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श्रीमती ममता लभेड़ साथ में उनके पति अवधेश कुमार |
तभी मेरे गाँव के एक व्यक्ति ने जो आयुष ग्राम, चित्रकूट का पता दिया और कहा कि मैं गारण्टी लेता हूँ कि आयुष ग्राम, चित्रकूट में आपकी पत्नी अवश्य ठीक हो जायेंगी।
मैं जल्दी ही आयुष ग्राम चिकित्सालयम्, चित्रकूट अपनी पत्नी को लेकर आया, यहाँ ओपीडी चल रही थी, मेरा नम्बर दोपहर में आया, मुझे डॉ. अर्चना वाजपेयी, एम.डी. (आयु.) की ओपीडी नं.-५ में बुलाया गया डॉ. अर्चना वाजपेयी जी ने मेरी पत्नी को देखा और कहा कि आप परेशान मत हों इनको (ममता) पहले माह से ही आराम मिलना शुरू हो जायेगा।
मुझे पहले तो विश्वास नहीं हुआ कि ऐसे कैसे हो सकता है अभी तक इतनी एलोपैथी के इलाज से आराम नहीं हुआ तो इतनी जल्दी आराम कैसे मिल सकता है।
डॉ. अर्चना वाजपेयी जी ने समझाया और १ माह की दवा लिखी और परहेज बताया। मैं दवा लेकर घर चला गया, मेरी पत्नी ने परहेज पूर्वक १५ दिन की दवायें खायीं तो उन्हें सिर दर्द बिल्कुल आराम हो गया और झटके तो तब से आये ही नहीं एक भी बार और एलोपैथ की दवायें भी सभी बन्द थीं। हम लोग बहुत प्रसन्न हो गये।
अब मुझे यहाँ अपनी पत्नी को लाते ३ माह हो गये अब वह १०० % स्वस्थ हैं, सिर्फ हल्की कमर में दर्द, कमजोरी है।
मैं और मेरी पत्नी बहुत खुश हैं और मैं आयुष ग्राम ट्रस्ट, चित्रकूट और वहाँ के डॉक्टरों की सेवाओं का धन्यवाद देता हूँ साथ ही सभी को कहता हूँ कि आप यहाँ पहुँचें।
श्रीमती ममता लभेड़ पत्नी अवधेश कुमार
(कादरगंज), जिला- कासगंज (उ.प्र.)
मोबा.नं.- ९७१८६८७०१६
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‘‘किसी ३२ वर्षीय महिला को १ साल से सर दर्द रहता हो और इतना तेज दर्द होता हो कि महिला पछाड़ खाकर गिर पड़ती हो, हाथ-पैरों में झुनझुनाहट हो, भारीपन रहता हो।’’
➡️ ऐसे रोगी को देखकर सभी घबरा जायेंगे न।
➡️ और अंग्रेजी डॉक्टर कई बीमारियों की आशंका और भय दिखाकर कई हजार रुपये की जाँचें करा देगें न।
➡️ जब जाँचों में कुछ नहीं आता तो फिर अन्दाज से दवा खिलाना शुरू करते हैं। जबकि सच्चाई यह है कि जाँचों में रोग तब आते हैं जब बीमारी अपना घर बना लेती है।
जबकि आप देखेंगे कि एक योग्य आयुष चिकित्सक रोग की सम्प्राप्ति, दर्शन, स्पर्श, प्रश्न आधारित परीक्षा से परीक्षित कर रोगी को उतने से कम खर्च में रोगमुक्त कर देता है जितना उसका अंग्रेजी डॉक्टर जाँच में खर्च करा देता है। ऐसी है अपने भारत की चामत्कारिक आयुष चिकित्सा पद्धति। बस! जरूरत है उसको उपयोग करने की।
आज रोगी भटक रहा है और भरपूर खर्च करने के बाद भी लाभान्वित नहीं हो पा रहा बल्कि दवाइयाँ खाते-खाते नये-नये रोग पैदा कर लेता है।
ऐसा ही एक केस मैं यहाँ चर्चा कर रही हूँ। इस केस को सभी स्वास्थ्य प्रेमी ध्यान से पढ़ें, समझें और यदि अच्छा लगे तो जागरूकता की दृष्टि से दूसरे को भी भेजें।
