बढ़ते बच्चों के न्यूमोनिया से बचाव एवं इलाज़ !!
नमस्कार, मैं आचार्य डॉ. मदनगोपाल वाजपेयी, आयुष ग्राम (ट्रस्ट) चित्रकूट से आज हम चर्चा करते हैं निमोनिया पर। कि लगभग हर जिलों में निमोनिया से ग्रस्त तमाम बच्चों की मौतें हो रही हैं, बहुत सारे बच्चे एडमिट हो रहे हैं, यह तो सरकारी अस्पतालों के समाचार हैं, इससे ज्यादा प्राइवेट के अस्पतालों में लोग इलाज करा रहे होंगे, आयुर्वेद में इस रोग को स्वश्नक ज्वर कहा गया है। माधवकार ने लघुत्रय में इसका विस्तार से बड़ वर्णन है और इसकी सफल चिकित्सा भी आयुर्वेद में बहुत अच्छी है। अगर हम थोड़ा सा सावधानी बर्तें तो इससे बचाव अच्छी तरह किया जा सकता है। मार्डन मेडिकल सांइस की जब बात करते हैं तो स्टेपोफोकस नाम का जो बैकटेरिया है उसके द्वारा रोग का जन्म होता है इसका जो भी वायरस, जो भी बैक्टेरिया, फन्गस हैं न वो वो श्वास के माध्यम से, नाक के द्वारा प्रवेश करता है और फेफड़ों में जाकर संक्रमण पैदा करता है, लेकिन जब आयुर्वेद की दृष्टिकोण से विचार करते हैं तो इसमें प्राणवहस्रोतसदुष्टि होती है, रस-धातु की दुष्टि होती है और अग्निमांद्य होता है, आम का निर्माण होता है, अपच होता है। ये स्थितियाँ बनती हैं और इसके बाद फिर स्वश्वनज्वर यानी निमोनिया और कफ का बनना, श्वास फूलना, बहुत ही बेचैनी होना, घबराहट होना और जब यह तीव्र अवस्था में पहुँच जाता है तो फेफड़ों में पानी भी आ जाता है, फेफड़ों में पस भी हो जाता है। तो अब हमें चर्चा करनी है दो विषयों पर एक तो बचाव पर यदि निमोनिया हो नहीं और दूसरा अगर हो जाये तो हम कैसे इससे उबर सकें। तो बचाव कैसे हो सकता है पहले हम इसके कारणों को समझें, आयुर्वेदीय दृष्टिकोण से। होता क्या है जब ऋतुसंधि ताप आता है या ऋतु परिवर्तित होती है तो उस समय इस तरह की व्याधियाँ अवश्य होती हैं क्योंकि उस समय रोगप्रतिरोधक क्षमता ही नहीं प्राणिमात भी कमजोर पड़ जाती है और रोगप्रतिरोधक क्षमता कम जाने से और भी तमाम व्याधियाँ उत्पन्न होने लगती हैं।
अब इस समय चूँकि जो जल है अम्ल विपाकी हो जाता है उधर वायु का प्रकोप है ही, जल के अम्ल विपाकी होने से जो कफ की वृद्धि हो रही है, कफ की वृद्धि हो जाने से स्रोतोवरोध हो रहा है, अग्निमांद्य हो रहा है, और आम का निर्माण हो रहा है। तो इस समय रोग प्रतिरोधक क्षमता कम हो जायेगी बैक्टेरिया, वायरल, फंगस कुछ भी जो भी आक्रमण करेगा उससे हम प्रभावित हो जायेंगे उसी से रोगाक्रन्त हो जायेंगे। अगर हमारे शरीर के वात, पित्त कफ संतुलित रहें, अग्नि हमारी सम रहे और इन्द्रिय, मन और आत्मा यह तीनों प्रसन्न रहे तो हमारी रोग प्रतिरोधक क्षमता बहुत अच्छी बनी रहती है। किसी भी रोग का आक्रमण नहीं हो पाता है।
1 - अब निमोनिया से बचाव करने के लिए तो मैंने बताया था अभी कि इसका जो भी बैक्टेरिया वायरस, फंगस है वह श्वास के माध्यम से प्रवेश करता है। तो हमें यह ध्यान देना चाहिए चाहे बड़े हों, बूढ़े हों, बच्चे हों उसको अणु तैल का प्रयोग करना चाहिए। अगर अणु तैल नहीं मिल रहा है तो सरसों का तैल ही नाक में लगायें दिन में 2 बार, 3 बार। इससे कोई भी बैक्टेरिया, वायरस, फंगस जो है नाक के बाहरी स्तर में वह चिपक के रह जाता है।
