दो-दो बार की एंजियोप्लास्टी से नहीं आयुष से कैसे मिली सेहत?

  • क्या प्रत्येक चिन्तनीय व्यक्ति का कर्तव्य नही बनता , कि वह सोचें और जागें तथा दूसरों को जगायें कि अंग्रेजी डॉक्टर और अस्पतालों द्वारा हार्ट की सेहत के नाम पर जो हार्ट रोगियों में एंजियोप्लास्टी/स्टेंटिंग की जा रही है, वह हार्ट रोगियों के लिए घाटे का सौदा के अलावा और कुछ है ही नहीं।
  • दो-दो बार एंजियोप्लास्टी के बाद भी जिस रोगी की सेहत काबू में न हो रही हो तो उसकी और उसके पत्नी, बच्चों की मनोदशा क्या होगी? यह सोचकर ही अन्दाजा लगाया जा सकता है। 
  • एंजियोप्लास्टी से सेहत क्यों नहीं मिल पाती? यह भी सोचा जाना चाहिए और मानव को बचाने की क्रान्ति लानी चाहिए। 

३१ दिसम्बर २०१८ को पावर जनरेटिंग कम्पनी लिमिटेड सिलपरा रीवा (म.प्र.) में कार्यरत श्री कृष्णदेव सिंह बघेल उम्र ५९ आयुष ग्राम (ट्रस्ट), चित्रकूट की आयुष कार्डियोलॉजी में आये। ऐसे केस याद रखने पड़ते हैं, रजिस्ट्रेशन हुआ, केसहिस्ट्री के दौरान उन्होंने जो अपनी मार्मिक दशा बतायी, वह सुनकर सभी की रूह काँप जायेगी कि ‘मेडिकल सांइस’ की यही सजा भारतीयों को मिल रही है?

  • उन्होंने बताया कि जनवरी २०१५ में पंचायत चुनाव के दौरान मुझे हार्ट अटैक आया, रीवा मेडिकल कॉलेज में १५ दिन भर्ती रहे फिर स्कॉर्ट हास्पिटल दिल्ली रिफर हो गया। वहाँ उन्होंने जाँच करके बताया कि ब्लॉकेज हैं, जिन्दगी खतरे में है फिर स्टेंट डाल दिया और दवा खाते रहे। 
  • किन्तु ६ माह बाद जुलाई २०१५ में फिर दूसरा हार्ट अटैक आ गया, तुरत-फुरत रीवा मेडिकल कॉलेज में ले गये, वहाँ से फिर स्कॉट हास्पिटल दिल्ली रिफर हो गये। वहाँ उन्होंने जाँच करके बताया कि ब्लॉकेज हो गये और स्टेंट पड़ेगा। इस प्रकार दुबारा स्टेंट पड़ गया, ढेर सारी गोलियाँ दे दी गयीं। घर (रीवा) चले आये। दवाइयाँ खाते रहे, पर कमजोरी, घबराहट, तनाव, बेचैनी मिटने का नाम नहीं ले रही थी, यह भय बराबर बना था कि फिर हार्ट अटैक आ न जाऐ, आ न जाऐ? क्योंकि स्कॉट के डॉक्टरों ने साफ कह दिया था कि दवा खाते-खाते भी अटैक आ सकता है। पैसे से खोखले हो चुके थे। 