२६ जून २०१९ को श्रीमती ममता उम्र ३२ को पटियाली कासगंज (उ.प्र.) से लेकर उसके पति अवधेश कुमार लेकर आयुष ग्राम (ट्रस्ट) के चिकित्सालय, चित्रकूट आये। बताया कि उन्हें श्री रामदेव दीक्षित जी ने यहाँ भेजा है। श्रीमती ममता जी को १ साल से भयंकर समस्यायें थीं तथा अंग्रेजी इलाज से कोई समाधान नहीं हो पा रहा था, शरीर और पैसा दोनो बर्बाद हो रहा था।
✔️ १ साल से सिर दर्द, चक्कर खाकर गिर जाती थीं।
✔️ कमर में दर्द, हाथ-पैरों में झुनझुनाहट, पिण्डलियों में दर्द, शरीर का मुड़ना भी।
✔️ कमजोरी, कमर में दर्द, पेट में गैस, सीने में दर्द और कभी- कभी वमन भी हो जाता था।
✔️ कुछ दिन बाद झटके भी आना शुरू हो गये और मुँह से झाग आने लगा।
ममता के पति ने बताया कि इसके बाद इनका इलाज नजदीकी अंग्रेजी हास्पिटल में कराया, ३ माह तक दवाइयाँ चलीं पर कोई आराम नहीं मिला। हम सब लोग परेशान थे तभी श्री रामदेव दीक्षित जी से भेंट हो गयी, उन्होंने आयुष ग्राम ट्रस्ट चिकित्सालयम, चित्रकूट ले जाने की सलाह दी।
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रोगिणी का क्रम आने पर ओपीडी में लाया गया। जब मैंने निदान किया तो पाया कि जिस बीमारी को एलोपैथिक डॉक्टर मिर्गी, तो कोई माइग्रेन, तो कोई डिप्रेशन कह रहे थे वह तो अपतंत्रक व्याधि थी।
आचार्य सुश्रुत बताते हैं कि-
वायुरूध्र्वं व्रजेत् स्थानात् कुपितो हृदयं शिर:।
शंखो च पीडयत्याङ्गन्याक्षिपेन्नमयेच्च स:।
निमीलिताक्षो निश्चेष्ट: स्तब्धाक्षो वाऽपिकूजते।
निरूच्द्द्वासोऽथवा कृच्छ्रादुच्द्द्वस्यान्नष्ट चेतन:।।
स्वस्थ: स्यात् हृदये मुक्ते ह्यवृते तु प्रमुह्यति।
कफान्वितेन वातेन ज्ञेय एषोऽपतन्त्रक:।।
सु.नि. १/६४-६६।।
अर्थात् इस रोग में वात-दोष अपने स्थान पक्वाशय से ऊपर की ओर जाकर हृदय, शिर और शंखप्रदेश (ऊास्ज्ते) को पीड़ित करता है यानी पेन देता है। तो व्यक्ति हाथ-पैर पटकता है, आँखें पथरा जाती हैं, रोगी अवाज करता है, वह साँस या तो रोक लेता है या कठिनाई से साँस लेता है या अचेत हो जाता है, जैसे ही चेतना का स्थान हृदय ‘वातदोष’ के प्रभाव से मुक्त हो जाता है तो व्यक्ति स्वस्थ हो जाता है जब कफ युक्त वात से वह पुन: आवृत हो जाता है तो रोग का पुन: आक्रमण हो जाता है।
श्रीमती ममता जी में रोग की सम्प्राप्ति इस प्रकार निर्मित हो रही थी-
मार्गावरण ➡️ वातदोष प्रकोप ➡️ प्रकुपित वात का पक्वाशय छोड़कर प्रतिलोम गमन ➡️ हृदय, शिर और शंखप्रदेश में स्थान संश्रय होकर पीड़न ➡️ शरीर का झुकना और झटकना ➡️ मूच्र्छा ➡️ श्वास विकृति ➡️ अपतंत्रक व्याधि।
कई बार इस रोग में भी वायु की ऊध्र्व गति के कारण (छर्दि की तरह की अस्थायी सम्प्राप्ति उत्पन्न होने पर) फेनोद्गम भी हो जाता है, इस आधार पर कई चिकित्सक इस रोग को अपस्मार मान लेते हैं जबकि ऐसा नहीं है।
मैंने नाड़ी, जिह्वा, मूत्र, शब्द, दृगाकृति की विधिवत् परीक्षा की और अश्वासन दिया कि आप बिल्कुल चिन्ता न करें पहले माह से ही आराम मिलने लगेगा, दवा समय से करें, खट्टी चीजें, बासी चीजें, उड़द, भिण्डी, बैंगन, कटहल, दलिया का त्याग करना है, समय से भोजन करना है और समय से सोना तथा जागना है, क्योंकि आहार, निद्रा और ब्रह्मचर्य ये तीन स्वास्थ्य के उपस्तम्भ हैं।