2 - नम्बर दो हमें अग्नि को सबल रखना है तो अग्नि को सबल रखने के लिए हमें गरम पानी का प्रयोग करना है, पीने में, खाने में, हाथ धोने में गरम पानी का प्रयोग करना है। तैल की मालिश जरूर होनी चाहिए। तैल की अभ्यंग से एक तो अग्नि सबल होती है और क्या है वात का शमन होता है, तो इससे हमारी रोगप्रतिरोधक क्षमता बढ़ती है। बच्चों को भी तैल की मालिश होनी चाहिए, बच्चों में भी अणु तैल का प्रयोग होना चाहिए, नाक में दिन में 2-3 बार।
सुश्रुत ने 14 बार प्रतिमर्श नस्य का विधान किया है। भोजन में हम अदरक का प्रयोग करें, लेकिन सबसे अच्छा शुण्ठी का प्रयोग करें तो ज्यादा अच्छा रहेगा क्योंकि शुण्ठी में बहुत अच्छी विशेषता है कि वह खाने के समय कटु लगती है लेकिन वह पचने में मधुर हो जाती है तो मधुर होने से वात का शमन कर देती है और कर्पूर रस होने से कफ का शमन कर देती है, मधुर विपाक होने से पित्त का शमन कर देती है तो एक तरह से त्रिदोष शामक हो जाती है तो हमें शुण्ठी का प्रयोग करना चाहिए। 5 ग्राम पुराना गुड़ और 2 ग्राम सोंठ का पाउडर उस दोनों को मिलाकर खाने के पहले ले लेना चाहिए गरम पानी से इस समय तो आप यह समझिये कि निमोनिया इत्यादि के जो भी संक्रमण होने वाले हैं वह बिल्कुल मुक्त रहेंगे। लौंग का चूसड़ करना करना चाहिए, इलायची चबाना चाहिए, दालचीनी का चूसड़ करना चाहिए यह बड़ों के लिए हम बता रहे हैं। अब बच्चों की बात आती है तो बच्चे तो सोंठ नहीं खा पायेंगे तो बच्चों के लिए यह है कि बच्चों में उदर का लेपन करना चाहिए सोंठ के पाउडर का लेप बनाकर उसके उदर में लेपन करिए। लेकिन यदि इस समय अजवायन और शुण्ठी पाउडर इन तीनों को डालकर कड़ुवा तैल में पकाकर और उसको मालिश करें और बच्चे को स्नान करावें तो आप समझिए कि अग्नि बहुत अच्छी बढ़ी रहेगी और निमोनिया से बचाव होगा। मूँग के दाने के बराबर हींग को लेकर थोड़ा पानी में डालकर घोल बना लीजिए और बच्चे के 10 नाखूनों में लगा देना चाहिए, नाभि में लगा देना चाहिए और कान पीछे उसको लगा देना चाहिए इसके प्रभाव से निमोनिया से बचाव होता है मगर बैक्टेरिया वायरस बच्चे के पास आयेगा नहीं। इसके अलावा और सामान्य घरेलू उपाय यह है कि तुलसी का रस लेकर के बच्चे को 1-2 बूँद पिलाया भी जा सकता है, उसके नाखूनों में भी लगाया जा सकता है। लौंग घिसकर बच्चों के नाखूनों में लगाया जा सकता है और आधी कच्ची लौंग और आधी पकी लौंग उसको पीसकर सुबह-शाम, दोपहर देने से उसकी इम्युनिटी बहुत अच्छी बढ़ती है और निमोनिया का आक्रमण नहीं होता। बालचातुर्भज चूर्ण भी आता है बाजार में जिसको गाँव में लोग चौघड़ी कहते हैं, बड़ा बच्चा यानी 6 माह से बड़ा है 1 साल के अन्तर्गत है तो उसको 7.50 mg दे सकते हैं। एक साल से ऊपर का बच्चा है तो उसको आराम से बालचातुर्भज चूर्ण कई कम्पनियाँ बनाती हैं कई मेडिकल स्टोर में मिल जाता है तो आप उसको 1-1 ग्राम चूर्ण को लेकर और शहद में घोलकर बच्चे को चटाइये और बच्चे को थोड़ा सा गरम पानी पिलाइये इससे रोगप्रतिरोधक क्षमता बढ़ेगी और निमोनिया से बच्चा सुरक्षित रहेगा। इसके अलावा आपको क्या करना है कि मेडिकल स्टोर में दवा देती है रस पीपरी ले आइये कई कम्पनियाँ अच्छी बनाती है रस पीपरी की 1-1 गोली दिन में २ बार बच्चे को इस समय देने से आपका बच्चा निमोनिया से पूरी तरह से बचा रहेगा, इसके अलावा आपको लहसुन का प्रयोग भी कर सकते हैं, लहसुन का रस 10 नाखूनों में लगाइये और 1 बूँद से बहुत कम नाभि में लगाइये इससे बच्चे का निमोनिया का प्रभाव नहीं होगा अगर निमोनिया हो भी गया है तो भी यह उपाय बहुत अच्छे कारगर हैं। सामान्य निमोनिया तो घर में ही ठीक हो जाता है, लहसुन का टुकड़ा तोड़कर धागे में बाँधकर उसके कलाई में और गले में बाँध देना चाहिए उससे निमोनिया समाप्त हो जाता है। इसके साथ-साथ साफ-सफाई का बहुत ध्यान देना चाहिए, गरम पानी का प्रयोग, बच्चे को प्रतिदिन स्नान कराना चाहिए, प्रत्येक घर के जो बच्चे को स्पर्श करें जो बच्चे को गोदी लें वह भी साफ-स्वच्छ होने चाहिए। नहीं तो तमाम तरह के बैक्टेरिया संक्रमण हो जाते हैं, बच्चे जो कमजोर होते हैं उनके रोगप्रतिरोधक क्षमता कम होती है तो क्या है कि बच्चे बहुत जल्दी रोग से प्रभावित हो जाते हैं, बच्चे को अगर बाटल का दूध पिला रहे हों तो बाटल बहुत साफ-सफाई से रखी जाये उसके अच्छे ढंग से साफ करके और फिर उसमें दूध भरा जाये और जिस गाय या बकरी का दूध सबसे अच्छा है वह गाय और बकरी दोनों स्वस्थ होना चाहिए ऐसा नहीं कि कोई बीमार गायी और बकरी का दूध देंगे न तो बच्चा बीमार हो जायेगा। आप दाल सूप भी बच्चे को दे सकते हैं,खिचड़ी भी पतली-पतली बनाकर दे सकते हैं इससे रोगप्रतिरोधक क्षमता बढ़ेगी और निमोनिया संक्रमित हो गया है तो बच्चा बहुत जल्दी उभर के आयेगा और निमोनिया के दौरान भी यह दिये जा सकते हैं। इसके अलावा बच्चे को पूरी नींद लेने दें, बच्चे को पंखे को तेज हवा से बचायें एसी से बचायें और भी जो लोग निमोनिया से बचना चाहते हों पंखे की तेज हवा से बिल्कुल बचें। तो इस तरह से हम निमोनिया से बहुत अच्छी तरह से बच सकते हैं और यह जो देखिए अस्पताल में जब जाते हैं तमाम पैसा भी लगता है, हमको मानसिक तनाव भी होता है, रोगी को भर्ती होना पड़ता है, जीवन बचता है कि नहीं बचता यह भी बड़ा सन्देह रहता है और तमाम बच्चे में एण्टीबायोटिक इत्यादि का प्रयोग कराते हैं तो बच्चा महीनों परेशान बना रहता है और जब हम अस्पतालों उभर कर आते हैं तो हमारी मानसिक स्थिति भी महीनों खराब रहती है। तो इस तरह से हमारा प्रयास यह है कि पहले घरेलू इलाज करें, पहले तो हम बचाव करें, बचाव के हमने उपाय भी बताये हुये हैं और इसके बाद भी कोई समस्या है तो हमारा मोबाइल नम्बर है- 8948111166 इस नम्बर पर आप वार्ता करें आप अपना रजिस्ट्रेशन करा दें, नि:शुल्क रजिस्ट्रेशन होगा, नि:शुल्क परामर्श दिया जायेगा अगर आपका बच्चा किसी हॉस्पिटल में एडमिट है निमोनिया के कारण से पीड़ित है और आप बहुत परेशान हैं तो आप इस नम्बर पर कॉल करें हम आपकी पूरी नि:शुल्क सेवा करेंगे। हमारा उद्देश्य आपके स्वास्थ्य की रक्षा।
जय आयुर्वेद!
इनके शिष्यों, छात्र, छात्राओं की लम्बी सूची है । आपकी चिकित्सा व्यवस्था को देश के आयुष चिकित्सक अनुसरण करते हैं ।
(सुपर स्पेशलिटी आयुर्वेद हॉस्पिटल)

प्रधान सम्पादक चिकित्सा पल्लव और आयुष ग्राम मासिक
पूर्व उपा. भारतीय चिकित्सा परिषद
उत्तर प्रदेश शासन
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