रोगी कृष्णदेव सिंह जी में पहली बार हार्ट अटैक की स्थिति क्यों बनी? तो इसके लिए इस रोगी के रोग के सम्प्राप्ति घटकों पर विचार किया गया। 
ध्यान रखने की बात है कि हृदयाघात (हार्ट अटैक) में प्रमुख भूमिका ‘वातदोष’ की होती है, इसके बाद ही अन्य रोग सम्प्राप्ति घटक शामिल होते जाते हैं। भगवान् पुनर्वसु आत्रेय ने स्पष्ट बताया है कि-
‘ एतानि विशेषेण रक्ष्याणि ... ... ... वातादिभ्यश्च।।’ 
चि.सि.९/५।। 
‘विशेषतोऽनिलाद् रक्ष्याणि।।’ 
चि.सि. ९/७।।
वात-दोष के प्रकोपन (Aggrivation) में दो ही कारण बनते हैं- 
‘वायोर्धातुक्षयात् कोपोमार्गस्यावरणेन वा।।’ 
(च.चि. २८/५९)
शरीर की धातु रस, रक्त, मांस आदि के क्षय और शरीर में संचरणशील वायु के मार्ग में दोष, धातुओं, मलों द्वारा मार्ग को आवरित/अवरुद्ध करना शुरू किया जिस पर डॉक्टरों ने ध्यान नहीं दिया केवल लाक्षणिक चिकित्सा करते रहे। श्री कृष्णदेव सिंह जी को जब पहली बार जुलाई २०१५ में हार्ट अटैक आया तो कारण बने
पूर्व से ही वातदोष का प्रकोप (असंतुलन) चुनाव ड्यूटी के तनाव व कार्याधिक्य के कारण इसमें गुणात्मक वृद्धि → वायु का विमार्ग गमन → हृदय में प्रकोप  धमनियों में संग (Obstraction) दोष की उत्पत्ति  हार्ट अटैक। 
स्कॉट अस्पताल के डॉक्टरों ने स्टेंट डालकर केवल धमनियों के संग (Obstraction) को तो हटाया और इकोस्प्रिन जैसी दवायें दे दीं पर रोग समस्या के मूल कारण को न तो समझाया न हटाया तो ६ माह बाद जुलाई २०१५ में फिर हार्ट अटैक आ गया और स्कॉट के डॉक्टरों ने फिर वही भूल दोहरा दी कि स्टेंट डाल दिया, रोगी की मूल समस्या पर फिर कोई ध्यान नहीं दिया। 
यह कहानी केवल कृष्णदेव सिंह की ही नहीं लगभग उन सभी हार्ट रोगियों की है जो अंग्रेजी चिकित्सा के मकड़जाल में फँसे रहते हैं और ऐसी कहानी तब तक बनती जायेगी जब तक हार्ट रोगियों और उनके परिवारीजन विवेकपूर्ण ढंग से सोचेंगे नहीं बल्कि घबराहट में ऐसे निर्णय लेते रहेंगे। तब तक ठगे जाते रहेंगे।
श्री कृष्णदेव सिंह जब आयुष ग्राम (ट्रस्ट), चित्रकूट की आयुष कार्डियोलॉजी में आये तो उनकी रोग सम्प्राप्ति घटक चक्र तैयार किया गया। 
धातुक्षय, मार्गावरोध के कारण  वातदोष। दूष्य दूषित हुये  रस, रक्त। अधिष्ठान  हृदय। स्रोतस  प्राणवह, रसवह। स्रोतोदुष्टि प्रकार  संग, विमार्गगमन भी। स्वभाव  आशुकारी। साध्यासाध्यता  कृच्छ्साध्यता। 
प्राय: देखा जा रहा है कि हार्ट में गड़बड़ी और एंजियोप्लास्टी या बाईपास सर्जरी के बाद ‘किडनी’ में और दिमागी रूप से भी कमजोरी आने लगती है। किन्तु यह बात तो भारत के एक महान् चिकित्सक अग्निवेश ने हजारों साल पहले खोज कर ली थी उन्होंने लिखा है कि- 
‘‘तेषां त्रयाणामन्यतमस्यापि भेदादाश्वेव शरीर भेद: स्यात् आश्रयनाशादाश्रितस्यापि विनाश: तदुपघातात्तु घोरतर व्याधि प्रादुर्भाव:।।’’
चि.सि. ९/५।। 
अर्थात् हृदय, बस्ति और शिर ये तीन महत्वपूर्ण मर्म अवयव होते हैं। इनमें से यदि किसी एक की क्षति होती है तो शरीर या शरीर के अन्य अवयवों की क्षति हो जाती है तथा भयंकर रोग पैदा हो जाते हैं। 