अब मैंने पूज्य पापा जी (डॉ. मदनगोपाल वाजपेयी) के आशीर्वाद से निम्नांकित चिकित्सा व्यवस्था लिखी-
➡️ अम्बरशिलादि योग ५ ग्राम, रौप्य भस्म ३ ग्राम, प्रभाकर वटी ५ ग्राम, कादुधा रस मुक्तायुक्त ५ ग्राम, अष्टमूर्ति रस २ ग्राम। सभी घोंटकर ६० मात्रा। १-१ मात्रा दिन में २ बार मधु से।
उपर्युक्त योग मार्गावरण नाशक, बल्य, मेध्य, वातानुलोमक, भूतघ्न और मन:शांतिकर है। क्योंकि अम्बरशिलादि योग में मन:शिल की मार्गावरण निवारण में अच्छी भूमिका है। रौप्य से उत्तम स्नायु बलवर्धक, मस्तिष्क पोषक शायद ही दूसरा द्रव्य हो यह धातुओं को पोषण कर वात का शमन करता है।
➡️ पथ्याक्षधात्र्यादि कषाय (शारंगधर) १५ मि.ली. तथा दशमूलपंचकोल कषाय १५ मि.ली. उबालकर ठण्डा किये जल को मिलाकर दिन में २ बार भोजन के १ घण्टा पूर्व।
यह मेरी योजना में आमपाचन, वातानुलोमन उत्तम अनुपान था।
➡️ जटामांसी घनसत्व ५०० मि.ग्रा. और स्टे्रसनिल १ गोली मिलाकर रात में सोते समय।
एक माह बाद-
एक माह बाद श्रीमती ममता को लेकर उनके पति आयुष ग्राम में आये तो उनकी प्रसन्नता की कोई सीमा नहीं थी, उन्होंने कहा कि पहले हफ्ते से ही शिरदर्द और झटकों में आराम हो गया था। ३ माह की चिकित्सा के बाद तो बीमारी के लक्षण ही समाप्त हो गये।
इस प्रकार की चामत्कारिक है हमारे देश की आयुष चिकित्सा, बशर्ते रोगी बहुत देर करके रोग को जीर्ण और खराब करके न आये।
किन्तु दुर्भाग्य है कि भारत की आजादी के बाद भी देशवासियों पर अंग्रेजी चिकित्सा थोप दी गयी है तो भारतवासी बीमार होने पर शीघ्र लाभ की लालच में पहले अंग्रेजी चिकित्सालय में जाते हैं बाद में आयुष चिकित्सा में। जबकि आजादी के बाद होना यह चाहिए था कि जगह-जगह अच्छे आयुष अस्पताल खोले जाने चाहिए थे जहाँ उत्तम निदान कर चिकित्सा करने वाले चिकित्सकों की नियुक्ति की जानी चाहिये थी तभी भारतवासियों को उत्तम स्वास्थ्य मिलता है।
इसी क्रम में मैं एक अद्भुत तथ्य लिख रही हूँ कि यह ज्ञान मैंने पापा जी के सानिध्य में प्राप्त किया है। जब हम आचार्य सुश्रुत जी का सूत्र- वायुरुध्र्वं व्रजेत् स्थानात् ... ... ... (उपरोक्त) पढ़ते हैं तो इस सम्प्राप्ति निर्देशक सूत्र में ही रोग समाधान निकल आता है। वह पंक्ति है-
‘‘स्वस्थ: स्यात् हृदये मुक्ते ... ... ...।।’’
यानी चेतना स्थान हृदय में ‘वोत दोष’ के प्रभाव से मुक्त होने पर इस रोग से ग्रस्त व्यक्ति स्वस्थ हो जाता है। लेकिन यह रोगावस्था होने पर अस्थायी होता है तो बस! हमें स्थायी कर देना है यानी चेतना स्थान हृदय को ‘वातदोष’ के प्रभाव से मुक्त कर देना है। यह है हमारे शास्त्रों की गहराई जो पापा जी के सानिध्य में निरन्तर सीख रही हूँ।
आयुष ग्राम ट्रस्ट चित्रकूट द्वारा संचालित
आयुष ग्राम चिकित्सालयम, चित्रकूट
मोब.न. 9919527646, 8601209999
website: www.ayushgram.org
प्रधान सम्पादक चिकित्सा पल्लव
डॉ अर्चना वाजपेयी एम.डी.(कायचिकित्सा) आयुर्वेद
डॉ आर.एस. शुक्ल आयुर्वेदाचार्य
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