपर्युक्त योग से रजसिन्दूर हटाकर स्वर्णमुक्तादि गुलिका, यशद, बालकेश्वर रस का प्रयोग किया गया।
हम पाठकों से निवेदन करते हैं कि ऐसी उपलब्धियों से सभी लाभ उठायें, आयुष क्षेत्र में आगे बढ़ें और यदि ऐसी उपलब्धियों से आपको खुशी महसूस हो तो अन्य तक पहुँचाने का कष्ट करें।
आयुष ग्राम ट्रस्ट चित्रकूट द्वारा संचालित
आयुष ग्राम चिकित्सालयम, चित्रकूट
मोब.न. 9919527646, 8601209999
website: www.ayushgram.org
डॉ मदन गोपाल वाजपेयी आयुर्वेदाचार्य, पी.जी. इन पंचकर्मा (V.M.U.) एन.डी., विद्यावारिधि, साहित्यायुर्वेदरत्न
प्रधान सम्पादक चिकित्सा पल्लव
डॉ परमानन्द वाजपेयी
बी.ए.एम.एस., एम.डी.(अ.)
डॉ अर्चना वाजपेयी एम.डी.(कायचिकित्सा) आयुर्वेद
डॉ आर.एस. शुक्ल आयुर्वेदाचार्य
आयुष ग्राम ट्रस्ट चित्रकूट द्वारा संचालित
आयुष ग्राम चिकित्सालयम, चित्रकूट
मोब.न. 9919527646, 8601209999
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डॉ मदन गोपाल वाजपेयी आयुर्वेदाचार्य, पी.जी. इन पंचकर्मा (V.M.U.) एन.डी., विद्यावारिधि, साहित्यायुर्वेदरत्न
प्रधान सम्पादक चिकित्सा पल्लव
डॉ परमानन्द वाजपेयी
बी.ए.एम.एस., एम.डी.(अ.)
डॉ अर्चना वाजपेयी एम.डी.(कायचिकित्सा) आयुर्वेद
डॉ आर.एस. शुक्ल आयुर्वेदाचार्य
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