इतना अध्ययन कर लेने के बाद अब कृष्णदेव सिंह को इस बात से बचाना कि अब हार्ट अटैक न हो, या अकाल मौत न हो, कोई कठिन नहीं रह गया। बस, अब करना क्या था सम्प्राप्ति विघटन। क्योंकि रोगी में गतायु लक्षण थे नहीं। अत: वह ठीक हो सकता था तदनुसार चिकित्सा व्यवस्था इस प्रकार दी गयी-
१. मृगांक वटी (हिक्काश्वास) ५ ग्राम, विभीतिका चूर्ण १५ ग्राम, त्रिनेत्ररस ५ ग्राम, खताईपिष्टी ५ ग्राम, वंशलोचन ५ ग्राम और पोहकरमूल घनसत्व १० ग्राम मिलाकर ६० मात्रा। ऐसी १-१ मात्रा दिन में २ बार ‘वसागुलिच्यादि कषाय’ १५ मि.ली. के साथ। 
उक्त औषधि योग श्री कृष्णदेव सिंह जी के लिए धातु पोषक, मार्गावरोध, मार्गावरण नाशक, दीपन, पाचन, अग्निबल यानी प्रतिरक्षा तंत्र बलवर्धक, वातानुलोमक और ओजवर्धक था। क्योंकि ओज की रक्षा और वृद्धि के बिना तो हृदय के सेहत की कल्पना नहीं की जा सकती। अंग्रेजी चिकित्सा व्यवस्था में ओज की अवधारणा तो है नहीं अत: ओज रक्षा या वृद्धि कोई उपाय नहीं अपनाया जाता उल्टे इकोस्प्रिन जैसी दवायें खिलाई जातीं हैं जो कि घोर ओजनाशक हैं जिनके खाते-खाते रोगी में नपुंसकता, उत्साहहीनता, निर्बलता, का शिकार होता जाता है उसे मृत्यु भय घेरने लगता है। 
२. वृक्षाम्ल घनसत्व २५०-२५० मि.ग्रा. दोपहर व रात में गरम पानी से। 
३. रात में सोते समय- जटामांसी घनसत्व १ कैपसूल। 
¬ पथ्य में- मूँग की पतली दाल, रोटी (चना, गेंहूँ), हरी सब्जी, गोघृत। रात में सोते समय गोदुग्ध। स्वल्पाहार में प्रात: १ कटोरी (माड़ निकला) गरम-गरम भात और सब्जी। 
भारत का दुर्भाग्य है कि आजकल नाश्ते में घर-घर में गलत आहार लिया जा रहा है चाहे रोगी हो या स्वस्थ जैसे- पोहा, उपमा, दलिया या नमकीन, बिस्किट। जो कि पचने में भारी होते हैं। पोहा तो पचने में जन्मजात भारी होता है पर अंग्रेजी डॉक्टरों को कौन सा भोजन पचने में भारी है और कौन सा हल्का यह पढ़ाया जाता नहीं और आयुष चिकित्सा में पढ़ाया तो जाता है  पर ... ... ...।
एक माह की चिकित्सा से कृष्णदेव सिंह में आमूलचूक परिवर्तन आया। चूँकि आयुष चिकित्सा मन, आत्मा, शरीर यानी तीनों को ध्यान में रखकर की जाती है। अत: इस चिकित्सा ने श्री  कृष्णदेव सिंह के मन से हार्ट अटैक का भय निकाल दिया। दूसरे माह वे कहने लगे कि आयुष ग्राम चित्रकूट ने बचा लिया। यह तो हुआ यह अधूरी चिकित्सा। अब कृष्णदेव सिंह जी को बस्तिकर्म, स्वेदन आदि (पंचकर्म) की सलाह दी गयी। क्योंकि इसके बिना रोगी को स्थायी लाभ नहीं पहुँचाया जा सकता था। 
रोगी ने सलाह का पालन किया। ६ माह बाद श्री कृष्णदेव सिंह जी सभी को बताने लगे कि भूलकर भी स्टेंट न डलवायें। आयुष ग्राम की चिकित्सा के चलते-चलते श्री कृष्णदेव सिंह ने इस वर्ष (२०१९) में हुये म.प्र. के विधान सभा चुनाव और लोकसभा चुनाव में ड्यूटी भी की। 
१२ माह बाद औषधियों की मात्रा बहुत कम कर दी गयीं, उचित भोजन, उचित श्रम, पूरी नींद, उचित विश्राम तथा ब्रह्मचर्य पालन की सलाह दी गयी। 
कृष्णदेव सिंह जी आज पूरी तरह से स्वस्थ हैं। आयुष चिकित्सा से कृष्णदेव सिंह जी को सेहत इसलिए मिली कि रोग के मूल कारण को ढूँढ़कर चिकित्सा की गयी। रोग के कारण पर प्रहार किया गया, ऐसा न किया जाता तो फिर बाईपास सर्जरी और स्टेंट की बारी आ जाती। 


स्वस्थ होने के बाद श्री कृष्णदेव सिंह ने अपने विचार इस प्रकार दिये-

दो बार एंजियोप्लास्टी भी हार्ट को स्वस्थ नहीं रख पायी!!

कृष्णदेव सिंह जी 
मैं रीवा (म.प्र.) संजय नगर से कृष्णदेव सिंह बघेल क्षत्रिय हूँ और पावर जनरेटिंग कम्पनी लिमिटेड सिलपरा, रीवा (म.प्र.) में सेवारत हूँ। जनवरी २०१५ में मेरी पंचायत चुनाव में ड्यूटी लगी थी मतदान केन्द्र पर मुझे हार्ट अटैक हुआ, तुरन्त मेडिकल कॉलेज रीवा में ले जाया गया, वहाँ पर जाँचें हुयीं, वहाँ १५ दिन तक भर्ती रखकर मुझे दिल्ली स्कॉर्ट हार्ट रिसर्च सेण्टर नई दिल्ली ले जाया गया, वहाँ भी जाँचें हुयीं जाँच करवाने पर बताया गया कि मेरे हार्ट में एक ९५³ ब्लॉकेज हैं वे कहने लगे कि स्टेंट पड़ेगा नहीं तो जिन्दगी खतरे में है। मैं और मेरा पूरा परिवार बहुत घबरा गया, वहीं पर मेरे स्टेंट डाल दिया गया और ३ दिन भर्ती रखा फिर एलोपैथ दवायें देकर घर भेज दिया गया और जीवनभर बस ऐसे ही एलोपैथ की दवाओं को खाते रहने के लिए बोला गया। 
मैं घर पर स्कॉट हास्पिटल की दवायें खा रहा था। बराबर चेकअप करा रहा था लेकिन जुलाई २०१५ में फिर से हार्ट अटैक आ गया, मुझे फिर मेडिकल कॉलेज रीवा (म.प्र.) में ले जाया गया, वहाँ से मुझे दिल्ली स्कार्ट हार्ट रिसर्च सेण्टर फिर रिफर किया गया, वहाँ फिर से जाँचें हुयीं तो बताया गया कि अब दूसरी आर्टरी में ९०% ब्लॉकेज हो गया। मैं वहाँ के डॉक्टरों से जानना चाहा कि नियमित दवायें चलने और परहेज के बाद भी ऐसे कैसे  हो सकता है तब मेरा बीपी और सुगर भी नार्मल था तो ऐसे क्यों हुआ। तो वहाँ के डॉक्टरों ने कहा कि फिर से स्टेंट डलवाओ हार्ट पेसेण्ट में ऐसा होता रहता है और फिर स्टेंट डाल दिया। दवा लेकर मैं रीवा चला आया।
अंग्रेजी दवा खाता रहता इसके बावजूद भी कमजोरी, घबराहट, बेचैनी, बहुत रहती थी अब २०१६ में मुझे सुगर की भी समस्या हो गयी उसकी भी एलोपैथ दवा चलने लगी। इस प्रकार दवाइयाँ बढ़ती जा रही थीं। 
तभी मेरे एक मित्र बीरेन्द्र सिंह बघेल जो मेरे विभाग में ही कार्यरत हैं ने आयुष ग्राम ट्रस्ट, चित्रकूट की आयुष कार्डियोलॉजी के बारे में बताया कि यहाँ बिना ऑपरेशन, स्टेंट केवल औषधियों से हार्ट का इलाज हो रहा है और १००³ सफलतायें हैं।
३१ दिसम्बर २०१७ को मैं पत्नी प्रतिभा सिंह और बेटा सहित आयुष ग्राम चिकित्सालयम्, चित्रकूट की आयुष कार्डियोलॉजी में आ गया। उस समय तक मुझे बहुत कमजोरी, मानसिक तनाव, घबराहट, बेचैनी रहती थी और डर लगता था कि फिर हार्ट अटैक न आ जाये। 
मैं यहाँ आया, रजिस्ट्रेशन हुआ, फिर मेरा नम्बर आने पर डॉ. साहब के पास बुलाया गया, सर ने मुझसे मेरी परेशानी पूछी नाड़ी, जीभ देखी, कुछ जाँच करायी फिर और सबकुछ देख-सुनकर हँसे और मुझसे कहा कि आप निश्चिन्त हो जायें कभी हार्ट अटैक नहीं आयेगा, न हार्ट अटैक से मौत होगी। मैं सर की बात सुनकर खुश हुआ और कुछ थैरापी दी गयीं बाद में १ माह की दवा और परहेज बताकर मुझे घर भेज दिया। 
यहाँ के डॉक्टरों ने जैसा कहा था बिल्कुल वैसा ही हुआ, मेरा १८ माह इलाज चला मेरी अंग्रेजी दवायें भी बन्द हो गयीं और जब से इलाज चला तब से कभी आज तक हार्ट अटैक भी नहीं आया। सबसे बड़ी बात यह है कि अब मुझे न तो कमजोरी हो रही, न मानसिक तनाव, न घबराहट, न बेचैनी। अब मेरी चित्रकूट की भी दवायें नाममात्र की चल रही हैं। मैं १०० % स्वस्थ हूँ और नौकरी आराम से करता हूँ। 
मेरे दो बार स्टेंट डालने के बाद भी दिक्कतें हो रही थीं वह सब आयुष कार्डियोलॉजी, चित्रकूट की चिकित्सा से चली गयीं । मुझे तो नया जीवन मिल गया । मैं तो सभी से कहता हूँ कि मेरी तरह स्टेंट में न फँसें। आयुष अपनायें 


कृष्णदेव सिंह
संजय नगर, रीवा (म.प्र.)
मोबा.नं.- ९४२४९७४६८२

 आयुष ग्राम ट्रस्ट चित्रकूट द्वारा संचालित
           आयुष ग्राम चिकित्सालयम, चित्रकूट 
            मोब.न. 9919527646, 8601209999
             website: www.ayushgram.org




  डॉ मदन गोपाल वाजपेयी                                                आयुर्वेदाचार्य, पी.जी. इन पंचकर्मा (V.M.U.)                   एन.डी., साहित्यायुर्वेदरत्न,विद्यावारिधि, एम.ए.(दर्शन),एम.ए.(संस्कृत )       
          प्रधान सम्पादक चिकित्सा पल्लव                                   
डॉ परमानन्द वाजपेयी 
          बी.ए.एम.एस., एम.डी.(अ.)

डॉ अर्चना वाजपेयी                                                                    एम.डी.(कायचिकित्सा) आयुर्वेद 

डॉ आर.एस. शुक्ल                                                                           आयुर्वेदाचार्य 


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